हमारे छोटे छोटे बच्चों पर पड़ने वाला मानसिक तनाव, क्या आज के जीवन में हम आपने वाली पीढ़ी को उपेक्षित छोड़ेंगे ?

विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस पर विशेष

भाग 1

यह जो विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस है इसे 1992 से मनाया जा रहा है, इसे मनाने के पीछे का तात्पर्य है कि हम लोग मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हो और इसके साथ ही जो मनोरोगी है उनके साथ भी हमारा व्यवहार अलग प्रकार से हो । यह देखा गया है कि पिछले 50 वर्षों में जिस प्रकार से विज्ञान ने प्रगति करी है इतनी तेजी से हम अपने शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान नहीं रख पाए हैं। और यह गति पिछले 30 दशक में बहुत तेज हो गई है, जबसे आपके सामने सेटेलाइट टेलीविजन, मोबाइल फोन, इत्यादि आए। प्रगति हमेशा गति से जुड़ी होती है, इसलिए इसकी गति को समझना और सामंजस्य बिठाना उतना ही आवश्यक है। जिसमें हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि हम इतने सफल नहीं हुए हैं। इसी कारण से विश्व स्वास्थ संगठन 10 अक्टूबर 1992 से प्रति वर्ष 10 अक्टूबर को इस दिवस पर विशेष ध्यान देना पड़ा।

इस दिवस को मनाने के साथ ही  हमें यह समझना है कि हम किस प्रकार से इन परिस्थितियों के प्रति जागरूक हो, यदि जागरूक हो जाएंगे, तो  स्वयं के लिए अपने समाज के लिए इस प्रकार के रोगों से, सशक्तिकरण की स्थिति में आ जाते हैं और यदि सशक्तिकरण की स्थिति में आते हैं, तो निश्चित रूप से हम इसकी रोकथाम कर पाएंगे। विगत कुछ वर्षों से इस प्रकार के दिवसों में एक विशेष विषय दिया जाता है, जिसका अर्थ यह होता है इस वर्ष हम इस प्रकार की चीजों पर ज्यादा ध्यान देंगे । इस वर्ष का विषय था असमानता की दुनिया में मानसिक स्वास्थ्य । विश्व हमेशा से असमान ही है पर इस महामारी में यह और अधिक असमान हो गया । आपने देखा होगा इस तथाकथित वैश्विक महामारी में, लोगों को बाहर निकलना, परिवार और समाज से मिलना और यदि कोई बीमार है, तो उसे 14 दिन तक एक कमरे में बंद रहना पड़ गया है । भारतीय परिवेश में यहां पर समाज की बड़ी भूमिका है, हम लोग अपने सब काम को समाज को ध्यान में रखकर करती है। यदि कोई उत्सव है तो प्रत्येक पारिवारिक और सामाजिक गण मिलकर मनाएंगे । यदि कोई शौक तो भी प्रत्येक परिवार को समाज का और पारिवारिक लोगों का सहयोग मिलता है, जिसके कारण मानसिक तनाव कम हो जाता है, क्योंकि हमें लगता है कि हमारे साथ बहुत से लोग जुड़े हुए हैं और इस कारण हमारा मनोबल बढ़ जाता है

और आइए अब क्या करें विशेष तौर पर जो अभी अभिभावक बन चुके हैं अर्थात उनके बच्चे अभी 5 साल से कम का हैं ,अथवा जिनके बच्चे उससे छोटे हैं या वह भावी अभिभावक हैं। याद करें  आज से 50 वर्ष पहले किसी बच्चे का जन्म होता था, तो वह परिवार में पलता था, अधिकांश संयुक्त परिवार थे और यदि किसी नौकरी इत्यादि के कारण संयुक्त नहीं रह पाते थे, समाज कम से कम संयुक्त रहता था । इसके लिए बच्चे एक स्वाभाविक वातावरण में पलते थे। लेकिन आज एक तो एकल परिवारों का युग आ गया, दूसरा घर से बहुत दूर जाकर लोग काम करने लगे और तीसरा इस महामारी के युग में हर परिवार अपने आप में अकेला पड़ गया इसलिए अभिभावक उस बच्चे को बहुत सचेत हो कर पालते हैं । इसमें पहले जो दायित्व समाज का था, संयुक्त परिवार का था, वह एक एक अकेले माता-पिता पर आ गया । मैं यहां पर यह अवश्य कहना चाहूंगा कि पहले यदि समाज में कुछ एकल परिवार थे तो भी अधिकांश समाज संयुक्त परिवारों का था । इसलिए बच्चा अपने आसपास भले ही एकल परिवार में हो परंतु अपने आसपास के बच्चों में संयुक्त परिवारों को देखता था। इसका अर्थ यदि उनके दादा दादी, नाना नानी पास नहीं भी है तो उसको लगता था कि किसी कारणवश मेरे साथ नहीं है परंतु दादा दादी नाना नानी का महत्व उसे समझ आता। अब क्योंकि अधिकतर एकल परिवार हैं, तो उनके बच्चों पर प्रभाव, भले ही आसपास संयुक्त परिवार से हो, उन्हें लगता है कि जो मेरा परिवार एकल है ऐसा ही जीवन सबका है। और इस कारण स्वार्थ घर कर गया है ।

