अभी हाल मे ही NEET की परीक्षा के परिणाम आ गए हैं । जहां पिछले वर्ष 131 अंक प्राप्त करने वाले को उत्तीर्ण घोषित किया गया है । वहीं पर इस वर्ष 117 अंक प्राप्त करने वाला उत्तीर्ण घोषित किया गया है । वहीं 2016 मे यह आंकड़ा 145 अंक था ।
दूसरी तरफ कर्नाटक के कक्षा 10 के परीक्षार्थी जिसने प्रथम स्थान पाया है और जिसके 624/625 अंक आए हैं । इस पर भी विध्यार्थी नें अपने परिणामों को पुनर्मूल्यांकन के लिए भेज दिया है । यह उसी प्रदेश की बात है जहां पर उच्च शिक्षा मंत्री कक्षा आठवीं पास किए हुए हैं ।
एक और समाचार के अनुसार IIT दिल्ली के 2010 के समय के विध्यार्थी नें हाल ही मे आईआईटी की सातवीं मंज़िल से कूद कर आत्म हत्या कर ली है । वही दिल्ली के एक स्थान पर एक विध्यार्थी नें, जिसने बोर्ड परीक्षा 2016 मे उत्तीर्ण कर ली थी, NEET के परिणाम आने पर आत्मा हत्या कर ली । वही आपको शायद याद होगा पिछले वर्ष अपने तमिल बोर्ड मे 1175/1200 यानि 98% अंक प्राप्त करने वाली और इस वर्ष फिर से एक छात्रा ने 93.75% प्राप्त करने आत्म हत्या कर ली।
एक तरफ अंकों की बाढ़ और दूसरी तरफ युवाओं मे हताशा का वातावरण ! क्या हमें कुछ सोचने की आवश्यकता है या हम सब इस से हट कर मात्र भाजपा, कांग्रेस या आप जैसे राजनैतिक दलों की प्रशंसा या निंदा करके अपने राष्ट्रीय कर्तव्यों से इतिश्री कर लेनी चाहिए । स्वयं शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े होने के कारण मेरे लिए यह बहुत ही दर्दनाक स्थिति है । पूरे देश मे एक अनुमान के अनुसार 4 लाख करोड़ का मात्र coaching का व्यापार है, जो मात्र युवाओं के और उनके अभिभावकों को सपने दिखा कर चल रहा है । जबकि भारत सरकार का बजट 20 लाख करोड़ का है । आप इससे अनुमान लगा सकते हैं की स्थिति क्या चल रही है । यही नहीं ASSOCHAM के अनुमान से यह उद्दयोग 35% वार्षिक दर से बढ़ रहा है
इन सभी घटनाओं पर आपको सम्पूर्ण व्यवसायिकता होती नज़र आ जाएगी । एक तरफ सभी समाचार पत्रों मे इस पर एक समाचार छाप दिया जाएगा । दूसरी तरफ इस आत्महत्याओं से दूर सभी कोचिंग संस्थान अपनी अपनी नए वर्ष के लिए ग्राहक बनाने के लिए तयार हो जाएंगे । साथ ही मे JEE ADVANCE का भी परिणाम आ गए है । उस पर भी सब संस्थाएं अपनी रोटियाँ सेंकने का काम करेंगी । हम भारतीय अधिकांश या तो मंदिर मस्जिद, हिन्दी मुस्लिम और या फिर भाजपा काँग्रेस पर दोष आरोपण करने मे व्यस्त मिलेंगे । उनही भारतीयों को अपने बच्चे IIT या Medical कॉलेज मे चाहिए तो एक तरफ तो सरकार की भर्त्सना करें / या उसकी प्रशंसा करें (जिससे भी आपको अपना लाभ हो) और दूसरी तरफ अपने बच्चों को उसी मकड जाल मे फँसने के लिए छोड दीजिये ।
समाचार तो उन बच्चों के आए जिन्होने आत्महत्या कर ली । क्या किसी ने जानने का प्रयास किया की और कितने युवा तनाव का शिकार हो गए ? एक सर्वेक्षण के अनुसार अवसाद (डिप्रेशन) युक्त लोगों मे से लगभग 12% आत्महत्या करते हैं । दूसरे अन्य आंकड़ों के अनुसार मात्र 28% लोगों को इस बीमारी से चिकित्सा का लाभ समय पर मिलता है । यह आंकड़े पश्चिमी देशों के हैं जहां पर मानसिक अवसाद या रोग को एक रोग माना जाता है और लोग इसके लिए चिकित्सा का लाभ लेना स्वाभाविक मानते हैं । भारत मे अभी भी मानसिक अवसाद या रोग के लिए चिकित्सक के पास जाना एक हेय दृष्टि से देखा जाता है ।
