आज आपको सम्पूर्ण social मीडिया पर महिलाओं के लिए बहुत सन्मान भरे लेख मिल जाएंगे । कल सब कुछ भूल कर आप रोजमर्रा की ज़िंदगी मे चले जाएंगे । महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि जिस भारतीय संस्कृति मे, वैदिक संस्कृति में नारी के ही पहले तो तीन नाम है वृहद विभाजन में । जिन्हे आन नारी , महिला या स्त्री कहते है । कभी आपने सोच इन नामों में क्या अन्तर है । हमारे देश की वैदिक संस्कृति में, हर वस्तु अथवा जीव का नामांकरण उसके गुणों में है । यदि ब्रह्मा विश्व के रचयिता है तो, वहीं विष्णु संसार के पालनकर्ता का नाम है और महेश विध्वंसकारी शक्ति का नाम है ।
आइए समझिए : नारी शब्द की उत्पत्ति न + अरि से हुई है । और अरि शब्द का अर्थ है शत्रुता, अर्थात जिसकी किसी से भी शत्रुता न ही उसका नाम नारी है । दूसरा शब्द आपने महिला सुना होगा । इस शब्द की उत्पत्ति महि +ईल से हुई है, महि का अर्थ है धरती औरईला शब्द का श्रह है धैर्य । अर्थात जिसमे धरती के जैसा धैर्य है वह महिला है । कुछ लोगों ने व्यंग्य में इसे महि + हिला बना कर बोल दिया जो धरती को हिला कर चले वह महिला है । यह तो थे हिन्दी के शब्द और वह भी वह जो आप रोज सुनते हैं ।
वैदिक संस्कृति में नारी के नाम बहुत ही अधिक है, जहां वीरांगना नाम एक वीर नारी का दिया, वहीं पर वीर प्रसवा उस नारी को नाम दिया जो वीर पुत्रों को जन्म देती है । इसी प्रकार विद्यावाती अथवा विद्या अलंकृत नाम उसे दिया जो विद्या से अलंकृत है, अर्थात विद्या ही उसकी शोभा है। इसी प्रकार आपने नाम दिया है अन्नपूर्णा एवं स्नेह मयी माँ, इस शब्दों का अर्थ सुन कर ही समझ या जाता है ।
देश की उन सभी महिलाओं को समर्पित जो women liberation या महिला सशक्तिकरण के लिए काम करती हैं । भारत मे यह शब्द कहाँ से आया और क्यों आया यह जानने के लिए हमें थोड़ा इतिहास जानने की ज़रूरत होगी । यह देश जो शक्ति के लिए दुर्गा माता, धन के लिए लक्ष्मी माता और विद्दा के लिए सरस्वती माता की आराधना करता है । जिस देश का स्वतन्त्रता संग्राम भारत माता के लिए लड़ा गया, जिस देश में वन्दे मात्रम को राष्ट्रीय गान समझा गया उस देश मे महिला क्या कमजोर है ?
जिस देश मे कहा गया “यत्र नार्यस्ते पूजयते रमन्ते तत्र देवता” आज भी भारत के कई मंदिरों मे पत्नी के साथ ही प्रवेश संभव है। जिस देश में यज्ञ मे यजमान बनने के लिए पत्नी को साथ बैठना पड़ता है । उस देश में नारी अशक्त कहाँ से हो गयी। आपने ठीक समझा यह देश महिलाओं को कभी भी अशक्त या असहाय नहीं मानता तो यह विचार कहाँ से आया ।
इस सारे फसाद की जड़ है अँग्रेजी सभ्यता जिसने हमें 200 वर्षों तक गुलाम बनाया । यूरोप और अमेरिका के दार्शनिक विचार हमें जानने पड़ेंगे । उनके तथाकथित महान दार्शनिक PLATO के अनुसार नारी में आत्मा नहीं होती । यह कहा जाता है कि EUROPEAN CIVILIZATION IS FOOT NOTE OF PLATO। उसके बाद RUSO नमक दार्शनिक जो अपने आप को PLATO का शिष्य कहता है उसने भी इसी परम्परा को बढ़ाया। PLATO के अनुसार नारी मात्र कुर्सी मेज कि तरह घर मे रखने के लिए जब दिल भर जाये दूसरी ले आइये । विवाह की परम्परा वहाँ (EUROPE) में सदियों नहीं रही। यदि किसी स्त्री से संतान हो जाए तो उसको पहले पति या तथाकथित पुरुष जो उसका पिता ही पहले स्पर्श कर सकता । स्त्री को यह अधिकार नहीं है । PLATO के अपना खुद का चौथा पुत्र क्योंकि स्त्री ने पहले उसका स्पर्श किया था बाहर सड़क पर रख दिया था और कुत्ता उसका पुत्र खा गया था ।
