SENSEX CRASH ! Reason and Remedy ! ARTHAKRANTI Impact

 

आज फिर समाचार आया है की 2 लाख करोड़ रुपया SENSEX के टूटने के कारण भारत के STOCK EXCHANGE से बाहर हो गया है और निवेशक अपने आपको ठगा सा महसूस कर रहा है ! फरवरी के पहले सप्ताह मे भी ऐसी घटना घई थी जिसके चलते करीब 10 लाख करोड़ रुपया भारत से बाहर चला गया था । इस प्रणाली के कारण और निवारण को आइये समझते हैं ।

जब आप कोई भी व्यापार या उद्दयोग चलना चाहते हैं तो आपको पूंजी की आवस्यकता होती है । कम पूंजी चाहिए तो आप अपनी स्वयं की पूंजी लगा लेते हैं । उससे अधिक के लिए आप बैंक के पास जा कर बैंक से ऋण ले सकते हैं । परन्तु एक तो भारत मे बैंक का ब्याज की दर 15% से अधिक है दूसरी तरफ बैंक की औपचारिकतायें अधिक हैं । स्पष्ट है कि बैंक को भी अपनी राशि को बचाना है तो वह भी सावधान हो कर देना चाहता है । इसी कारण से लोग अपने भाई बंधुओं से भी पूंजी मांग लेते हैं । और उन सबको अपने उद्दयोग का हिस्सेदार बना लेते हैं । जब यही हिस्सेदार अधिक हो जाते है तो वही सब लोग उस व्यापार के share holder बन जाते हैं ।

 

इसी काम को व्यापक करने के लिए व्यापारी अपने हिस्से (Share) को खुले बजार जिसे आप stock market कहते हैं उसमें बेच देता है । अब निवेशक उसमें पैसा इसलिए लगता है कि जब मैं स्वयं उद्दयोग या व्यापार करने मे अक्षम हूँ तो किसी का हिस्सेदार बन जाता हूँ । यह तो रही इसकी आदर्श स्थिति । और इस स्थिति मे यदि उद्दयोग का लाभ होगा तो सब हिस्सेदारों में बाँट दिया जाएगा ।

LUT GAYE

परन्तु यह निष्पक्ष नहीं रहता है । व्यापारियों का स्वार्थ बीच मे आ जाता है तो वह लाभार्थी को सही स्थिति न बता कर भी पूंजी लेते रहते हैं और प्रति वर्ष सही हिसाब नहीं देते हैं । कुछ निवेशक इतनी अधिक पूंजी लेकर आते हैं कि वह आपके share की कीमत को बदलने में भी  सक्षम हैं ।

 

इसी के चलते 90 के दशक से FDI और विदेशी निवेश की इतनी बाते की गयी और तभी हर्षद मेहता का भारत मे पहली बार 5000 करोड़ का घोटाला हुआ । 2015 की RTI के उत्तर मे भारत सरकार ने बताया है कि जितनी पूंजी विदेश से आई है उससे अधिक हमारे यहाँ पर बचत के रूप में उपलब्ध हैं । Allen Green Span नमक अमेरिकी अर्थशास्त्री के अनुसार भारत को अपने  infrastructural development के लिए 1.7 trilion डॉलर यानि 10 लाख करोड़ की आवश्यकता है, लेकिन भारत को एक भी डॉलर बाहर से लाने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि भारत में अपनी पूंजी ही बहुत है । आपकी जानकारी के लिए भारतीयों की घरेलू बचत 37% तक पहुँच गयी है ।

 

लेकिन इस भ्रम को पाल कर सरकार ने FII जिसे Foreign institutional Investor कहते है बुलाये । यहाँ तक तो कुछ नियम कायदे भी हैं । परन्तु फिर साकार ने विदेशों से पैसा लाने के लिए participatory notes का प्रचलन करवा दिया । इस प्रणाली के अनुसार आप विदेश से आ कर बिना अपनी पहचान बताए कितना भी पैसा stock market में डालिये और जब चाहे निकाल लीजिये । इसी के कारण इस माध्यम से आया धन बहुत जोखिम लेकर आता है ।

 

अभी की स्थिति क्रम से समझें ।

सबसे पहले नीरव मोदी जाते हैं ।

फिर PNB के केस का खुलासा होता है ।

विदेशी निवेशक अपना पैसा ले कर भाग जाते हैं ।

10 लाख करोड़ फरवरी में बाहर चला गया ।

फिर सब के सब बैंक घबरा कर अपनी वित्तीय स्थिति विवरण यानि Balance Sheet में अपने अपने घाटे को दर्शाते हैं ।

विदेशी और अधिक पैसा ले कर भाग जाते हैं ।

2 लाख करोड़ की चपत भारतीयों को लग गयी ।

अब इसके समाधान की बार करते हैं । यदि अर्थक्रांति के प्रावधान लागू होते है तो सबसे पहले बैंक के पूंजी बहुतायत में आती है । उसके बाद बैंक का खर्चा चलाने के लिए बैंक को पैसा अर्थक्रांति के प्रावधान से प्राप्त होता है । इसके कारण बैंक की ब्याज दर 3% से 4% रहती है । उसके बाद एक तो वही व्यापारी STOCK से धन लेगा जिसे वास्तव में आवश्यकता है, दूसरे विदेशी निवेशक के लिए भारतीय STOCK MARKET बहुत फायदे की नहीं रहेगी । एक झटके के लिए तो STOCK EXCHANGE में शायद गिरावट दर्ज होगी परन्तु उसके बाद वह सही स्थिति में चलेगा, और फिर आप देखिएगा कि STOCK कि बढ़ोत्तरी और GDP कि सही बढ़ोत्तरी सामने आएगी । आज सब आभासी गिनती है जो वास्तविकता से दूर है ।

 

एक जानकारी और दे दूँ आपको कि पूरे भारत में LISTED COMPANY का GDP में योगदान 15% से भी कम है और मात्र भारत के 5% लोग इसमें पैसा लगाते हैं ।

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