पश्चिमी देशों के एक काम की तो मैं प्रशंसा किए बिना नहीं रहता की वहाँ जो भी काम होता है उसके लिए आंकड़े एकत्रित किए जाते हैं और फिर शोध की जाती है । लेकिन भारत के लिए यदि हम स्वार्थ से उठे और यह जानने की कोशिश करें की अभिभावकों औए बच्चों की महत्वाकांक्षा को कोचिंग के लोग किस प्रकार बढ़ावा दे कर अपना उल्लू सीधा कर रहे है । तब शायद हम इस सच को स्वीकार करें ।
दरअसल हम अपनी समस्याओं पर न तो सजग है न ही उसका निवारण करना चाहते हैं । जब तक कि समस्या विकराल रूप न धारण कर ले । दूसरे जिनके पास किसी समस्या के निवारण का उत्तरदायित्व है उनके पास समस्या का न तो पूर्ण ब्यौरा है न ही वह पीड़ित व्यक्ति से सीधा संपर्क रखते हैं । जहां तक किसी भी समस्या का संबंध शिक्षा से है हमारे पुरोधा शिक्षा के महत्व को ही नहीं समझते। शिक्षा का मूल उद्देश्य होना चाहिए एक नैतिक रूप से उत्तरदायी नागरिक का निर्माण । और इस शिक्षा व्यवस्था में यही नहीं हो रहा है बाकी सब हो रहा है ।
हमारा युवा आज अपनी परीक्षा से डरने लगा है उसके लिए परीक्षा किसी हौआ से कम नहीं । किसी भी नए प्रयोग से वह डरता है, वह संघर्ष से ही डरता है । जबकि हमें उसे सभी प्रकार के विघनों से संघर्ष करने का हौसला देना है । उसी परीक्षा मे अनुत्तीर्ण होने का डर को दूर करने का रास्ता हमारे समाज नें परीक्षा न देने के रूप में लिया है। इसके लिए हमें प्रारम्भ से ही उस पर महत्वाकांशा का बोझ कम करना चाहिए और उसे उसी क्षेत्र मे आगे बढ़ाए जिसमे उसके होने की प्रायिकता (probability) अधिक हैं । आज वह अपनी हार से इतना डरने लगा है कि उसने प्रयास करना छोड दिया है और यही समाज के लिए घातक है ।
आज भारत मे यदि NEET को ही देखें तो 12 लाख युवा उस पेपर को देते हैं और देश मे सरकारी और निजी संस्थान मिला कर के लगभग 70,000 के अधिक नहीं है । इसमे MBBS और BDS जोड़ कर रखे गए हैं । इसके साथ ही veterinary college की भी 10000 साथ में आप horticulture इत्यादि कर लें ।
एक सुझाव
हमारे बच्चों और अभिभावकों को इस परेशानी से बचाने के लिए एक सीधा सा सरल सा सुझाव है । कक्षा 11 के प्रारम्भ के बाद जब CBSE अपनी compartment की परीक्षा के परिणाम बना चुके एक नया TEST करवा दें उन सभी विध्यार्थियों के लिए जो MBBS, BVSc या horticulture इत्यादि मे जाना चाहते हैं जिसका पाठयक्रम कक्षा 10 पर आधारित हो । उसमें से आप ऊपर के 2 लाख या 3 लाख बच्चे निकाल उन्ही को अधिकार होगा कक्षा 12 के बाद दूसरी परीक्षा जिसे आप NEET या कोई और नाम दे दें । उस परीक्षा को आप जीवन में दो बार दे सकते हैं परंतु आपकी कक्षा 12 की बोर्ड परीक्षा पहली परीक्षा के दूसरे वर्ष पर ही होनी है । फिर आप NEET के लिए दो बार परीक्षा दे सकते हैं।
इसमें भी यदि आप dropper के अभिशाप से युवाओं से को मुक्त करना चाहे तो हर NEET के वर्ष के बाद दूसरे attempt में 5% अंक कम कर दिये जाएँ । अंत मे देश का काम अच्छे चिकित्सक पैदा करने का है न कि देश के युवाओं को भ्रम मे रख कर कोचिंग सेंटर वालों के व्यवसाय को बढ़ावा देना और अत्याधिक महावकांक्षा को बढ़ा कर युवाओं को अवसाद मे डालना । वैसे भी तो 12 लाख के ऊपर कोचिंग और पढ़ाई का बोझा डाल कर आप 70000 चिकित्सक ही बना रहे है परंतु अभी के प्रयास में आप 11 लाख के ऊपर असफलता का ठप्पा लगा कर उसे हीं बना रहे हैं ।