WORLD WATER DAY ! How the FORCED CHANGES in SOCIETY WORSENED, How to RECTIFY IT

अंतर्राष्ट्रीय जल दिवस पर विशेष

आज भारत की जनसंख्या विश्व की लगभग 17% है और देश मे विश्व का मात्र 4% भूजल विद्दयमान है । लगभग 250 वर्ष पहले विदेशी आक्रांताओं के प्रवेश से पहले इस देश मे हमारी आवश्यकता से अधिक जल था । तब शायद हम इसको नापना नहीं चाहते थे परंतु हमारी आवश्यकताओं से कहीं अधिक हमारे पास था । 1947 में भारत की आज़ादी के समय भी हमारे पास सरकारी आंकड़ों के अनुसार लगभग 6000 घन मीटर प्रति व्यक्ति जल था जो आज 1000 घन मीटर से भी कम रह गया है ।

यदि जनसंख्या को देखें तो यह तीन गुणा हुई है परन्तु जल की उपलब्धता 1/6 हो गयी है । आइये इसके कारण को समझें । आप ध्यान दीजिये किस प्रकार से जल की आवश्यकता को बढ़ाया गया और जल का दुरुपयोग किया गया है जिससे यह व्यवसाय पनप सके और पानी बिकना शुरू हो सके ।

सबसे पहले तो आपके किसानों को रसायनिक उर्वरक के लिए तयार किया गया । ध्यान रखें इसके पहले किसान गोबर की खाद का प्रयोग करता था । गोबर के प्रयोग से उसको सिंचाई की आवश्यकता, रसायनिक उर्वरक से कम होतो है । तो इसके कारण उसे अब खेती में अधिक जल की खपत करनी पड़ी । इसके साथ ही दुष्प्रभाव हुआ कि उसे अपने गाय की गोबर की उपयोगिता कम लाग्ने लगी । साथ में ही अब नए रसायनिक कीटनाशकों की आवश्यकता पड़ी जिसके लिए वह पहले से गोमूत्र का प्रयोग करता था । इसे कहते है कि एक तीर से तीन तीन निशाने मारना । खेती महंगी और अपौष्टिक हुई वह अलग । नई बीमारियाँ इस रसायनिक फसल के बोनस के रूप में मिलने लगी ।



अब इस रसायनिक उर्वरक के उपयोग से भूजल दूषित होने लगा । यही जल आस पास की नदियों में चला जाता था इससे वह नदियां भी प्रदूषित होने लगी । इस प्रकार से एक तो किसानों के लिए जल की ज़रूरत बढ़ाई गयी और दूसरी तरफ खेत का निकला जल नदी को प्रदूषित करता रहा ।

अब आइये एक और कारण को समझें जिससे शहरों में जल संकट बनाया गया । आप पहले साबुन का प्रयोग करके कपड़े धो लेते थे , अब इसके स्थान पर हर कंपनी नें डिटर्जेंट का आपको लालच दिया । कपड़े अधिक सफ़ेद होना का दावा किया । अब होता क्या है कि जब आप डिटर्जेंट का प्रयोग करते हैं तो अधिक जल की आवश्यकता होती है कपड़ों से डिटर्जेंट निकालने के लिए । आप स्वयं इसका छोटा सा प्रयोग कर सकते हैं । देसी साबुन, जो पीली वाली टिकिया आती थी आज बाज़ार से नदारद हो गयी है और रोज़ Tide और Tide Express इत्यादि के नाम से नए नए साबुन परोसे जा रहे हैं । अगर आप ध्यान से सोचें कपड़े पहले भी उतने साफ थे, एक अंतर अवश्य मिलेगा कि आजकी रसायनिक गंदगी को रसायनिक डिटर्जेंट बेहतर धोएगा । तो इसके बाद Dove इत्यादि सौंदर्य साबुन दिये गए इन सब को भी शरीर से हटाने के लिए आपको अधिक जल की आवश्यकता पड़ती है ।

