अंतर्राष्ट्रीय नशा निषेध दिवस पर यह आँकलन करें कि 35 वर्षों में सर दोष समाज का या हमारी भी भूमिका रही हैं

आज अंतर्राष्ट्रीय नशा निषेध दिवस है । इसे अंग्रेजी में International Day Against Drug Abuse कहते हैं । इसकी शुरुआत 1987 में की गई थी । आप देख सकते हैं लगभग 35 वर्ष का समय हो चुका है, इस नशा निषेध दिवस को मनाते हुए । इस दिवस पर, राजनैतिक लोग अपने भाषण देते हैं, आज रविवार है इसलिए विद्यालयों में कार्यक्रम नहीं है, परंतु यदि कोई और दिवस होता तो विद्यालयों में इस पर चर्चा, वाद विवाद प्रतियोगिता कहीं पर विद्वानों द्वारा दिए गए भाषण भी होते हैं । इतना सब कुछ 35 वर्ष तक करने के बाद, आपके मन में सोचिए कि इस नशे का प्रचालन बढ़ा है या घटा है, आज के अभिभावक अपने बच्चे के नशे के विषय में जो चिंता करते हैं, उनके अभिभावकों को चिंता आज से कम थी या ज्यादा थी ? यदि आप ध्यान से सोचेंगे, आपको पता लगेगा कि बीते समय के साथ नशे का प्रचलन बढ़ता जा रहा है, और आपकी चिंताएं अपने बच्चों के लिए भी बढ़ती जा रही है । हम कहते हैं समाज भी असुरक्षित हो रहा है । अंग्रेजी में शब्द आ गया Peer Pressure , हम कहते हैं इसकी वजह से समाज में यह सब घटनाएं बढ़ती जा रही है ।

इसको थोड़ा विश्लेषण करें, जब आपने अपने बच्चे के नशे के विषय में सोचा, आपने अपने घर से, बचपन से ही बच्चे को यह सिखाया कि गलत काम करने वाले के साथ आपने नहीं बैठना । बच्चा जब विद्यालय गया, तो उसके अध्यापक ने भी उसको यही सिखाया गलत काम से दूर रहना है, अच्छे का साथ और अच्छी पढ़ाई करना आपका कर्तव्य है । बच्चा बड़ा होता गया, आसपास को देखता गया और आप लोगों के दिए गए विचारों को अपने आस पास के समाज से तुलना करता गया । बच्चे ने देखा जो उसके घर पर आता है, उसके अभिभावक बाद में तो उनकी कमियाँ बताते हैं परंतु सामने बड़े प्रेम से उनसे चर्चा करते हैं ।  सभी अभिभावकों ने, सभी अध्यापक ने, अपने-अपने विद्यार्थी, मात्र अपने अपने बच्चों को सही विचार देने का ठेका लिया । और उसे अच्छे से अच्छे विचारों को रोज देते हैं । यदि कोई समाचार गलत आता है, हमने यह कह कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली, कि मैंने अपने बच्चे को समझा दिया है, ऐसे कामों से दूर रहे । क्या इतने के बाद इसका प्रभाव देख पा रहे हैं ? आपके बच्चे के आसपास की उस उम्र के, जितने बच्चे हैं, क्या उसमें किसी के भी माता-पिता भी अध्यापक ने अपने बच्चे को यह कहा था कि वह नशा करें । ऐसा तो कोई नहीं कहता, फिर भी समाज में नशा, भ्रष्टाचार और व्यभिचार बढ़ता जा रहा है । हम यहीं थे पर कहते हैं कि पहले तो ऐसा नहीं था, अब समाज में बुराई आ गई है। कभी सोचिए समाज बनाने वाले क्या हम और आप नहीं है ।

 

