JEE MAINS fout times a year ! a BOON for Students/NTA/Coaching Centers? Are we Increasing Tension for youth ?

प्रिय मित्रों अभिभावकों अध्यापकों और प्यारे बच्चों,

आज मैं आपके बीच कुछ चाचा जेईई 2021 पर करने के लिए आया, आपको पता है कि इस वर्ष से JEE MAINS का इम्तिहान साल में 4 बार कर दिया गया है जो पिछले वर्ष तक दो बार था । पिछले वर्ष एक इम्तेहान जनवरी में था और दूसरा इम्तिहान अप्रैल के महीने में था, उसमें ऐसा सोचा गया कि जो लोग drop करते हैं अथवा जिनको बोर्ड की परीक्षा के आसपास बहुत अधिक तनाव हो जाता है विद्यार्थी जनवरी के महीने में इस इम्तिहान को दे दे, जो लोग बोर्ड के बाद देना चाहता है उसको अगले 1 महीने में दे सकते हैं ।

परंतु इस वर्ष शायद कोरोना इत्यादि के कारण से या किसी और कारण से यह निर्णय लिया गया के JEE MAINS की परीक्षा 4 महीनों में लगातार फरवरी-मार्च अप्रैल और मई में ली जाएगी, इसका कारण बेहतर रूप से प्रशासनिक अधिकारी ही जाने परंतु इसका क्या बुरा प्रभाव भारत के युवाओं के मानस पर पड़ा है जब मैं आपसे चर्चा करना चाहता हूं । युवाओं की मानसिकता में पहला दुष्प्रभाव तो यह देखा गया कि हर विद्यार्थी के मन में पहली परीक्षा के बाद, अगली बार बेहतर कर सकता हूं यह विचार आने लगा । और अधिकांश विद्यार्थी जिन्होंने यह परीक्षा फरवरी के महीने में यह सोच कर ही दी कि इसको  एक प्रैक्टिस पेपर की तरह ही लिया जाए । इससे हुआ यह के विद्यार्थियों में अगली बार बेहतर करने के विचार के कारण इस बार उन्होंने पूरी मेहनत ईमानदारी से पेपर नहीं दिया । युवाओं के लिए एक अच्छा संकेत नहीं है

यह भी विचार करने योग्य प्रश्न है किससे भला विद्यार्थी को है या कोचिंग सेंटर को है और या फिर एनडीए की एजेंसी को है । जब एक व्यक्ति को उसी परीक्षा के तनाव को 4 बार जाना पड़ेगा तो उसका तनाव 4 गुना हो जाएगा । पहले से ही मेरे देश में युवाओं पर तनाव कम नहीं है, और विशेष तौर पर प्रतियोगी परीक्षाओं के कारण । बार-बार सुनने में आता है के विद्यार्थी अत्याधिक तनावग्रस्त हो करके आत्महत्या तक कर लेते हैं । यहां यह समझना आवश्यक है जो तो आत्महत्या कर लेते हैं वह तो एक समाचार बनकर रह जाती है परंतु इसके कितने गुना अधिक इस तनाव को सह  करके मानसिक रूप से कमजोर बन जाते हैं । बार-बार कहा जाता है कि  पाठ्यक्रम और पढ़ने का तरीका बदला जाए जिससे कि विद्यार्थियों में तनाव कम हो, इसके लिए ही शायद राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर काम चला परंतु वहीं दूसरी तरफ हम वर्ष में बार-बार JEE MAINS का इम्तिहान ले करके क्या इसे बढ़ा नहीं रहे ?

इस वर्ष के विद्यार्थियों से परीक्षा के उपरांत वार्तालाप करके मैंने यह पाया, बहुत से विद्यार्थियों से पूछा गया कि आपका इंतिहान कैसा हुआ? सबने एक उत्तर अवश्य था कि “मैं अगली बार इससे बेहतर कर सकता हूं” । इस परीक्षा से मुझे पता लगा कि “मैं और तर कर सकता था” ।  बहुत अधिक विद्यार्थियों ने यह पूछने पर कि आपका कैसा प्रश्नपत्र रहा आपके प्रश्न कितने ठीक थे? इस पर भी धिक उत्तर आया कि मैंने अपने कितने प्रश्न ठीक किए और कितने गलत किए इस मैंने  देखा ही नहीं ।

प्रश्न यह है यदि एक विद्यार्थी में हार को देखने की या जीत को देखने की क्षमता तक भी विकसित हम नहीं कर पाए ?  हम कल्पना कर सकते हैं मानसिक स्वास्थ्य अच्छा नहीं है जीवन में हारना उतना दुर्भाग्यपूर्ण नहीं है जितना हार से सबक न लेना दुर्भाग्यपूर्ण है ? आज मेरे देश में इसका दुष्प्रभाव  इंजीनियरिंग में आ रहा है दुर्भाग्य तो यह भी है के नीट की मेडिकल परीक्षा में भी वर्ष में दो बार करने का प्रावधान दिया जा रहा है । व्यक्तिगत रूप से तुम्हें किसी विद्यार्थी के ड्राप करने के पक्ष में भी नहीं हूं ।

