किसान को सरकारी मदद, सरकार के अनुदान से किसको लाभ ??

आइए अब खाद  के अनुदान के विषय में कुछ और तथ्यों को जाने ।  खाद पर अनुदान सरकार किस प्रकार देती है वह कैसे किसानों को लाभ पहुंचाता है? इस पूरी प्रक्रिया को समझने के बाद ही आप यह समझ पाएंगे किस सरकार का धन कितना वास्तव में उपयोग होता है।  उपज  बढ़ाने के लिए पुराने समय में किसान प्राकृतिक खाद का उपयोग करते थे ।  परंतु समय की बदलाव के साथ, या कहा जाए हरित क्रांति के समय किसानों ने रासायनिक उर्वरक का उपयोग करना शुरू किया।  अब रासायनिक उर्वरक कीमत अधिक होने के कारण, सभी किसान इसका उपयोग नहीं कर सकते थे।  किसके लिए सरकार ने यूरिया इत्यादि खाद पर अनुदान देना शुरू किया।

पर यह अनुदान दिया कैसे जाएं? यह भी एक बड़ा प्रश्न था।  इसके उत्तर में सरकार ने सीधा पैसा खाद बनाने वाली कंपनियों अथवा संस्थानों को देना शुरू किया।  यह खाद बनाने वाली कंपनी सरकार से प्रति टन के हिसाब से पैसा लेती और तथाकथित रूप से किसानों को सस्ती खाद देती. इसमें अब परेशानी का कारण यह था, की बहुत-बहुत यह खाद विशेषतया यूरिया इत्यादि निकटतम देशों अर्थात नेपाल, बांग्ला देश और  पाकिस्तान को बेच दिया करते थे। तो सरकार का अनुदान का पैसा देशों में जाने लगा।  इसके अतिरिक्त यूरिया का उपयोग कृत्रिम दूध बनाने, और ऐसे ही कुछ अन्य रासायनिक कामों में होने लगा ,  इसके कारण सरकार की जेब से तो अनुदान का पैसा जाने लगा, परंतु किसानों के साथ-साथ दूसरे कई उद्योग लाभान्वित होने लगे।

इसकी साथ ही इसके साथ ही कितना पैसा सरकार अनुदान के रूप में खाद कंपनियों को दे उसका आधे से अधिक सरकार किसानों के लिए सिंचाई में दिए जाने वाले डीजल इत्यादि से प्राप्त कर लेती थी।  इसके साथ एक बदलाव और आया, कि उन कंपनियों में अपनी वास्तविक लागत सरकार को बढ़ा चढ़ा कर बताने का काम शुरू कर दिया।  किससे हुआ यह क्या हुआ खाद कंपनी दिन दुगनी रात चौगुनी तरक्की करने लग गई।

खाद कंपनी को धन, मात्र खाद बनाने पर मिलता था और उस खाद की खपत के लिए किसानों को भी प्रोत्साहित करने की आवश्यकता थी इसलिए बड़े-बड़े प्रायोजित कार्यक्रम किए गए जिससे किसान अपने खेत में अधिक रासायनिक उर्वरक डालने लगा।  हुआ तो यहां तक की आवश्यकता से अधिक रासायनिक उर्वरक डालने के कारण, हमारा सामान्य खाद्य पदार्थ धीरे-धीरे जहरर में परिवर्तित होने लगा। साथ ही मिट्टी की उपज क्षमता भी कम होने लगी ।  लेकिन जब तक यह पता लगता किसान को तब तक बहुत देर हो चुकी होती।  और उसके बाद अपनी खस्ता आर्थिक हालत के कारण, किसान को अधिक उपज बढ़ाने के लिए रासायनिक खाद का उपयोग और करना पड़ता जिससे हमारे खाद्य पदार्थों में विष  की मात्रा बढ़ती गई

इस स्थिति से पार पाने के लिए सरकार ने सीधा किसानों को लाभ पहुंचाने के लिए, 2018  में नई खाद्य नीति का समर्थन किया, जिसके अनुसार किसी भी उर्वरक कंपनी को अनुदान मिलने से पहले किसान द्वारा उस हाथ को खरीदा जाना निश्चित. इसके लिए सरकार ने किसान कार्ड आधार कार्ड किसान क्रेडिट कार्ड के माध्यम से एक नियमावली बनाई और उसके अनुसार किसान भक्त अधिक आज विक्रेताओं के पास जाकर खाद खरीदें का और उसका नंबर अंकित होने के बाद ही खाद कंपनी को कान का पैसा प्राप्त होगा.

