NEET मे 10 लाख युवा असफल !

शायद आप समझें कि कौन से 10 लाख युवा। अभी तो मैं मात्र एक परीक्षा के कारण लगी असफलता की मोहर और उसके बाद उन्हीं युवाओं के हीनभावना से त्रस्त होने की बात  कर रहा हूँ । जी हाँ आज की शिक्षा पद्दती ही इसकी दोषी है । परंतु क्या आज का अभिभावक, शिक्षक और समाज इस आग में घी डालने का काम नहीं कर रहा । एक बार सत्य जान कर इसका निर्णय आप स्वयं करें ।       

 आइए अब देश की शिक्षा व्यवस्था पर एक नजर डालें। शिक्षा में होती गिरावट पर, समय पर बहुत से शिक्षाविद और मनोवैज्ञानिकों ने बोला है परंतु ऐसा लगता है हमारे देश की जनता, सरकारें इस पर आंख बंद करके बैठी हुई है। कहीं  सरकारों को यह डर तो नहीं कि यदि देश का आम नागरिक सही शिक्षा को प्राप्त करके जागरूक हो गया तो इनकी राजनीतिक रोटियाँ कैसे सिकेंगी ?  

आपको देश के बहुत से युवा, विज्ञान संकाय में कक्षा 12 करने के बाद,  आज चिकित्सा संस्थान या अभियांत्रिकी संस्थान की परीक्षा , जिसे NEET की परीक्षा या IIT के लिए जिसे JEE  की परीक्षा कहते हैं, देना चाहता है । इस देश में चिकित्सा के क्षेत्र में लगभग 80 हजार युवाओं को प्रतिवर्ष प्रवेश मिलता है । और भी चिकित्सा से संबन्धित, संस्थान (आयुर्वेद, होम्योपैथी  इत्यादि)    जोड़ भी दी जाए तो यह संख्या किसी प्रकार भी एक लाख से ऊपर नहीं आती। परंतु इस देश में चिकित्सा संस्थानों के लिए जो परीक्षा होती है उसमें 12 लाख से अधिक विद्यार्थी बैठते हैं। कुछ लोग एमबीबीएस मैं अपना प्रवेश करा लेते हैं कुछ लोग आयुर्वेद के लिए चले जाते हैं और कुछ लोग इसी प्रकार से होम्योपैथी  इत्यादि पढ़ने के लिए अलग-अलग संस्थान में चले जाते हैं। लेकिन इस पूरे देश में समस्त चिकित्सा संस्थानों को जोड़ करके भी यह संख्या से अधिक नहीं आ सकती, कभी भविष्य में भी। अब प्रश्न यह है म क्या 12 लाख विद्यार्थियों में से, कुल 1 लाख  छाँटते हैं,तो बाकी 10 लाख अलग-अलग क्षेत्रों में, चले जाते हैं। जहां एक बात और समझनी चाहिए कि आपने इस परीक्षा के लिए न्यूनतम योग्यता कक्षा 12 में भौतिक शास्त्र, रसायन शास्त्र और जीव विज्ञान के छात्रों को 60 प्रतिशत से अधिक अंक वालों निर्धारित करी  है।

अब लगभग 17 वर्ष की आयु में कोई भी विद्यार्थी कक्षा 12 की परीक्षा में सामान्य रूप से उत्तीर्ण हो जाता है, उसे एक अथवा 2 वर्षों के लिए रुकना भी पढ़ें को भी लगभग 19 वर्ष की आयु  कोई विद्यार्थी कक्षा 12 उत्तीर्ण कर लेता है।  इतना होने के बाद भी

सरकार ने उसे 25 वर्ष तक की आयु सीमा दी गई है NEET देने के लिए, जिसके बाद वह  एमबीबीएस में प्रवेश पा सके। इसके चलते होता क्या है आप किसी विद्यार्थी को 6 से 7 वर्ष का समय दे रहे हैं कि वह इन संस्थानों की प्रवेश परीक्षा मैं उत्तीर्ण हो सके ।  इसी के चलते बच्चे कई कई वर्ष तक विभिन्न कोचिंग संस्थानों में अपना धन, और अपना समय बर्बाद करते हैं। मैंने हिमाचल प्रदेश में तो यहां तक देखा है की विद्यार्थी पांच 5 वर्षों तक विभिन्न संस्थानों में समय लगा देते हैं कभी भी निर्धारित अंको की 70% भी नहीं पहुंच पाते। ऐसे विद्यार्थियों को कोई समझाने नहीं जाता, बताने नहीं जाता, क्योंकि यदि कोई शिक्षण संस्थान यह कह दे कि आपसे नहीं हो रहा और आप दूसरे किसी और विषय में अपनी अध्ययन जारी रखें, सही मायने में उनका एक ग्राहक कम होता है, और यह सभी शिक्षण संस्थाएं विद्यार्थियों को अभिभावकों को एक ग्राहक से बढ़कर कुछ नहीं मानती।

