Digital Foot Print उपयोग Social Media और अंत में आप वैश्विक शक्तियों के सामने बेबस नजर आते हैं

आइए आज अब यह समझे, डिजिटल फुटप्रिंट का और सोशल मीडिया का रिश्ता कैसे हमें बहुत प्रभावित कर रहा है । अगर ध्यान से देखा जाए फेसबुक, जो कि सन 2004 में शुरू हुआ था लगभग 2010 के आते-आते बहुत अधिक चर्चित हो गया । 2012 का आंदोलन, जो भ्रष्टाचार के विरोध में चला फेसबुक ने उसे बहुत आंदोलित किया । और आंदोलन को बढ़ाने में योगदान दिया।  उसी आंदोलन के दौरान उत्तर भारत समाचार पत्र, या जो दूरदर्शन था और अन्य समाचार के चैनल से , उनसे लोगों का भरोसा उठ गया यह फेसबुक बहुत से व्यक्तियों के समाचार देने लगा । मित्रों से ही बात करते थे, और मित्रों के और आपके विचार लगभग एक जैसी  से ही होंगे इसीलिए फेसबुक बहुत चर्चित हो गया । यदि आप अत्याधिक बुद्धिजीवी नहीं है, यह जानते हैं कि कोई भी समाचार पत्र अथवा समाचार का चैनल पूर्ण समाचार नहीं दे रहा । आप इसमें व्यवस्था ऐसी में बना दी गई है, कि  बिना सरकारी और उद्योगपतियों के सहयोग के कोई टीवी चैनल नहीं चला सकते । इसलिए न तो तीसरी आंख के मित्र उद्योगपतियों की बहुत सी बातें आपसे छुपाई जाती हैं, इसी प्रकार सरकार का भी एक उभरा चरित्र आपके सामने दिखाया जाता है ।

उसके एक  वर्ष बाद, व्हाट्सएप चर्चित हो गया और लोग इस पर संदेश भेजें लगे । परंपरा यहां तक शुरू हो गई, कि लोग बिना जांच पड़ताल किए संदेशों को फॉरवर्ड फॉरवर्ड करते रहे । अभी हाल ही मैं इसका एक उदाहरण सामने आया है जो मैं आज आपसे साझा कर रहा हूं । 11 जून 2022 की रात को, अहमदाबाद नामक शहर मैं किसी व्यक्ति ने एक संदेश व्हाट्सएप पर भेजा कि सऊदी अरब ने भारत को तेल देना बंद कर दिया है । इसके कारण अब तेल की किल्लत होगी और साथ में पेट्रोल के दाम बढ़ेंगे । रात को 11:30 से लगभग 3:00 सुबह तक सभी पेट्रोल पंपों के ऊपर कारों और स्कूटर की भीड़ लगी रही । यहां तक के पेट्रोल पंप के मालिकों को पम्प बंद भी करने पड़े कर्मचारियों और मालिकों के बार बार कहने के बाद भी कि ऐसा कोई समाचार नहीं है लोगों की भीड़ ने हटने का नाम नहीं लिया । अभी यह समाचार किसी भी टीवी पर किसी भी चैनल पर नहीं था । आप अंदाजा लगा सकते हैं एक व्हाट्सएप की अफवाह एक पूरे शहर को आंदोलित कर सकती है । अब इसमें दो चीज हो सकती है, या तो किसी ने मजाक मजाक में ऐसा संदेश भेज दिया या जानबूझकर ऐसा किया । पर दोनों ही सूरत में यह तीसरी आंख को पता चल गया कि  कितनी आसानी से आपको बहकाया जा सकता है ।