आज का जो बच्चा है, उसको पालने में उसके अध्यापक अथवा अभिभावकों का बहुत अधिक प्रभाव रहता है, और पहले भी रहता था। तू पहले कुछ बातें समाज से बच्चा सीखता था, आज सामाजिक प्रभाव बच्चे पर कम हो चुका है तो इस कारण से बच्चा जो सीख गया अपने ही परिवार से सीखेगा। समाज में जो विकृतियां आई हैं के कारण आज हम अपने बच्चे हर तरह से बचाना चाहते हैं, यह बिल्कुल भी गलत नहीं है पर अनजाने में कई बार दुष्प्रभाव पड़ता है । आप कई बार सोचते हैं कि सकारात्मक कार्य कर रहे हैं लेकिन बच्चे पर उसका नकारात्मक प्रभाव भी पड़ता है आइए अभी से कुछ उदाहरण से समझें

आइए अब आप इसे कुछ उदाहरण से समझिए, यदि आपके आसपास आपके परिवार में कोई बच्चा अभी 3 या 4 वर्ष से कम का होगा, और आप उसके माता-पिता से पूछिए कि आप यह बताइए कि उस बच्चे कितनी कमियां है? आप ध्यान दीजिएगा उसकी कमियां इस रुप से कि वह बहुत शरारती है, खाना समय पर नहीं खाता, दूध पीने में समय  आता है, कार्टून के बिना खाना नहीं खाता इत्यादि इत्यादि । यही पूछिए कि आपके बच्चा मानसिक रूप से कैसा है, तो पता लगेगा वह तो बहुत कुशाग्र बुद्धि का है, हर चीज समझ लेता है एक बार रिमोट देख लेता है, उसको चलाना सीख लेता है, हमारे मोबाइल को देश कर उसको खेलना सीख जाता है इत्यादि इत्यादि। अर्थात अभी इस बच्चे ने आप से अधिक बुद्धि है अपनी उम्र के हिसाब से, जो हर अभिभावक आपको बोलेगा। अब आएगी उसके स्कूल जाने की बात, अभिभावकों को अपने बच्चे को ऐसे अच्छे स्कूल में प्रवेश की होड़ लगी रहती है। यहां तक कि यदि बच्चा जाकर के साक्षात्कार में कुछ ना बोल पाए उसे अपनी कमजोरी मान लेती हैं। खैर किसी ना किसी विद्यालय में बच्चे का का प्रवेश हो जाता है, उसके बाद दो-तीन 4 साल तक पढ़ता है और तीसरी चौथी तक सब के नंबर बहुत अच्छे आते हैं। जैसे ही थोड़ी बड़ी कक्षा आती है, तो कुछ विभिन्न प्रकार की स्थिति अभिभावकों के सामने आती है ।

इसी के साथ और परंपरा चली है जिसे आप पीटीएम यह कहती हैं, जिसका अर्थ है अभिभावक और अध्यापक का संवाद। अध्यापक द्वारा दिए गए उत्तर में 90 प्रतिशत से अधिक आप यह सुनेंगे, आपका बच्चा कर  तो बहुत कुछ सकता है लेकिन पढ़ाई में ध्यान नहीं है, खिड़की से बाहर देखता है शरारत करता है इत्यादि इत्यादि  । प्रश्न यह है जो बच्चा 6 वर्ष पहले बहुत अच्छा था कुशाग्र बुद्धि का था, आज उसमें आपको ध्यान केंद्रित करने की प्रवृत्ति नहीं है ऐसा इस 6 वर्ष की शिक्षा व्यवस्था में क्या हो गया ।

तो अब आइए इसे भी समझें, एक बच्चे के लिए उसके अभिभावक और शिक्षक दोनों ही उसके लिए अनुसरण के लायक है। वह आपकी बात माने या ना माने, परंतु वह आपका अनुसरण करता है, जो कुछ आप करते हैं जो कुछ आप देखते हैं वह अपने नजरिए से उन्हीं चीजों का अवलोकन करता है और आपको आदर्श मान करके आपके पीछे चलने की अपनी जगह कोशिश करता है। इसके साथ ही माहौल में जितना आप दबाव मेंहोते हैं, बच्चा भी उस दबाव में आता रहता है । आजकल वह बीमारियां जिन्हें आप लाइफ़स्टाइल डिजीज कहते हैं, बढ़ती जा रही है । जिसका कि  मूल कारण आपका तनाव में होना है, और बच्चा उस तनाव के कारण भी तनाव में ही रहता है। क्योंकि आप उसके आदर्श हैं इसके लिए वह आपने किसी कमी को नहीं देखना चाहता । जब आप प्रसन्न होते है तो वह भी प्रसन्न होता है ।

