आज की लोकतान्त्रिक व्यवस्था का असली शासक कौन है ?

आइए आज हम भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था, और इस पर चलने वाले शासन को समझते हैं । समझना हमें यह है भारत का शासक कौन है ?

इस पर विचार करने से पहले, हम भारत की की जनसंख्या पर एक नजर डालते हैं । आज हमारे देश में 20 से 22 करोड़ परिवार है । लगभग एक तिहाई के पास, कम से कम एक या दो मोटरसाइकिल है । इसे हम लगभग मध्यम वर्गीय परिवार कह सकते हैं, इसी प्रकार लगभग एक तिहाई के पास ही , फ्रिज भी है । इसे भी हम लगभग मध्यम वर्गीय परिवार का आकलन कर सकते हैं । लगभग 4 करोड परिवार ऐसी हैं, जिनके पास कार है, अथवा अधिक धन कमाने वाले हैं । इस संख्या को ध्यान से देखें, तो कह सकते हैं कि लगभग 140 करोड में, 45 करोड लोग मध्यमवर्गीय हैं । भारत में चुनाव का प्रतिशत, लगभग 60% होता है, जिसमें से, आधे से अधिक तो  एक बहाव में मतदान करते हैं । बहुत कम प्रतिशत, ऐसे होते हैं जो सरकार की विचारधारा के समर्थन, या विरोध के कारण मतदान करते हैं ।

अभी इस  मतदान से लोगों की उम्मीद है क्या ? भारतीय अपने जीवन में अपनी संतान को, अपने से बेहतर बनाने के लिए पूरा जीवन लगा देता है । आम मध्यमवर्गीय परिवार के लिए, बच्चे की जन्म, शिक्षा, नौकरी, विवाह, सेवानिवृत्ति,  वृद्धावस्था और मृत्यु एक शाश्वत सत्य है । और मध्यमवर्गीय परिवार अपना पूरा जीवन इसी पर लगा देता है ।

बच्चे के जन्म से शिक्षा होते होते, हमें एक सामाजिक परिवेश की आवश्यकता है जिसके कारण हमारे पास धर्म  का स्तंभ भी आता है । यह धर्म बच्चे के जीवन में बचपन से किशोरावस्था तक बहुत बड़ा प्रभाव डालता है । और शिक्षा के समाप्त होते होते, अपनी आजीविका के चलते अथवा नौकरी के चलते उच्च शिक्षा के साथ-साथ कौशल की आवश्यकता पड़ती है । दुर्भाग्य से हमारी शिक्षा व्यवस्था में, कौशल का विशेष स्थान नहीं है, जो उसे समय के साथ अनुभव के साथ समाज से सीखना पड़ता है ।

इसके साथ ही उसे एक सामाजिक व्यवस्था में रहना पड़ता है, एक सभ्य समाज के लिए यह आवश्यक भी है । ईसके बिना समाज निरंकुश हो जाएगा, हर व्यक्ति की पाशविक वृत्तियाँ बाहर आ जाएंगी । इसी समाज को बनाने के लिए, और इसके संचालन के लिए देश में कुछ कानून व्यवस्था लागू की जाती है । उस व्यवस्था को लागू करने के लिए पूरा प्रशासनिक तंत्र है । आम आदमी के मन में यह भावना रहती है, अच्छी सरकार के आने के बाद, प्रशासनिक सेवा में बेहतर व्यवस्था होगी, बेहतर शिक्षा होगी, और मेरी आने वाली पीढ़ी के लिए बेहतर भविष्य होगा । इस जंजाल में औसत भारतीय, अपनी जीवन व्यवस्था को चलाता है । जबकि यह भी सत्य है, 75 वर्ष के लोकतंत्र के बाद, बहुत से लोगों का लोकतंत्र पर से विश्वास ही उठ गया है ।

जब से भारत में लोकतंत्र आया, हमें दो शब्द बताए गए संविधान और स्वतंत्रता, साथ में हमें लोकतांत्रिक अधिकार की बात भी की गई । लोकतंत्र के चार स्तंभ बताए गए, जिनमें से एक है विधायिका, दूसरी कार्यपालिका, तीसरी न्यायपालिका, और अंत में चौथी पत्रकारिता । इस पत्रकारिता की व्यवस्था आजकल मीडिया समूह करता है । क्योंकि सबसे अधिक प्रचार-प्रसार टेलीविजन के द्वारा किया जाता है । विधायिका का एक काम था, कि वह भारत की जनता के लिए, बेहतर कानून बनाएं । परंतु आप अपने आसपास के वर्षों को देखिए, आपके काम के कौन से और कितने कानून बने हैं । यहां मैं कहना चाहूंगा दो बातों में अवश्य अंतर रखें, पहला उस कानून या विधेयक की कितनी बातें आपको मीडिया समूह और समाचार पत्र बताते हैं, और उसका कितना असर आप पर वास्तव में पड़ता है ।

