क्या बलात्कार केवल शारीरिक यौन उत्पीड़न का नाम है ! बलपूर्वक की गयी प्रताड़ना इसी श्रेणी मे है

क्या बलात्कार केवल शारीरिक अत्याचार का ही नाम है ? अभी  हैदराबाद मे एक युवती के साथ फिर अमानवीय कृत्य हुआ और  समस्त मीडिया और तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग इस कृत्य की भर्त्सना करने लग गए । सड़कों पर मोमबत्ती जलाना और धरना दे कर बलात्कारियों को कठोर से कठोर सज़ा के लिए भीड़ तंत्र का हिस्सा बनना अब शायद एक ढकोसला सा लगता है । वही पर एक आवाज़ आती है “we want justice” अर्थात हमें न्याय चाहिए । आप इस बात को ध्यान से जान लीजिये कि आपने “कानून की अदालत” बनाई है न कि “न्याय की अदालत” इसीलिए अँग्रेजी भाषा में कहा जाता है ” we have established court of law” and not “court of justice”। अंत मे तथाकथित अपराधी counter में मारे जाते हैं । फिर वही कुछ लोगों का इस घटना का विरोध और कुछ लोगों का इस घटना पर हर्षित होना । आइये इस प्रकार के प्रकरण से पहले आइये इस जनाक्रोश का कारण समझें ।

पहले बलात्कार के शाब्दिक अर्थ को समझा जाये :  बलात्कार का अर्थ बलात + कार अर्थात बलपूर्वक किया गया कोई भी कार्य, अब यह बल शारीरिक बल, आर्थिक बल, सामाजिक बल इत्यादि कुछ भी हो सकता है । और यह कार्य क्योंकि बलपूर्वक किया गया है, इसलिए दूसरे की इच्छा के विपतीत ही होगा । इस परिभाषा के अनुसार अपने नीचे काम करने वाले से कुछ काम उसकी इच्छा के विपरीत या अपने राजनैतिक दबाव से करवाना इत्यादि सब शामिल हैं । परंतु हम शायद बलपूर्वक शारीरिक और यौन संबंधो तक इसे सीमित कर देते हैं । अब यदि हम इसे शारीरिक सम्बन्धों तक ही यदि सीमित करें तो यह निश्चित है कि स्वस्थ मानसिकता का कोई पुरुष यदि बलपूर्वक स्त्री से शारीरिक संबंध किसी से यदि बनाता भी है तो उसे चरम सुख की प्राप्ति नहीं होगी। वह तो बलात अपनी कुंठा, क्रोध या मानसिक विकार के कारण ही ऐसा करेगा ।

जिस बलात्कार की आज हम निंदा कर रहे हैं । हमें यह समझना पड़ेगा कि इसका कारण क्या है और इसके कारण को समूल नष्ट किए बिना इसका निवारण होना संभव नहीं है । यह सत्य है कि नैतिकता मे पतन हुआ है, परन्तु इस पतन का कारण क्या ? क्या महिलाओं के छोटे कपड़े, आज का चित्रपट जगत, आज के यौन सम्बन्धों के खुले विज्ञापन ही इसका कारण है ? आज के समय का बलात्कार, भ्रष्ट समाजिकता, अराजकता और आत्महत्याएँ की अधिकांश घटनाएँ  किसी न किसी कुंठा के कारण हैं ।

इस कुंठा का कारण समाज मे होने वाला अन्याय है । समाज मे अन्याय करने में हम झिझकते नहीं है पर जब अन्याय हम पर होता है तो चोट लगती है । इस अन्याय से बचाने वाले इस अन्याय को करने वाले के साथ शामिल हैं । इसके साथ ही किसी भी सरकार का कोई भी विभाग उत्तरदाई नहीं है । यही स्थिति निजी क्षेत्र मे है । आप किसी दुकान से समान क्रय करके आए और वह वस्तु आपको बताई गयी खूबियों पर पूरी नहीं उतरती तो आपके लिए उपभोक्ता अदालत में जाना पड़ेगा । यही स्थिति किसी भी उत्पाद और सेवा में लागू है, चाहे वह बीमा कंपनी हो या, बैंक हो, शिक्षण व्यवस्था या अस्पताल इत्यादि इत्यादि । और तो छोड़िए दूध मे यूरिया, दाल मे कंकड़, नकली दवाइयाँ इत्यादि जब यह स्थिति खाद्द पदार्थों में आती है तो देश का बच्चा बच्चा इससे शारीरिक और मानसिक रूप से प्रभाविक होता है । परन्तु आज तक कितने मामलों में सज़ा हुई है । कोई आतंकवादी से समझौता करता है, उसे कब और कितनी सज़ा मिलती है ? दरअसल अब सज़ा का खौफ या डर है ही नहीं । क्योंकि आरोपी को सज़ा देने में सालों लग जाएंगे और लोग इस बात को भूल जाएंगे ।

