International Women Day Its history and relevance in Indian Context.

 

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष !



8 मार्च को मनाया जाना वाला अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस का इतिहास लगभग 200 वर्ष पुराना है । इतिहास मे सबसे पहला राष्ट्रीय महिला दिवस 1909 मे अमेरिका में मनाये जाने का वर्णन मिलता है । पश्चिम के देशों और भारत देश की व्यवस्थाओं में, संस्कार विचार इत्यादि में बहुत भिन्नताएँ हैं । इसके कारण पर आप जब विचार करेंगे तो पता चलेगा कि महिलाओं पर होने वाले अत्याचार और महिला को अपने अधिकार दिलवाने की आवश्यकता वाहा हुई । इसके चलते इसदिन का वहाँ महत्व है । क्या भारत उसी स्थिति में था या है ?

 

1909  28 फरवरी को पहली बार अमेरिका में यह दिन मनाया गया. सोशलिस्ट पार्टी ऑफ अमेरिका ने  न्यूयॉर्क में 1908 में कपड़ा उद्दयोग की महिला कर्मचारी की हड़ताल को सम्मान देने के लिए इस दिन का चयन किया ताकि इस दिन महिलाएं काम के कम घंटे और बेहतर वेतनमान के लिए अपना विरोध और मांग दर्ज करवा सकें.

1913-14: महिला दिवस युद्ध का विरोध करने का प्रतीक बन कर उभरा. रुसी महिलाओं ने पहली बार अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस फरवरी माह के आखिरी दिन पर मनाया और पहले विश्व युद्ध का विरोध दर्ज किया. यूरोप में महिलाओं ने 8 मार्च को शांति कार्यकर्ता समर्थन करने के लिए रैलियां कीं.

1975: यूनाइटेड नेशन्स ने 8 मार्च का दिन पहली बार महिला दिवस के रूप मे मनाया।  1975 वह पहला साल था जब अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया.

2011: अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने मार्च को महिलाओं का ऐतिहासिक मास कहकर पुकारा. उन्होंने यह महीना पूरी तरह से महिलाओं की मेहनत, उनके सम्मान और देश के इतिहास को महत्वपूर्ण आकार प्रकार देने के लिए उनके प्रति समर्पित किया.

परन्तु आइये भारत में इसके औचित्य को समझें !

पर वही पर भारत की महिलाएं हमेशा से ही कीर्तिमान स्थापित करती रही हैं । पहली बार पूरे विश्व मेम सम्पूर्ण महिला दल ने देहली से अमेरिका की उड़ान भरी । आज भारतीय नारी सेना इत्यादि मे भी चल रही है । वही जैसे ही सऊदी अरब नें महिलाओं को बिना पुरुष को हज आने की अनुमति दी सबसे पहले भारत इस पंक्ति में अग्रणी रहा ।

इस देश की अधिकांश व्यवस्थाएं, 130 करोड़ की जनसंख्या के साथ विविधता से भारी है ।  अकेले भारत देश की विविधताएँ आप देखें और पूरे विश्व की विविधताएँ देखें तो भी आपको इस देश में अधिक विविधताएँ मिल जाएंगी । दरअसल 200 वर्षों की गुलामी ने कारण हमारी जो शिक्षा व्यवस्थाओं को बदला गया उसके कारण इस देश को देखने का नज़रिया तथाकथित बुद्धिजीवियों का बादल गया । नीति निर्धारण करने वाले व्यक्तियों ने शायद भारत देश के समाज को न समझ कर पूरे विश्व में घटती घटनाओं पर आपने आपको समर्पित किया और उसी के अनुरूप काम किया ।

इसी भारत देश में राष्ट्रीय महिला आयोग की स्थापना और वैश्विक युग की शुरुआत एक साथ ही हुई है । 1990 में ही भूमंडलीकरण और वैश्वीकरण के नाम पर देश आगे बढ़ा और उसी वर्ष समाज के लिए सरकार को राष्ट्रीय महिला आयोग बनाना पढ़ा । यह आयोग भी पश्चिम देशों के अनुकरण करने का नया तरीका था । इस संस्था के लिए मूल काम जो दिया गया “संवैधानिक और कानूनी रूप से रक्षा करना” अर्थात इसके लिए काम करना। इसकी समिति में फिर से सभी तथाकथित इस दौर के शिक्षित महिलाओं का योग दान रहता है । व्यक्तिगत रूप से सभी ने बहुत बढ़िया काम किया है परन्तु क्योंकी इस समिति का जुड़ाव आज की अत्याधुनिक शिक्षा से रहा है वह समाज को पूर्ण रूप से समझने में अक्षम ही हैं। इस संस्था की पहली अध्यक्षा उड़ीसा के मुख्यमंत्री, जानकी वल्लभ पटनाइक की पत्नी थी । फिर भारत के पूर्व राष्ट्रपति श्री वी वी गिरि की सुपुत्री रहीं और इस प्रकार आज की अध्यक्षा श्रीमती रेखा शर्मा ने अवश्य धरातल पर हरियाणा में काम किया है । इसके अतिरिक्त आप अध्यक्षा के विषय में जान कर ही समझ जाएंगे कि धरातल का कितना उनके पास अनुभव रहा होगा ?

देश की उन सभी महिलाओं को समर्पित जो international women day या महिला सशक्तिकरण के लिए काम करती हैं । भारत मे यह शब्द कहाँ से आया और क्यों आया यह जानने के लिए हमें थोड़ा इतिहास जानने की ज़रूरत होगी । यह देश जो शक्ति के लिए दुर्गा माता, धन के लिए लक्ष्मी माता और ज्ञान के लिए सरस्वती माता की आराधना करता है । जिस देश का स्वतन्त्रता संग्राम भारत माता के लिए लड़ा गया, जिस देश में वन्दे मात्रम को राष्ट्रीय गान समझा गया उस देश मे महिला क्या कमजोर है ?

