FARMING PROBLEM & COW PROTECTION ! SOLVED In Such a SIMPLE LEGAL Manner ARTHAKRANTI

पिछली वार्ता के यह परिणाम निकले कि किसान को उचित मूल्य पर लागत मिले और उचित मूल्य पर ही उसको बाज़ार मिले इसके बाद न तो उसे सस्ती बिजली जैसे प्रलोभन चाहिए और न ही कर्ज़ माफी का प्रावधान । आइये इस पर चर्चा करें ।

किसान की लागत मे क्या है ? उसे उन्नत प्रकार के बीज चाहिए, उन्नत खाद और उत्तम सिंचाई व्यवस्था चाहिए । जहां तक बीज का प्रश्न है उसके लिए उसे अब ऐसे बीज दिये जा रहे हैं उन्नत फसल के लिए जो उसे दर वर्ष बाज़ार से खरीदने पड़ते हैं । पहले की व्यवस्था मे उस फसल का कुछ भाग जिसे वह प्रसंसकर्ण करके रखते था उसके लिए बीज का काम करते थे । और इसी लिए उसको बाज़ार से बीज लेने की आवश्यक्ता नहीं थी । आज आनुवांशिक रूप से संशोधित फसलों के नाम पर नई प्रजाति को चलाने की कवायद की जा रही है ।

अब बात करें कि खाद व्यवस्था की, पहले हमारा किसान गोबर की खाद का ही प्रयोग करता था । और इसी कारण गौ संरक्षण पर अधिक ध्यान देता था । गाय हमारे कृषि लिए रीड़ की हड्डी का काम करती थी । गोबर की खाद का प्रयोग फसलों के लिए होता  था । उसके साथ ही बैल की मदद हल चलाने के लिए की जाती थी और गौ मूत्र का प्रयोग कीटनाशक के रूप मे होता था ।  बैल या गाय की मदद से रहट चलती थी और वही कोल्हू मे प्रयोग किया जाता था । गाय के दूध से घर परिवार का भरण भोषण, जिसे गृहणी दूध, दहि, घी छाछ का प्रयोग करती थी । पूरी की पूरी खेती और किसान का का केंद्र बिन्दु रहता था गाय का संरक्षण । इसी कारण से उसे उच्च स्थान दिया गया । इसे ही हम प्रकृतिक खेती के रूप मे जानते थे । रसायनिक खाद का प्रयोग तो निषिद्ध था । अब जब अन्न प्रकृतिक था तो, उसके सेवन से लोग स्वस्थ रहते थे ।

अब सरकारें एक तो रसायनिक खाद पर ज़ोर देती हैं जिससे कृषि अप्राकृतिक हो रही है और उसके दुष्परिणाम विभिन्न नए रोगों के रूप में आज हमारे सामने हैं । इस पर किसान की लागत बढ्ने पर, (रसायनिक खाद बाज़ार से ही खरीदनी पड़ती है) सरकार ने खाद कंपनियों को अनुदान देना शुरू कर दिया । इस वर्ष भी सरकार ने 70,079.85 करोड़ रुपये का अनुदान सरकार ने इस मद में किया है । परंतु इस अनुदान का बहुत कम प्रतिशत किसान तक पहुंचता है । कारण, सरकार अनुदान सीधा किसान को नहीं देती और कंपनी वाले उस अनुदान को सरकार से ले लेते हैं और किसान तक पूरा लाभ नहीं पहुंचाते हैं । अब प्रश्न है की सरकार को यह सब पता है ? उत्तर है जी हाँ । सरकार चुप क्यों है ? इसका कारण आज के लोकतन्त्र का स्वरूप है । आज सरकार को अपना अगला चुनाव लड़ने के लिए, बहुत सा चंदा लेना पड़ता है बड़े बड़े उद्दयोगपति से । तो जब ऐसा चंदा देंगे तो उनकी थोड़ी बहुत मदद तो सरकार को भी करनी पड़ेगी। और यही हो रहा है ।

अब रही बात सिंचाई की । 2014 के आंकड़ों के अनुसार देश की कुल 14 करोड़ हेक्टेयर कृषि भूमि में से मात्र 6.5 करोड़ यानि कुल 46% को ही पर्याप्त सिंचाई की व्यवस्था है । इस वर्ष सरकार नें कहा है कि 86,500 करोड़ रुपये अगले पाँच वर्षों में सिंचाई में लगा कर सिंचाई की भूमि को 8 करोड़ हेक्टयर करने का सोच रही है । कागजों मे बनी इस रेपोर्ट के अनुसार अब अभी प्रति वर्ष कुल 5 लाख हेक्टयर भूमि मे ही सिचाई सुधरेगी ।

