अंतर्राष्ट्रीय वृद्ध दिवस और वरिष्ठ नागरिक दिवस पर विशेष ! भारतीय परिवेश में इसकी प्रासंगिकता

अंतर्राष्ट्रीय वृद्ध दिवस पर विशेष

हम सब जानते हैं 1 अक्टूबर को राष्ट्रीय वृद्ध दिवस मनाया जाता है। आइए जरा इस के इतिहास को समझा जाए अंतर्राष्ट्रीय वृद्ध दिवस की शुरुआत 1 अक्टूबर 1991 को संयुक्त राष्ट्र संघ ने की थी और पहली बार 1991 में ही अंतरराष्ट्रीय वृद्ध दिवस मनाया गया ।  इस वृद्ध दिवस का उद्देश्य यह था हम अपनी समाज में वृद्धों के प्रति सम्मान करना सीखें ।

दरअसल आज जो नई पीढ़ी है या युवा पीढ़ी है, आज जो भी बनी है, अपनी पहली पीढ़ी के  प्रयासों से बनी है, और नई पीढ़ी को यह समझना चाहिए। कालांतर में ऐसा होता गया कि जो संयुक्त परिवार होते थे, वह  एकल परिवारों में टूटते गए । इस कारण जो लोग किसी समय वृद्धावस्था में संयुक्त परिवारों में होते थे, आज एकल परिवारों के कारण उन्हें अलग अलग रहना पड़ रहा है। इसलिए बदलते समय में इस बात की आवश्यकता हुई की इन वृद्धों को भी यथोचित सम्मान दिया जाए।

इससे मिलता-जुलता एक और दिन है जिसे आप वरिष्ठ नागरिक दिवस के नाम से मनाते हैं । यह दिवस 21 अगस्त को प्रतिवर्ष मनाया जा। वरिष्ठ नागरिक दिवस की शुरुआत अमेरिका के राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने 19 अगस्त 1988 को दस्तखत करके किया था जिसके बाद से यह वरिष्ठ नागरिक दिवस हर वर्ष 21 अगस्त को मनाया जाता है। सबससे पहली बार यह 1988 में मनाया गया ।

आप तनिक ध्यान से देखिए यह दोनों के दोनों दिवस इसलिए है कि वरिष्ठ नागरिकों को यथोचित सम्मान दिया जाए, अब प्रश्न उठता है यथोचित सम्मान देने की यह व्यवस्था 30- 40 वर्षों से ही क्यों हुई? क्या इससे पहले व्यक्ति वृद्ध नहीं होता था या उसे समाज से सम्मान की आवश्यकता नहीं थी। आप जानते हैं व्यक्ति पहले भी वृद्ध होता था और उसे तब भी एक संवेदना, जिसे सन्मान कहते हैं उसकी आवश्यकता हमेशा से रही है। आइए समझते हैं कि बीते 30 वर्षों में इसका इतना महत्व क्यों होता गया और भारतीय परिवेश में का कितना महत्व है? आप यह समझिए कि आज से लगभग 50 वर्ष पहले संसार में औसत आयु 53 के आसपास थी, व्यक्ति संयुक्त परिवार में रहता था। परिवार के बुजुर्ग की नई पीढ़ी की जिम्मेवारी होते थे और वह उसको पूर्ण रूप से पालन करते थे । आज वही औसत आयु 70 के आसपास हो गई है ।

बदलते समय में यह हुआ संयुक्त परिवार एक घर, एक गांव में रहने वाले थे वहां की युवा पीढ़ी बाहर आ गई शहर शहर में, अब यहां पर एकल परिवारों की व्यवस्था होने लगी जहां पर मात्र पति पत्नी और उनका एक नया बच्चा होता। यह परिस्थिति किन्हीं कारणों से बनी थी इसका मुख्य कारण था कि गांव में वरिष्ठ व्यक्ति रह जाते थे और युवा पीढ़ी शहरों में काम करने आती थी। इसके बाद शहरों के अंदर जो संयुक्त परिवार थे वह भी टूटने लगे युवा पीढ़ी एकल परिवारों की तरफ चली गई आप यह समझ सकते हैं नई पीढ़ी अपनी आजादी अथवा स्वतंत्रता को बहुत अधिक महत्व देने लगी। ठीक है या नहीं है कहना गलत होगा?

दूसरी बात यह हुई लगभग 90 के दशक में बाजारीकरण उदारीकरण और तथाकथित भूमंडलीकरण का दौर शुरू हुआ, अब बाजार व्यवस्था के अधीन बाजार जितना बड़ा होगा उतनी ही अधिक खपत होगी और उसी से आपका सकल घरेलू  उत्पाद बढ़ेगा । इसी के कारण रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे, ऐसा इस बाजारवाद की परिकल्पना है। कुछ हद तक तो यह परिकल्पना ठीक निकली क्योंकि जब एकल परिवार होंगे तोहर परिवार के सदस्य के लिए अलग-अलग चाहे, फ्रिज कहिए चाहे टेलीविजन कहिए या और अधिक उपभोग की सामग्री की आवश्यकता रहेगी। इसी के चलते आपने देखा होगा पिछले 30 वर्षों में बाजारीकरण में हर व्यक्ति के लिए अलग गाड़ी की व्यवस्था अलग  टीवी की व्यवस्था सब करने में बाजारी शक्तियां लगी रही। परंतु इस व्यवस्था ने जो अंदर मूल रूप से जो चोट लागू  शायद हमारा ध्यान नहीं गया

