छात्र ने प्रधानाचार्या पर गोली चलायी ! आइये ज़रा युवाओं के आक्रोश क कारण और निवारण के मूल को विचारें

 

विध्यार्थी ने प्रधानाचार्य की उनके दफ्तर मे हत्या कर दी । विगत 18 जनवरी की यह घटना यमुनानगर मे घटी । इससे कुछ समय पहले ग्रेटर नोएडा मे एक 15 वर्षीय छात्र नें अपनी माता और बहन की हत्या कर दी थी । बहुत से समाचारपत्रों नें इस पर समाचार भी दिया । शायद कुछ स्थानीय TV चैनल ने इसे दिखाया भी । निस्संदेह यह एक हमारे समाज में एक निंदनीय घटना रही है ।

कुछ लोग इसका दोषी उस छात्र को देने में समय नहीं लगाएंगे । और यह ठीक भी है विध्यार्थी ही उसका दोषी है । परंतु यह स्थिती कैसे उत्पन्न हो रही है । हम इक्के दुक्के किस्सों पर रोष और दुख प्रकट करके अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं । इस प्रकार की समस्या के मूल को समझने के लिए, हमें थोड़ा गंभीर हो कर सोचना है । यदि हमारा युवा भटक रहा है तो हमें गलत रास्ते से उसे रोकना है ।

विध्यार्थियों से 28 वर्षों से जुड़े होने के कारण मुझे ऐसी घटना पर अत्यधिक वेदना होती है । क्या हम अपने सबसे अधिक युवा कहे जाने वाले देश के युवा को समझने में या उसके पालन पोषण में कहीं कुछ अनदेखा तो नहीं कर रहे हैं ? इस घटना से पहले क्या हमें कुछ संकेत मिले थे ? जिसके कारण, हम अगर समय रहते कार्यवाही करते तो शायद आज न तो एक होनहार शिक्षाविद हमारे बीच से मात्र 47 वर्षों की आयु में जाती और देश का न एक 18 वर्षीय युवा अपने आपको जेल की कोठरी में पाता ।

इसी प्रकार से ऊपर दर्शाई महिला और उसी बेटी को उसके 15 वर्षीय बच्चे नें अपने आक्रोश  कि भेंट चढ़ा दिया ।

आइये ज़रा इस घटनों को ध्यान से समझें । सबसे पहले तो वह छात्र काफी समय से ठीक प्रकार से पढ़ाई नहीं कर रहा था । अब वह कर नहीं पा रहा था या नहीं करना चाहता था, यह भी एक विवेचना का प्रश्न है । परंतु उसे उस अध्यापक का बार बार समझाना, डांटना इत्यादि उस अध्यापक के कर्तव्यों में ही माना जाएगा । आज उसे (प्रधानाचार्य) को परिवार वाले और कुछ लोग भले ही दोष दें, परंतु सोचने का विषय है यदि वही विध्यार्थी उस अध्यापक के डांटने के बाद, अपनी परीक्षा में उत्तम अंक ले आता तो उसी अध्यापक की हर जगह प्रशंसा होती, स्कूल प्रशासन इत्यादि उस प्रधानाचार्य को सनमानित करते ।

उसी स्थान से दूसरा समाचार आता है की उसे स्कूल में कई बार अपने मोबाइल फोन पर बात करने के कारण भी कई बार डांट पड़ी थी। इसी तरह उसके स्कूल मे मोटर साइकिल ले कर आने पर भी प्रश्न थे ? उसे समय समय पर इसके लिए टोका भी जाता था । अब यह मोबाइल फोन, कोई बहुत पुरानी व्यवस्था का हिस्सा नहीं है, परंतु शायद इसके उपयोग को हम भारतीय नहीं समझ रहे हैं । आज भी आपको गाड़ी चलते हुए, यदि पुलिस वाला देख रहा है तो फोन मत उठाओ, नहीं तो उठा लो। पुलिस वाला है टी सिग्नल पर रुक जाओ नहीं तो निकाल जाओ । ऐसी लापरवाही बच्चों, युवाओं में ही नहीं बल्कि व्यस्कों में भी मिलेगी ।  हम इसे अपनी सुरक्षा के मानकों से नहीं नापते हैं । उसी प्रकार इस मोबाइल का कहाँ कहाँ उपयोग करना है उसके लिए कई बार निर्देश आते हैं परंतु उस पर न तो पालन किया जाता है और न ही समझा गया । पर Motor Cycle देने तो मात्र परिवार वालों का मामला है । उन्हे इस पर विचार करना था कि अभी motor cycle देने की आवश्यकता है भी या नहीं है । पर शायद धन आने के साथ साथ,  अभिभावकों के इस प्रकार के कार और बाइक देने की घटनाओं मे वृद्धि हुई है । अब समाज के अभिभावकों को यह समझना चाहिए कि 18 वर्ष से कम उम्र मे बाइक और कार चलाना गैर कानूनी तो है ही पर इस कानून के कारण को आप समझें कि बच्चे मे भले ही चलाने की  काबिलियत पैदा हो जाए परंतु उसमे अभी भी उस उम्र तक परिपक्वता नहीं आती है ।

