FOREIGN FUNDING IN POLITICS ! ITS implications and How can Government AVOID IT

हाल में ही भारत सरकार नें अपने नियमों में तथाकथित संशोधन करके विदेशों से चंदे के रूप राजनैतिक दलों को मिलने वाली धन राशि पर दलों की जवाब देही समाप्त करने का संशोधन लाया है । अभी इस संशोधन को राज्य सभा में पास किया गया है । सबसे दिलचस्प बात यह है की इस संशोधन पर कोई भी बहस नहीं हुई है । चंद मिनटों में ही इस संशोधन को पारित कर दिया गया है जैसे की सरकार अपने मंत्रिमंडल और सांसदों का वेतन और सुविधाएं बढ़ाने में करती है ।


यह सब Finance Bill 2018 में हुए 21 संशोधनों में से एक है । इस विशेष संशोधन को Foreign Contribution Regulation (FCRA) Act 2010 कहा जा सकता है । पहले इस नियम के अनुसार विदेशी धन राजनैतिक दलों को धन लेने से रोकता था । Finance Act 2017 के अनुसार कोई भी कम्पनी अपने तीन साल के शुद्ध लाभांश का मात्र 7.5% तक ही किसी राजनैतिक दल को दे सकती थी और उसे अपने बही खातों में यह बताना पड़ता था । दरअसल इस FCRA बिल तो 1976 में तत्कालीन इन्दिरा गांधी सरकार ने सरकार नें Emergency के दौरान पास किया था । आपको ध्यान होगा की Emergency को 25 जून 1975 को लागू किया गया था ।

ज़रा उस समय की कड़ियों का ध्यान करें ।

श्रीमती इन्दिरा गांधी 1971 में रायबरेली से सांसद का चुनाव जीत कर आई थी श्री राजनारायण के विरुद्ध । श्री राज नारायण ने अब उन पर मुक़द्दमा किया की चुनाव में नियमों का पालन नहीं किया गया और श्रीमती इन्दिरा गांधी गलत तरीकों से जीती है  । जून 12, 1975 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने, जिसके तत्कालीन न्यायाधीश श्री जगमोहन लाल सिन्हा थे, उन्हे दोषी माना और उनके संसद में जाने पर भी रोक लगा थी । उन्हे 6 वर्ष तक के लिए किसी भी निर्वाचित पद ले लिए अयोग्य ठहरा दिया गया । उसी समय सर्वोच्च न्यायालय में श्रीमती इन्दिरा गांधी के वकील नें एक आवेदन किया जिसके तहत न्यायाधीश श्री वी के अय्यर ने उन्हे अयोग्य तो ठहराया पर संसद में जाने की और प्रधान मंत्री पद पर रहने की अनुमति दे दी, परंतु स्वयं किसी भी संसदीय प्रणाली का हिस्सा होने से रोक दिया था । यह निर्णय 24 जून को आया था और 25 जून को भारत में आपातकालीन स्थिति घोषित कर दी गयी । सभी समाचार पत्रों पर नियंत्रण लगा दिया, आकाशवाणी पर भी भारत सरकार का नियंत्रण(censor) हो गया । सब लोगों की लोकतान्त्रिक आवाज़ को दबा दिया गया । इसके बाद आप सब जानते हैं । यह आपातकालीन स्थिति 21 माह की थी और 1977 में समाप्त हुई थी । इसी के दौरान सरकार नें FCRA BILL 1976 पास किया था ।

