Western world Vs India.

समझ लीजिये कोई भी पराया देश आपको अपने देश में गौरव की नज़र से देखने नहीं देना चाहता क्योंकि यदि यह हो गया तो भारतीय बुद्धिमान अपने देश से प्रेम करेगा और उनकी दुकान बंद हो जाएगी

अब समझ लीजिये कि यह देश ऐसा क्यों करते हैं। उनके  लिए यह करना मात्र इसके लिए आवश्यक नहीं कि भारतीय अपनी मर्यादाओं और परम्परा को भूल जाएँ । बल्कि इसके लिए भी भारत आर्थिक रूप से कमजोर को जाये । आप सोच रहे हैं कि यह अर्थशास्त्र और समाज शास्त्र का क्या रिश्ता है ? आइये इसको समझते हैं । भारत को तोड़ने की कोशिश हमेशा की गयी। हम टूटे बिखरे परन्तु देश मे पारिवारिक व्यवस्था नहीं बदली । जिसका मूल है भारतीय नारी । हमारे देश मे पारिवारिक रिश्ते के कारण कर्तव्य की भूमिका अधिकार से अधिक है । हमारे रिश्ते पारिवारिक धुरी पर हैं जबकि विदेश या अंग्रेज़ियत के रिश्ते एक अनुबंध  पर हैं आपकी जानकारी के लिए अमेरिका में 1970 मे एक पुत्र ने अपने पिता से तलाक के लिए अदालत मे मुकदमा चलाया और अदालत ने उसको तलाक दिया क्यूंकी उनकी सोच मे पुत्र और पिता का रिश्ता एक अनुबंध है यदी आप नहीं चाहते तो उस अनुबंध को तोड़ लीजिये । हमारे यहाँ तो विवाह भी अनुबंध न मान कर एक कर्तव्य पर आधारित हैं। और दूसरे हमारे यहाँ विवाह भी दो व्यक्तियों का न होकर दो परिवारों का मिलन है। अमेरिका का पारिवारिक ढांचा लगभग टूट चुका है। अब अमेरिका भी भारत के इस ढांचे को तोड़ना चाहता है । कानून परिवार व्यवस्था तोड़ तो सकता है परन्तु जोड़ नहीं सकता । अमेरिका तो अपनी परिवार व्यवस्था को बनाने के लिए कानून बना कर देख चुका है और असफल हुआ है । अमेरिका में कानून बना कि पति पत्नी यदि साथ रहें तो उन्हे कर में छूट मिलेगी परन्तु परिवार फिर भी नहीं बसे ।

अमेरिका में आज 49% लड़कियां बिन ब्याहे माँ बनती हैं दुर्भाग्य से इनमे से लगभग आधी विद्दयालय में पढ़ने वाली हैं । वहाँ स्कूल के साथ क्रेच हैं वह भी सरकारी जो बच्चे का उतने समय तक ख्याल करती हैं। यही स्थिति विवाह की हैं वहाँ 56% पहला विवाह में तलाक है और दूसरे विवाह में 67% और तीसरे विवाह मे 74% है । बूढ़े माता पिता को देखने वाले कोई नहीं है । बीमार व्यक्ति या बेरोजगार को देखने वाला कोई नहीं है इसके कारण सरकार को हर मद में खर्च करना पढ़ता है । आपकी जानकारी के लिए हर वर्ष अमेरिका 55 हज़ार करोड़ डालर इस सामाजिक कार्य में खर्च करता है जो कि उनके सकाल घरेलू उत्पाद का 30% प्रतिशत है । अब यह खर्च भारत की सरकार में लगभग नगण्य है । क्योंकि यह खर्च भारत में पारिवारिक व्यवस्था चलाती है। आज भी जो लोग अपने घर के वृद्धों को वृद्ध आश्रम में छोड़ आते हैं उन्हे हिकारत की नज़र से देखा जाता हैं । हमारी व्यवस्था मे वानप्रस्थ आश्रम तो है परन्तु वृद्ध आश्रम नहीं है । दरअसल हमें सबको मिल कर इसका विरोध करना चाहिए जबकि कुछ लोग इन आश्रमों को ठीक समझते हैं । इसी प्रकार हमारे देश में आज भी बिन ब्याही मां को इज्ज़त नहीं दी जाती हैं । अमरीका जैसे देश यह चाहते हैं कि हम अपने वृद्धों को आश्रम में छोड़ें जिससे हमारी महिलाएं अधिक से अधिक खर्च करें व्यर्थ की चीजों पर और अमेरिकी या यूरोपियन उत्पादों को खरीदें ।

1990 के आसपास जब श्री भगवती जो कि WORLD BANK के कर्मचारी को उस समय के वित्त मंत्री श्री मनमोहन सिंह ने पूछा कि “हम सब वही नीतियाँ चला रहे हैं परन्तु हमारे देश तरक्की नहीं कर रहा है” तब  श्री भगवती जी ने बताया कि आपके देश मे परेशानी हैं यहाँ के परिवार । लोग बचत करते हैं विषेशतौर पर  पारिवारिक महिलाएं उनके लिए अपनी इच्छाओं से अधिक महत्व पारिवारिक कर्तव्यों का है । किसी तरह उन महिलाओं को समझाइए कि स्वयं का सुख परिवार से बड़ा है तो वह खर्च करेंगे । उनका मानना है कि यदि महिलाएं अधिक खर्च करेंगी तो उत्पादन बढ़ेगा (उनका समान बिकेगा) तो अधिक रोजगार उपलब्ध होगा । यहाँ यह बात और गौर करने की है कि हम विकास को उस सकाल घरेलू उत्पाद से जोड़ते हैं जिसमे यदि आप बीमार हो कर दवाई खरीदते हैं तो भारत तरक्की कर रहा है । उसके लिए श्री भगवती के अनुसार आप एक से एक बेहतर विदशी समान लाइये और महिलाओं को प्रेरित कीजिये । परन्तु भारत की महिलाएं बड़े बड़े departmental स्टोर में तो गयी पर खरीददारी नहीं की । इससे इनकी योजनाएँ नहीं चलीं। यह सारी व्यवस्थाएं परिवार को तोड़ने के लिए हैं । इसके विपरीत अमेरिका में जहां परिवार नहीं हैं पुरुष और महिला अलग अलग घर बनाएँगे तो अधिक समान खरीदेंगे इससे देश की तरक्की होगी । यह उनकी सोच हैं जबकि भारत मे संयुक्त परिवार की कल्पना इसलिए थी कि सब एक दूसरे का साथ दे। घर मे माता पिता चाचा, चाची, दादा दादी एक दूसरे का सहारा बनेंगे दूसरे धन की भी बचत होगी तो भविष्य के लिए बचत कर सकेंगे जिससे आने वाली पीढ़ियों का भला होगा । अब जहां परिवार नहीं है वहाँ बचत का रिवाज नहीं है।

हम अपने देश की परम्पराओं पर गर्व करें जिसने आज तक हमें जोड़ रखा है न कि इस पर शर्म करें जैसा कि अमेरिका जैसे देश चाहते हैं, आधी अधूरी सच्चाई बता कर।

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