आप आइए इसमें एक परेशानी समझते हैं अब क्योंकि खाद कंपनी को किसान के ले जाने के बाद ही मिलेगा, तो पहली परेशानी तो यह आई किस देश के सत्र प्रतिशत से अधिक छोटे किसान के पास न तो किसान क्रेडिट कार्ड है नहीं उसे आधार कार्ड के द्वारा खाद देने का तरीका मालूम है. तो खाद कंपनी में तो खाद बनाई और उसके बिकने के लिए उसने क्या किया के उन किसानों को जो खुदरा व्यापारी थी उनको अधिक खाद बेचने के लिए प्रोत्साहित किया. दुष्परिणाम इसका यह निकला किसान अधिक खाद ले जाने लगा क्योंकि उसको यह समझाया जाता था जितनी खाद डालोगे उतनी पैदावार पड़ेगी. बिना इस बात को जाने खाद की आवश्यकता है, दूसरा इस बात की जानकारी भी नहीं मिली अगर आशिक हाथ डाल दी जाएगी तू भूमि अपना उपजाऊ पन छोड़ देगी. किस कारण से कंपनियों को अनुदान बिल्ला लग गया और हमारे खाने में रासायनिक उर्वरक की मात्रा और बढ़ गई. फलस्वरूप आप महसूस कर सकते हैं पिछले 10 वर्षों में खानपान से संबंधित बीमारी कितनी अधिक बढ़ गई है, क्योंकि हम विष युक्त भोजन का ही प्रयोग करते हैं ।

इसके अगले स्तर पर, सरकार ने प्रति एकड़ 5  खाद की बोरियां, देना निश्चित किया. जबकि कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार प्रति एकड़ किसान को 2 से 3 खाद की बोरियों की आवश्यकता है.

इन पूरी बातों से आप यह समझ सकते हैं कि खाद का अनुदान, दरअसल खाद कंपनियों का अनुदान बन गया है और यदि यह अनुदान किसानों को मिल भी रहा है तो यह कह सकते हैं की 15% से अधिक किसान इसका लाभ नहीं उठा पा रहे. बाकी किसानों को कुछ लाभ तो है, मतलब खा थोड़ी सस्ती तो है पर जितना उन्हें लाभ मिलना चाहिए नहीं मिल पा रहा साथ में देश की खाद्य व्यवस्था में विशुद्ध पदार्थ तैयार हो रहे हैं. लेकिन आज भी जितनी सब्सिडी या अनुदान सरकार ती है उसका आधे से अधिक डीजल इत्यादि चीजों के ऊपर कर लगा कर के सरकार ले लेती है. अब प्रश्न यह है इसका एक पूरा तरीका निकले, जिसमें असली किसान को लाभ हो सके ।

इसके दुरुपयोग का आंकलन  इस बात से लग सकता है कि iffco संयंत्र में पिछले वर्ष 9000 करोड़ का अनुदान दिया गया, जो कि अभी सरकारी कंपनी है । उस कंपनी मे नए संयंत्र के लिए धन निकालने केबाद भी 3000 करोड़ का मुनाफा है । इससे आप समझ सकते हैं कि कितना मुनाफा खाद कंपनी कमाती है । अभी तो यह अर्ध सरकारी कंपनी की हालत है । पूर्ण रूप से निजी की क्या हालत होगी !!

यहीं पर मैं यह बात भी कहना चाहूंगा एक ही झटके में कोई ऐसा नियम हमें समझ नहीं आएगा हमें धीरे-धीरे, प्रयोगों को करते-करते किसी बेहतर स्थिति तक पहुंचने का प्रयास करना चाहिए. शत प्रतिशत त्रुटि रहित नियम तो शायद अभी तक किसी देश में है ही नहीं.

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