UNFAIR TREATMENT WITH YOUTH preparing for JEE/NEET. WHO is responsible? PARENTS, COACHING or ADMINISTRATION ?

अभी कुछ दिन पहले JEE का परिणाम आया था । पता चला पंजाब के पटियाला के  जयेश  ने सबसे अधिक अंक प्राप्त किया हैं । उनके कमरे के जोड़ीदार श्रेय सिंगला ने जो लुधियाना से है उनसे एक ही कदम नीचे के अंक प्राप्त किए हैं । अब यह दोनों बच्चे चंडीगढ़ मे पढ़ते थे । जयेश जो कि अपोलो पब्लिक स्कूल पटियाला के कक्षा 12 के छात्र हैं । श्रेय  लुधियाना के आर्य सीनियर सेकंडरी स्कूल के कक्षा 12 के छात्र  है। दोनों एक कमरे के साझीदार थे चंडीगढ़ मे । इससे यह स्पष्ट होता है कि दोनों अपने अपने स्कूल मे न जा कर कोचिंगे के लिए चंडीगढ़ आ गए और पढ़ रहे थे । कोई बुराई नहीं । परंतु हर बच्चे को यह सौभाग्य नहीं है

जो बच्चे अपने अपने शहरों मे रह कर अध्ययन करते हैं उन पर लगभग 7 घंटे स्कूल मे रहने का दबाव रहता है । एक दिन न जाएँ तो स्कूल से घर पर निर्देश आ जाता है । चंडीगढ़, कोटा और हैदराबाद जैसे शहरों मे भी बच्चे स्कूल के स्थान पर मात्र कोचिंग करते हैं । अब प्रश्न यह है की यदि यह सही दिशा है और सरकार, प्रशासन और शिक्षाविद इस बात पर सहमत हैं तो क्यों नहीं देश में इस प्रथा को प्रशासन और विभिन्न बोर्ड अनुमति दे दें । और यदि यह अनुमति नहीं दी जा रही है तो फिर आप कैसे कह सकते है कि सम्पूर्ण शिक्षा के क्षेत्र में समानता है । 30 वर्ष तक नोएडा में रहने के बाद मैं जब कुल्लू में जा कर शिक्षा का स्तर देखा तो घबरा सा गया । जाता तो बहुत बार था पर जब निकट से देखा तो पैरों तले ज़मीन खिसक गयी । यहाँ कुल्लू  में शिक्षा संस्था एक विभिन्न आयाम में कार्य करता है । आपने देश के बहुत कम ऐसे क्षेत्र देखें होंगे जहां पर विध्यालय विशेषकर शिक्षा सन्मान से सनमानित अध्यापकों द्वारा संचालित बंद होते  देखे गए है । कुल्लू में यह स्थिति एक अपवाद के रूप में है । यहाँ पर अधिकांश विद्यालय के प्रधानाध्यापक उस विध्यालय के मालिक हैं । जी हाँ आपने ठीक समझा एक व्यापार के मालिक हैं । इसीलिए  उनके लिए अगर आप विध्यालय कैसा चल रहा है पूछिए तो उत्तर आता है अच्छा है क्योंकि इस साल 120 नए बच्चों ने प्रवेश लिया है । इसके ऊपर न तो उनको सोच है और न ही उनकी चाहत । पहाड़ी इलाका होने के कारण विध्यार्थियों को पाठशाला पहुँचने मे समय भी अधिक लगता है । लगभग 8 से 9 घंटे विध्यार्थी के इसी स्कूल पर ल्लग जाते हैं । अब शिक्षा के कारोबार के चलाने वाले भी IIT इत्यादि ने नाम से बहुत पैसा बटोर रहे हैं । एक स्थान पर तो विध्यार्थियों को यह बताया जा रहा था की IIT में जाने से आपकी पहली पगार 1 करोड़ की होती है । मुझे खुशी है की देश में इस प्रकार के भ्रम को तोड़ने के लिए पिछले वर्ष के IIT के प्रथम स्थान पाये कल्पित ने एक विडियो जारी करके सत्य बताने का प्रयास किया है ।



