विश्व पर्यावरण दिवस 48 वर्षों से मनाने के बाद आज क्या स्थिति है ? आइए विश्लेषण करें

आज विश्व पर्यावरण दिवस है, जिसे आप अंग्रेजी में world environment day कहते हैं । यह हर वर्ष 5 जून को मनाया जाता है, अब आइए इसके इतिहास की विवेचना करें और इससे संबंधित भारत में जो नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल या राष्ट्रीय हरित अधिकरण बना है उस पर भी कुछ विचार करें । यह जो विश्व पर्यावरण दिवस है, यह सबसे पहले 1974 में United Nations या संयुक्त राष्ट्र ने घोषित किया । आज किस दिवस को मनाते हुए 48 वर्ष हो चुके हैं । अब जब हम समय के पटल पर देखते हैं 1974 से 2022 तक प्रतिवर्ष पर्यावरण का ह्रास हो रहा है । एक तरफ पर्यावरण दिवस मनाते हैं और दूसरी तरफ पर्यावरण प्रतिवर्ष दूषित हो रहा है । इसका सीधा सा अर्थ निकाला जाए जिस  पर्यावरण दिवस के लिए सब करते हैं, उसका वास्तविक पर्यावरण बचाने से कोई सीधा संबंध नहीं है ।

यदि आप एक गांव में प्रतिवर्ष 20 सालों तक एकता दिवस मनाए, और यह समाज में आपसी विभाजन को बढ़ावा  दे , तो यह मानना उचित होगा एकता दिवस का कोई प्रयोजन नहीं है । दूसरे शब्दों में एकता दिवस एक नए आयाम में सोचकर, कुछ विभिन्न करने का प्रयास करना चाहिए जिसके धरातल पर गांव में एकता हो । क्या यही प्रश्न विश्व पर्यावरण दिवस में नहीं मनाना चाहिए ? अब देखिए आप प्रतिवर्ष होता क्या है, राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस होंगी, विभिन्न बैठक आयोजित की जाएंगी बहुत से नेता आएंगे और कुछ योजनाओं का शुभारंभ कर देंगे । और इसके बाद अंत में पर्यावरण जस का तस जब सत्य कहा जाए तो पहले से खराब होता जा रहा है ।

अपने-अपने विद्यालयों में और महाविद्यालय में किस पर विभिन्न गोष्ठी आयोजित की जाती है, विद्यार्थियों को लेकर के विभिन्न प्रतियोगिता भी की जाती है परंतु उस विद्यार्थी के आचरण में पर्यावरण को बचाना कभी नहीं होता, मात्र इतना है अध्यापक और प्रशासन ने कहा है तो स्पर्धा में मुझे भाग लेना चाहिए । और उसके अभिभावकों और समाज के लिए यह महत्वपूर्ण है उनका बच्चा विश्व पर्यावरण दिवस की प्रतियोगिता से आया है । भले ही आने के बाद वह अपने कमरे में प्लास्टिक को जलाता है वनस्पतियों का राज करता है ।

अब आइए इसी बात को राष्ट्रीय स्तर पर समझें, हमारे यहां नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल को 2010 में बनाया गया । अगर आप ध्यान से तो उसकी प्रस्तावना में यह है, जो लोग जंगलों नदियों पहाड़ों से विस्थापित हो गए हैं उनके द्वारा दी गई अर्जी पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की अदालत जल्द कार्यवाही करें । मतलब जिसने जंगल प्रकृति पर्यावरण का नुकसान किया उस पर कोई कार्यवाही नहीं है, परंतु उससे जिसकी हानि हुई है उसके लिए एक नया संस्थान खोल दिया गया है । इस संस्थान की प्रस्तावना यह बताती है, उसका काम किसी भी सूरत में पर्यावरण को रुकना नहीं है । बल्कि दूषित पर्यावरण से जिस जिस को हानि हुई उसका एक प्रकार से मुआवजा देने का काम करना है ।

आपको एक उदाहरण से समझाता हूं, हिमाचल प्रदेश में कुछ पर्वतीय श्रृंखलाओं के बाहर, हिमाचल से बाहर से आने वाली गाड़ियों से ग्रीन टैक्स के नाम पर कुछ पैसा वसूला जाता है । देखने तो यह लगता है यह पैसा पहाड़ी वादियों में पर्यावरण के संरक्षण के लिए लिया जा रहा है। भाई इसको जरा सोचते हैं जो व्यक्ति हिमाचल के बाहर के प्रदेश से गाड़ी चला कर आ रहा है, आपको ₹300 दे देगा। लेकिन आपकी ₹300 से क्या पर्यावरण शुद्ध हुआ ? यह आपने उस धर्म को किसी ऐसी योजना पर लगाया, जिससे अधिक पेड़ों को लगाया जा सके पतियों को लगाया जा सके क्या कोई प्रदूषण या पर्यावरण को दूषित करने को अन्य उपाय किए जा सके । ऐसा तो बिल्कुल नहीं है, इसका सरकार ने अपनी इतिश्री समझ ली, के बाहर से आने वाली गाड़ियों से कुछ पैसा ले लिया गया सरकारी खजाने को भर दिया गया ।

जब लोगों ने इस पर जानकारी एकत्रित की कि वह उस पैसे का हुआ क्या ? आधिकारिक रूप से सूचना के अधिकार के नियम के अनुसार कोई उत्तर नहीं मिला, परंतु जब आप अधिकारी से मिलते हैं अनाधिकृत रूप से इन सब ने माना इस धन का उपयोग सरकार अपने अधिकारियों को तनख्वाह देने के लिए करती है । आज किसी भी सरकार के पास अपने सरकारी कर्मचारियों को देने के लिए उपयुक्त धन नहीं है । इसीलिए सरकार अपनी नई भर्तियां नहीं करती है नाम कुछ भी दे दिया जाए, लेकिन सरकार के पास पैसा ही नहीं है और किस प्रकार से ग्रीन के जैसे अनेक करो को लगा कर के गुजारा कर रही है । ऐसे में क्या आप समझते हैं कि पर्यावरण की रक्षा हो सकेगी ।

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