पिछले महीने से AICTE अपनी इंजीनीयरिंग की 16.7 लाख सीटों को घटा कर 10-11 लाख करने की सोच रही है। आइये इसके पीछे की सच्चाई जान लें । एक वर्ष पूर्व National Employability Report 2014 के अनुसार इंजीनीयरिंग के 18.33% छात्र की नौकरी के लायक हैं इसी रेपोर्ट के अनुसार 91.34% छात्र programming और algorithm नहीं कर पाते हैं । वहीं ASPIRING MINDS 2014 के अनुसार मात्र 20% इंजीनीयर ही नौकरी या काम का लायक हैं, अर्थात नियोजनीय हैं । इसी के साथ BUSINESS LINE 2013 के अनुसार सभी स्नातकों में से मात्र 50% के आसपास किसी कार्य को करने में सक्षम हैं। बाकी सबकी शिक्षा किसी भी रोजगार में सहायक नहीं हैं
आइये सिर्फ इंजीनीयरिंग की बात करें तो 16 लाख में से 75% सीटें यानि लगभग 12 लाख सीटें किसी भी काम की शिक्षा प्राप्त नहीं कराते हैं । मात्र आर्थिक स्थिति को समझा जाये तो 12 लाख बच्चे और उन पर अभिभावकों का लगभग सालाना 3 लाख का खर्चा होता हैं अर्थात आप सोचें 36000 करोड़ रुपये बिना बात के सपनों में खर्च होते हैं और यह खेल जब 4 साल चलता है तो 1.44 लाख करोड़ रुपये अभिभावकों के खर्च हो रहे हैं जिसका उपयोग न तो अभिभावकों के काम का है न छात्र के और न ही देश के । यदि पूरे स्नातक और परास्नातक तंत्र यानि GRADUATES और POST GRADUATES को जोड़ा जाये (MBA, BCA, MCA, BBA इत्यादि ) तो यह आंकड़ा होता है लगभग 4 लाख करोड़ । जिस देश का बजट है 14 लाख करोड़ और उस देश का 4 लाख करोड़ उस शिक्षा पर लग जाता है जिसका उपयोग किसी को नहीं ।
इस प्रकार के खेल की शुरुआत 1994 मे जब भारत ने वैशवीकरण (Globalisation) और उदारीकरण (LIBERALISATION) के साथ हुआ । ध्यान दीजिये इससे पहले शिक्षा एक उद्दयोग नहीं था परन्तु एक सेवा कार्य था और इस वैशवीकरण के बाद उसे देशी भाषा में धन्धा बना दिया । उसके बाद उसमे लाभ का एकमात्र उद्देश्य रह गया था जबकि इस पर किसी न किसी सरकारी या सामाजिक संस्था का दबाव रहना चाहिए था ।
एक बात की समझ नहीं आई की जब 10% विकास दर के बावजूद हमें 50000 इंजीनीयर की आवश्यकता है आप दुगुने का प्रावधान कर लें । परन्तु अन्धी दौड़ ने मात्र अभिभावकाओं को गरीब और गरीब बना कर उनका धन धन्ना सेठों की तिजोरी मे रख दिया । बिचारे माता पिता यह सोच कर कि उनके बच्चे का भविष्य बनेगा खून पसीने की कमाई कॉलेज में देते हैं और मिलता है मात्र धोखा वह भी चार साल बाद । अभी भी भारत में 73% निजी कॉलेज हैं जिंका काम मनमानी करना है और कुछ नहीं ।