GST से बचाव क्या संभव है ? एक सरल और वैधानिक उपाय ! सोचें और करें

 

प्रिय व्यापारी बन्धुवर ! आप बड़े कारोबार मे भी GST से बच जाएँ ?? क्या यह संभव है !

सर्वप्रथम हम यह समझें कि सरकार को अपने रोज़मर्रा के काम काज और तथाकथित विकास के लिए धन की आबश्यकता है । और इसी कम के लिए सरकार के पास संवैधानिक अधिकार है कर वसूलने का । एक भारत मे रहने वाले व्यक्ति होने के कारण हमें सरकार को कर का भुगतान करना पड़ता है । सरकार भी हम से ही मात्र कर के माध्यम से धन लेती है । सरकार इसे अपनी दलील के अनुसार विभिन्न प्रकार के मदों मे हमसे कर लेती है । तो परेशानी क्या ? क्या हमें नहीं देना चाहिए ? । जी नहीं सरकार हम से ही लेगी और हमें ही नैतिक रूप से देना है । कदाचित हम इसे मानते भी हैं ।

अब समस्या यह है कि एक तो हमारे इतना अधिक देने के बाद भी सरकार के पास पर्याप्त पहुंचता नहीं है, सरकार इसका रोना रोती है कि धन सभी योजनाओं के लिए पूरा नहीं है । दूसरे सरकार अपने पास आए हुए धन का सदुपयोग नहीं करती है । इसी क्रम मे सरकार ने एक नयी प्रणाली जिसे आप GST के नाम से जानते हैं लागू कर दी है । कुछ लोग इसके समर्थन मे उतरे हैं यह कह कर कि अब इससे पहले की अपेक्षा काम करना सरल हो जाएगा क्योंकि पहले की तुलना मे अब कर ही कम हो गए तो अलग अलग विभागों के कर का लेखा जोखा नहीं रखना है । दूसरी तरफ जो विरोध में हैं उनका कहना है की साल में कई बार लेखा जोखा प्रस्तुत करना पड़ेगा इत्यादि इत्यादि । इन्हीं विरोधियों का यह भी कहना है कि पहले की अपेक्षा अब हमें नियमित रूप से accountant या CA की सेवा लेनी पड़ेगी । कुछ छोटे व्यापारी भी हम इसी जंजाल में अपने आपको पा रहे हैं जिससे वह आज तक आज़ाद थे ।

सरकार इसे अपनी उपलब्धि बताती है कि आज़ादी के 70 वर्षों के बाद ही सही एक नयी कर प्रणाली का प्रयोग कर के कर के कार्य का सरलीकरण कर दिया गया है । वहीं विपक्षी कहता है कि सरकार अब बहुत ज़ुल्म कर रही है । खैर यह तो सत्ता के पक्ष और विपक्ष का खेल ऐसे ही चलेगा और ऐसे ही चलने के लिए लोकतन्त्र बना है ।

 

अब आइये समझें कि व्यापारी क्या करता है ? मात्र देश की सीमा पर रह कर ही देश की सेवा नहीं होती है बल्कि सात्विक व्यापार करके वह देश की अर्थव्यवस्था को सुदृड करता है । उसका योगदान देश के लिए अर्थव्यवस्था बढ़ाने के लिए, व्यक्तियों को रोजगार देने, देश के लिए निर्यात करके विदेशी मुद्रा लाने इत्यादि इत्यादि के माध्यम से होता है । इसकी गिनती अगर मैं लिखूँ तो पृष्ठ छोटा पड़ जाएगा । परंतु सैद्धांतिक रूप से जहां तक कर की व्यवस्था है उसके अंतर्गत उसको मात्र अपने शुद्ध लाभ पर ही सरकार को आयकर देना है । शेष सभी कर उसको उपभोक्ता से ले कर सरकार के खजाने में जमा करने होते हैं ।

 

यदि इसी प्रक्रिया पर ध्यान देंगे तो आपको समझ आयेगा कि दूसरे शब्दों में वह सरकार के लिए उपभोक्ता से लेकर सरकार को देने वाला एक प्रतिनिधि के रूप में काम करता है । अब इस काम में उसकी बहुत ऊर्जा और बहुत सा धन लगता है । जो कि सरकार बचा रही है । जब एक व्यक्ति सामने से आकर आयकर जमा करता है तो सरकारी विभाग पर कोई विशेष खर्चा नहीं आता है। जब सरकारी विभाग में व्यापारी उपभोक्ता से ले करधन जमा करता है तो कुछ भी कमी होने पर उसका दंड उस व्यापारी पर है । जबकि इसी के दूसरे उदाहरण में यदि किसी आयकर अधिकारी के पास कोई व्यक्ति गलती करता है तो उसका भुगतान मात्र उस व्यक्ति को है ।

 

अब सरकार के प्रतिनिधि के रूप में काम करते हुए उसका जो भी धन और ऊर्जा व्यय हो उसका भुगतान तो दूर अगर कुछ विवाद हो जाए तो उस व्यापारी को दंड देना है । काम को ठीक करने के लिए प्रोत्साहन तो नहीं है पर दंड का विधान है उस धन को उपभोक्ता से लेकर सरकार को देने में । दूसरे षंडों में सरकार ने व्यापारी के रूप में ऐसे प्रतिनिधि रखे है जिस पर सरकार हर गलती का दंड लगा सकती है पर प्रोत्साहित करने का विधान ही नहीं है । कई बार तो व्यापारी की नीयत नहीं है परंतु इस जटिल प्रक्रिया के कारण कुछ त्रुटि रह जाती है । फिर भी उस पर दंड का प्रावधान है ही । अब व्यापारी अगर कुछ कर मे हेर फेर करता भी है तो उसका मूल कारण है की कोई उसका  प्रतियोगी कुछ इसी प्रकार के काम से अधिक उपभोक्ता प्राप्त कर सकता है । फलस्वरोप्प उसे भी करना पड़ता है । परन्तु यदि संभव ही न हो वह क्या करेगा ? हर प्रदेश मे पेट्रोल की अलग अलग कीमत पर सबका काम चल रहा है, यह इसका उदाहरण है ।

 

कुछ व्यापारी यह कह सकते हैं कि हम यह काम accountant या CA से करवाएँगे तो मेरे बन्धु आप समय तो अपना देकर ही उस लेखाकार को समझाते हैं । आप धन का व्यवा यदि भूल भी जाएँ तो समय तो आपका गया । अब व्यापारी यह भी समझें यदि आप इस प्रकार के झंझटों से मुक्ति पा जाता है तो वह कम से कम 30% से अधिक समय की बचत करता है  जिसका वह उपयोफ व्यापार को बढ़ाने में या नहीं तो घर परिवार और मित्रों के साथ समय गुजारने में कर सकता है ।

 

अब क्या इससे बचना संभव है ?? जी बिलकुल है अर्थक्रांति का प्रस्ताव जिसके वर्षों के शोध के उपरांत, देश के हर वर्ग के नागरिक के लिए प्रस्तुत किया गया है । जिसमें आपका बैंक ही सरकार का प्रतिनिधि बन कर स्वत: धन काट लेगा वह भी मात्र 2% और आप अपना धन, ऊर्जा और समय अपने काम या घर परिवार और पत्नी को दीजिये ।

अधिक जानकारी के लिए   www.arthakranti.org यहीं संपर्क करें ।

 

 

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