इसी के साथ शहरों में साफ पानी के अभाव में आपको नए नए पानी के फ़िल्टर बेचते हैं । यह फ़िल्टर कितना साफ करते हैं यह दूसरी बात है, परंतु कुछ कुछ तकनीकों में तो एक ग्लास पानी को निकालने के लिए 7 ग्लास पानी का प्रयोग किया जाता है । अब यह पानी स्वास्थ्य के लिए बेहतर नहीं है इसके लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कई बार अपनी निर्देशिका भी दी है । इसके साथ ही यह शायद पानी को साफ कर देते हैं परन्तु आपके शरीर के लिए ज़रूरी खनिज पदार्थ भी पानी से निकाल जाते हैं । अब आपके लिए नए नए खनिजों को पूरा करने के लिए Multi Mineral tablet देने की सलाह भी आपको मिल जाएगी । बिचारे MBBS डॉक्टर को मत दोष दीजिये, वह तो आपकी बेहतरी के लिए ही काम करता है ।

मैं स्वयं आज भी नोएडा में नलके के आने वाला पानी घड़े में भर कर रख देता हूँ, गर्मियों के लिए, या कभी बरसात के दिनों में मिट्टी इत्यादि नज़र आए तो पानी को यांत्रिक फिल्टर से साफ करता हूँ । ईश्वर कृपा से कभी भी खनिज की दवाई नहीं लेनी पड़ी है ।

तीसरा और सबसे हानिकारक है आज रसायनिक उद्दयोगों का कचरा जो सीधा इन नदियों में बिना जल शोधन के बहा दिया जाता है । गंगा और यमुना की सफाई के सरकार के सारे पैसे खर्च हो जाएंगे, अगर सरकार के पास होंगे, लेकिन जब का रसायनिक कचरा बिना जल शोधन के बिखेरा जाएगा यह समस्या सुलझने वाली नहीं। उसके लिए एक तो हमारे कानून बहुत लाचार हैं दूसरे सभी उद्दयोग एक नहीं तो दूसरे राजनैतिक दल को चंदा देते हैं तो आप उनके विरोध मे सरकार को खड़ा नहीं पाएंगे ।



आप सोचेंगे कि हमारे देश में ऐसा क्या था कि पहले यह समस्याएँ नहीं आती थी । देखिये पहले हम व्यावहारिक थे हमारे संस्कार पर्यावरण को बचाने वाले थे । हम अगर नदियों को मां या देवी का स्थान देते थे तो मात्र उनके मंदिए में माथा टेकने के लिए नहीं इसका सीधा सा अर्थ था कि उनका (नदियों) का आदर करो, अर्थात उनेक साथ दुर्व्यवहार न करो । और इसी कारण हम नदियों में ऐसा कचरा नहीं फेंकते थे । एक और प्लास्टिक ने हमारे देश में नदियों में जाकर जल संरक्षण पर बड़ा बुरा असर डाला है । इसीलिए तब न तो जल दिवस था और न ही पर्यावरण दिवस । आज दोनों दिवस है बड़ी बड़ी गोष्ठियों का आयोजन है फिर भी जल और पर्यावरण स्थिति खराब होती जा रही है ।

बलबीर सिंह सींचे वाल ने काया कल्प किया काली नदी का

अब आइये इसके निवारण पर बात करें । आज सरकार पैसा भी लगा रही है परन्तु इसके बाद भी स्थिति नहीं सुधरी है । इसका कारण है धरातल पर काम करने वाले न तो उस नीति को बनाने में हिस्सेदार हैं न ही उसकी कार्यान्वयन में । आपको उदाहरण से समझाऊँ तो हमारे मित्र अवधेश कुमार उपाध्याय जी नें आग्रा में सूखी बावड़ियों को फिर जल मग्न कर दिया और लोगों को जागरूक करने में सफल हुए । ऐसे व्यक्तियों को सरकार अपने कार्य योजनाओं में स्वतंत्र प्रभार दे तो यही विवेषज्ञ अपनी कला को पूरे देश में दर्शा पाएंगे । भारत में कभी भी प्रतिभाओं की कमी नहीं है । आपको बलबीर सिंह सींचेवाल का काम देखना चाहिए । जिन्होने 160 किलोमीटर लंबी नदी को मात्र अपने सहयोगियों के बल पर पुनर्जीवित किया । सरकार ने इन्हे पद्मश्री से सनमानित किया है 2017 में । सरकार की भूमिका सराहनीय हैं । परन्तु इन जैसों के निर्देशन में देश के कई अन्य जल परियोजनाएं चलायी जानी चाहिए ।

काली नदी की आज की स्थिति यह बताती है कि अब भी हम कर सकते हैं

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *