RULES are meant for SOCIETY OR SOCIETY meant for RULES ! Is patriotism limited to SLOGANs

पुलवामा के बाद पूरे देश में तथाकथित देशभक्ति के दावे किए जा रहे हैं । एक पाकिस्तान पर अनेक प्रकार के दबाव बनाने के लिए सरकार नें बहुत से कदम उठाए हैं । जिनमे पाकिस्तान को Most Favored Nation के खिताब से हटा दिया गया है । पाकिस्तान को नदियों से पानी देना बन्द  कर दिया है । इसके साथ ही पाकिस्तान से आने वाले सभी सामान पर आयात शुल्क में 200 प्रतिशत की वृद्धि कर दी गयी है । यदि एक पल को राजनैतिक दलों को छोड़ दिया जाये तो पाकिस्तान पर लगाए प्रतिबंध या उस पर किए गए किसी भी ठोस कदम को देश की जनता ने खुले दिल से स्वीकार किया है । जहां तक राजनीति की बात है, तो सत्ता दल वाले अपनी पीठ थपथपाएं और विरोधी दल का उसका विरोध करें यह तो होना भी चाहिए ।

एक और app भारत के वीर पर लोगों नें बहुत धन दे दिया । उद्योगपति अंबानी परिवार, श्री अमिताभ बच्चन और वीरेंद्र सहवाग इत्यादि खिलाड़ियों नें देश के सैनिकों के साथ खड़े हो कर उनको यह बता दिया कि हम सब उनके साथ हैं । स्थान स्थान पर हुतात्माओं (तथाकथित शहीद) के परिवारों के पास सत्ता और विपक्षी दल के सांसद और विधायक खड़े दिखाई दिये गए । इन सब का प्रयास सराहनीय है । सत्ता और विपक्ष के सांसद और विधायकों का यह कर्तव्य भी है । सभी दानवीर व्यक्तियों और किसी भी प्रकार के सहयोग का मैं समर्थन करता हूँ । चलिये यह तो बहुत नेक विचार है। परंतु देश के साथ खड़े होने के लिए 26 जनवरी, 15 अगस्त या किसी हुतात्माओं का बलिदान की ही क्यों आवश्यकता पड़ती है । हम एक भारतवासी होने के नाते क्या देश की सेवा करते हैं ? आज इस पुनरावलोकन की आवश्यकता भी है । हमारे कर्म क्या देश प्रेम की निशानी है या देशद्रोह की ?

एक भारतीय होने के कारण हमारा कर्म राष्ट्र की सेवा में है या उसके विरोध में ? यदि एक शिक्षक उचित प्रकार से अपने विध्यार्थियों को शिक्षा देता है तो वह राष्ट्र धर्म निभा रहा है । एक दुकानदार यदि उचित  मूल्य पर आपको सामान दे कर, उससे उचित कर प्राप्त करके सरकारी कोश में जमा कर देता है तो वह राष्ट्र धर्म निभा रहा है । यदि एक वाहन चालक सभी नियमों का पालन करता है, व्यर्थ का ईंधन नहीं प्रयोग करता तो उसका काम भी राष्ट्र सेवा में है राष्ट्रद्रोह नहीं । यदि कोई धनी व्यक्ति व्यर्थ की बिजली के प्रयोग को रोकता है, भले ही वह उसकी कीमत दे सकता है तो वह भी राष्ट्र के संसाधनों का उचित उपयोग करके राष्ट्र सेवा कर रहा है । जब हम अपने स्वार्थ के लिए सरकारी सुविधाओं का दुरुपयोग करते है तब हमारी देश भक्ति कहाँ जाती है ? जब देश के संसाधनो का दोहन करते हैं तो हमारी देशभक्ति किधर चली जाती है । मात्र हुतात्माओं के लिए दिवे जला कर हम क्या सिद्ध करना चाहते हैं ?

 

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जब एक सांसद या विधायक अपनी सांसद निधि या विधायक निधि (जिसका धन भारतीयों के कर व्यवस्था से आता है ) का उपयोग करके किसी विध्यालय, किसी सड़क का कार्य या किसी सामाजिक कार्य पर करता है तो उस पर उस राजनैतिक दल के समस्त कार्यकर्त्ता इसका श्रेय लेने लग जाते है । जबकि यह तो उनके कामों में ही आता है । वह कोई समाज सेवा नहीं है हाँ यदि उसका उपयोग अपने निकट व्यक्तियों को ही लाभ देने के लिए किया जाये तो वह अवश्य समाजद्रोह की श्रेणी में आता है ।