इस घटना की चर्चा इस समय क्यों हुई ज़रा समझिए । भारत में Association for Democratic Reforms नामक संस्था नें भाजपा और काँग्रेस पर Vedanta और Sterlite से करोड़ो रुपए चंदा लेने का मामला दर्ज़ कराया गया । Vedanta ने अपने बही खातों के अनुसार लगभग 12 करोड़ और Sterlite ने लगभग 5 करोड़ का चंदा दिया था । 2014 मे दिल्ली उच्च न्यायालय नें माना कि काँग्रेस और भाजपा दोनों इसके दोषी हैं । अब भारतीय लोग बहुत खुश हुए कि यह तो न्यायालय का निर्णय है अब तो चुनाव प्रक्रिया में सुधार हो जाएगा । पर आपकी सरकार आपसे बहुत आगे की सोच लेती हैं । चाहे पक्ष या विपक्ष, उन्होने इस निर्णय के बाद जो संशोधन लाया उसके अनुसार आप शुरू से यानि 1976 से आजतक जितना भी धन आया है उस पर कोई प्रश्न नहीं उठा सकते हैं ।

सरकार ऐसा क्यूँ करती है और क्या इसका कोई हल है ! पहले यह समझना होगा कि यह क्यों हो रहा है । आज हम जानते हैं कि राजनीति समाज सेवा न रह कर धन कमाने का रास्ता बन गया है । फिर यदि आज कोई आपको ईमानदार या व्यक्ति मिल भी जाए तो वह आज के परिवेश मे चुनाव लड़ नहीं सकता । आज किसी भी सांसद को न्यूनतम 10 करोड़ के आसपास धन राशि चुनाव के समय चाहिए । वह स्वयं या उसका मित्र संबंधी जो भी यह राशि लगाएगा उसे कुछ तो लाभ होना ही चाहिए । यही सब संसद करते हैं पहले किसी का पैसा ले कर चुनाव लड़ते हैं और फिर उसको कुछ लाभ, अपने अधिकारों के अनुचित प्रयोग से करवा देते हैं । जिसे आप स्पष्ट भाषा मे भ्रष्टाचार कहते हैं। समझ लीजिये कि यह उम्मीदवार की मजबूरी भी है । बड़े बड़े सच्चे लोग आपने ला कर देख लिए ।

इसका एक मात्र हल है कि सरकार स्वयं चुनाव के लिए पैसा लगाए , बहुत से देशों मे यह प्रावधान है । कितनी अच्छी बात है कि जब सरकार स्वयं धन देगी तो न किसी से लेना पड़ेगा और न ही किसी कि अनुचित लाभ देना होगा। आप सब शायद सहमत हो जाएँ परंतु फिर अगला प्रश्न है कि सरकार के पास पैसा होना भी तो चाहिए । जिस देश की सरकार 20 लाख करोड़ से अधिक के बजट मे 6.5 लाख करोड़ का नया कर्जा या ऋण लेगी तो वह क्या कर सकेगी । आज तक तो वह कम से कम कहने के लिए भारतीय उद्दयोग से पैसा लेती थी और विदेशियों से बहुत कम । इसलिए अपने देशी उद्दायोगपतियों के लिए नयी नयी नीतियाँ बनाती थी । और अब जब विदेशी धन आएगा तो विदेशियों के लिए नई नई नीतियाँ बन जाएंगी ।

इसके लिए सबसे अधिक है सरकार का आर्थिक रूप से समृद्ध होना । जिसके लिए उसे अर्थक्रांति जैसी नीतियों का अनुसरण करना ही पड़ेगा । एक बात और अर्थक्रांति एक प्रस्ताव 20 वर्षों के अथक प्रयास से बना है । यदि आप कुछ बेहतर बता सकते हैं तो उसका भी स्वागत है । मेरी व्यक्तिगत मान्यता है कि भारत जैसे विविधताओं से भरे देश मे किसी भी देश की नीति को आप प्रतिलिपि के रूप मे नहीं अपना सकेंगे । इस देश को अपनी ही नीतियाँ चाहिए और अर्थक्रांति ऐसी ही एक नीति जो भारतीयों को ध्यान मे रख कर बनाई गयी है । यह बिलकुल न समझे कि विदेशी की आवश्यकता होगी , भारत देश अपने सब कार्य कलापों के लिए प्रणाली बनाने मे पूर्णतया सक्षम हैं । इसे हमेशा मन मे रखें ।

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