हिमाचल प्रदेश मे सड़क हादसे अब पाक्षिक रूप से होने लगे हैं ! हर बार प्रशासन मरने वालों और घायलों के लिए मुस्तैद !

आज 20.06.19 कुल्लू ज़िले से एक बस के बंजार में गिरने की बात सामने आयी है। जिसमें एक 42 सीटों  वाली बस में पहाड़ी सफर में 70 से अधिक लोग सवार थे ।

24 मार्च बंजार बठाहड़ मार्ग पर सड़क हादसे में एक मौत ।

5 अप्रैल सड़क हादसे में एक की मौत 44 घायल , निजी बस शालांग कुल्लू में खाई में गिरी ।

15 अप्रैल कुल्लू में सड़क हादसे में 1 की मौत और 12 घायल ।

16 मई बंजार बठाहड़ मार्ग पर सड़क हादसे में 16 यात्री घायल ।

यह सभी समाचार आपने अखबारों में पढे हुए है । कुछ नया नहीं बता रहा हूँ , परंतु सोचने की बात है की हर हादसे के बाद प्रशासन मुस्तैदी से घायलों की मदद करके उन्हे अस्पताल भेजने, मृतकों के परिजनों को मुआवजा देने में कुछ समय व्यस्त रहता है । उसके बाद शायद अगले हादसे की प्रतीक्षा मे समय निकाल जाता है । आप ध्यान से देखें कि एक तो इस समय वर्षा या कोई और प्रकृतिक आपदा नहीं है, इसके अतिरिक्त 16 मई वाले हादसे में तो भाजपा के राजनैतिक दल के कार्यकर्ता एक राजनेता की  रैलि में आ रहे थे । यहाँ पर आप समझे की न तो बेमौसम बरसात हो रही है । न बर्फ की मार पड़ी है और न ही इन हादसों के जिम्मेदार हिमाचल प्रदेश के बाहर के आए चालक हैं । अपना प्रदेश, अपने चालक अपना प्रशासन और अपने लोग ! फिर भी हम जिम्मेदार किसी बाहरी को ठहरा देने मे कोई कसर नाही रखते ।

कम से कम बंजार के रास्ते में तो 42 सवारी वाली बस ही चलती है । उस बस में 70 तक यात्री सवार थे और नवीनतम हादसा हुआ । क्या इन हादसों से कोई शिक्षा ली भी जाती है । हर हादसे के बार मंत्रियों के शोक संदेश , प्रशासन द्वारा उच्च स्तरीय जांच के 15 दिन में  रेपोर्ट देने की बात हो जाती है । शायद रेपोर्ट आती भी हैं और एक नयी फ़ाइल बन कर दफन हो जाती हैं । कुछ पर शायद कार्यवाही भी होती आई होगी । परंतु उस सब के बाद अगले हादसे में उसी कार्य की पुनरावृत्ति हो जाती है । कम से कम धरातल पर कोई बदलाव नज़र नहीं आता । कारण स्पष्ट है न तो मूलभूत समस्या की पहचान होती है और न ही उसके कारणों का विश्लेषण ।

सर्वप्रथम आप इस बात को समझें कि उनमें से अधिकांश बस के सड़क हादसों में चालक फरार हो जाता है और बाद में पकड़ा जाता है । अर्थात चालक अपने को, कल के हादसे में भी, अपने को बचाने में सफल हो गया । जब उसे लगा कि बस नहीं बचने वाली है और सवारियाँ खड़ में गिरने वाली हैं,  तब भी वह इतने होश में था कि अपने आपको बचा सका । इसका सीधा सा अर्थ है कि चालक की  नज़र में अपनी जान की सर्वाधिक परवाह थी । आपकी जानकारी के लिए यदि विमान हवा मे दुर्घटना ग्रस्त हो जाये तो विमान चालक जिसके पास पैरश्यूट होता है उसे विमान से सबसे अन्त में निकलने की अनुमति होती है ।

इन सभी दुर्घटना ग्रस्त बसों में अपनी क्षमता से कहीं अधिक सवारियाँ थीं । यह एक निजी बस थी और इसका परिचालक यानि  कंडक्टर अधिक मुनाफा देने के लिए  क्षमता से अधिक सवारियों को बैठाता है । यदि बस सुरक्षित पहुँच जाती है तो मुनाफा या लाभ मालिक का और यदि दुर्घटनाग्रस्त हो जाये तो घायलों का खर्चा सरकार वहन करे । हमारी सरकार से अपेक्षा है की हमारी हर संभव मदद करे और जब अपने लिए कर्तव्य की बात आए तो हम किसी भी सुरक्षा नियम का पालन न करें । हम सब अब दोष कंडक्टर और बस के मालिक को देंगे । परंतु क्या कभी एक सवारी की हैसियत से बस में अधिक सवारी होने पर इसका विरोध किया है या कम से कम स्वयं उस पर न चढ़े हों । यह भी संभव नहीं है क्योंकि बस में चढ़ते हुए हमें अपना समय बहुत कीमती लगता है और हम किसी भी तरह से समय बचाने के लिए भीड़ भरी बस में चढ़ जाते है । एक कारण यह भी है की हमें नहीं पता की अगली बस में स्थान इससे अधिक परेशानी वाला नहीं है ।