अब ज़रा यहाँ पर विध्यालय चलाने वालों की भी मजबूरी समझने का प्रयास करते हैं । विध्यालय की मजबूरी स्थान स्थान पर निर्भर करती है । दिल्ली, मुंबई और हैदराबाद जैसे शहरों की समस्या अलग है और छोटे से स्थान जैसे कुल्लू, सिरसा  जैसे 5 से 15 लाख वाले शहरों की कहानी अलग है । बड़े शहरों में जहां पर शिक्षा संस्थानो के पास बच्चों की कमी नहीं है या यूं कहिए उन स्थानो पर एक बच्चे को प्रवेश करने में ही मेहनत करनी पड़ती है, वहाँ कम से कम बच्चों को अपने पास लाने की परेशानियों से विध्यालय मुक्त है । उन बड़े शहरों में प्रशासन की भी नज़र उन पर रहती है । आपको याद होगा कि समय समय पर ऐसे समाचार आपको मिल जाते है जहां पर विध्यार्थी पर किसी भी प्रकार के तनिक भी उत्पीड़न पर प्रशासन हरकत में आ जाता है । तो विध्यार्थी पर न तो उत्पीड़न होता है और हो भी तो अभिभावक और प्रशासन उस पर समय रहते संज्ञान ले लेते हैं ।  यदि किसी भी प्रकार से कोई अव्यवस्था हो तो प्रशासन हो या मीडिया हो इस पर कार्यवाही पर आ जाते हैं । अब वही पर विध्यालय के हाथ नियमों के आधीन बंधे होते है । उन नियमों के अंतर्गत वह उस पर काम करते हैं । अब यहाँ का विध्यार्थी विध्यालय में कक्षा करने के बाद ही कोचिंग में जाता है । तो उसके पास समय थोड़ा सा कम मिलता है । एक बहुत बड़ा अंतर यह रहता है इन विध्यार्थियों में मात्र कोचिंग में जाने वाले की अपेक्षा सर्वांगीण विकास अधिक मात्र में होता है । यह लोग अपने आपको समय आने पर संभालने में अधिक सक्षम पाये जाते है । इसीलिए विध्यालय की अपेक्षा आप पाएंगे कि कोटा जैसे शहर में आत्महत्याएँ अधिक पायी जाती जाती हैं । अब विध्यालय जबकि मात्र एक पेशा ही नहीं वरन शुद्ध व्यवसाय बन कर रह गया है । अधिक लाभ कमाने के लिए आपको बेहतर सिद्ध करना है । और ध्यान दें कि आपके ग्राहक कौन हैं । जी बिलकुल अभिभावक । दुर्भाग्य से अभिभावकों की नज़र में बेहतर शिक्षा का अर्थ अच्छे अंक तक सीमित बन कर रह गया है और इसलिए विध्यालय का ध्येय आपके बच्चे के अधिक अंक दिलवा कर अगले साल नए ग्राहक तैयार करने से अधिक कुछ नहीं है । विध्यार्थी में ज्ञान कितना है या उसके चरित्र में कितना विकास हुआ यह सब बेमानी हैं उनके लिए ।

 



इसके साथ ही आपको पता होगा कि ऐसे में DUMMY या छद्म प्रवेश दिये जा रहे हैं ।  अब कक्षा 11 और 12 में छात्रों के दो गुट बन गए हैं, एक तो वह जो नियमित विध्यालय छोड़ कर इस प्रकार की कोचिंग ले कर पढ़ते है और छद्म या झूठे तरीके से अपने शहरों या कस्बों मे स्कूल मे मात्र कागजी रूप से पढ़ते हैं । दूसरे वह हैं जिन्हे अपने स्कूल के साथ साथ इस प्रतियोगी परीक्षा की तयारी करते हैं । स्पष्ट है कि दूसरे श्रेणी के बच्चे के पास समय कम ही होगा । अब इसके बाद अधिकांश छात्र वही इन परीक्षाओं में उत्तीर्ण हो रहे हैं जो विध्यालय के बोझे से मुक्त है । अब उन बच्चों  को आपने शुरू से ही झूठ के आधार पर आगे बढ़ना सीखा दिया है । प्रश्न है कि क्या यह सही है ? जब अभिभावकों और प्रशासन के सामने सामने बच्चे इस तथाकथित ऊंचाइयों को प्राप्त करते हैं तो उन्हे आगे के जीवन में भी झूठ से आगे बढ़ाने में कोई संकोच नहीं होगा । क्या हम यह भारत चाहते हैं ! सरकार जानती है, प्रशासन जानता है, शिक्षाविद जानते हैं, अभिभावक इससे अनभिज्ञ नहीं हैं, अपितु उनका तो इस कृत्य में सकारात्मक योगदान है ।

 

यदि यह सही दिशा है तो भी एक यक्ष प्रश्न है कि यह कोचिंग का व्यापार हजारों करोड़ रुपये और विध्यार्थियों के हजारों घंटे को लगा कर क्या भारत में 10% छात्र भी नहीं बना पा रहा है जो NCERT के प्रश्नों के में 30% अंक प्राप्त कर सके । यह किस मुकाम पर शिक्षा को ले कर आ गाये हम और कहाँ जाएंगे ?  मुझे आतीफ़ असलं के एक बीत की पंक्तियाँ याद आती हैं “हम किस गली जा रहे हैं, अपना कोई ठिकाना नहीं ”

 

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