आइए अब  के आर्थिक आकलन को देखें जिससे आप यह समझेंगे इस पूरी प्रक्रिया में कोचिंग संस्थान और एनडीए एजेंसी का ही सबसे बड़ा फायदा है।  जब भी कोई उत्पाद बनाया जाता सबसे पहले उस उत्पाद की खपत को समझा जाता है।  यदि किसी तरह खपत से अधिक उत्पाद बन जाता है तो उसे अर्थशास्त्र की भाषा में मंदी कहा जाता है और यही आजकल कि इंजीनियरिंग शिक्षा में हो रहा है ।

भारत लगभग 10% के सकल घरेलू उत्पाद के वृद्धि दर पर भी लगभग एक लाख इंजीनियर को काम दे सकता है, जबकि आज 12 लाख से अधिक इंजीनियर पैदा कर रहे हैं, तो जो बाकी के लगभग 10 लाख इंजीनियर बनेंगे उनमें कुंठा होना स्वाभाविक है क्योंकि उन्हें इंजीनियर का काम तो मिल नहीं पाएगा।  कोचिंग संस्थानों की बल्ले बल्ले हो गई क्योंकि उनको हर माह नया कोर्स करवा कर पैसे लेने का रास्ता मिल जाएगा।  इसी प्रकार जो लगभग ₹600 के आसपास औसत रूप से एक विद्यार्थी से पैसा लेता है एक परीक्षा के लिए उसके पास कम से कम तीन  गुना अधिक धन प्राप्त होगा आकलन से एनडीए को लगभग 1440 करोड़ धन प्राप्त होगा । क्योंकि हर  बच्चा अपनी परीक्षा को 4 बार देना चाहेगा, अभिभावक का खर्च 600 रुपये से 2400 रुपये  बढ़ गया जाता है जो परिवार,  जो पिता जो माता अपने बच्चे को इंजीनियर बनाते हुए आईआईटी संस्थान में फीस भरने की क्षमता रखता है या ₹200000 सालाना की फीस कोचिंग में भरने की क्षमता रखता है बहुत सरलता से 2400 रुपए दे सकता है । मेरे भारत की शिक्षण संस्थानों का अस्तित्व आज

जैसे कि मैंने चर्चा के प्रारंभ में ही बताया था कि हमारे देश में एक लाख इंजीनियरों की आवश्यकता है, यदि हम उस से 4 गुना ज्यादा तक मतलब लगभग 4 लाख इंजीनियरों विद्यार्थियों से JEE MAINS  का प्रश्न पत्र करवाएं तो  हमें अच्छे इंजीनियर अपनी आवश्यकता के अनुसार मिल जाएंगे जो अभिभावक यह समझते हैं कि अधिक बार देकर के शायद मेरा बच्चा बेहतर रहेगा मैं उन्हें बताना चाहता हूं यदि आप एक लाख में आने की क्षमता रखते हैं तो 4 लाख  में तो निश्चित रूप से रखते हैं, फिर क्यूँ सपूत पर बोझ डालना चाहेंगे ।

परेशानी उनको आती है जो 4 लाख से पीछे वाले हैं से 12 लाख रुपए अगले 4 वर्षों में खर्च करके, इंजीनियर बन कर इंजीनियर की नौकरी नहीं पा पाते हैं रोजगार नहीं पा सकते हैं क्योंकि उनमें की काबिलियत में कमी रह जाती है और हमने उस कभी को निखारने की जगह उन्हें एक ऐसा रास्ता दिया जिसका भविष्य नहीं है । अभिभावकों का 80000 करोड़ रूपया लगाकर के इंजीनियर बनता है जो न तो देश में काम आता है बल्कि एक बेरोजगारी के कारण कुंठा में और आ  जाता है ।

अंत में मैं कहना चाहता हूं इस लेख समझने के लिए हमें अपने बच्चे के भविष्य से देश के भविष्य को बड़ा समझना पड़ेगा तभी आप इसके किसी हल तक पहुंच पाएंगे नहीं तो अपने बच्चे के स्वार्थ में हम देश का पिछले 30 वर्षों में जिस संस्थान करते आ रहे हैं अधिक और अधिक इंजीनियर पैदा करके और भी करते रहें । बातें कुछ कटु अवश्य है परंतु समझने की आवश्यकता है किसी भी प्रकार के प्रश्न के लिए मैं संवाद करने के लिए उपस्थित हूँ

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