इसी के साथ आपको ध्यान होगा, एक बहुचर्चित सीरियल “तारक मेहता का उल्टा चश्मा” की नायिका दयाबेन लगभग 2017 से उस सीरियल में काम नहीं कर रही है । अचानक से कुछ दिन पहले ही, उनकी मृत्यु का समाचार व्हाट्सएप के द्वारा फैलाया जाता है और लोग अपनी संवेदना प्रकट करना शुरू कर देते हैं । दूसरे शब्दों में इसका अर्थ यह है क्या व्हाट्सएप पर इतना विश्वास करने लगे हैं, बिना यह जाने समाचार कितना ठीक है या गलत है । और यह एक बहुत बड़ा दुर्भाग्य है । 2 वर्ष पहले ऐसे ही अमिताभ बच्चन के बीमार होने का समाचार आया था । यह घटनाएं अकस्मात हो गई हो या किसी नें जान बूझ पर किया हो  । कम से कम आप पर नजर रखने वाली तीसरी आंख हो पता लग गया आप कैसे अफवाहों में बांटे जा सकते हैं ।

टेलीविजन किस प्रकार उद्योगपतियों की सहायता करता है, इसका एक और उदाहरण । 90 के दशक में आपको ध्यान होगा आपके यहां खाने का नमक लगभग 25 से 50 पैसे का मिलता था, नई-नई सेटेलाइट टेलीविजन के ऊपर फ्रीफ्लो वाले नमक के नाम पर कैप्टन कुक का नमक आया, जो उस समय लगभग 8 से ₹10 प्रति किलो था । मतलब उस समय उस नमक की कीमत साधारण नमक से 20 गुना ज्यादा थी । उसके उपरांत सबने फ्री फ्लो, वैक्यूम आयोडाइड इत्यादि नामों को महंगा नमक बेचना शुरू किया । आज कैप्टन कुक तो बाजार से खत्म हो गया, दूसरे शब्दों में यू कह सकते हैं जो उसको दिया था (नामक को महंगा करने का ) वह उसने कर दिखाया । और नमक को भारत के लिए महंगा करके अपने घर चला गया । आज भी भारत का आम नमक लगभग ₹25 प्रति किलो हो चुका है । अब नमक के उत्पादन को देखें, समुद्र का पानी है और सूर्य की रोशनी है । उस पानी को सुखाकर नमक तैयार किया जाता है। कोई विशेष तकनीकी का उपयोग नहीं है । आपके घर का नमक, महंगा कर के कैप्टन कुक चला गया ।

एक और उदाहरण से समझे किशन 2012 के आसपास कौन बनेगा करोड़पति प्रसारित हो रहा था, उस समय उसकी विज्ञापन दर सबसे महंगी थी । लगभग 3 लाख रूपते प्रति 10 सेकंड थी । उस करोड़पति कार्यक्रम के अंदर एक दांडी नमक का विज्ञापन आता था। मैंने भी बाजार जाकर दांडी नमक कोशिश की तो मुझे पता लगा बाजार से दांडी नमक नदारद है, कालांतर में पता लगा कुछ बड़ी नमक बनाने वाली कंपनियों ने गुजरात से चले दांडी नमक रास्ते में ही खरीद लिया और वह उपभोक्ता तक नहीं पहुंचा। धीरे-धीरे उपभोक्ता भूल गया, और आज दांडी नमक एक छोटा सा उपक्रम बनकर रह गया। अब जिन बड़े-बड़े उद्योगपतियों ने रास्ते में नमक खरीदा था, आज भी उनका ही नमक बिक रहा है। आप सोच सकते हैं तीसरी आंख के मित्र छोटे उत्पादक कैसे बर्बाद कर सकते हैं, बाद में उसी का उत्पाद लेकर करके भेज सकते हैं ।

सोशल मीडिया, डिजिटल फुटप्रिंट और दूरदर्शन के विज्ञापनों के बीच का संबंध सीधा नजर आता है । क्या आपको लगते हैं यह सारे विज्ञापन सच्चे होते हैं ? मुझे लगता है आप भी इस बात को मानते हैं यह सारा खेल, चंद बड़े उद्योगपतियों द्वारा खेला जा रहा है । अब अगले अंक में इससे आगे !

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