GST के राजस्व और NPA बढ़ने से सरकार की चिंता, कारण और इसका निवारण ! अर्थक्रान्ति

आज़ादी के बाद के सबसे बड़े कर के सुधार के लिए भारत सरकार ने GST का प्रावधान किया है । जब इसका प्रावधान किया गया तो बहुत सी सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं ने इस पर आपत्ति भी जताई थी । पर आप समझिए कुछ लोग तो आलोचनों को करेंगे ही । परंतु तब सरकार ने कहा कि आगे आगे देखिये इससे सरकार का राजस्व बढ़ेगा ही । अब 27 नवंबर के समाचार के अनुसार सरकार राजस्व के न बढ़ने के करेयणों पर विचार कर रही थी ।

अधिकारियों को आशंका है कि देश के व्यापारियों ने शायद इसके समानान्तर अपनी व्यवस्था बना कर कर की चोरी का रास्ता भी बना लिया है, इसीलिए और अब सरकार व्यापारियों और उत्पादकों के साथ साथ  उपभोक्ताओं को इसके लिए जागरूक करना चाहती है । एक अधिकारी के अनुसार देश मे बिल या रसीद लेने के लिए उपभोक्ताओं में आदत ही नहीं है । जिसके कारण शायद आज भी बहुत सा व्यापार बिना बिल या रसीद के होता है, और इसीलिए लिए उसके द्वारा प्राप्त होने वाला राजस्व सरकारी खजाने तक नहीं पहुंचता है ।

वही 27 नवंबर की ही एक और रेपोर्ट के अनुसार मुद्रा बैंक के करोड़ों के ऋण देने के साथ साथ ही बैंकों का NPA और बढ़ गया है । मुद्रा योजना के प्रारम्भ से अब तक 19 करोड़ लोगों को 3.21 लाख करोड़ रुपये का ऋण दिया गया है । इस योजना के तहत तीन प्रकार के ऋण दिये जाते हैं, शिशु ऋण के तहत 50 हज़ार तक का, किशोर ऋण के अंतर्गत 50 हजार से 5 लाख तक का ऋण दिया जाता है ।  इसी प्रकार तरुण ऋण के अंतर्गत 5 लक से 10 लाख तक का ऋण दिया जाता है । जो आंकड़े दिये गए है उसके अनुसार औसत 17 हज़ार का कर्ज़ या ऋण दिया गया है । और इसी मे लगभग 9000 करोड़ का ऋण NPA मे आ गया है ।

अब आइये इस मुद्रा योजना की मूल भावना को समझें । दरअसल बैंक से ऋण प्राप्त करने के लिए कुछ शर्ते होती हैं और जो बैंक के धन को पूर्णतया सुरक्षित रखते हैं, वह अलग बात है कि भ्रष्ट अधिकारी कुछ शर्तों को पूर्णतया लागू नहीं करवाते और इसी के कारण बन में NPA बन जाता है । परंतु मुद्रा योजना में सरकार ने शर्तों में ढील दी है, जिससे नौजवानों और शिक्षित युवाओं को अपना रोजगार स्थापित करने में सहाता मिले । अब होता यह है कुछ समय के उपरांत, जिन्होने भ्रष्ट अधिकारियों से धन इस योजना में लिया वह अपने आपको दिवालिया घोषित कर देते हैं । यह सारी प्रक्रिया उस ऋण देने वाले अधिकारी को पहले से ज्ञात होती है । सबकी मिलीभगत से यह होता है ।

अब आइये इसके निवारण की बात करें । अधिकांश NPA इत्यादि में अपने आपको जान बूझ कर दिवालिया घोषित कर दिया जाता है । और सबसे अधिक यह संभव होता है जब आपका व्यापार नकद में होता है । तो आप समझें कि नगद का व्यापार एक तो भ्रष्ट व्यापारियों को सरलता से अपनी कूटनीति में सफल होने का रास्ता देता है दूसरे इसके कारण ही GST के रास्ते पूरा व्यापार नहीं होता है । इसी क एकरण सरकार को पर्याप्त राजस्व नहीं मिल पाता है ।

इसका निवारण अर्थक्रांति के प्रावधान से है जिसके अनुसार बड़ी मुद्रा को हटा दिया जाये । मतलब आप अधिक व्यापार को नकद से करने का रास्ता ही बन्द कर देते है । और आज आप ध्यान से देखें तो विदेशों में भी बड़ी मुद्रा नहीं है ।  देखिये कितनी आसानी से इस समस्या का समाधान दिया जा सकता है ? आवश्यकता है राजनैतिक केवल और केवल इच्छा शक्ति की ।

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