थोड़ा ध्यान से सोचिए, आपको पता लगेगा यह सब हमारे स्वार्थ का परिणाम है । पहले हमारी कहावत में था, कि बच्चे सब सांझे होते हैं । संयुक्त परिवार के पूरे गांव या मोहल्ले के लोग उस बच्चे को सही राह दिखा सकते थे । उस समय के समाज में बच्चे को गलत काम करते हुए यह ध्यान देना पड़ता था कि मेरे गाँव, मेरे मोहल्ले का मुझे कोई देख न रहे । इस पूरे को सामाजिक व्यवस्था का न्याय नियंत्रण भी कह सकते हैं । आपको शायद ज्ञात होगा कि इस देश में साढ़े सात लाख गाँव होने के बाद, आज भी 15000 से कम पुलिस स्टेशन हैं । क्योंकि गाँव मोहल्ले में समाज ही बुराई को स्वयं भगा देता था । गलत काम करने वाले की समाज में ही प्रतिष्ठा समाप्त हो जाती थी । आज ऐसा नहीं है ।   दुर्भाग्य से भाई भाई के बच्चे को भी कुछ कहना चाहता है, तो उसे पाँच बार सोचना पड़ता है, कि भाई से संबंध न बिगड़ जाए । उसे यह पता कि मेरा भतीजा गलत कर रहा है तो अपने भाई को नहीं पता पर अपने व्यवहार को साफ रखने के लिए बताता नहीं है । आज की अध्यापकों के साथ भी यही स्थिति है, पर मैं इसका स्पष्ट उदाहरण हूँ, यदि मैं अपने विद्यार्थियों की कमियां उनके माता-पिता को बताता रहूं, बहुत जल्द विद्यार्थी मेरी कसक्ष से चला जाता है । या तो उसके अभिभावक ही स्वीकार नहीं करते या फिर वह विद्यार्थी अपने माता-पिता से कहता है, मुझे इन सर से नहीं पढ़ना इसका कोई भी कारण बता देगा । यहां तक कि यदि माता-पिता को पता भी हो, बच्चा बहाना मार रहा है कुछ नहीं कर पाते । कारण स्पष्ट है, हमने बचपन से बच्चे को ऐसा मौका दिया,कि बच्चे को डांट देंगे केवल हम, उसे कुछ सुधारना होगा तो केवल हम ही उसे सुधारेंगे । कई बार तो अभिभावक तो अध्यापक को यहाँ तक कह देते हैं “आपका काम पात्र पढ़ाना है, बाकी हम देख लेंगे”   हम यह भूल गए समय के साथ बच्चा अपने आसपास के समाज को देखेगा । पड़ोसी ने मेरे बच्चे को नहीं डांटा, मैंने उसके बच्चे को गलत काम पर नहीं रोका, लेकिन दोनों ने अपने अपने घर में अपने बच्चे को सही संस्कार दिए । इसका परिणाम यह हुआ, अपने बच्चे के लिए मैं बुरा हो गया, पड़ोसी के बच्चे के लिए मैं बुरा हो गया । दोनों अभिभावक बुरे बन गए और बच्चे के लिए दूसरे का अभिभावक समाज का सही व्यक्ति बन गया ।

हम अपने बच्चे को संस्कार, व्यवहार और शिक्षा देते हुए यह भूल गए, उसको रहना इस समाज के अंदर है । यदि समाज बिगड़ेगा एक ना एक दिन उस पर दुष्प्रभाव आएगा । अध्यापकों को यह बात विशेष समझनी है, यदि आपकी कक्षा में 2 विद्यार्थी भी ऐसे हैं, जिनके बारे में आप सोच सकते हैं वह कल को नशा कर सकता है, कल को उसका स्वार्थ कितना बढ़ जाएंगे वह स्वार्थी हो जाएगा और भ्रष्टाचार में कदम रख देगा । अभी उसको नहीं सुधारा गया तो याद रखें, आज नहीं तो कल आपकी संतान पर उसके बुरे विचारों का प्रभाव आने ही वाला है, यदि अपने बच्चे को घर में रखकर बचा भी लिया, उसकी संतान पर उसका बुरा असर तो पड़ेगा ही पड़ेगा ।

