आपके बच्चों की परवरिश के लिए महत्वपूर्ण बातें । समझें और करें भाग 01

मित्रों यह लेख उन लोगों के लिए है, जिनके अभी बच्चे छोटे छोटे हैं 2 वर्ष से कम आयु के हैं । अथवा ऐसी अभिभावक घर में अभी बच्चे का जन्म होने वाला है । वैसे तो बच्चे के जन्म से पहले की तैयारी भी, जिसे हम लोग गर्भाधान संस्कार के नाम से जानते हैं आदिकाल से की जाती थी, और आज भी बहुत लोग करते हैं । परंतु मैं यहां पर जन्म के उपरांत की बातें आपसे साझा करने आया हूं । बच्चा जब आपके घर में जन्म लेता है, उसी दिन से आपको बच्चे की परवरिश का ध्यान रखना है, घर के सभी सदस्य माता-पिता चाचा चाची दादा-दादी इत्यादि, जो भी घर में रहते हैं और बच्चे के आसपास होते हैं, उन सब की भूमिका कम से कम उसी दिन से शुरू हो जाती है जब बच्चे का जन्म होता है ।

बच्चे के जन्म में, यदि उसके गर्भाधान के चर्चा न की जाए, तू भी बच्चे के जन्म के बाद उसकी सोचने सुनने की शक्ति, उसकी समझ और उसकी परवरिश में तीन महत्वपूर्ण पड़ाव आते हैं । हर अभिभावक पिता और घर के सदस्य को, इन तीनों पढ़ाओ की भरपूर जानकारी होनी चाहिए । सबसे पहला पड़ाव जन्म के पहले दिन से ही, शुरू हो जाता है, प्रथम 1 वर्ष में बच्चे के शरीर में और उसके मन में कुछ सोचने समझने की क्षमता शुरू हो जाती है, कुछ देखने की, कुछ सुनने की, और इसी प्रकार से उसकी इंद्रियां धीरे-धीरे विकास करती हैं। पहले 7 वर्ष तक बच्चे का स्वभाव, और सोच एक तरीके से चलती है । इसके बाद 7 वर्ष से 13 वर्ष के लगभग, बच्चे का मानसिक विकास दूसरे प्रकार से होता है, और इसी के साथ 13 वर्ष के बाद बच्चे का एक मानसिक विकास परिपक्व हो चुका होता है । इसलिए हमें अपने लालन-पालन, और परवरिश में इन पड़ाव का ध्यान रखना चाहिए। 0 से 7 वर्षों तक बातें हमारे ध्यान में रहनी चाहिए, 7 से 13 वर्ष के बीच में बच्चे की परवरिश में कुछ बातों पर ध्यान देना चाहिए । और यदि 13 वर्षों के बाद का बच्चा है, तुझसे बात करने का ढंग आपका अलग हो जाना चाहिए।

प्राचीन काल में भी आपको ध्यान हो तो हमारे यहां पर 5 वर्ष तक का बच्चा अपनी माता की देखरेख में रहता है, 5 से 8 वर्ष तक का बच्चा पिता की देखरेख में रहता है और उसके बाद बच्चे को गुरुकुल में भेज दिया जाता है। ऐसी हमारे यहां परंपरा थी । दुर्भाग्य से हमने इस परंपरा के पीछे के वैज्ञानिक तथ्य को नहीं समझा, इसलिए आज यह कहा जाने लगा किस समय बदल गया है, बच्चे सुनते नहीं हैं, पीढ़ियों का अंतर अथवा जेनरेशन गैप अधिक हो चुका है । यहां एक बात और समझ जाइएगा, मैंने आपको कहा 0 से 7 वर्ष तक, अब यह 7 वर्ष पूरी एक तिथि नहीं है छठी से आठवीं वर्ष तक धीरे-धीरे इस बदलाव को बच्चे को देना है, इसी प्रकार अगर कहा जाता है प्रकार जैसे कहा जाता है, कि 13 वर्ष तक एक प्रकार का व्यवहार बच्चे के साथ होना चाहिए। और उसके बाद एक अलग प्रकार का व्यवहार बच्चे से किया जाना चाहिए । यहां पर भी यह उम्र 13 वर्ष थी, कोई एक निश्चित तिथि नहीं है । इस बदलाव का फैलाव भी 12 वर्ष से 14 वर्ष के बीच में होगा ।