जी हाँ यही सत्य है। सन्तान होने के बाद उसे घर पर रखने की परम्परा भी नहीं रही क्योंकि PLATO का मानना था कि पुरुष और स्त्री के आनंद मे सन्तान बाधा होती है इसीलिए उसे अपने साथ मत रखो। यदि उस सन्तान को घर पर रखना भी होतो उसका अधिकार पुरुष को ही है । यह तो रही पुरानी बातें जिंका प्रमाण उसकी पुस्तक REPUBLIC और LAWS में है । सातवीं शताब्दी तक औरत को मनुष्य का दर्जा नहीं था तब 41/40 वोटों की बहुलता के बाद EUROPE मे नारी को इंसान माना गया। यह वहाँ पर चले HUMAN RIGHTS के तहत हुआ । यह HUMAN RIGHT शब्द भी उसी सभ्यता की देन है। चलिये आपको लगे कि शायद यह कटुता पूर्ण सत्य है अब आजकल यानि इस सदी कि बात करते हैं।
अमेरिका नमक देश जिसकी हम सब तारीफ करते है लगभग 1778 मे आज़ाद हो कर लोकतन्त्र बन गया परंतु आपकी जानकारी के लिए महिलाओं को वोट देने का अधिकार 1926 मे प्राप्त हुआ यानि लोकतन्त्र की बहाली के 148 वर्षों के बाद । इसी प्रकार ब्रिटेन जो संकड़ों वर्षो का लोकतन्त्र है । उसमे महिलाओं का वोट का अधिकार मिला 1924 में लगभग 800 वर्षों के लोकतन्त्र के बाद । फ्रांस में 1946 और जर्मनी मे 1945 में वोटिंग का अधिकार मिला । इन देशों को महिला सशक्तिकरण की शायद आवश्यकता थी यह भारत मे कहाँ से आई ? क्या आप जानते हैं
SWITZERLAND मे महिलाओं को यह वोट का अधिकार कब मिला ? आप शायद सोच नहीं सकते उससे पहले भारत में महिला प्रधान मंत्री बन चुकी थी । इन्दिरा गांधी भारत की महिला प्रधान मंत्री बनी 1966 में जबकि SWISS महिलाओं को वोट का अधिकार मिला 1972 में । क्या हम अपने देश को और विश्व के इतिहास को जानते हैं मेरा दावा है की 90% से अधिक भारतीय लोग अपने देश के बारे मे वही जानते हैं जो अंग्रेज़ो ने कह दिया क्योंकि पाठयक्रम मे देश के गौरव की कोई बात हमें पढ़ाई नहीं जाती। दूसरे फैशन चल गया है कि किसी भी सभा में कोई अँग्रेजी वेषभूषा में आकार अपने देश के प्रति अपमानजनक शब्द कह दे औए अमेरिका और इंग्लंड के बारे में प्रशंसात्मक शब्द कह दे वह महान बुद्धिमान हम मान लेते हैं और कहीं अँग्रेजी मे भारत और भारतवासियों को गाली दे दे तो बात ही क्या ?
सभी महिलाओं से मेरा अनुरोध है इस लेख कि वो बातें जो आपको बताने लायक ठीक लगें सबको बताएं जिससे हमारा देश नारियों को वही सन्मान दे जो शायद अँग्रेजी सभ्यता के कारण हम नहीं दे पारहे हैं ।
समझ लीजिये कोई भी पराया देश आपको अपने देश में गौरव की नज़र से देखने नहीं देना चाहता क्योंकि यदि यह हो गया तो भारतीय बुद्धिमान अपने देश से प्रेम करेगा और उनकी दुकान बंद हो जाएगी
स्टीफनी लवोतामा
अब समझ लीजिये कि यह देश ऐसा क्यों करते हैं। उनके लिए यह करना मात्र इसके लिए आवश्यक नहीं कि भारतीय अपनी मर्यादाओं और परम्परा को भूल जाएँ । बल्कि इसके लिए भी भारत आर्थिक रूप से कमजोर को जाये । आप सोच रहे हैं कि यह अर्थशास्त्र और समाज शास्त्र का क्या रिश्ता है ? आइये इसको समझते हैं । भारत को तोड़ने की कोशिश हमेशा की गयी। हम टूटे बिखरे परन्तु देश मे पारिवारिक व्यवस्था नहीं बदली । जिसका मूल है भारतीय नारी । हमारे देश मे पारिवारिक रिश्ते के कारण कर्तव्य की भूमिका अधिकार से अधिक है ।
हमारे रिश्ते पारिवारिक धुरी पर हैं जबकि विदेश या अंग्रेज़ियत के रिश्ते एक अनुबंध पर हैं आपकी जानकारी के लिए अमेरिका में 1970 मे एक पुत्र ने अपने पिता से तलाक के लिए अदालत मे मुकदमा चलाया और अदालत ने उसको तलाक दिया क्यूंकी उनकी सोच मे पुत्र और पिता का रिश्ता एक अनुबंध है यदी आप नहीं चाहते तो उस अनुबंध को तोड़ लीजिये । हमारे यहाँ तो विवाह भी अनुबंध न मान कर एक कर्तव्य पर आधारित हैं। और दूसरे हमारे यहाँ विवाह भी दो व्यक्तियों का न होकर दो परिवारों का मिलन है। अमेरिका का पारिवारिक ढांचा लगभग टूट चुका है। अब अमेरिका भी भारत के इस ढांचे को तोड़ना चाहता है । कानून परिवार व्यवस्था तोड़ तो सकता है परन्तु जोड़ नहीं सकता । अमेरिका तो अपनी परिवार व्यवस्था को बनाने के लिए कानून बना कर देख चुका है और असफल हुआ है । अमेरिका में कानून बना कि पति पत्नी यदि साथ रहें तो उन्हे कर में छूट मिलेगी परन्तु परिवार फिर भी नहीं बसे ।
