BUDGET 2019 ! What were YOUR Expectations and Why ? Get The REALITY accepted

बजट और इससे अपेक्षाएँ :

अभी हाल में ही भारत देश के वित्त मंत्री ने संसद में बजट पेश किया ! बहुत सी प्रतिक्रियाएँ आयीं । किसी ने ठीक कहा किसी ने गलत । बजट में कुछ हो न हो कम से कम कुछ दिनों के लिए टीवी चैनलों को काम ज़रूर मिल जाता और इनका समय व्यर्थ की समाचारों से हट जाता है । फिर बड़े बड़े अर्थशास्त्री मिल कर नए नए और बड़े बड़े नाम दे कर आपको बहला देते हैं साथ ही में अपने ज्ञान का आपसे लोहा मनवाते हैं । आइये आम आदमी की अपेक्षा को वित्त मंत्रालय की (भाजपा की सरकार नहीं) सीमाओं के साथ समझें । आइये अब समझें बजट से क्या अपेक्षाएँ हो सकती हैं । अधिकांश लोगों को इसमे डालने का प्रयास किया जाएगा, तनिक रुक कर समझें ।

 

 

गृहणी चाहती है की सामान सस्ता हो जाए । उसका राशन, उसके कपड़े और उसके बच्चों की फीस, खिलौने  इत्यादि सस्ते हो जाएँ । क्या इनमें से कुछ सरकार या वित्त मंत्रालय बनाते हैं । उत्तर नकारात्मक है । तो वित्त मंत्रालय क्या करे ?? इन सामानों पर कर कम कर दे । जिससे यह सस्ती हो जाएँ । बहुत अच्छा विचार है ! पर दो प्रश्नो पर आप चिंतन करें । पहला यदि वित्त मंत्रालय या सरकार कर कम कर देगी तो क्या व्यापारी आप को उसका पूरा लाभ दे देंगे । चलिये मान लिया कि आदर्श स्थिति मे सारा कर का लाभ आम जनता को दे दिया गया और गृहणी के लिए सामान सस्ता हो गया । पर अब वित्त मंत्रालय की भी सोचें कि जितना भी कर सस्ता करके इस मंत्रालय को हानी हुई तो उससे वित्त मंत्रालय को कम धन की प्राप्ति होगी । अब वित्त मंत्रालय किसी अन्य मंत्रालय को कम धन उपलब्ध करवाएगी । चाहे वह शिक्षा हो, स्वास्थ्य हो, कृषि हो, गृह मंत्रालय से पोषित सुरक्षा व्यवस्था हो या परिवहन मंत्रालय हो । अब आप गृहणी से पूछिए कि किस मद में सरकार व्यय कम करे । उनका उत्तर लिख लें ।



अब आप बात करें नौकरी पेशा तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग की । उसका कहना है कि सरकार आयकर में छूट दे और पेट्रोल इत्यादि पर कम करे जिससे परिवहन व्यवस्था सस्ती हो जाए । कुछ लोग तो अब साथ में मदिरा पर भी कम कर चाहेंगे, जिससे मित्र मंडली के साथ अधिक आनंद उठाया जा सके और अन्त मे कुछ लोग मनोरंजन कर में कमी चाहेंगे जिससे चित्रपट देखने जाना और बच्चों को घूमने फिरने कि जगह पर कम पैसे में जा सकें ।

 

 