आइए अब तनिक एक-एक करके इन व्यवहारों की चर्चा करते हैं । जन्म के दिन से लेकर पहले 1 वर्ष तक, सबसे पहले बच्चे की दृष्टि का विकास होता है, उस समय बच्चा अपने आसपास की चीजों को मात्र देखना प्रारंभ करता है । इसके कुछ समय के अंदर ही बच्चा अब कानों से सुनना प्रारंभ करता है, बच्चे की श्रोत्रिय शक्ति का विकास होता है । यह दोनों विकास पहले 1 वर्ष में हो जाते हैं। अब उस समय बच्चा, क्योंकि पहली बार अपनी देखने की शक्ति और सुनने की शक्ति का विकास कर रहा होता है । उस पर इन चीजों का अत्याधिक अनावरण या एक्स्पोज़र नहीं होना चाहिए । अभी बच्चे की स्थिति ऐसी नहीं है क्यों उसको आप सारे रंगों की चीजों का ज्ञान कराएं, इसी प्रकार सभी प्रकार की बोलियां अथवा ध्वनियों का उससे परिचय कराएं । क्योंकि वह भी करने की क्षमता में नहीं है । जितना अधिक आप उसको एक्स्पोज़र करेंगे, उसको समझने में और का विश्लेषण करने में आशिक समय लगेगा । इसलिए इस समय आपने देखा होगा, हमारी परंपरा में था, बच्चे को 40 दिन तक घर से बाहर नहीं निकालना, अमुक दिनों तक एक कमरे में रखना इत्यादि इत्यादि । उसके मूल में जो, स्वास्थ्य का कारण था जब बच्चे पर कोई जीवाणुओं का असर ना हो, वह एक चिकित्सकीय कारण है लेकिन इसके साथ ही यह भी था बच्चे की सुनने की और देखने की क्षमता का भी विकास हो रहा है ।

बच्चा स्वभाव से ही, न्याय का याचक है, सत्य वक्ता है और जिज्ञासु भी है। यह तीनों गुरुस में प्रकृति ने, भगवान ने दिए हैं। आप ही समझे बच्चा आपके घर में एक पूरा मन लेकर आया है, जबकि हम यह अवश्य कहते हैं कि मैं पिछले जन्मों के संस्कार होते हैं, लेकिन वह बाद में उद्बुद्ध होते हैं । उनका अपना प्रभाव होगा और दीर्घकालीन होगा, परंतु अभी के लिए अब बच्चे पर क्या क्या पारस पर विचार डालते हैं, मेरी परिचर्चा उस विषय पर है। बच्चा मनुष्य का, अभी आपके लिए बिल्कुल कोरा है, जैसा आप समझाएंगे वैसा वह समझे यह तो आवश्यक नहीं है, लेकिन उसके समझने की प्रक्रिया को यदि आप समझ लेंगे तो आप उसके आसपास ऐसा वातावरण बना सकते हैं। आपके समझाने के ढंग और उसके समझने के तरीके में यदि अंतर है तो आपका समझाना व्यर्थ हो जाएगा ।

