प्रदूषण के निवारण के लिए कुछ किया भी जा सकता है क्या ? जब सरकारें राजनैतिक स्वार्थ से ऊंचा उठ ही नहीं सकती

गतांक से आगे…

सर्वप्रथम आप यह समझें कि प्रदूषण का स्तर कब और बढ़ा है ? इसके साथ ही जब मैं इस लेख के लिए आंकड़े इकट्ठे कर रहा था तो मेरे मित्र अनूप खन्ना का संदेश आया कि सरकार पर छोड़िए यह समझिए कि हम क्या कर सकते हैं । आप को यह सब आजकल मीडिया रेपोर्ट से पता चला कि प्रदूषण बढ़ गया है । परंतु आपको यह जान कर आश्चर्य होगा कि कम से कम पिछले पंद्रह वर्षों से दिल्ली का प्रदूषण स्तर वैश्विक मानक से कहीं अधिक है । आज आपको यह स्तर 300 से 500 के बीच मे बताया जा रहा है ।  सबसे पहले आप समझें कि PM2.5 के वैशविक मानक क्या हैं । दरअसल विश्व स्वास्थ संगठन ने PM2.5  की मात्र 12 ग्राम प्रति घन मीटर और PM10 की मात्र को 20 ग्राम प्रति घन मीटर को स्वस्थ माना है । जबकि भारत देश मे इसका मानक लगभग वैशविक स्तर से तीन गुणा बढ़ा दिये हैं । अब यह 2001 मे 150, 2010 में 249 से बढ़ता हुआ 2015 में 280  के आसपास हो चुका है । और यह सब औसत वर्ष भर के हैं ।  और अब 2019 में इसका औसत 290 के आसपास ही रहा है । आपकी जानकारी के लिए 150 से ऊपर का मान अस्वस्थ माना जाता है और 200 से ऊपर अतिअस्वस्थ की श्रेणी मे लिया जाता है । और 300 से ऊपर खतरनाक या संकटपूर्ण माना जाता है । अर्थात आप दिवाली और पराली के अतिरिक्त भी पूरे वर्ष राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में अस्वस्थ वातावरण में सांस लेते हैं ।

अब तनिक इसके कारणों पर भी दृष्टिपात करते हैं ।  दिल्ली के आर्थिक सर्वेक्षण 2017 के अनुसार के एक भाग में इसका सबसे बड़ा कारण जनसंख्या का दिल्ली में बढ़ना बताया है । यह एक बहुत बड़ा कारण भी है आप आंकड़ों से देखें तो दिल्ली की आधिकारिक जनसंख्या जो 1.05 करोड़ 2001 में थी आज 1.35 करोड़ के पार हो गयी है । अभी अस्थायी और अवैध लोगों की संख्या लगभग 40 लाख के ऊपर है । अर्थात आज के समय दिल्ली में 1.70 करोड़ से अधिक लोग रहते हैं ।  यह दिल्ली जो आज लगभग 1 करोड़ लोगों का बोझ सह सकती है उसके ऊपर 70% अतिरिक्त भार है । अर्थात 70 लाख की जनता के लिए रहने की अवैध और अस्थायी व्यवस्था जिसके कारण उनके भोजन बनाने से लेकर कचरा निराकरण की व्यवस्था छोटी पड़ जाती है । दुर्भाग्य यह है की इसमे से अधिकांश का आंकड़ा दिल्ली सरकार के पास नहीं होने के कारण कोई भी सरकार इनके लिए उपयुक्त योजना नहीं बना सकती ।

इसके दुष्प्रभाव के रूप में दिल्ली में वाहनों की गिनती जहां 2001 में 40 लाख थी वहाँ पर आज 1.07 करोड़ के पार हो गयी है । आप देखें कि पिछले 19 वर्षों में 250% की वृद्धि वाहनों की हुई है । जहां पर दिल्ली मे 28000 किलोमीटर की सड़कें है । अब समय के साथ दिल्ली की सड़कों मे कोई विशेष वृद्धि नहीं हो रही और न ही हो सकती है क्यूंकी इसका क्षेत्रफल तो वही है । हाँ कुछ स्थानों पर फ्लाईओवर और कुछ सड़कें बनी हैं । जहां 2001 मे 142 वाहन प्रतिकिलोमीटर थे वहीं आज 382 वाहन प्रति किलोमीटर हो गए हैं । इसमें से जहां पहले 20% कार थी यानि लगभग 8 लाख वहीं आज 34 लाख करें है । जिनमे से आप ODD EVEN का फॉर्मूला लगा कर 10% से अधिक कारें कम नहीं कर सकते । अब आप ODD EVEN करें या कुछ और पूरी प्रक्रिया में आप 5% से अधिक वाहन रोक नहीं पाये हैं । दुर्भाग्य से मात्र अधिक कारें इस देश के अर्थशास्त्रियों के अनुसार देश की प्रगति का द्योतक है, इसके दुष्परिणाम को समझने में हम असमर्थ रहे ।  यही वाहन का प्रदूषण दिल्ली के स्थानीय प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण है और इसका योगदान दिल्ली में 40% के आसपास है ।