हमारे यहां पर यह भी एक भावना है अभिभावक, माता पिता अथवा शिक्षक भगवान के रूप में है, इनकी सभी  बातें ठीक है या इनका कहना मानो या यह गलत नहीं हो सकता । लेकिन इसके साथ ही हमें यह मानना पड़ेगा अभिभावक हैं, माता-पिता है, शिक्षक वह भी एक इंसान है और इंसान से गलतियां हो जाती हैं, जब कभी आपसे कोई गलती होती है तो बच्चे पर मानसिक दबाव यह पड़ता है कि जो मेरा आदर्श है उससे यह त्रुटि कैसे हो गई? इसलिए आपकी प्रत्येक व्यवहार का असर बच्चे पर पड़ता ही है। मेरे विचार से परेशानी यह है कि हम बच्चे पर अपना अधिकार जमाना शुरू कर देती है, हम समझते हैं मैं ऐसा काम करता हूं बच्चा भी ऐसा ही काम करें यही काम शिक्षक भी सोचता है। लेकिन आप यह भूलते हैं बच्चा आपके घर में आया एक जीव है, यदि आप सनातन संस्कृति को मार मुझे चाहिए अपने संस्कार अपनी वृत्तीय लेकर आपके घर पैदा हुआ है। आप क्या मुख्य काम उसे उसके श्रेष्ठ संस्कारों और विचारों को आगे बढ़ाना है लकी अपने विचारों को उस पर थोपना। यहीं पर हम गलती कर जाते हैं।

आइए अब समझे हम प्रकार थे छोटे-छोटे कर्मों के द्वारा गलत धारणा डालते रहती है। जब कोई छोटा बच्चा हमारे साथ चलता है, बात करता है तो हम उसको सिखाते हैं अगर ऐसे बात करोगे, पड़ोस के घर में जाकर ऐसी बात करोगे, ऐसा व्यवहार करोगे तू तुम्हें चॉकलेट मिलेगी या टॉफी मिलेगी या कोई और चीज। आप समझती है कि आप चाहे या ना चाहे आपने उसके मन में भ्रष्टाचार को जन्म दे दिया है। अब वह हर काम इसी लालच में करेगा कि मुझे इस से कुछ प्राप्त हो। और यह स्थितियां बढ़ते बढ़ते अंकों तक चली जाती है। आप भी चाहते हैं कि बच्चा मन लगाकर पढ़ें, पर उसे आदत है भ्रष्टाचार के स्वरूप कुछ मिलने के बाद पढ़ने की उसके लिए जिज्ञासा दुबे दर्जे का विषय बन जाता है अंक प्राप्त करके इसका पुरस्कार पाना। जब कहीं छोटा बच्चा गिरता है, हम उसको उठाकर कहते हैं तुमको धरती में के स्थान ने मारा, चलो इसको मारो, इसकी पिटाई करो याद धत्त कर दो। आप समझ गए जाने अनजाने आपने बच्चे के मन में हिंसक वृत्ति को जन्म दिया।

इसके अतिरिक्त आप समाज की टूटन का जो प्रभाव पड़ा उसे भी समझे, पहले संयुक्त परिवार होते थे, एक गलती बच्चे से हुई तो हर कोई उसे अपने प्रकार से डांट कर चला जा। बात का बुरा नहीं मानता था, क्योंकि आपके स्वयं के अंदर चीकू सुधारने की भावना होती थी समाज का कोई भी बड़ा व्यक्ति बच्चे को समझाना अपना कर्तव्य समझता था । आज छतीय हो गई है भाई भाई के बच्चों को नहीं डांट, पिता अपने बच्चे को डांट से पहले 3 बार सोचता है। परिवार एकल हो गए बच्चे का सामाजिक ताना-बाना बदल गया ।

अंत में मेरा निवेदन प्रत्येक अभिभावक प्रत्येक शिक्षक से यह है बच्चे की पालने को अपना सबसे बड़ा कर्म समझे, यदि आपने एक अच्छे बच्चे को स्वस्थ मानसिकता के साथ समाज को दिया तुम्हें अच्छा पिता बनेगा, अच्छा पुत्र बनेगा और श्रेष्ठ सामाजिक व्यक्ति बनेगा। नहीं तो वह समाज में मैं तो समाज के काम का होगा परिवार के काम का होगा। बच्चे को कभी यह मत समझना दीजिए कि आप उसकी अच्छाई की वजह से उसे प्रेम करते हैं, आपका प्रेम बिना शर्तों की है परंतु उसकी अच्छाइयां आपको और बच्चे को जीवन के लिए प्रेरणादायक रहेंगी। धन्यवाद अगले अंक में इससे बच्चों की से बड़े बच्चों की हम बात

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