अब यह बताना भी आवश्यक है कि हमेशा भारतीयों के विषय में श्रेष्ठ बोलने वाले मेरे जैसे व्यक्ति को क्यों इतना कटु सत्य लिखना पड़ रहा है । आज मैं एक घटना से बहुत आहत हुआ हूँ । हमारे यहाँ मेरे अभिन्न मित्र श्री अनूप खन्ना जी नें अपने सहयिगियों से मिल कर 21.08.2015 से निर्धनों के लिए “दादी की रसोई” नामक रसोईं खाने की व्यवस्था की । जिसमें 5 रुपये में भोजन (देसी घी के तड़के या छौंक के साथ ) यानि दाल और चावल दिये जाने का प्रावधान है । इसपर आपको सैंकड़ों विडियो youtube पर मिलेंगे । धीरे धीरे लोगों का सहयोग मिला और इसके साथ ही एक सद्भावना स्टोर का भी उदघाटन हुआ जिसमे 10 रुपये में कपड़े भी दिये जाने लगे । आज देश मे इस प्रारूप पर 250 से अधिक रसोइयाँ चल रही है । कुछ समय उपरांत एक अन्य स्थान पर अपनी कार को ले जा कर यह व्यवस्था सैक्टर 17 में भी की गयी । देश विदेश में इसकी ख्याति बढ़ी तो राष्ट्रपति भवन में भी इसकी चर्चा हुई । राष्ट्रपति भवन की चर्चा में एक MISSION POSSIBLE के नाम से इसके विस्तार पर चर्चा हुई , अनूप खन्ना जी यहाँ की chemist association के अध्यक्ष भी है तो इसीलिए समाज के निर्धन वर्ग के लिए जैसे ही प्रधान मंत्री जन औषधि केंद्र की योजना आरंभ हुई । सबसे पहले नोएडा में यही शुरू हो गयी । अब यहाँ पर रोटी कपड़ा और दवाई निर्धनों को कम कीमत पर उपलब्ध होने लगी । ख्याति इसस्तर पर हुई कि समाचार पत्रों और social media ने इसे बहित सराहा और इसकी चर्चा राष्ट्रपति भवन में भी हुई । सरकार की तरफ से पहल हुई और ऐसे काम करने वालों का एक समूह बनाया गया जिसमे विभिन्न क्षेत्र के लोगों को एकजुट हो कर आगे बढ़ाने का अवसर प्रदान करने की बात हुई । एक आयोजन के तहत Robinhood Army,  Uday Foundation Bharat ke mitr और हमारी दादी की रसोई को मिल कर mission possible नाम से project करने का विचार बनाया गया । इसकी बात चल ही रही थी कि विचार आया कि इस आयोजन को सरकारी अस्पताल मे किया जाए तो श्री खन्ना जी भोजन और कपड़े के साथ सस्ती दवाइयाँ निर्धनों को उपलाब्ध करवा सकेंगे । फिर नोएडा के सरकारी अस्पताल मे इस विषय में बात कि गयी और बहुत प्रसन्नता के साथ अस्पताल प्रशासन ने इसकी अनुमति देते हुए कहा कि अभी इसके लिए पर्याप्त स्थान नहीं दिया जा रहा है परंतु आप कार पार्किंग में अपनी सेवाएँ दे सकते है । कालांतर मे आपको पक्का स्थान दे दिया गया । अब खन्ना जी ने बिना विलंब किया अगले दिन से ही 10 से 12 बजे तक वहाँ काम शुरू कर दिया । समाचार पत्रों ने भी अस्पताल प्रशासन की प्रशंसा की ।

 

15 दिन के अंदर ही प्रशासन से समाचार आया कि आपके जैसे और भी कई संथाएं आना चाहती है । हमारे पास इस प्रक्रिया के लिए कोई माप दंड नियमावली में  नहीं है । जब तक कुछ निष्कर्ष नहीं निकलता आप यहाँ पर अपनी सेवाएँ बन्द कर दीजिये । कालांतर में हो सकता है आपको फिर से अनुमति दे दी जाये । अब आइये इनके महत्वपूर्ण प्रश्नों पर विचार किया जाये ।

 

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वहाँ कौन कौन है जिसको इस प्रक्रिया पर आपत्ति होगी ? निश्चित ही वही लोग जिनके व्यवसाय पर इसका दुष्प्रभाव पड़ेगा । इसमें वहाँ की कैंटीन और बाहर भोजन व्यवस्था करने वाले हो सकते हैं । वहीं सस्ती दवाइयाँ देने से कुछ दवा विक्रेताओं की हानी हो सकती है । एक और प्रश्न है यदि प्रशासन के पास और 5 संस्थाएं भी आ जाती तो उनको भी स्थान दे दिया जा सकता था । इस पूरे प्रकरण में स्पष्ट भ्रष्टाचार की बू आ रही ।  नियम समाज के लिए हैं या समाज नियमों के लिए ।

अब यहाँ पर स्पष्ट कर दूँ बहुत से लोगों का प्यार और साथ खन्ना जी को मिला । बहुत सहयोग सबने दिया । पर जैसा मैं हमेशा कहता हूँ । दान देने में सबसे सरल है धन का दान, उससे कठिन है मन का दान और सबसे कठिन है तन का दान । तन का दान केवल और केवल खन्ना जी द्वारा होता है । कल्पना करें बिना रुके पूरे वर्ष 10 से 12 एक स्थान पर 12 से 2 दूसरे स्थान पर, यदि खन्ना जी नोएडा में हैं तो वहीं मिलेंगे । आज समाज और प्रशासन की आवश्यकता थी की ऐसे कार्य करने वालों को सराहा जाये और साथ ही साथ सहयोग दिया जाए । सौभाग्य से समाज ने सहयोग दिया पर सरकारी तंत्र और प्रशासन ने नियमों का हवाला दे कर स्वार्थ की पूर्ति की ।

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