अध्यापकों के लिए मजबूरी है, उनको अपने विद्यालय प्रबंधन से कुछ बच्चों को अच्छे अंक प्राप्त करवाने की जिम्मेदारी है, कुछ बच्चों के अच्छे आ गए, विद्यालय का नाम रोशन हो गया और अधिक बच्चे उस  विद्यालय में आ गए, जिससे उस विद्यालय का आर्थिक लाभ हो गया । इससे बड़ी सोच विद्यालय प्रबंधन की भी नहीं रही । क्योंकि आज विद्यालय समाज सेवा नहीं करता, परंतु एक उद्योग बन चुका है और इसकी रूपरेखा भी सरकारों ने दी है । आपकी जानकारी के लिए बैंक से विद्यालय के लिए ऋण ले सकते हैं, जो पहले नहीं ले सकते थे क्योंकि तब यह माना जाता था, विद्यालय प्रबंधन समाज सेवा का काम है न कि धन कमाने के लिए ।

 

अंत में एक छोटी सी घटना अथवा उदाहरण देकर में अपनी बात को समाप्त करता हूं । रामलाल अपने परिवार को ले कर महेश के घर गया। रामलाल के परिवार में उसकी पत्नी और उसका पुत्र था । महेश की उम्र उससे कुछ अधिक थी, मतलब उसके घर में कोई छोटा बच्चा नहीं था । महेश नें जाते हुए, रामलाल के पुत्र को उपहार दिया । उस बच्चे ने एक और मांग लिया ।  अब कुछ बच्चे के पिता ने अपने बच्चे को आंख दिखा कर यह कहने की कोशिश की, कि बेटा तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए । किसी से मांग कर लेना अच्छी बात नहीं है । परंतु तभी कुछ महेश ने, यह कहा कि “ कि कोई नहीं दे दो बच्चे जिद नहीं करेंगे तो कौन करेगा” । ऐसा कहकर उस बच्चे को वह उपहार दे दिया । यह पूरी घटना मेरे सामने हुई । दोनों परिवार में रहने वाले मेरे परिचित थे, वही संस्कारवक्ष या शिष्टता वक्ष  मैंने कुछ नहीं कहा । परंतु बाद में जब मैंने सोच तो पता लगा कि रामलाल के पुत्र के लिए उसका पिता क्रोधी बन गया जबकि महेश उसका प्रिय काका या अंकल ।

इसके निदान के लिए बहुत आवश्यक है कि आप अपनी अपनी संतान की प्रकृति समझें । ध्यान दीजिएगा हर विद्यार्थी को समझाने का एक ही रास्ता नहीं हैं । उस बच्चे की प्रकृति को समझ कर उसे समझाने का प्रयास करें । वह अवश्य समझ लेगा । और आज के युग में तो प्रकृति समझने के बहुत से नए नए ढंग और प्रणाली विद्यमान हैं । जब तक पूरे समाज हमारा अपना नहीं मानेंगे तो इसका निदान असंभव है ।

एक बात का ध्यान रखें, अपने बच्चे को बचाने के लिए आप हैं । चलिए कुछ हद तक विद्यालय का वातावरण भी होगा । परंतु जो आपके बच्चे को नशे का आदि बनाने वाले हैं वह अत्यधिक धन संपदा वाले उद्योगपति हैं, उन्होंने प्रशासन को साथ मिला लिया है । राजनैतिक दलों का आशीर्वाद है । उद्योगपति उससे पैसा कमाता है, प्रशासन में भ्रष्टाचार के रूप में सबको मलाई मिलती हैं । राजनैतिक दल इसके प्रभाव से जब चाहें दिखाने वाली भीड़ खड़ी कर सकते हैं । उनकी शक्ति और आप । यदि आज तक बचें तो भविष्य के लिए अवश्य सजग हो जाइए और समाज को इस मुहिम में ले कर आयें ।

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