दोष मात्र संविधान का नहीं परंतु सामाजिक परिवर्तन का भी है ! संविधान नहीं समाज बदलिए

गतांक से आगे

पिछले अंक में हमने समझा कि आज देश में व्यवस्था करवाने वाले ही अपने अधिकार का दुरुपयोग करते हैं । परन्तु यदि सब प्रशासन आज काम भी करे तो क्या समाज उनसे सुधार कर पाएंगे ।

मेरी व्यक्तिगत मान्यता है कि कानून से बदलाव न आएगा न ही आता है । इसके लिए सामाजिक परिवर्तन की आवश्यकता है ।  आपने जब से विवाहित युवती के अधिकारों के कानून बनाए हैं तब से तलाक और उत्पीड़न चाहे पति पर हो या पत्नी पर, के मामले बढ़ गए हैं । जबसे आपने मजदूरों के लिए कानून बनाए हैं तब से कारखानों में उत्पादकता कम हो गयी है । और कारखानों में ताले भी लग रहे हैं । जब से आपने चिकित्सकों पर कानूनी शिकंजा कसा है तब से चिकित्सा क्षेत्र में अधिक अनियमित्तएं बढ़ गयी हैं । यह कानून व्यवस्था आपके समाज को तोड़ेगी, बनाएगी नहीं । आप से अधिक जहां पर कानून के रखवाले है, वहाँ पर अत्याचार अधिक हैं । समाज से शिक्षित बेरोजगारों से नौकरी के नाम पर ठगने वाले केस भी आप रोज़ सुनते हैं । एक युवा जो ईमानदारी से नौकरी के लिए 16 वर्ष लगा रहा है और नौकरी के झांसे से लाखों रुपये भी गँवाता है । उसे इस देश में क्या न्याय तंत्र पर भरोस होगा ? फिर आप कहेंगे कि कानून व्यवस्था में लोग मदद नहीं करते ।  फिर भी विदेशों से भारत की स्थिति बेहतर है क्योंकि भारत में आज भी नारी के सन्मान में देश खड़ा हो जाता। चाहे वह निर्भया हो या पशु चिकित्सक का केस ।

वैश्विक स्तर के आंकड़े देखें तो प्रति लाख व्यक्ति भारत में 1.8 बलात्कार के मामले हैं वहीं अमेरिका में 27.3 हैं । अप सुरक्षा बालों की बात करें तो प्रति लाख व्यक्ति भारत में  150 पुलिस कर्मी है और यही आंकड़ा अमेरिका मे 298 हैं । हाँ अगर आप दुबई देश की बात करें तो वहाँ पर 625 पुलिस कर्मी प्रति लाख व्यक्ति हैं ।  स्वीडन नामक देश मे जिसका HDI 0.933 है में 63.5 बलात्कार प्रति लाख व्यक्ति, वहीं पर भारत का HDI 0.640 है । अर्थात जिन देशों में व्यक्ति अधिक विकसित माना गया है उस तालिका में भारत का स्थान 137 है वहाँ बलात्कार के मामले प्रति लाख 1.8 हैं । और तथाकथित सबसे विकसित देश नॉर्वे में बलात्कार की संख्या 19 प्रति लाख है । इन आंकड़ों से यह स्पष्ट है कि जिन देशों ने कानून और आंकड़ों में तरक्की की है वह कहाँ है आज ?  यहाँ हो सकता है कि सामाजिक परिवेश के कारण सभी शारीरिक बलात्कार के मामले दर्ज नहीं होते परन्तु यह कमोवेश हर देश की स्थिति है । इन आंकड़ों को देने का अर्थ यह कदापि नहीं है कि क्यूंकी हमारे यहाँ कम बलात्कार हैं तो इसे “यह तो चलता है” की नीति अपनाई जाये । अपितु इसके लिए जागरूक होना और पुरुष और स्त्री दोनों को एक व्यक्ति के अनुसार ही समझा जाये । इससे यह तो स्पष्ट है कि जहां कानून के तथाकथित रक्षक अधिक हैं, वहाँ पर भी बलात्कार इत्यादि घृणित अपराध कम नहीं हुए है । तो न तो कानून से अपराध रुकेंगे, न तो पुलिस बल बढ़ाने से तो कैसे होगा ? यह होगा समाज के परिवर्तन से ।

https://www.thehindu.com/opinion/blogs/blog-datadelve/article6186330.ece

महिलाओं और विशेषकर विवाहित महिलाओं के लिए बनाए गए कानून का किस प्रकार दुरुपयोग होता है यह आपको NCRB के आंकड़ों और अदालत के आंकड़ों से पता चलता है । 2003 से 2013 के बीच लगभग 15% केस पुलिस ने ही खारिज किए और जो मुक़द्दमे अदालत तक गए उसमें से लगभग 85% से अधिक  में पुरुष पक्ष को निर्दोष बताया गया है । स्पष्ट है कि अधिकांश मामलों मे समाज में अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए पुरुष वर्ग द्वारा किए गए मुक़द्दमे नारी पक्ष को धन दे कर समाप्त किए गए है । और इससे और भी स्पष्ट होता है कि नारियों के सन्मान के लिए बनाए गए कानून का कुछ महिलाएं ही पैसा कमाने के लिए दुरुपयोग कर रही हैं । हिन्दू में छापे समाचार पत्र से यह स्पष्ट भी हो रहा है ।

कभी कभी समाचार आता है कि नौकरी का झांसा देकर चार महीने तक युवती के साथ बलात्कार किया गया । क्या आपको नहीं लगता कि यदि नौकरी दे दी जाती तो यह केस दर्ज़ ही नहीं होता ? इसी प्रकार किसी नौकरी या धन या कोई और प्रलोभन के नाते कोई युवती अपने साथ शारीरिक संबंध बनाती है और यदि इस में कोई वादा पूरा न हुआ तो बलात्कार का आरोप लगा देती है।  आज तो कितने ही ऐसे मुक़द्दमे दर्ज होते हैं जिसमे पुरुष पर स्त्री द्वारा उत्पीड़न किया जाता है और फिर भी स्त्री ने पुरुष पर मुक़द्दमा लगाया जाता है । यहाँ तक कि बहुत से भयदोहन यानि blackmail के केस भी दर्ज हुए हैं । अपने कानून तो बना दिया पर उसके साथ ही उसका दुरुपयोग करना पहले से ही प्रारम्भ ओ जाता है । यह कमोवेश हर कानून के साथ हो रहा है । क्योंकि आप किसी को भयभीत तो कर सकते हैं पर उसके इरादे को नहीं बदल सकते । इससे होता क्या है तो वह कानून की खामियों से अपने आपको बचाता है और सबसे ज़्यादा साथ उसका उसके वकील देते हैं । अब यदि सब वकील किसी घिनौने कृत्य पर आरोपी का साथ न दें तो सरकारी वकील उसे दिया जाता है । यह हमारे कानून की स्थिति है ।

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