अंतर्राष्ट्रीय मातृ दिवस पर विशेष ! भारत में पहले से इसकी परंपरा क्यूँ नहीँ रही ? आइए समझें

अंतर्राष्ट्रीय मातृ दिवस अथवा Mothers Day पर विशेष :

आइए सबसे पहले इसके इतिहास को जानते हैं, इस मातृ दिवस को शुरू करने वाली महिला का नाम एना जारविस जिन्होंने 1905 के आसपास इस दिन की स्थापना की थी । यहां स्थापना का अर्थ यह यह मत समझना कि कोई दिन बना दिया गया था, अथवा राजनीतिक यह सरकारी रूप से इसे घोषित कर दिया गया था । दरअसल एना जारविस की मां जिनका नाम एन रीव जारविस था, की मृत्यु 1904 में हुई थी । अमेरिका के गृह युद्ध में, उन्होंने दोनों तरफ के घायल सैनिकों की  सेवा की थी, उस समय उन्होंने मदर्स डे क्लब बना करके सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए काम किया था । उनकी मृत्यु के 1 वर्ष बाद एना जारविस ने, इस दिवस के विषय में सोचा था परंतु सबसे पहली बार अमेरिका में मातृ दिवस पर छुट्टी 1908 में दी गई थी इसी के साथ, 1908 में अमेरिकी सरकार के पास इस दिवस पर अवकाश देने की बात हुई हो, तो उन्होंने इसको मना कर दिया। यह कहकर कि कि कुछ के बाद आप अंतर्राष्ट्रीय सास दिवस अथवा International Mother in Laws दिवस मनाएंगे ।

वैसे माताओं को सम्मानित करने के लिए यह पहला दिवस नहीं था, इससे पहले भी यूनान में Cybele, रोम में Rhea  और इस अन्य सभ्यता में ऐसे दिन रहे हैं । लेकिन इसके साथ ही यह समझना भी आवश्यक है, एना जारविस जिसने  इस दिन की शुरुआत की है, लगभग 15 वर्ष बाद जब हॉलमार्क इत्यादि कंपनियों ने इसके लिए कार्ड बनाने शुरू किए, विभिन्न तोहफे बनाए और उनको बाजार में बेचा, एना जारविस ने उस समय यह कहा, कि इस  दिवस का प्रमुख उद्देश्य भटक गया है । इस दिन की संस्थापक कहीं जा सक्ने वाली एना जारविस, इस दिवस के व्यवसायीकरण से बहुत दुखी थी । उसका मानना था कि लोग अपनी माताओं को अपने हाथ से, लिखे पत्र अथवा पुष्प स्नेह और सम्मान के साथ जाकर दें न कि बाजार से खरीद कर यह एक व्यवसायिक दिवस बन जाए। और इसके साथ ही सबसे बड़ी बात यह भी है, विश्व के विभिन्न देशों में अंतरराष्ट्रीय मातृ दिवस के दिन अलग-अलग हैं। भारत में इसे मई माह के दूसरे रविवार को मनाया जाता है ।

आइए अब कुछ बात भारतीय परिवेश की करें, हमारे देश में कभी भी मातृ दिवस नहीं रहा। उसका कारण स्पष्ट था, हमारे देश की परंपरा में माता-पिता हमारे साथ ही रहते हैं। और हम उनकी पूजा सन्मान के लिए दिन निर्धारित नहीं करते वह हमेशा ही हमारे लिए आदर के योग्य है । जबकि पश्चिम के देशों में, या पाश्चात्य संस्कृति में जैसे ही बच्चा वयस्क होता है, वह माता-पिता से अलग जाकर रहना शुरू कर देता है और अपनी नई दुनिया बसा लेते हैं। मां तो मां ही होती है, चाहे भारत की हो या पश्चिम के किसी देश की । उसकी आंखें अपने बच्चे के लिए अवश्य तरसती हैं । विदेशों में इस परंपरा को और बढ़ा दिया गया, जिससे वह 1 दिन जा करके अपनी माता को और आदर दे सकें ।

इसके साथ ही एक घटना को आप और जान लीजिए, लगभग 14 वी 15 वी शताब्दी के अंदर यूरोप में बहुत गरीबी थी, और उनके लिए बच्चे पालना एक बहुत बड़ी समस्या थी। इसके लिए आप ध्यान दें, जो लोग अपने बच्चों को पालने में असमर्थ होते थे , वह अपने बच्चे को चर्च के बाहर छोड़ दिया करते थे ।यदि आप याद करें तो “अमर अकबर एंथनी’’ चित्रपट में यह दर्शाया भी गया था । अब  चर्च का पादरी उन बच्चों को पालता था, इसीलिए आप ध्यान दीजिए चर्च के पादरी को फादर कहा जाता है। । और उससे अपने विवाह का अधिकार इसलिए नहीं है, कि उसकी स्वयं की संतान हो जाएगी तो वह दूसरे बच्चों पर उतना ध्यान नहीं दे सकेगा।

मैं व्यक्तिगत रूप से इस मातृ दिवस का विरोधी नहीं हूं, परंतु केवल मात्र दिवस के दिन ही अपनी मां को याद करने की विरोधी अवश्य हो। हमारे दिलों में रहती है और माता-पिता का सम्मान और सत्कार करना हमारा परम कर्तव्य भी है और हमारा धर्म भी है। और हमारे सनातन और भारतीय परिवेश में हमारी माता हमेशा हमारे साथ हैं, यदि दुर्भाग्यवश किसी के पास उसकी माता नहीं भी है। तो हम मानते हैं कि माता स्वर्ग से अपनी संतान को आशीर्वाद हमेशा देती है।

किसी कवि ने क्या खूब कहा है

कौन सी है वह चीज जो यहां नहीं मिलती

सब कुछ मिल जाता है लेकिन मां नहीं मिलती

इस संपूर्ण का लेख का तात्पर्य मात्र यह कह रहा है मात्र यह कहना है, कि हम अपनी संस्कृति को समझें और किसी विशेष दिन पिता को अनुमान देने की परंपरा बन जाती है तो अवश्य दें . धन्यवाद।

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