फिर एक तीसरा कारण सामने आता है की वह विध्यार्थी निर्धारित दिन अपने प्रयोगिक परीक्षा के लिए नहीं आया और उस दिन आकर इसके लिए उसने अध्यापक से कहा स्वयं परीक्षा देने की इच्छा जताई । उसकी इस बात को अध्यापक ने नकार दिया । शायद उस दिन Parents Meet होने के कारण । उसी दिन इस Parents Meet के कारण ऐसा भी कहा गया की विध्यार्थी को डर था कि उसके अभिभावक से इस पर उसकी शिकायत की जाएगी, इसलिए उसने उस अध्यापक की हत्या कर दी ।

“पिता को मेरे मोबाइल का न पता चले” इस पर पहले भी एक कक्षा 11 कि बच्ची ने स्कूल के प्रांगण में आत्महत्या की थी । यह घटना दिल्ली के पास गुरुग्राम के पालम विहार की 2014 की है । इसके अतिरिक्त भी कुछ अन्दर की कुछ बात हो सकती है परन्तु जो सामने रहा है उससे क्या हम कुछ सीख सकते हैं या उसके कारण पर विचार कर सकते है ।

मनोवैज्ञानिकों के अनुसार इस प्रकार के स्वभाव मे आक्रोश बढ़ने के कई कई कारण हैं । उपयुक्त चित्र के माध्यम से या समझा जाता है कि व्यक्ति की मूल प्रवृत्ति मे इस प्रकार के विकार का स्थान क कारणों को लगभग 9 हिस्सों मे बांटा जा सकत है । इसे अब व्यवाहरिक रूप ए समझते हैं ।

आइये अब ठंडे दिमाग से इन तीन कारणों पर विचार करें । सबसे पहले कारण के लिए कहीं न कहीं हमारा पाठ्यक्रम, हमारा समाज भी कुछ हद तक दोषी है। पाठ्यक्रम वह, जिसके कारण आज बच्चों को पढ़ाई बोझ लगने लगी है । अब तो बच्चे भी समझने लगे हैं कि इस पाठ्यक्रम का जीवन में अधिक योगदान नहीं है दूसरे यह उनके लिए रुचिकर नहीं रहा । इसके साथ ही शिक्षा के व्यावसायीकरण के कारण हर विध्यालय को विशेष रूप से निजी विध्यालयों को अपने परिणाम बेहतर से बेहतर करने हैं जिसके बाद वह हर वर्ष अपनी फीस को बढ़ा कर मन माना धन कमा सकें । आज आप सरकारी कितनी ही घोषणाओं के बाद भी  स्वयं देखिये, कि कितने निजी स्कूल उन बच्चों दाखला देने को तयार है जो इस प्रकार की पढ़ाई में उच्च अंक प्राप्त नहीं करते । इसी केसाथ आज अभिभावक भी बच्चे की शिक्षा और स्कूल को अपना स्टेटस बना कर बैठे हैं । कुछ भी हो जाये बच्चे को सबसे अधिक महंगे और बेहतर स्कूल में ही डालना है भले ही कुछ भी कीमत देनी हो । अब व्यवसायीकरण के कारण पैसे तो स्कूल कमा रहे हैं परन्तु यदि कोई बच्चा ठीक नहीं कर पा रहा है तो उस विध्यालय के प्रधानाचार्य और अध्यापक के ऊपर तलवार लटकती है, तो अध्यापक क्या करें ? उन्हे भी यही एक माध्यम बच्चे को सुधारने के लिए मिलते हैं क्योंकि जब वह पढ़ते थे तो यही माध्यम उचित भी था । आज न तो अभिभावक और न ही स्कूल कम अंक वाले बच्चे को स्वीकार करते हैं । दोनों की ही सोच बदलने की आवश्यकता है । अध्यापक और स्कूल अपने आपकी देश का भविष्य बनाने वाली संस्था माने न कि Topper पैदा करने वाली Factory। तभी कुछ सुधार संभव है ।