मैं आपको इसे एक उदाहरण से समझाता हूं, अभी हमने 1 वर्ष से अधिक किसान बिल पर समर्थन और विरोध देखा, किसानों के दूसरे बिल के संबंध में मैं आपको एक बात बताना चाहता हूं । इस बिल को पास  किया गया था, 17.09.2021 में, परंतु इसमें लागू होने की तारीख 5 जून दी गई थी । इससे स्पष्ट है, जो बिल किसानों के लिए बेहतर था या नहीं, मैं इस पर नहीं चर्चा करना चाहता, परंतु सितंबर के महीने का बिल 3 महीने पहले से लागू करने का अर्थ यह है, कि किसी ना किसी विनती यह समूह को उससे कुछ फायदा दिलवाना था ।

तो यह तो रही विधायिका की भूमिका, अब बात नहीं प्रशासन की, इसमें आपका सीधा चाहूंगा कानून तोड़ने पर पुलिस तंत्र से, और बहुत कानून न तोड़ने पर भी पुलिस तंत्र, से सामना होता है। इसके अतिरिक्त प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों से आप का सामना होता है, आपको प्रत्येक कार्यालय के बाहर कुछ दलाल मिल जाएंगे, जो आपके प्रशासनिक सेवा के कार्य सरलता से करवा देंगे । प्रशासनिक सेवा कितनी आपकी हुई, मेरा मतलब एक आम भारतीय के कितने काम की है, इसका कभी न कभी आपको अनुभव जरूर हुआ होगा ।

यदि आप कोई प्रश्न प्रशासन सेवा से पूछते हैं, उनका सीधा उत्तर है हम तो सरकारी नियम, अथवा दिशानिर्देशों पर काम करते हैं । अगर आप उन्हे समझाएं किस दिशा निर्देश से, लोगों को कितनी असुविधा हो रही है, तो उनका उत्तर सीधा होता है कि  सरकार को यह बात समझाएं क्योंकि उन्होंने यह विधायक बनाया है और हमारा काम विधायक की पालना करना और करवाना है ।

इसके बाद एक और चीज हमें सुनाई गई, इसका नाम न्यायपालिका है । जिन लोगों का न्यायपालिका में कभी कोई काम नहीं पड़ा, वह तो शायद यह कह देंगे कि संविधान सर्वोपरि है, लेकिन जिनको भी यह काम करना पड़ा । उन्हें पता है, कि न्यायपालिका केवल धन वालों का ही खेल बनकर रह गया । आप इसको इस तरह भी समझें, कि हम इसे Court of Law, अर्थात कानून का न्यायालय कहते हैं, अब यह न्याय है या नहीं इससे कोई सरोकार नहीं ? इसीलिए इस व्यवस्था में, सारा दारोमदार उस वकील पर पड़ जाता है, जो आपकी बात को किसी न्यायालय के सामने कैसे रखे । यदि यह संविधान न्यायालय, पूर्ण निष्पक्ष होते, तो आपको कभी भी वकील की आवश्यकता नहीं पड़ती । यह सारी  न्याय व्यवस्था, अब वकीलों के हाथ का खेल बन गई है ।

अब बात करते हैं अंतिम व्यवस्था, जिसे आप लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहते हैं, अर्थात पत्रकारिता। प्रारंभ में पत्रकारिता में, समाचार पत्र और कुछ पत्रिकाएं आते थे । परन्तु अब टीवी चैनल के माध्यम से, सर्वाधिक समाचार इन चैनलों से प्रसारित किए जाते हैं । आज आप किसी बड़े शहर में, चाहने वाले समाचार पत्र की कीमत देखें, उसकी कीमत लगभग 10 से ₹12 आती है। समाचार पत्र आपको ₹3 के आसपास मिल जाता है । कारण स्पष्ट है, बचा हुआ धन वह विज्ञापनों से लेते है। और अधिकांश धन, सरकारी विज्ञापन से मिलते हैं । एक मीडिया चैनल को चलाने के लिए, करोड़ों रुपए का खर्च लगता है। और यह धन भी, विज्ञापन से ही मिलता है विशेष तौर पर सरकारी विज्ञापन । अब यदि यही चैनल वाले, यह समाचार पत्र वाले सरकार के विरोध में लिखेंगे, इन्हें सरकार से विज्ञापन नहीं मिलेंगे । इसके लिए सरकार के विरोध में न लिखना इनकी मजबूरी है । दूसरी बात यह है अधिकार टीवी चैनल के मालिक उद्योगपति है, उद्योगपतियों को अपने काम सरकार से करवाने हैं, क्योंकि आप जानते हैं बहुत ही सरकारी नीतियां उद्योगपतियों को लाभ पहुंचाने के लिए बनाई जाती है । कोई चैनल सरकारों के विरोध में नहीं लिख सकता और न ही उसका प्रसारण कर सकता है ।

अब इस प्रशासनिक सेवा, कानून व्यवस्था और राजनीतिक दलों के माध्यम से, भारतीय जनमानस के विचारों को भी बदला जाता है । इसलिए कई बार हमें यह सोचना है, लोकतंत्र के चार स्तंभ हैं वास्तव में एक भारतीय के लिए कितने लाभदायक । शेष  चर्चा अगले अंक में

 

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