economics times मे 22 मार्च 2018 में छपे एक समाचार के अनुसार मनोवैज्ञानिक इस बात पर बहुत चिंतित हैं कि इस भारत देश में 4 से 16 वर्ष के बच्चों में से 12 % मानसिक रोगों विकार से ग्रस्त है और 20 % मनोवैज्ञानिक विकारों से ग्रस्त हैं । अभी इन में से 2 -5 % bipolar disorder या autism जैसी गंभीर बीमारियों से ग्रस्त हैं । शिक्षा व्यवस्था, जो कि समाज का सबसे महत्वपूर्ण दायित्व है आज हमारे नौनिहालों को किस स्थीत पर ले आया है । शिक्षण संस्थाओं का दायित्व है कि छात्रों को एक सर्वांगीण मानसिक विकास के साथ ज्ञान प्राप्त करवाएँ, परंतु दुर्भाग्य से सामाजिक बदलाव के बाद आई इस चुनौती से आज के शिक्षक निपट पाना तो दूर इसको समझ भी नहीं पाते हैं । क्यूंकी न तो उनके समय यह रोग थे, न उनको इस प्रकार के रोगों से जूझने का कोई प्रशिक्षण दिया गया है ।
स्थिति इतनी भयावह है कि हर घंटे एक विध्यार्थी आत्महत्या कर रहा है । युवाओं में जटिल भावनात्मक तंत्र और परिस्थितिकी तंत्र (complex emotional ecosystem ) होता है, जो विभिन्न प्रकार के विकारों से संतप्त हो जाता है । और यही उनमें मानसिक विकार से होते हुए रोग तक ले जाता है । एक बच्चे पर जा बेहतर और बेहतर नंबर लाने के लिए बदाव डाला जाता है तो एक सीमा तक तो बच्चा उस पर कोशिश करता है, परंतु यदि यह दबाव उसकी क्षमता से अधिक हो जाता है तो उसमें मानसिक विकार पैदा हो जाता है ।
मानसिक रोगो प्रकट होने का मुख्य कारण है कि जब बच्चा अपनी पढ़ाई या अन्य कार्यों में माता पिता अथवा अध्यापकों की कसौटी पर खरा नहीं उतरता, अब वह सामाजिक संपर्क समाप्त करने की ओर बढ़ता है । दूसरे शब्दों में वह सबसे कटना शुरू कर देता है । अब उसी विध्यार्थी को डर लगता है की उस पर मानसिक अवसाद होने का धब्बा लग जाएगा । इसलिए वह इस विषय पर बात करना पसंद नहीं करता । अध्यापकों को यह प्रशिक्षण नहीं है कि इस रोग को पहचान पाएँ, परन्तु फिर भी अब यदि अध्यापक इस रोग के प्रारम्भिक लक्षण को पहचान करके अभिभावकों से बात करे तो अभिभावकों सर्वप्रथम उसको नकार देते हैं । यह अभिभावकों कि सबसे बड़ी त्रुटि होती है । उन्हे तो अपितु सक्रिय हो कर इस रोग के निवारण के लिए विचार करना चाहिए । उन्हे यह समझना आवश्यक है कि बच्चे के कोमल मन के लिए यह स्थिति बहुत नाज़ुक होती है ।
सबसे पहले उसमें ADHD के लक्षण पाये जाते हैं जिसमें वह लोगों का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करने का प्रयास करता है । अब अध्यापकों को भी प्रशिक्षण मिलना चाहिए जिससे वह इस रोग के प्रारम्भिक लक्षणों को पहचान सकें और विध्यार्थी के साथ उचित व्यवहार करें । किसी बच्चे को डांटने या ताना देने से पहले उसकी प्रतिभा में कमी के कारण को ठीक प्रकार से विश्लेषण कर ले। उसके बाद ही उचित कार्यवाही करें ।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार एक वर्ष मे 9474 आत्म हत्याएं हमारे युवा साथियों ने की । मनोवैज्ञानिकों के अनुसार शिक्षा के अत्याधिक मानसिक दबाव के कारण यह हो रहा है । अप प्रश्न है की शिक्षा मनुष्य को जीवन जीने का ढंग सीखा रही है या आत्म हत्या के लिए उकसा रही है ।
यदि यह न करें तो आप कुछ दिनों के समाचार से सबक लें :
16 वर्षीय दधीच 17 वर्षीय दीक्षा सिंह 17 वर्षीय जीतेश गुप्ता एक सप्ताह में
तीन आत्महत्याएँ स्थान कोटा दिनांक 24 दिसंबर 2018
नन्द कुमार गुप्ता 20 वर्षीय पटना विध्यार्थी पटना साइन्स कॉलेज समाचार दिनांक 17.01.19
आयप्पा हेमंत नायडू 16 वर्षीय स्थान विशाखा पट्टनम दिनांक 25.01.2019
गोपाल बाबू IIT मद्रास का छात्र 22 वर्षीय 29.01.2019
स्वाति सोनी 21 वर्षीय स्नकोत्तर विधि विभाग दिल्ली 30.01.2019
अनिरुद्ध 22 वर्षीय IIT हैदराबाद का छात्र 01.02.2019
मुंबई निवासी कक्षा 12 का 18 वर्षीय छात्र दिनांक 03.01.2019
चलिये छोड़िए अब हमे क्या करना ?? अभी इन में से कोई भी मेरा परिचित नहीं ! मुझे तो अपने बच्चे को पढ़ाई के दौर मे आगे और आगे ही भेजना है !