COVID 19 DEATH less than 2 PERCENT, STILL 24 hour news! Reason for death diagnosed by COMMON SENSE

यदि आप कोरोना को एक संक्रामक रोग भी समझते है तो भी कुछ प्रश्न अधूरे आए जाते हैं । यह भी है कि कुछ लोगों की मृत्यु तक हो रही है । इसके कारण और भी लोग डर जाते हैं । अब प्रश्न यह है कि इसकी असलियत को कैसे समझ जाए ?

 

आइए इस पूरे परिवेश को आज एक आम व्यक्ति की नजर से देखते है, जो कठिनाई से कक्षा 12 तक ही शिक्षा प्राप्त कर पाया है ।

एक तो सब जानते है और मानते हैं कि आजकल के समाचार के चैनल किसी न किसी प्रकार से  प्रायोजित होते हैं । अब आप उनकी मजबूरी भी समझ लीजिए कि एक चैनल को चलाने के लिए कुछ 1200 से 1500 करोड़ का धन चाहिए । इसके अतिरिक्त एक बार चैनल चल गया तो उसके रोजमर्रा के खर्चे चाहिए । अब जब कि इस कोरोना के कारण व्यापार बुरी तरह से ठप हो रहे हैं तो इन चैनल वालों को उस तेजी से विज्ञापन भी नहीं मिल रहे हैं । आज आप देखिए सबसे अधिक विज्ञापन रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले मतलब immunity से संबंधित आय गए हैं । यहाँ तक कि आज तो AC भी ऐसे या रहे हैं (तथाकथित) जो विषाणुओं से आपने आपके वातावरण को स्वच्छ कर देते हैं । कितनी हास्यास्पद बात है, परंतु फिर भी विज्ञापन बन रहे है और इनका चलना यह प्रदर्शित करता है कि वह बिकते भी हैं ।

 

आइए अब सबसे पहले मृत्यु के कुछ कारणों को समझते हैं । आप यदि मानसिक रूप से कमजोर हो गए हों तो आपकी रोग प्रतिरोधक शक्ति क्षीण हो जाती है । इस प्रकार से भय और अनिश्चितता के कारण भी आपकी रोग प्रतिरोधक शक्ति पर दुष्प्रभाव पड़ता है । आपने देखा होगा बहुत से विद्यार्थी दो साल पढ़ करके जब JEE या NEET कि तैयारी करते हैं, तो कई बार अंतिम परीक्षा के दिन घबरा जाते हैं । कारण वही है उनके मन में यह डर होता है कि यदि आज कुछ गलत हो गया तो भविष्य अंधकारमय हो जाएगा । इसी भय के कारण वह पूर्ण कुशलता से परीक्षा नहीं दे पता । आज के माहौल में भी यही है, जब पहली बार इस तथाकथित संक्रामक रोग ने दस्तक दी तो सबको लगा कि चलो 21 दिन के लॉकडाउन के बाद से सब ठीक हो जाएगा । धीरे धीरे समय के साथ अनिश्चितता और भय का वातावरण होता गया । इसके कारण लोग मानसिक रूप से कमजोर होते गए । इसके साथ ही रोग प्रतिरोधक क्षमता और भी कम होती गई । यदि आपकी एक बार रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाए तो  छोटी से छोटी सी बीमारी भी आपकी मृत्यु का कारण बन जाती है । इसके लिए आज के मेडिया ने नकारात्मक भूमिका निभाई है ।

 

 

