मात्र 10 महीनों में IIT में 9 विद्यार्थी आत्महत्या करते हैं ? क्या यही सपना युवा भारत देखता है !

13 नवंबर 2019 दिल्ली 18 वर्षीय विद्यार्थी

10 नवंबर 2019 मद्रास 18 वर्षीय विद्यार्थी

29 अक्टूबर 2019 हैदराबाद 20 वर्षीय विद्यार्थी

2 जुलाई 2019 हैदराबाद 20 वर्षीय विद्यार्थी

7 फरवरी 2019 हैदराबाद 21 वर्षीय विद्यार्थि

29 जनवरी 2019 मद्रास 23 वर्षीय विद्यार्थी

2 जनवरी 2019 मद्रास 25 वर्षीय विद्यार्थी

यह सब उन विद्यार्थियों की गिनती है जो भारत के तथाकथित सर्वश्रेष्ठ शिक्षण संस्थान में, यानि IIT मे किसी भी कारण से कुंठा ग्रस्त होकर जीवन से हताश हो गए । इन सब ने अपनी अपनी शिक्षण संस्थानों में आत्म हत्या कर ली । हम अपने युवाओं को इस हद तक ले आए कि जिस संस्था में लोग बहुत मेहनत से पहुंचते हैं वहां के विद्यार्थी भी कुंठा ग्रस्त हो गए । आईआईटी में 1200000 से अधिक विद्यार्थी प्रवेश परीक्षा में बैठते है जिनमे से लगभग 200000 का चयन आईआईटी की मुख्य परीक्षा के लिए होता है और आईआईटी में उनमें से लगभग 12000 जाते हैं । 1200000 में से 12000 विद्यार्थी अर्थात कम से कम विज्ञान और गणित संकाय के शीर्षतम 1% विध्यार्थी वहां जाता है । दुर्भाग्य यह है कि जाकर भी इतना कुंठा ग्रस्त हो जाता है,  हताश हो जाता है अपने जीवन को समाप्त करने जैसा भीषण कदम उठा लेता है । अब यह तो उन नामों की बात थी जिन्होने आत्महत्या कर ली इसके कई गुणा युवा कुंठा के शिकार होते है ।

आत्महत्या जैसे संगीन कदम उठाने के लिए हर व्यक्ति के कुछ कारण होंगे , परंतु प्रथमदृष्ट्या यानि prima facie तो है की वह व्यक्ति उस तनाव को सह नहीं पाया । कुछ भी हो जाए, आत्महत्या किसी भी समस्या का समाधान नहीं है । परंतु यदि एक युवा के बारे मेम आप सोचें, वह भी जो IIT जैसे संस्थान में अध्ययन कर रहा है । उसे हम लगभग एक सफल विद्यार्थी मानते हैं । अब यदि सफल और शीर्ष विद्यार्थी को हम इस तनाव को सहन करने योग्य नहीं बना पाये तो क्या यह शिक्षा ठीक कही जाएगी ?

भारत के आंकड़े बताते है कि जहां भारत  में प्रतिवर्ष 2.3 लाख व्यक्ति आत्महत्या करते हैं । वहीं इस देश में 40 वर्ष से कम आयु  में मृत्यु का यह मुख्य कारण है । इस देश मे आयु का मंझला जोड़ जिसे mean कहते हैं वह है 27.1 वर्ष और 40 से कम उम्र में मृत्यु का यह कारण मुख्य ? कितनी बड़ी विडम्बना है ? पर शायद हम इस पर बात ही नहीं करना चाहते है । और जहां तक सभी विध्यार्थियों का प्रश्न है, आंकड़े बताते है कि 6.23 विध्यार्थी प्रतिदिन आत्महत्या करते हैं । मनोवैज्ञानिकों और समाज शास्त्रियों ने जो आंकड़े दिये हैं उसके अनुसार छात्रों कि आत्महत्या का सबसे बड़ा कारण, अभिभावकों का दबाव हैं । कक्षा 12 के 50% से अधिक युवकों के पास 3 से अधिक tuition हैं आजकल । अब tuition रखने का कारण था कि विध्यार्थी पर दबाव कम हो और उसे अतिरिक्त सहायता दी जाए । परंतु इसका ठीक उलट हो रहा है । एक तो छात्रों पर विध्यालय का दबाव, उस पर tuition का दबाव और अन्त में अभिभावकों का कहना “हम तो बिना tuition के पढ़ चुके, तुम्हारे लिए इतनी tuition लगाई इतना पैसा भी खर्चा किया पर अभी तक कुछ लाभ नज़र नहीं आ रहा”।

समय के बदलाव के साथ आज थिति यह है कि 4 से 16 वर्ष की आयु के 12% बच्चों में मानसिक अवसाद या depression पाया जाता है । और इनमे से 20% मानसिक विकार तक पहुँच जाते हैं । लगभग 5% तो जटिल मनोरोगी तक बन जाते हैं । और यह सब समय के साथ बढ़ता जा रहा है । कहीं हम अपने युवाओं पर अपनी अपेक्षाएँ थोप तो नहीं रहे हैं ? 10 सफल engineer के साथ हम 1 मनोरोगी तो नहीं बना रहे हैं । यदि ऐसा है तो यकीन मानें प्रति रोगी, स्वस्थ युवाओं की गिनती कम होती जाएगी ।

अब आप यदि आप ध्यान दें तो एक तो उन अभिभावकों का जीना दुश्वार हो जाता है जिनके जवान संतान इस प्रकार का कदम उठाती है,  परंतु दूसरी तरफ यह युवा देश भी ऐसी तीक्ष्ण बुद्धि वाले युवाओं से वंचित हो जाता है ।  किसी भी देश का सशक्त, स्वस्थ  और समर्थ युवा उस देश की बहुमूल्य संपत्ति है । हम अपनी बहुमूल्य संपत्ति को खोटे तो नहीं जा रहे हैं । एक तरफ तो हम कहते हैं जो भारत एक युवा देश है परंतु क्या हम अपने युवाओं को सही मार्गदर्शन देने में सक्षम हुए हैं ? यह प्रश्न सरकारों के साथ-साथ समस्त शिक्षा शास्त्रियों और समाज शास्त्रियों के लिए भी है । कहीं ऐसा तो नहीं कि हम नाही पीढ़ी पर अपनी आकांक्षाओं का बोझ उनकी अपेक्षाओं से अधिक डाल रहे हैं ?

समय-समय पर जो कहा जाता था कि, अब अपनी शिक्षा पद्धति को दुरुस्त करें नहीं तो हमारा विद्यार्थी जो देश का युवा है वो खोखला साबित होगा । वहीं पंक्ति अब सामने आ रही  है । 90% से अधिक युवा वह शिक्षा प्राप्त करते हैं वह उनके काम की नहीं होती । हमने शिक्षा व्यवस्था को ज्ञान से हटाकर एक प्रमाण पत्र की शिक्षा व्यवस्था बना दी जिसके कारण बेहतर से बेहतर प्रमाणपत्र पाने की अपेक्षा करता है । यह शिक्षा जो एक नौकरी के लिए थी न कि ज्ञान के लिए, न तो नौकरी दिलवा पायी और न ही ज्ञान ।

अगले अंक में इसके निवारण पर कुछ सुझाव . .

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