अमेरिका में आज 49% लड़कियां बिन ब्याहे माँ बनती हैं दुर्भाग्य से इनमे से लगभग आधी विद्दयालय में पढ़ने वाली हैं । वहाँ स्कूल के साथ क्रेच हैं वह भी सरकारी जो बच्चे का उतने समय तक ख्याल करती हैं। यही स्थिति विवाह की हैं वहाँ 56% पहला विवाह में तलाक है और दूसरे विवाह में 67% और तीसरे विवाह मे 74% है । बूढ़े माता पिता को देखने वाले कोई नहीं है । बीमार व्यक्ति या बेरोजगार को देखने वाला कोई नहीं है इसके कारण सरकार को हर मद में खर्च करना पढ़ता है । आपकी जानकारी के लिए हर वर्ष अमेरिका 55 हज़ार करोड़ डालर इस सामाजिक कार्य में खर्च करता है जो कि उनके सकाल घरेलू उत्पाद का 30% प्रतिशत है ।
अब यह खर्च भारत की सरकार में लगभग नगण्य है । क्योंकि यह खर्च भारत में पारिवारिक व्यवस्था चलाती है। आज भी जो लोग अपने घर के वृद्धों को वृद्ध आश्रम में छोड़ आते हैं उन्हे हिकारत की नज़र से देखा जाता हैं । हमारी व्यवस्था मे वानप्रस्थ आश्रम तो है परन्तु वृद्ध आश्रम नहीं है । दरअसल हमें सबको मिल कर इसका विरोध करना चाहिए जबकि कुछ लोग इन आश्रमों को ठीक समझते हैं । इसी प्रकार हमारे देश में आज भी बिन ब्याही मां को इज्ज़त नहीं दी जाती हैं । अमरीका जैसे देश यह चाहते हैं कि हम अपने वृद्धों को आश्रम में छोड़ें जिससे हमारी महिलाएं अधिक से अधिक खर्च करें व्यर्थ की चीजों पर और अमेरिकी या यूरोपियन उत्पादों को खरीदें ।
1990 के आसपास जब श्री भगवती जो कि WORLD BANK के कर्मचारी को उस समय के वित्त मंत्री श्री मनमोहन सिंह ने पूछा कि “हम सब वही नीतियाँ चला रहे हैं परन्तु हमारे देश तरक्की नहीं कर रहा है” तब श्री भगवती जी ने बताया कि आपके देश मे परेशानी हैं यहाँ के परिवार । लोग बचत करते हैं विषेशतौर पर पारिवारिक महिलाएं उनके लिए अपनी इच्छाओं से अधिक महत्व पारिवारिक कर्तव्यों का है । किसी तरह उन महिलाओं को समझाइए कि स्वयं का सुख परिवार से बड़ा है तो वह खर्च करेंगे । उनका मानना है कि यदि महिलाएं अधिक खर्च करेंगी तो उत्पादन बढ़ेगा (उनका समान बिकेगा) तो अधिक रोजगार उपलब्ध होगा ।
यहाँ यह बात और गौर करने की है कि हम विकास को उस सकाल घरेलू उत्पाद से जोड़ते हैं जिसमे यदि आप बीमार हो कर दवाई खरीदते हैं तो भारत तरक्की कर रहा है । उसके लिए श्री भगवती के अनुसार आप एक से एक बेहतर विदशी समान लाइये और महिलाओं को प्रेरित कीजिये । परन्तु भारत की महिलाएं बड़े बड़े departmental स्टोर में तो गयी पर खरीददारी नहीं की । इससे इनकी योजनाएँ नहीं चलीं। यह सारी व्यवस्थाएं परिवार को तोड़ने के लिए हैं ।
इसके विपरीत अमेरिका में जहां परिवार नहीं हैं पुरुष और महिला अलग अलग घर बनाएँगे तो अधिक समान खरीदेंगे इससे देश की तरक्की होगी । यह उनकी सोच हैं जबकि भारत मे संयुक्त परिवार की कल्पना इसलिए थी कि सब एक दूसरे का साथ दे। घर मे माता पिता चाचा, चाची, दादा दादी एक दूसरे का सहारा बनेंगे दूसरे धन की भी बचत होगी तो भविष्य के लिए बचत कर सकेंगे जिससे आने वाली पीढ़ियों का भला होगा । अब जहां परिवार नहीं है वहाँ बचत का रिवाज नहीं है।
हम अपने देश की परम्पराओं पर गर्व करें जिसने आज तक हमें जोड़ रखा है न कि इस पर शर्म करें जैसा कि अमेरिका जैसे देश चाहते हैं, आधी अधूरी सच्चाई बता कर।