अब आइये इसके साथ ही अनियोजित औद्योगिक विकास की बात करें । दिल्ली में कुछ चिन्हित स्थान है जहां पर आप औद्योगिक इकाई लगा सकते हैं । लेकिन 2018 अगस्त में प्रकाशित लेख के अनुसार, सर्वोच्च न्यायालय के कहने के बाद भी 2018 मे 51,837 इकाइयां ऐसे चल रही है जो प्रदूषण फैलाती हैं और इनको नहीं होना चाहिए । अब इसके कारण ही इसमें काम करने वाले 5 लाख से अधिक कारीगर और 20 लाख से अधिक जनसंख्या दिल्ली मे आश्रय लेती है । यदि यह यहाँ से चले जाते हैं । तो एक तो औद्योगिक प्रदूषण कम होगा और 25 लाख जनसंख्या का बोझ दिल्ली से हट कर किसी पड़ोसी राज्य में हो सकता है । इनके चलने से मिट्टी के कण जिनमें रसायनिक पदार्थ विद्यमान है, प्रदूषण का कारण बनते हैं । इसी के कारण दिल्ली में बिजली की खपत बढ़ती है । इनसे भी आप प्रदूषण को कम कर सकते हैं ।  इसके साथ ही प्रदूषण फैलती पुरानी और नयी इकाइयों को सुविधा के साथ दिल्ली के बाहर दूसरे प्रदेशों में स्थापित करने में सरकारी मदद करनी चाहिए ।

अब बात करते हैं सबसे महत्वपूर्ण और मेरे मित्र अनूप खन्ना जी के सुझाए मार्ग पर । हम मे से सब लोग इस प्रदूषण के प्रति जागरूक हों । शिक्षा के स्तर पर ही इसकी चर्चा भावी पीढ़ी के शिक्षा पाठ्यक्रम में हो और इस पर कुछ राष्ट्रीय आंदोलन चले । जिस प्रकार से स्वच्छ भारत अभियान है जिससे आम भारतीय इसके प्रति सजग हो । अब हर चालक अपने वाहन से निकालने वाले प्रदूषण पर सचेत हो । दुर्भाग्य यह है की सब कुछ कानून से करने की सरकारों की नीति । आज आपकी गाड़ी यदि प्रदूषण फैला रही है पर उसके पास प्रदूषण प्रमाण पत्र है तो उस पर कोई कार्यवाही नहीं है पर इसके विपरीत यदि वाहन प्रदूषण न करे पर आपके पास प्रमाण पत्र न हो तो आप दोषी करार दिये जाते हैं । स्वयं सोचे यह प्रमाण पत्र की मुहिम है या प्रदूषण नियंत्रण की ।

अब प्रश्न है कि यह हो कैसे इस राजनीतिक वातावरण मे। दिल्ली से पलायन करवा कर गांवों मे रोजगार उत्पन्न करने केलिए सरकारों के पास पर्याप्त धन ही नहीं है । यदि इसके हल मे स्मोग टावर जिसकी कीमत 2 करोड़ की है, तो पहली बात उसके लिए धन चाहिए, परंतु दूसरी बात यह है कि जन पलायन को रोके बिना यह समस्या बढ़ती ही जाएगी । आप कितने टावर लगवाएंगे । यदि कारों को रोकने की बात करें तो कार वाली कंपनियाँ तो मतदान के समय राजनीतिक दलों को धन देना बंद कर देंगी । अंत मे बात वहीं है कि आर्थिक कमजोर सरकारें सिवाय लीपा पोती के कुछ नहीं कर सकती, चाहे वह कितनी ही ईमानदार सरकार हो ।

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