अब फिर वही प्रश्न आता है कि न तो वित्त मंत्रालय पेट्रोल बेचता है न चित्रपट बनाता है और न ही किसी मदिरा का व्यवसाय है तो क्या करे । घूम फिर कर फिर वही कहानी कि इन पर सरकार कर कम कर दे । चलिये वित्त मंत्रलोय आपका कहना मान कर यह कर देता है । अब फिर पहले वाली बात कि क्या आपको कर कमी का पूरा लाभ मिल जाएगा । चलिये आदर्श स्थिति में मिल भी गया तो अब वित्त मंत्रालय की आमदनी कम हो जाएगी । अब वित्त मंत्रालय किसी अन्य मंत्रालय को कम धन उपलब्ध करवाएगी । चाहे वह शिक्षा हो, स्वास्थ्य हो, कृषि हो, गृह मंत्रालय से पोषित सुरक्षा व्यवस्था हो या परिवहन मंत्रालय हो । अब आप तथाकथित बुद्धिजीवी से पूछिए कि किस मद में सरकार व्यय कम करे । उनका उत्तर लिख लें । दुर्भाग्य यह है कि बड़े बड़े पढे लिखे लोग, जो अब सरकार से पेंशन लेते है । घर परिवार मे रहते है, समृद्धि भरी है फिर भी सरकार उनके लिए वस्तुएं सस्ती करे ।

 

 

अब आइये बात करें आज के युवा की जो या तो बेरोजगार है और नौकरी कि तलाश में है या अभी अभी काम धंधे पर लगा है । बेरोजगार को सरकार नौकरी दे दे। पर कहाँ पर सभी सरकारी उद्दयोग मे लोग काम कर रहे हैं । उनकी पगार देना भी सरकार के लिए भारी है क्योंकि सरकार पर इस बजट में 7 लाख करोड़ रुपये का नया कर्ज़ चढ़ गया है । सरकार नए उपक्रम खोल नहीं सकती धन का अभाव है । यदि शिक्षक रखे तो स्कूल में रख नहीं सकती धन का अभाव है । दूसरे आप आज के नए बेरोजगार से पूछिए कि आपके अपनी शिक्षा पूरी ईमानदारी से की थी । उत्तर नकारात्मक ही है । आपने बस परीक्षा से पहले चंद रातें काली की और अंक प्राप्त किए । आप अपनी शिक्षा में पूर्ण पारंगत भी नहीं है । तो कर्जे वाली सरकार आपको कहाँ रखेगी । और जो नयी नयी नौकरी वाला उसे फिर सब समान सस्ता चाहिए । उसे कर देने को बोलिए तो उत्तर यही है अपना पेट तो भर्ता नहीं अब सरकार को कहाँ से कर देंगे ।

 

 

आइये अब समझें परेशानी व्यापारी वर्ग की । आप उनसे पूछे की उन्हे क्या अपेक्षा है बजट से । तो अधिकांश व्यापारियों का कहना है की हमारा उत्पाद कर के दायरे से बाहर हो जाए । या अब जीएसटी के बाद उनका यहाँ तक कहना है कि हमें बार बार कर के लिए फ़ाइल बनाने के झंझट से मुक्ति मिल जाए । आप उनसे पूछिए कि आपको कर देने में क्या परेशानी है क्यूंकी आपने तो कर आगे उपभोक्ता से ही लेना है । उनका स्पष्ट मानना है कि पहले तो ग्राहक इस कर को देने से कतराता है और अगर दे भी दे तो सरकार या उस मंत्रालय को देने की प्रक्रिया से तो हमे ही गुजरना पड़ता है । अब इस काम में कुछ गलत हो जाए तो ग्राहक तो नहीं भुगतेगा वह तो हम पर ही आएगा । यदि ग्राहक कर दे दे तो हमे देने में परेशानी नहीं है परंतु इस के कागज़ इत्यादि से मुक्ति मिल जाए ।



यह वही उपभोक्ता है जिसकी चर्चा हम पीछे चुके हैं । उसी उपभोक्ता से आप पूछे कि यदि आप कर नहीं देंगे तो सरकार के पास धन कम हो जाएगा तो सरकार कहाँ और किस मद में खर्च कम करे ?? आप ही बताओ तो झल्ला कर उसका उत्तर : पूरे देश की ज़िम्मेवारी मेरी ही है क्या ??

 

इन सब के लिए अर्थक्रांति मे ही पर्याप्त प्रावधान है और वह इस सब समस्या का समहान भी है । यह नहीं है कि अर्थक्रांति हर समस्या का समाधान है परंतु एक बहुत बड़ी समस्या, जिससे सब परेशान है का निदान अवश्य है । अगले अंक में विस्तार से ….            

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