और अंत में बात है किसान को उचित मूल्य पर बाज़ार के मिलने पर। वहाँ पर ही सबसे अधिक किसान का शोषण होता है । जब किसान अपना उत्पाद ले कर मंडी पहुंचता है तो बिचौलिये उसका सारा मुनाफा ले कर उसे कई बार लागत से भी कम धन उपलब्ध कराते हैं । इसे एक उदाहरण से समझें, मई कई कई माह हिमाचल प्रदेश में प्रवास करता हूँ तो वहाँ की जमीनी हकीकत से आप समझें। वहाँ पर लगभग 20 से 25 रुपये किले की कीमत पर सेब किसान बेच देता है । यही स्थिति मैंने काश्मीर में जा कर देखी थी। वहाँ पर भी किसान 30 से 35 रुपये किलो पर अधिकतम सेब बेच देता है । आपको देहली में 100 रुपये किलो से अभी अधिक कीमत पर मिलता है । अब सेब जो खेत से निकालने के बाद कुछ दिन महीने तक टिक सकता है उसका यह हाल है तो जल्दी नष्ट होने वाले, टमाटर, हरी सब्जी इत्यादि पर किसान के शोषण का आप अनुमान लगा सकता हैं। उस पर तुर्रा यह कि यदि कोई युवा किसान हिम्मत करके उसे बड़े बाज़ार में, दिल्ली चंडीगढ़ इत्यादि मंडियों मे लेकर भी आता है तो गर्मी के मौसम में उसे तीन चार दिन अपना ट्रक ले कर बाहर खड़ा रहना पड़ता है और अब इतनी गर्मी में सेब नष्ट होने के कारण औने पौने दाम पर बेचना पड़ता है । यहाँ पर उसका सबसे अधिक शोषण होता है । कमोवेश यही स्थिति हर फसल की है । नागपुर के इलाके से इस प्रकार के समाचार आपको प्याज की फसल के समय मिलये हैं । उत्तर प्रदेश में आलू पर यह स्थिति है। इसी आलू कि चिप्स बनाने वाली कंपनियों को किसान लागत से कम मूल्य पर बेच देता है । अगली फसल के लिए वह कर्ज़ लेता है और उसका दुष्चक्र शुरू हो जाता है।

 

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सरकार क्या इन समस्याओं से अनजान है तो आपके लिए उत्तर है कि नहीं । तो सरकार कुछ करती क्यों नहीं ? फिर उत्तर यही है कि व्यापारियों को सरकार नाराज़ करके अपने वोट नहीं खराब करना चाहती और दूसरे उनसे मिले चंदे से ही सभी राजनैतिक दलों का खर्चा पूरा होता है।

बेहतर सिंचाई व्यवस्था के लिए सरकार को धन चाहिए, जो सरकार अपने 20 लाख करोड़ के बजट में 6.5 लाख करोड़ के कर्जे पर चल रही ही उससे इस में पैसा लगवाने का सोचना भी हमारी मूर्खता है । जब धन है ही नहीं तो योजना मात्र कगाजोन पर रह जाएगी । किसानों को फसल का सही दाम दिलवाने के लिए सरकार को उनके ही इलाके में नए प्रसंसकर्ण उद्दयोग लगवाने चाहिए । उससे सबसे पहले 93,000 करोड़ की बर्बाद फसल बच जाएगी और यह पैसा सीधे किसान को ही मिलेगा, दूसरे देश में अनाज की बहुतायत हो जाएगी आप उसे आराम से निर्यात कर सकेंगे । पर इसके लिए भी पैसा चाहिए जो हैं नहीं ? यदि बिचौलिये की व्यवस्था को देखें तो उसे सुधार कर कोई भी सरकार अपना चंदा और वोट नहीं गंवा सकती ।

इसी कारण आज युवा गाँव से शहर मे मजदूरी या नौकरी करने आ रहा है । क्या शहर इनको समा पाएगा ! इसके साथ ही शहरीकरण से जुड़ी आवासीय समस्याएँ हैं । यातायात और परिवहन समस्याएँ बढ़ती जा रही हैं ।

यातायात और परिवहन समस्याएँ बढ़ती जा रही हैं ।

अब इसके निवारण प्रक्रिया के रूप में सोचें तो अर्थक्रांति के प्रस्ताव के बाद सरकार के पास पर्याप्त धन हो जाता है । सरकार विभिन्न सिंचाई परियोजनाओं और खाद्द प्रसंसकर्ण के उद्दयोग लगा सकती है । किसान की बाजारी की समस्या जड़ से ही समाप्त हो जाती है अगर किसान को अपने घर पर ही लागत पर थोड़ा सा भी मुनाफा मिल जाएगा । तीसर और सबसे प्रमुख, इसके बाद जब सरकार चुनाव के लिए प्रत्याशी के स्थान पर खुद धन देने लग जाएगी तो किसी भी दल को समाज के  चंदे से अपना काम नहीं चलाना पड़ेगा । फिर न तो आपको उद्दयोगपति से चंदा लेना है और न ही उसके आभारी होने का प्रश्न रहेगा । जब ऐसा होगा तब असली लोकतन्त्र के रूप में देश आगे बढ़ेगा । आज़ादी का  सपना पूरा हो जाएगा । किसान खेती से नहीं भागेगा । युवा को भरपूर रोजगार खाद्द प्रसंसकरण के माध्यम से मिल जाएगा । युवा यदि अपने गाँव में रोजगार और सभी सुविधाएं प्राप्त कर लेगा तो शहरीकरण के नाम पर आप जो स्वास्थ समस्या, परिवहन समस्या, आवास समस्या इत्यादि से जूझ रहे है । वह सब आपके लिए समाप्त हो जाएगी।

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