इसी के साथ आप यदि यूट्यूब देखें तो किसी भी परीक्षा कितने अधिक वीडियो आ जाएंगे, जो यह कहेंगे कि कम अंक हैं तो आप क्या-क्या कर सकते हैं, और यह वीडियो को देखने के लिए हजारों लोग लग जाते हैं इसका अर्थ ये हुआ, कि  हजारों विद्यार्थी पर्याप्त अंक भी प्राप्त नहीं कर पाते और इधर उधर किसी अन्य विषय में पढ़ाई के लिए आगे नहीं बढ़ते हैं। तो क्या इनको 4 वर्षों के लिए तीन कोचिंग संस्थानों में भटकाव को रोकने के लिए कोई व्यवस्था नहीं होनी चाहिए ।  चिकित्सा संस्थानों में 720 अंको की परीक्षा होती है जिसमें सामान्य वर्ग के विद्यार्थी के 500 के आसपास अंक नहीं आते उसे कभी भी परीक्षा मैं सफलता नहीं मिलती और आगे संस्थान में नहीं मिलता। मैंने यहां देखा है 200 अंक प्राप्त करने वाले घर में चिकित्सा संस्थान के तथाकथित मालिक जाते हैं, और इस विध्यार्थी को भी हड़पने के लिए संस्थानों में प्रतिस्पर्धा लग जाती है ।

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जब परिणाम आते है तो हर संस्थान यह कहता है कि, मेरे अमुक अमुक विद्यार्थी यहाँ यहाँ प्रवेश पा गए हैं । कोई भी यह नहीं  कहता कि विध्यार्थी ने कुछ मेहनत की है । सब अपनी प्रशंसा में लग जाते हैं । ऐसा लगता है कि उस संस्थान में जाने से पहले विद्यार्थी मूढ़ था और अब प्रतिभाशाली बन गया है । प्रश्न यह है कि यदि मात्र संस्थानों का ही योगदान विद्यार्थी के सफल होने में है, तो उसी संस्थान के, सभी विद्यार्थी क्यूँ नहीं प्रवेश पा सके ?

 सभी संस्थान अपनी रोटी चलाते है परंतु आप 10 लाख से अधिक युवाओ के हतोत्साहित होने का श्रेय किसे देंगे ? और यह काम एक बार नहीं प्रतिवर्ष यही खेल चल रहा है । अब वह युवा अपने ऊपर असफल होने का ठप्पा ले कर जीवन भर घूमता रहेगा । क्या यह उचित नहीं था, कि उसे समय रहते ही चेता दिया गया होता और वह अपने जीवेन के बेहद खूबसूरत वर्ष किसी कोचिंग संस्थान की भेंट नहीं  चढ़ता ।     

अब आइये इसके निवारण की तरफ एक सुझाव की बात करें । सान 2015 में AIPMT ने प्रारम्भिक (preliminary) परीक्षा का प्रावधान किया था । कमोवेश यही स्थिति JEE की परीक्षा की है जिससे IIT नामक संस्था में प्रवेश मिलता है और अन्य इंजीनीयरिंग कॉलेज में प्रवेश मिलता है । जब देश में 1 लाख से अधिक युवा किसी भी सूरत में चिकित्सा के क्षेत्र में प्रवेश नहीं पा सकते । अब यह तो तय हैं न बाकी के युवा किसी अन्य संस्थान में ही प्रवेश लेंगे । तो सरकार और शिक्षाविद मिल कर किसी समय इस NEET की परीक्षा से पहले 3 लाख युवाओं को पहले ही छांट लें । उसके लिए कोई परीक्षा चाहे कक्षा 10, 11 या 12 में ले लें । कम से कम बाकी के 10 लाख युवाओं का लगभग 2 लाख प्रतिवर्ष की गणना से 40 हज़ार करोड़ रुपये पानी मे न जाये । और इसके साथ ही लगभग 16 लाख युवा वर्ष प्रति वर्ष की हानी इस देश को न हो । इस पर सरलता से कार्यवाही हो सकती है, परंतु सबसे बड़ी कठिनाई  या विरोध उन कोचिंग संस्थानों से आएगा जो 4- 4 वर्षों तक युवाओं को बहकाते रहते हैं । क्या देश की इतनी बड़ी युवा सम्पदा के नुकसान की भरपाई कोई  कर सकेगा ? आप एक तरफ तो उस युवा को दूसरे रोजगार की तरफ धकेल रहे हैं, इसमे कुछ भी कठिनाई नहीं परंतु 4 वर्षों के बाद वह युवा असफलता की मोहर लगा कर, समाज में जाता है । इसके अतिरिक्त हर विध्यार्थी के दूसरे प्रयास पर कुछ अंकों की कटौती कर दीजिये । इसका सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि युवा सही समय पर ही इस चक्रव्यूह से बाहर आ कर अपना रास्ता तलाश लेगा ।           

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