दूसरा कारण है दवाइयों का दुरुपयोग । पहले जब रोगी थे तो आप चिकित्सक के पास जाते थे, तो पहले चिकित्सक आपका परीक्षण करता था, आपके शरीर को ठोक बजा कर देखता था । अर्थात दूसरे शब्दों मे आपका तापमान, गले  इत्यादि की जांच आपकी हृदय की गति एवं आपका रक्तचाप देखता था । यह एक  सामान्य सा परीक्षण होता था ।  और फिर आपको दवा दी जाती थी । यदि उसके उपरांत भी आपको लाभ नहीं होता था तो चिकित्सक, खून पेशाब या जो भी जांच उपयुक्त लगती थी, उसे प्रयोग शाला से करवाता था । परंतु अब तथाकथित कोरोना काल में प्रत्येक चिकित्सक के मन में डर है तो वह अपने मरीज को दूर से ही देखता है । सामान्य से ज्वर  को भी कोरोना मान  कर आपकी चिकित्सा शुरू होती हैं । इसके लिए आपको विडिओ काल की सुविधा प्राप्त हो गई । अब जब से यह कहा गया कि कोरोना बिना लक्षणों के भी हो सकता है, चिकित्सकों ने स्वयं को बचाते हुए सबको तथाकथित कोरोना की दवाई देना शुरू कर दी । और कितनी देनी है उसकी भी मात्रा  तय कर दी है ।

 

उसमें सबसे पहले ivermectin दी जाती है, यदि यह रोगी कर लिए उपयुक्त है तो ठीक नहीं तो इसका सबसे पहला और बड़ा दुष्परिणाम है निम्न रक्तचाप । जिससे आपको कमजोरी इत्यादि की  शिकायत हो सकती है । और इसके साथ ही जब आप कमजोर होंगे तो कोई भी संक्रमण आप पर हमला कर सकेगा ।  यह रही प्राथमिक उपचार की त्रुटि । इसके साथ ही आप यह भी समझें कि ivermectin या जो भी दवाइयों का प्रयोग किया वह भी प्रायोगिक ही थीं । अब यदि प्रायोगिक ही आप अधिक तीखी दवाओं से करेंगे तो उसके दुष्परिणाम भी उतने ही अधिक होंगे ।

 

इसके साथ ही आपको antibiotic दी जा रही है । azithromycin या doxycycline इत्यादि यह एक bacteria  मारने की दवाई है । नियमानुसार सबसे पहले खून इत्यादि की जांच के बाद यह पाया जाना होता है कि किस प्रकार का bacteria  आपको हानी पहुंचा रहा है । तब उसके अनुसार आपको antibiotic देनी होती है । इसका दुष्परिणाम है कि यह वायरस को नहीं मार सकती, परंतु bacteria  को मार सकती है । अब पहली बात तो आपका परीक्षण ही नहीं  हुआ कि आपको antibiotic की आवश्यकता है भी या नहीं । और यदि बिना बात की जानकारी के antibiotic  दी जाएगी तो वह आपके शरीर के सकारात्मक bacteria  को भी मार देगा और आप फिर अधिक बीमार हो सकते हैं  । इसका अर्थ यदि यह दवाई भी आपको बिना परीक्षण के दी जाए तो यह आपके शरीर के लिए हानिकारक ही रहेगी ।

 

अब आइए बात करें remdesiver और febiflu इत्यादि दवाइयों की । किसी भी शोध में यह स्पष्ट नहीं हुआ कि इन दवाइयों के लेने से सकारात्मक प्रभाव हुए है । इनमें से अधिकांश दवाइयों के दुष्प्रभाव बहुत ही घातक हैं । यहाँ तक कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी आधिकारिक घोषणा की थी कि इन दवाओं से कोई कोरोना में सकारात्मक प्रभाव नहीं देखा गया । और न ही ऐसा febiflu से हुआ । तो यह दवाइयाँ किसके कहने से रोगियों को दी जाती थी । अब लगता है यही कि यह एक दवाई कंपनी का  बिछाया जाल था । जब तक उनके पास पुरानी खेप थी अपने आप चिकित्सकों को कह कर यह दिलवा दी थी । अब जबकि पुरानी दवाइयाँ बिक गयी हैं तो आप देख सकते हैं कि अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के निदेशक ने भी इसका स्पष्ट विरोध कर दिया है । यही स्थिति favipiravir नामक दवा की भी रही । इसके साथ ही  कई चिकित्सकों ने नई नई steroid का भी प्रयोग किया । ध्यान रहे 2 % से भी कम जिस रोग की मृत्यु दर उस पर मात्र एक ही चिकित्सा पद्दती का प्रयोग किया । यह वह चिकित्सा पद्दती है जिस पर फार्मा  कंपनी का बहुत ही अधिक प्रभाव है ।

 

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