जानिए हिमाचल का ‘सैर’ या ‘सायर’ त्योहार ! समय के साथ बदलता परिवेश पर्व को भी बदलता है

सर्वप्रथम आप सबको सैर या साझा उत्सव की बधाई. आइए इस उत्सव के विषय में जान लिया जाए ।
यह उत्सव हिंदू कैलेंडर के अनुसार आश्विन मास के पहली तारीख को मनाया जाता है, कहीं-कहीं पर हिमाचल में इसे संगराँद भी कहते हैं । पुराने समय में यह उत्सव लगभग एक सप्ताह का होता था परंतु कालांतर में समय के अभाव के कारण यह आजकल लगभग एक ही दिन में सिमट कर रह गया है। हमारा भारत शुरू से ही कृषि प्रधान देश रहा है और इस कारण देश के त्योहार इसी पर आधारित सर्वाधिक रहे हैं। पहले बरसातों के मौसम में बारिश के कारण बहुत तबाही हो जाती थी कभी बिजली गिर जाया करती थी और कभी बाढ़ के कारण पहाड़ भी सरक जाते थे । इसी कारण से लोग अक्सर लगभग तीन महीने तक अपने घर में कैद हो जाते थे।
उसी समय वर्षा के कारण फसली भी तबाह हो जाती थी, लोगों की यात्रा पर रोक लग जाती थी वहीं कुछ लोग इसे डाँड कहते थे. यह शब्द डायन शब्द का अपभ्रंश रूप है। उनकी मान्यता थी की बरसात में होने वाली तबाही की जिम्मेदार यह दुरात्मा है।
फिर जब वर्षा ऋतु समाप्त हो जाती थी और लोग उसके बाद आश्विन मास की प्रथम तिथि बाहर निकल कर इस खुशी कि हम सब सकुशल अपने जीवनों में लौटने वाले हैं। जैसे मैंने आपको बताया की है कृषकों की धरती रही है इस कारण से नई फसल से आटे से रोट बनाए जाते थे और इन नई फसलों से देवताओं को भोग भी लगाया जाता था। इसमें धान की बाली, भुट्टा, खट्टा इत्यादि का भोग लगाया जाता था। इसी के साथ अखरोट भी अभी पक कर तैयार होता है और इसीलिए बहुत लोग इसे अखरोट का त्यौहार भी मानते हैं.
एक और तरीके से सैर का अर्थ होता है घूमना फिरना। पुराने समय में लोग बारिश के कारण बहुत दूर-दूर तक की यात्राएं इस महीने के दौरान बंद रखते थे. और घर के साथी मौसम खुल जाता था और दुल्हन अपने मायके से ससुराल लौट आती थी। पहली 1 हफ्ते तक दुल्हन ससुराल में लोगों के घरों में आना-जाना करती रहती थी, इसी कारण लगभग 1 सप्ताह का उत्सव होता।


बहुत ही पुरानी परंपरा आज भी जारी हैं, इसीलिए लोग किस दिन लोगों को खाने पीने की चीजों का प्रदान करते हैं पूजन की सामग्री का सर्जन करते हैं और अपने प्रिय जनों को अखरोट भेंट करते हैं। अखरोट को सौभाग्य के प्रति के रूप में दिए जाने के कारण राल कहा जाता है। घर के लोग बड़ों के रायल दिया लिया करते थे । फिर पैर छू कर आशीर्वाद भी लिया करते थे
इसी समय अखरोट का खेल भी खेला जाता था आसपास के लोग बीच में अखरोट रखकर के अखरोट को कंचों की तरह खेलते थे, इस बात का बहुत उत्सव था कि कौन कितने अखरोट जीत कर ले आता है। लेकिन आजकल होने के कारण शायद ही कहीं अखरोट का यह खेल खेला जाता होगा। और पूजा ओ की तरह शेर की पूजा के लिए पहले से इंतजार करने पड़ते थे। इसमें धान का पौधा तिल का पौधा खट्टा कचालू का पौधा पुराना सिक्का इत्यादि रखा जाता है, मान को एक टोकरी में पूजा की तरह सजाया जाता है बिल्कुल वैसे ही जस्टिस किसी अन्य पूजा में रखा जाता है।
आइए साथ में आपको लिक हिमाचल की परंपरा भी बताएं इसी दिन रक्षाबंधन पर बांधी गई राखी आज खोली जाती है अरे ऐसी टोकरी को की जाती है हिमाचल में राखी दरअसल बहनों की ओर से बांधा गया रक्षा सूत्र भी होता है जो भाई की सलामती के लिए बात यही कारण है यहां पर बहनों को भी राखी बांधने की परंपरा है आप सब विद्यार्थियों से यह कहने का अर्थ यह है कि हम अपनी परंपराओं को समझें और पर गर्व करते हुए उत्साह पूर्वक इस त्यौहार को मनाएं अंत में आप सभी को मेरी तरफ से सैर त्यौहार की फिर से शुभकामनाएं धन्यवाद

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