आइये इसके और अधिक मूलभूत कारण की बात करते हैं । जब भी सड़क हादसे होते है तो बहुधा सड़क की बदतर स्थिति को इसका कारण बता दिया जाता है । आप इस बात को समझें कि सड़क की स्थिति से अधिक आवश्यक है वाहन चालक का प्रशिक्षण, जो हमारे देश मे सबसे कम प्राथमिकता लिए हुए है। देश में करोड़ों विध्यालय हैं । अभिभावक अपने एक एक बच्चे के  लिए , धन  और समय लगाते हैं कि बच्चा अपना भविष्य बना ले। यदि कोई बच्चा अपने लिए अच्छी नौकरी हासिल कर लेता है तो वह अपने परिवार और अधिक से अधिक भविष्य के परिवार के लिए बेहतर जीवन जीने की कल्पना कर सकता और कर भी सकता है ।  परंतु यदि एक चालक और वह भी सार्वजनिक परिवहन को चलाता है तो प्रतिदिन सैंकड़ों लोगो की जान की ज़िम्मेदारी उस पर है, उसको प्रशिक्षित करने पर न तो सरकार सोच रही है और न ही परिवहन विभाग । परिवार तो क्या सोचेगा । प्रशासन तो किसी भी चालक को अनुज्ञापत्र देने से पहले नहीं सोचता है । यहाँ पर तो यदि आपको गियर बदलना आ जाए तो आप वाहन चालक बन सकते हैं । जबकि इसके लिए भी मौखिक और प्रयोगिक परीक्षाएँ देने का प्रावधान है, पर यह किस हद तक पालन होता है उसे हम सब भली प्रकार जानते है ।

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अभी संयुक्त राष्ट्र संघ ने 6 मई से 12 मई 2019 को सड़क सुरक्षा सप्ताह मनाया । संयुक्त राष्ट्र के अनुसार प्रति वर्ष 11 लाख से अधिक मौत सड़क हादसों में होती हैं । भारत का 2016 आंकड़ा बताता है कि 4,80,652 सड़क दुर्घटनाएँ हुई हैं (जिनकी रेपोर्टिंग हुई है) जिसमें से 1,50,785 व्यक्तियों की मौत हुई है । ध्यान रहे कि एक मौत का नुकसान हमारे देश में एक परिवार तक कर सकता है । अनुमान से 6 लाख से अधिक जनसंख्या सड़क हादसों का नुकसान भुगतती है । और मृत्यु का यह आंकड़ा 1,50,785 एक वर्ष में सभी युद्धों में मारे गए लोगों से अधिक है । 2018 के आंकड़ों मे सड़क दुर्घटनाएँ 3% कम हुई हैं परन्तु मृत्यु अधिक हुई हैं । स्पष्ट है कि अधिक भयानक दुर्घटनाएँ हो रही हैं । अर्थात इससे आप यह भी अनुमान लगा सकते हैं कि वाहनों की गति अधिक रही होगी, अर्थात सड़क परिवहन की गति में बेहतर सड़कों का योगदान रहा है ।  अब सड़कें बेहतर और दुर्घटनाएँ और वह भी खतरनाक अधिक, यह स्पष्ट करती हैं कि दोष सड़कों में नहीं परन्तु कहीं और है और वह कहीं और चालक के प्रशिक्षण मे ही आता है ।  यदि हिमाचल प्रदेश की बात करें तो प्रति लाख व्यक्तियों में मृत्यु की तालिका में हिमाचल प्रदेश पांचवें क्रम मे है ।

अब आप यह भी कह सकते है कि सरकार और प्रशासन की मदद से सड़क सुरक्षा दिवस या सड़क सुरक्षा सप्ताह मनाया जाता है । परन्तु यह कहाँ मनाते है हम लोग, शहरों के बड़े बड़े स्कूलों में , बड़े चौराहों या बड़े बड़े व्यापारिक चौराहों पर । तो यह तय रहा कि आप इसमें विध्यार्थियों को बताएँगे कि अपना बचाव दुर्घटना कि स्थिति में कैसे करें । सड़क देख कर चलें और यातायात के नियमों का पालन करें । पतंतु सबसे अधिक जो दुर्घटना करता है यानि चालक, विशेष तौर पर जो सार्वजनिक वाहन चलाते हैं, उसको कहाँ से बताया जाता है ? उसे तो बस अपनी फीस भर अनुज्ञापत्र बनवाना और लग जाइए नौकरी की तलाश में ।

इन दुर्घटनाओं में जैसे कि विदित है कि 1.5 लाख से अधिक लोग मृत्यु को प्राप्त होते हैं और सरकार कम से कम (न्यूनतम राशि 50,000) देते है तो सरकार लगभग 750 करोड़ रुपया देती है और घायलों के उपचार में सरकार को इसके 4 गुना मतलब 3000 करोड़ का खर्चा आता है । इस देश में लगभग 8 लाख व्यावसायिक चालक अनुज्ञा पत्र बनाए जाते है । जिंका शुल्क लगभग 1200 रुपये है अर्थात मात्र इस मद में सरकार के पास 100 करोड़ रुपये कि राशि आती है ।अब आप सोचिए कि क्या सरकार लगभग 1000 करोड़ रुपये  लगा कर इन व्यावसायिक चालकों को प्रशिक्षण नहीं दे सकती ।  यदि ऐसी व्यवस्था हो जाए तो, बीमा कंपनी, निजी वाहन के लिए चालक ढूँढने वाले, अपने व्यवसाय मे चालक रखने वाले और विध्यालय प्रबंधन के वाले लोग इसका समर्थन करेंगे । हाँ कहीं आपको विरोध मिले तो वह होंगे जो लोग बिना परीक्षा दिये वाहन चालक का अनुज्ञापर बनवाने वाले । आइये सोचें की हमें कैसा प्रदेश चाहिए ।

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