 

अब आते है इसके दूसरे कारण को जो मोबाइल से जुड़ा है । अब मोबाइल का प्रयोग एक विध्यार्थी के रूप में स्कूल में होना भले ही एक प्रशासनिक विषय हो, परंतु यह भी तय है की यदि बहुत आवश्यक हो तो ऐसा नियम किया जा सकता है की स्कूल आने पर विध्यार्थी स्कूल में आने के बाद अपने अपने मोबाइल कहीं स्कूल के तय स्थान पर जमा करवा दें । वैसे तो इस उम्र के बच्चे को कम से कम स्कूल में मोबाइल लाने की बहुत आवश्यकता नहीं है । चलिये यदि लाने का प्रावधान बना भी दिया जाए तो अभिभावकों की सहमति से होना चाहिए । प्रशासनिक नियम भले ही स्कूल बनाए पर हर अभिभावक को जानकारी हो की उसके बच्चे को मोबाइल लाने की अनुमति स्कूल में है या नहीं । फिर अभिभावक उसकी निगरानी रखें । इसके अतिरिक्त एक रासता और भी है वह तकनीकी युग की देन है । आप सभी विध्यालयों में Mobile Jammer लगवा सकते है यदि फोन कोई लाया भी तो विध्यालय परिसर में वह चलेगा ही नहीं । परंतु व्यक्तिगत रूप से मैं इस निर्णय के विरोध में हूँ । हमें अपने विध्यार्थी में यह ज़िम्मेदारी पैदा करनी है न की फोन को ज़बरदस्ती रुकवाना है । हमारा आज का युवा बहुत ऊर्जावान है, समझदार है पर आसानी से भटक जाता है उसे ही हमें समझाना है ।

तीसरा कारण Parents Meet का बहुत ही महत्वपूर्ण है । इस Parents Teachers Meet का उद्देश्य था की शिक्षा के क्षेत्र में बच्चों के अभिभावकों और अध्यापकों का योगदान हो और मिल कर राष्ट्र निर्माण करें । यह एक सराहनीय प्रयास था परंतु समय के गुजरने के साथ अध्यापकों और अभिभावकों के विचारों में ही अंतर आगया कि अन्तिम लक्ष्य क्या है । वह लक्ष्य होना चाहिए था कि हम विध्यार्थी के मार्फत देश का निर्माण कैसे करें । परंतु वह सिमट कर रह गया कि हमारा बच्चा बोर्ड में कितना अंक ला रहा है । अब स्कूल के अध्यापकों ने अपने विध्यार्थियों के लिए कुछ सोचा भी हो तो प्रशासन उसकी मदद नहीं करता । हर स्कूल अपने अपने व्यवसायीकरण में व्यस्त है । तो अध्यापक भी नियमित रूप से हर Meeting में कुछ न कुछ, उन्नति का रास्ता बताते हुए कुछ कमी बताता है । वहीं अभिभावक भी स्कूल से घर आते हुए बच्चे से उस स्कूल की हर बात को शिकायत मान कर उस पर डांट डपट का तरीका अपनाते हैं । आजकल बच्चों में हर Parents Teacher Meet का डर तक बैठ जाता है । कुछ मेरे मित्र तो व्यंग्य से इसे Parents Teacher Association यानि PTA को हिन्दी का पीटीए बना देते हैं अर्थात स्कूल अभिभावकों से कहता है आइए आप और हम मिल कर एक काम करेंगे कि बच्चों को पीटिए, हम स्कूल में और आप घर पर ।

दरअसल हुआ यह है कि आज शिक्षा का स्वरूप, अभिभावकों की अपेक्षा, और स्कूल इत्यादि का भूमिका पर ही प्रश्न चिन्ह लग गया है ? अध्यापक के लिए अत्याधिक अंक प्राप्त करवाना ही एक मात्र उद्देश्य रह गया है । बहुत से स्कूल और बाहर भी अध्यापक इसलिए बेहतर माने जाते हैं क्योंकि उन्होने जो बोर्ड के प्रश्न बताए, बिलकुल वैसे ही आए । इससे तो आप बच्चों को बैसाखी पर चलना सीखा रहे हैं । जीवन की परीक्षा में आगे निकालना ही उसे समझाने की आवश्यकता है ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *