धन तेरस क्या और क्यों ? आज के परिवेश मे इसकी उपयोगिता ! स्वस्थ्य रहने के लिए समझें धन तेरस का महत्व

धनतेरस का महत्व

कार्तिक मास की त्रयोदशी को धन तेरस का त्यौहार मनाया जाता है । इस वर्ष यह 5 नवंबर को मनाया जा रहा है । आइये इसका महत्व को समझ लें । हमारे भारतीय हर उत्सव का कोई सामाजिक या वैज्ञानिक कारण निश्चित है परन्तु हमें धर्म और परंपरा के नाम पर आसानी से समझा दिया जाता है ।

पौराणिक कथा के अनुसार जिस प्रकार देवी लक्ष्मी सागर मंथन से उत्पन्न हुई थी उसी प्रकार भगवान धनवन्तरि भी अमृत कलश के साथ सागर मंथन से उत्पन्न हुए हैं। देवी लक्ष्मी हालांकि की धन देवी हैं परन्तु उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए आपको स्वस्थ्य और लम्बी आयु भी चाहिए यही कारण है दीपावली दो दिन पहले से ही यानी धनतेरस से ही दीपामालाएं सजने लगती हें। दूसरे हमें यह भी समझा दिया गया कि धन का महत्व किसी भी तरह से स्वास्थ्य से कम न समझें परन्तु अधिक ही है । इसलिए लक्ष्मी पूजन से पहले इसका पूजन किया जाता है । दुर्भाग्य से आज हम अपने शरीर या स्वास्थ्य की कीमत पर धन कमा रहे हैं और वही से पहली त्रुटि होती जा रही है ।

कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन ही धन्वन्तरि का जन्म हुआ था इसलिए इस तिथि को धनतेरस के नाम से जाना जाता है। धन्वन्तरी जब प्रकट हुए थे तो उनके हाथो में अमृत से भरा कलश था। भगवान धन्वन्तरी क्योकि कलश लेकर प्रकट हुए थे इसलिए ही इस अवसर पर बर्तन खरीदने की परम्परा है।

इन्‍हें भगवान विष्णु का रूप कहते हैं जिनकी चार भुजायें हैं। उपर की दोंनों भुजाओं में शंख  और चक्र धारण किये हुये हैं। जबकि दो अन्य भुजाओं मे से एक में जलूका और औषध तथा दूसरे मे अमृत कलश लिये हुये हैं। इनका प्रिय धातु पीतल माना जाता है। इसीलिये धनतेरस को पीतल आदि के बर्तन खरीदने की परंपरा भी है।

धन्वन्तरी के हाथों का कलश अमृत से भरा हुआ है जिसके लोगों की उम्र बढ़े ( अ + मृत, मृत्यु न हो) और इसके लिए स्वास्थ्य के देवता के रूप मे इन्हे जाना जाता है। इनके वंश में दिवोदास हुए जिन्होंने शल्य चिकित्सा  का विश्व का पहला विद्दयालय काशी में स्थापित किया जिसके प्रधानाचार्य सुश्रुत बनाये गए थे। सुश्रुत दिवोदास के ही शिष्य और ॠषि विश्वामित्र के पुत्र थे। उन्होंने ही सुश्रुत संहिता लिखी थी। सुश्रुत विश्व के पहले सर्जन (शल्य चिकित्सक)  थे।

अब इसके समय को ध्यान दीजिये यह वर्षा के बाद के शिशिर ऋतु के आगमन का आभास कराता है इस समय हमें अपने स्वास्थ्य को संभालना है और वही इस धन्वन्तरी भगवान का अवतरण दिवस है। इस दिन धनिया बीजने की प्रथा भी उसी स्वास्थ्य के लिए है। इस पीतल का बर्तन भी हमें यह दर्शाता है उस धातु के बर्तन में भोजन और भेषज (आयुर्वेदिक औषधि) बनाई जाती है । जब तक देश मे धातु में रसोई बनाने का प्रचार रहा हम लोग iron, zinc इत्यादि की कोई भी दवाई नहीं लेते थे । देश में पहले पीतल के बर्तन का उपयोग होने के कारण (जिसको तांबा और जस्ता मिला कर बनाया जाता है) इन धातुओं की कमी से होने वाले, रुधिर क्षीणता, जनन क्षमता का क्षय इत्यादि गंभीर रोग देश में नहीं थे । दुर्भाग्य से हमने इसका प्रयोग समाप्त कर लिया और mineral tablet लेना शुरू कर दिया । आज भी आपको अपने परिवारों में माताएँ बहने मिलेंगी और अमुक सब्जी किस किस धातु के बर्तन में बनाने चाहिए । शायद आपको इसका विज्ञान न समझा सकें पारन्तु परंपरा से उसका निर्वाह करते रहे और देश को रोगों से बचाते रहे । कालांतर मे यह बदलाव भी आया की पीतल के बर्तन का स्थान चाँदी और सोने के आभूषण लिए जाने लगे । परंतु एक बात तो स्पष्ट है कि  हमारी प्राचीन सभ्यता के अनुसार धन से अधिक महत्व स्वास्थ्य को दिया गया है । अब चाँदी के महत्व को भी समझें । चंद्रमा की चाँदनी के रंग की होने के कारण इसे चाँदी कहते हैं । अब आप चंद्रमा को समझें कि चंद्रमा का गुण प्रकाश के साथ साथ शीतलता प्रदान करना भी है । इसे ही संतोष धन के रूप में समझा जाता है । चाँदी खरीदने की परंपरा से पहले मन में संतोष लाने की बात कही गयी है । ध्यान दीजिये कि लक्ष्मी से पहले ही संतोष की कामना है अपनी भारतीय संस्कृति में ।

कहीं कहीं लोकमान्यता के अनुसार यह भी कहा जाता है कि इस दिन धन (वस्तु) खरीदने से उसमें 13 गुणा वृद्धि होती है। इस अवसर पर धनिया के बीज खरीद कर भी लोग घर में रखते हैं। दीपावली के बाद इन बीजों को लोग अपने बाग-बगीचों में या खेतों में बोते हैं।

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