आप सरकारी या निजी किसी भी विभाग को देखें । सरकार का नारा “जागो ग्राहक जागो” एक नारा मात्र बन कर रह गया है । एक ताज़ा उदाहरण मेरे अभिन्न मित्र श्री अनूप खन्ना जी के साथ हुआ । हर बार social media पर एक समाचार आ रहा है कि किसी भी टोल प्लाज़ा पर आपका, यदि 3 मिनट से अधिक समय लग रहा है तो आप बिना टोल दिये जा सकेंगे । श्री अनूप जी एक टोल प्लाज़ा पर रुके, उनके आगे एक व्यक्ति paytm से पैसा देना चाह रहा था, अब किसी कारण से पैसा टोल प्लाज़ा के बार कोड से नहीं लिया जा रहा था । paytm धारक इस पर अड़ा था कि मैं तो पैसा paytm से ही दूँगा । उधर टोल प्लाज़ा वाला व्यक्ति भी उसे टोल गेट से निकालने नहीं दे रहा था । श्री अनूप खन्ना जी निकले और उन्होने paytm धारक और टोल प्लाज़ा के कर्मचारी दोनों से थोड़ा संयम बरत कर मामला सुलझाने के लिए कहा । paytm धारक के पास नकदी थी पर वह इस पर अड़ गया कि मैं तो पैसा paytm से ही दूँगा । उधर टोल कर्मचारी भी उसे जाने या किसी साथी को इस उलझन को सुलझाने के लिए न कह कर अड़ गया और दोनों कहें मेरी क्या गलती है । अब आप ध्यान दें इतनी देर में पीछे कारों की लाइन लग गयी और इस मामले को सुलझाने में 30 मिनट लग गए । अब कानूनन सभी गाड़ियों को बिना टोल दिये जाना था परन्तु यह हुआ ही नहीं । इसकी जवाबदारी न तो paytm लेगा और न ही टोल प्लाज़ा वाला । कानून भले ही कुछ कहे । प्रश्न यह भी है कि जिसका paytm नहीं चला, और टोल प्लाज़ा के कर्मचारी के अतिरिक्त पीछे 50 गाडियाँ अपना समय व्यय कर रही है, उनका दोष क्या है ?

एक और उदाहरण दीजिये भारतीय रिज़र्व बैंक बार बार कहता है और इसके लिए विज्ञापन भी देता है कि यदि डिजिटल लेनदेन में बिना आपकी गलती के किसी धोखे का शिकार होते हैं तो आपका फिर भी पैसा सुरक्षित रहेगा पर आप रोज़ social मेडिया पर ऐसे कई लोगों को सुनते है कि पैसा बिना किसी गलती के खाते से निकाल गया । अब आप कानून बनाते रहिए, उसका पालन कैसे होगा और जवाबदारी किसी पर भी नहीं । यह तो रहा डिजिटल लेनदेन की बात यदि आप अपने बैंक में अपने धन को नियतकालिक निक्षेप (Fixed Deposit) में रखे तो वह भी एक लाख से अधिक सुरक्षित नहीं रहेगा यदि बैंक बंदी के कगार पर हो । अर्थात बैंक की जवाबदारी किसी भी सूरत में एक लाख से अधिक नहीं है ।

इसी प्रकार शारीरिक यौन उत्पीड़न या शारीरिक बलात्कार पर लोग सड़कों पर आ कर ” बलात्कारी को फांसी दो” के नारे लगाएंगे, देश की न्याया प्रणाली के अंतर्गत पहले निचली अदालत मे मुक़द्दमा चलेगा, फिर ज़िला न्यायालय, उच्च न्यायालय और फिर सर्वोच्च न्यायालय , यदि इन सब में फांसी की सज़ा बरकरार रहे तो भी उसके पास राष्ट्रपति के पास दया याचिका दी जाएगी । इस पूरे कार्यक्रम में सरेआम न्याय की धज्जियां उड़ाई जाती हैं, साक्षी बदलते हैं और यदि  सब कुछ सही भी हो तो 7 से 10 साल लग जाते हैं । 2012 के निर्भया हत्याकांड के आरोपियों को अभी तक फांसी नहीं हुई है । आप न्याय की समय अवधि देख सकते हैं ।इन्दिरा गांधी जो इस देश की प्रधान मंत्री थी, के हत्यारे जिन्होने सरे आम सबके सामने उनकी हत्या की तो उनके हत्यारों को फांसी देने में 5 साल लग गए , भारत के तत्कालीन प्रधान मंत्री राजीव गांधी की हत्या की योजना बनाने वाले   28 वर्ष बाद भी जेल में हैं और उन को फांसी अभी तक नहीं दी गयी । अगले अंक में इसके समाधान के लिए लिए कुछ सुझाव ।

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