या प्रकृति का एक और नियम देखिए मानव के अतिरिक्त, किसी भी जीव का बच्चा, आप विशेष रूप से के बच्चों को समझें, 2 से 4 घंटे के अंदर गाय का वर्क कुत्ते का बच्चा अपने पैरों पर खड़ा हो जाता है, और लगभग 1 दिन के अंदर ही अपने माता पिता की तरह चलना शुरू कर देता है । जबकि मनुष्य के बच्चे को 2 महीने लग जाते हैं अपने सिर संभाल पाने के लिए, चलने के लिए 1 से 2 साल लग जाते हैं । और इसका भी प्रकृति के पास कारण है। हर जानवर के बच्चे के लिए निम्नतम सीमा और उच्चतम सीमा, उससे कार्यकलाप की निश्चित है । बिल्ली का छोटा सा बच्चा भी पेड़ पर चढ़ जाएगा, शेर का बच्चा बड़ा होने पर भी पेड़ पर नहीं चल पाएगा । यह प्रकृति का नियम है। जबकि मानव का बच्चा, असीम संभावनाओं के साथ पैदा हुआ है। एक गांव के एक परिवार में रहने वाले 2 बच्चे, संभावना है कि एक बच्चा अपने परिवार से बाहर न सोच सके, और दूसरा बच्चा दूसरे ग्रह के विषय में सोचना शुरू करें। यह दोनों ही संभव है ।

यह तो रही कुछ बातें बच्चे की की प्रक्रिया के ऊपर, अब माता और पिता को यह भी समझना चाहिए, की बच्चे की सोचने की शक्ति का विकास कैसे होता है । बच्चा सबसे पहले अपनी मां अथवा जिसकी गोद में भी रहता है, मतलब पारिवारिक जनों जिनके पास रहता है, की आंखों से इस बात का अनुभव करता है यह घटना स्वीकार्य है या अस्वीकार्य । इसे एक उदाहरण से समझिए, कहीं पर जोर से आवाज होती है, तो बच्चा अपनी गोद में रहते हुए मां की आंखों को देखता है, यदि मां के लिए वह ध्वनि स्वीकार्य है वर्मा शांत स्वभाव से रुकी हुई है, तो बच्चा उस प्रकार की ध्वनि को जीवन में एक स्वाभाविक ध्वनि के रूप में मान लेता है। इसलिए इस उम्र के अंदर बच्चा अपनी मां की गोद में है, आसपास अलग प्रकार की ध्वनि आ जाए नई प्रकाश की किरणें आ जाएं, या कोई और अनहोनी घटना घट जाए और इसके उपरांत यदि मां विचलित ना हो तो बच्चा भी शांति से मां की गोद में बैठा रहता है । यहीं पर यदि मां विचलित हो जाएगी, तो बच्चा भी उसे स्वाभाविक प्रक्रिया के रूप में पहचानने लगेगा ।

तुम महत्वपूर्ण बात यह है, किस उम्र में बच्चे को आप कुछ नहीं सिखा सकते, जिस जिस काम को आप घर में करते हैं बच्चा उसे एक स्वाभाविक कृत्य के रूप में ले लेता है । इस समय बच्चे को आप समझा नहीं सकते, परंतु सबसे महत्वपूर्ण है उसके आसपास उस वातावरण को बना दीजिए । और बच्चे के लिए जीवन में बात एक स्वाभाविक प्रक्रिया के रूप में अंकित हो जाएगी । अगर घर के लोग ऊंची आवाज में बात करते हैं, तो बच्चा भी जोर-जोर से बात करना सीख जाएगा। अगर घर के अंदर रोज मंदिर की घंटी बजती है या कोई नमाज पढ़ता है, मेरा मतलब जो भी आप काम करते हैं बच्चा अपने घर के वातावरण को एक स्वाभाविक स्वीकृति के रूप में ले लेता है । इस समय बच्चा कुछ भी नसीहत अथवा समझाने से प्रभाव में नहीं आएगा। आप अपने घर का वातावरण ऐसा बना दें बच्चा उस वातावरण को एक प्यारे से वातावरण में खुशनुमा वातावरण में अपने आप को स्वीकार कर ले ।

आज के अंक में कितना है, शेष अगले अंक में:

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