जिस देश मे कहा गया “यत्र नार्यस्ते पूजयते रमन्ते तत्र देवता” आज भी भारत के कई मंदिरों मे पत्नी के साथ ही प्रवेश संभव है। जिस देश में यज्ञ मे यजमान बनने के लिए पत्नी को साथ बैठना पड़ता है । उस देश में नारी अशक्त कहाँ से हो गयी। आपने ठीक समझा यह देश महिलाओं को कभी भी अशक्त या असहाय नहीं मानता तो यह विचार कहाँ से आया ।

इस सारे फसाद की जड़ है अँग्रेजी सभ्यता जिसने हमें 200 वर्षों तक गुलाम बनाया । यूरोप और अमेरिका के दार्शनिक विचार हमें जानने पड़ेंगे । उनके तथाकथित महान दार्शनिक PLATO के अनुसार नारी में आत्मा नहीं होती । यह कहा जाता है कि EUROPEAN CIVILIZATION IS FOOT NOTE OF PLATO। उसके बाद RUSO नामक दार्शनिक जो अपने आप को PLATO का शिष्य कहता है उसने भी इसी परम्परा को बढ़ाया। PLATO के अनुसार नारी मात्र कुर्सी मेज कि तरह घर मे रखने के लिए जब दिल भर जाये दूसरी ले आइये । विवाह की परम्परा वहाँ (EUROPE) में सदियों नहीं रही। यदि किसी स्त्री से संतान हो जाए तो उसको पहले पति या तथाकथित पुरुष जो उसका पिता ही पहले स्पर्श कर सकता । स्त्री को यह अधिकार नहीं है । PLATO के अपना खुद का चौथा पुत्र क्योंकि स्त्री ने पहले उसका स्पर्श किया था बाहर सड़क पर रख दिया था और कुत्ता उसका पुत्र खा गया था । जी हाँ यही सत्य है। सन्तान होने के बाद उसे घर पर रखने की परम्परा भी नहीं रही क्योंकि PLATO का मानना था कि पुरुष और स्त्री के आनंद मे सन्तान बाधा होती है इसीलिए उसे अपने साथ मत रखो। यदि उस सन्तान को घर पर रखना भी होतो उसका अधिकार पुरुष को ही है । यह तो रही पुरानी बातें जिंका प्रमाण उसकी पुस्तक REPUBLIC और LAWS में है । सातवीं शताब्दी तक औरत को मनुष्य का दर्जा नहीं था तब 41/40 वोटों की बहुलता के बाद EUROPE मे नारी को इंसान माना गया। यह वहाँ पर चले HUMAN RIGHTS के तहत हुआ । यह HUMAN RIGHT शब्द भी उसी सभ्यता की देन है। चलिये आपको लगे कि शायद यह कटुता पूर्ण सत्य है अब आजकल यानि इस सदी कि बात करते हैं।

अमेरिका नमक देश जिसकी हम सब तारीफ करते है लगभग 1778 मे आज़ाद हो कर लोकतन्त्र बन गया परंतु आपकी जानकारी के लिए महिलाओं को वोट देने का अधिकार 1926 मे प्राप्त हुआ यानि लोकतन्त्र की बहाली के 148 वर्षों के बाद । इसी प्रकार ब्रिटेन जो संकड़ों वर्षो का लोकतन्त्र है । उसमे महिलाओं का वोट का अधिकार मिला 1924 में लगभग 800 वर्षों के लोकतन्त्र के बाद । फ्रांस में 1946 और जर्मनी मे 1945 में वोटिंग का अधिकार मिला । इन देशों को महिला सशक्तिकरण की शायद आवश्यकता थी यह भारत मे कहाँ से आई ? क्या आप जानते हैं SWITZERLAND मे महिलाओं को यह वोट का अधिकार कब मिला ? आप शायद सोच नहीं सकते उससे पहले भारत में महिला प्रधान मंत्री बन चुकी थी । इन्दिरा गांधी भारत की महिला प्रधान मंत्री बनी 1966 में जबकि SWISS महिलाओं को वोट का अधिकार मिला 1972 में । क्या हम अपने देश को और विश्व के इतिहास को जानते हैं मेरा दावा है की 90% से अधिक भारतीय लोग अपने देश के बारे मे वही जानते हैं जो अंग्रेज़ो ने कह दिया क्योंकि पाठयक्रम मे देश के गौरव की कोई बात हमें पढ़ाई नहीं जाती। दूसरे फैशन चल गया है कि किसी भी सभा में कोई अँग्रेजी वेषभूषा में आकार अपने देश के प्रति अपमानजनक शब्द कह दे औए अमेरिका और इंग्लंड के बारे में प्रशंसात्मक शब्द कह दे वह महान बुद्धिमान हम मान लेते हैं और कहीं अँग्रेजी मे भारत और भारतवासियों को गाली दे दे तो बात ही क्या ?

सभी महिलाओं से मेरा अनुरोध है इस लेख कि वो बातें जो आपको बताने लायक ठीक लगें सबको बताएं जिससे हमारा देश नारियों को वही सन्मान दे जो शायद अँग्रेजी सभ्यता के कारण हम नहीं दे पारहे हैं फिर भी भारतीय महिला हर काम मे अपना नाम रौशन कर रही है।

समझ लीजिये कोई भी पराया देश आपको अपने देश में गौरव की नज़र से देखने नहीं देना चाहता क्योंकि यदि यह हो गया तो भारतीय बुद्धिमान अपने देश से प्रेम करेगा और उनकी दुकान बंद हो जाएगी।

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