धीरे-धीरे एकल परिवारों की व्यवस्था के साथ-साथ, घर परिवार की आवश्यकता है बड़ी, कहने का अर्थ यह है कि भौतिक आवश्यकता बढ़ती गई,  उन भौतिक आवश्यकताओं को करने के लिए, परिवार की नारी भी काम पर आगे बढ़े। ऐसा नहीं था कि पहले नारियां काम नहीं करती थी, परंतु पहले नारियों की प्राथमिकता घर परिवार पहले होती थी और बाहर की नौकरी अथवा धन कमाना दूसरी प्राथमिकता पर रहता था अब इस व्यवस्था के कारण परिवारों में मतलब युगल दंपत्ति में भी तनाव आने लगा।

एक तरफ से औरत शक्तिशाली होती गई, दूसरी तरफ से उसके व्यवहार में परिवर्तन हो गया, इस कारण परिवारों का टूटना शुरू हो गया। दूसरी तरफ हम जिन देशों को आधुनिक मानते हैं, उन देशों में इसका प्रभाव सबसे पहले पड़ा आज अमेरिका नामक देश में 49% बच्चों को एकल अभिभावक पालता है और अगर आप समझे तो यह नारी ही होगी, अथवा माँ ही होगी जो बच्चे को पालती होगी। 51% लोगों में तलाक की दर पहले विवाह में है  है। यदि कोई व्यक्ति दूसरी बार विवाह कर लेता है तो उसमें तलाक की संभावनाएं 66% है किसी ने तीसरा विवाह किया तो तलाक की संभावनाएं 74% तक है। अब आप समझे यह सब आधुनिकता की देन है तथाकथित एकल परिवारों में टूटने की देन है। और इसी के कारण हमारे वयोवृद्ध लोगों को देखने वाला कोई नहीं रहा।

तो इस कारण से परिवारों में टूटन बढ़ती गई, बाजारीकरण अपना जोर लगाकर के नए-नए विज्ञापन देते रहे, जिससे उनका सामान अधिक और अधिक बिके। भारतीय परिवेश में भी इसका असर हुआ और यहां पर भी एकल परिवार बंदे लगे. संयुक्त परिवार टूटने लगे।

बदलते युग में बदलते समय में, आज हमें संयुक्त परिवारों का. या अपने बड़े बुजुर्गों का आदत सामान करने के लिए भी क्या कोई दिन चाहिए? संयुक्त परिवार में, बस यदि थोड़ा सा तालमेल हो तो परिवार धन की बचत करता है अपनी परेशानियों की कमी कर लेता है, यहां तक तो सब लोग नसीहत देते हैं। पर  मैं आपको एक बहुत महत्वपूर्ण बात बताऊं आज की तारीख में भी, वह परिवार जिनके घरों में दादी नानी इत्यादि बुजुर्ग व्यक्तित्व है उनमें चरित्र का हनन एकल परिवारों के तुलना में कम है। तो हमें किसी वरिष्ठ नागरिक दिवस इत्यादि की आवश्यकता नहीं है, बल्कि  परंपराओं में आए, यही हमारे यहां सबसे बेहतर विकल्प है। आजकल श्राद्ध का समय है. भारतीय संस्कृति में लोग अपने मृत पितरों सलमान करते हैं, तो जीवित व्यक्तियों की तो बात ही क्या है? इसलिए मेरे व्यक्तिगत विचार से इन दिनों का भारतीय परिवेश में कहीं स्वागत नहीं किया जाना चाहिए । हमारी कोशिश हो तो किस देश में वृद्धाश्रम ना खुले परंतु पारिवारिक संबंध सुदृढ़ हूं .

इसका आर्थिक पहलू भी आप समझते चलें अमेरिका जैसा देश आज प्रतिवर्ष 117 लाख करोड़ रूपया, वृद्धों को पेंशन के रूप में देता है, जो कि उसकी मजबूरी है। जबकि भारत में यह सरकार  पर यह खर्च लगभग चार लाख करोड़ का है । हमारे सामाजिक परिवेश में, अविवाहित बहन, बुजुर्ग माता-पिता, बेरोजगार भाई, इत्यादि कि  जिम्मेवारी व्यक्तित्व स्वयं पर लेता है ।  इसीलिए सरकार पर तथाकथित सामाजिक बोझ कम है.। यहां यह भी समझिए तीन बार अमेरिका में अलग अलग समितियों नें सरकारी खर्च को कम करने के लिए एक ही सुझाव दिया कि अमेरिका जितनी जल्दी हो सके सामाजिक वृद्धावस्था पेंशन से मुक्त हो जाए वरना उसकी आर्थिक स्थिति और खराब हो जाएगी, और तीनों समितियों ने यह भी कहा है क्या अमेरिका की सामाजिक और पारिवारिक वातावरण को देखकर यह संभव नहीं है ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *