महामारी में कुल 33 करोड़ रोजगार मे से कितनों का रोजगार बचेगा और कब तक उद्दयोग पटरी पर आएंगे

प्रिय मित्रों,

आइए आज हम कोरोना द्वारा हुए हो गए कुछ आर्थिक परिवेश की चर्चा करें।  हमारे देश में सबसे अधिक आवश्यकता रोजगार की है। यदि रोजगार होगा तो अपने आप लोगों में खुशहाली होगी,  लोगों की क्रय शक्ति बढ़ेगी और इसी कारण से सभी उद्योग तरक्की करेंगे। जब लोग रोजगार में व्यस्त होंगे तू देश की कानून व्यवस्था भी सुचारु रूप से चारों रूप से  चलती रहेगी ।

यदि हम रोजगार और उद्योग से संबंधित जानकारी ले, तो पता चलता है कि इसमें हम विभिन्न प्रकार के उद्योग और उनसे मिलने वाले रोजगार की बात करेंगे, इसे पहले उद्दयोगों को विभिन्न श्रेणियों मे बाँट लेते हैं ।   कारोबार की दृष्टि से हमारे यहां पर उद्योग को तीन भागों में बांटा गया है,  इनमें सबसे पहले बड़े उद्योग हैं जिनका कि कारोबार 5 करोड़ से अधिक का होता है । उसके पश्चात लघु और मध्यम उद्योग होते हैं जिनका कारोबार 5 करोड़ से कम है इसके अतिरिक्त एक और प्रकार से रोजगार भारत में मिलता है जिसे हम स्वरोजगार के नाम से जानते हैं । इस स्वरोजगार में मात्र व्यक्ति अपने व्यक्तिगत कौशल से ही  काम करता है .

अगले चरण में हम यह जाने की लघु और मध्यम उद्योग हमारे देश में 5 करोड़ इकाइयां है,  जिससे व्यक्तियों को रोजगार मिलता है इसी के साथ 15  करोड़ लोगों की आजीविका चलती है । इसके अतिरिक्त स्वरोजगार से अपनी आजीविका  चलाने वाले भी 13 करोड़ है । अब जितने भी बड़े औद्योगिक घराने हैं उनके चलाए गए उपक्रमों में कुल मिलाकर 2.4 करोड़ लोगों को रोजगार मिलता है ।  और अंत मे जानिए इसके अतिरिक्त समस्त केंद्रीय और प्रदेश सरकारों में 2.5 करोड़ लोगों को रोजगार मिलता है । यदि हम इन सभी व्यक्तियों को जोड़ें तो लगभग 33 करोड़ इस देश में रोजगार मिला हुआ है आप किस करोड़ों में लगभग 135 करोड़ लोगों का भरण पोषण होता है।

अब जब लॉक डाउन हुआ तो मात्र 6% बड़ी कंपनियां और 11% स्वरोजगार के लोग अपनी आजीविका को चला पाए हैं और समस्त सरकारों ने चाहे वो केंद्रीय हो या प्रदेशीय हो अपने कर्मचारियों को वेतन दिया कुल मिलाकर के 3.78 करोड़ों को रोजगार पहले की तरह चलाने का अवसर प्रदान हुआ । शेष लगभग 30 करोड़ लोगों के रोजगार पर बहुत बुरा असर पड़ा है । कुछ राजकीय सरकारों ने और स्वयंसेवी संस्थाओं ने गरीब श्रनिक भाइयों के लिए भोजन की व्यवस्था भी की । परंतु एक कामगार से जो 4-5 लोग घर पर खाना खाते थे, उनकी कोई कैसे सुध लेता ।

अब इस लॉक डाउन के बाद यह पाया गया है कि लगभग एक तिहाई लघु और मध्यम उद्योग,  एक तिहाई स्वरोजगार वाले लोग अपनी रोजगार को बन्दी के कगार पर पाते हैं ।  अभी पिछले दिनों हजार 46000 व्यक्तियों,  संस्थाओं और संगठनों से पूछ कर इकनॉमिक टाइम्स ने एक सर्वेक्षण किया जिसके अनुसार 35% लघु और मध्यम उद्योग बंदी के कगार पर हैं और 37% लोग जो स्वरोजगार में लिप्त थे,  वह भी अपने कामों में खतरा महसूस कर रहे हैं । यदि इस बात को मात्र रोजगार के नजरिए से देखा जाए 6 करोड़ लोग बेरोजगारी के लपेट में आ गए,  यहां पर एक बात ध्यान देने योग्य है कि 6 करोड लोगों के रोजगार के जाने से लगभग 25 करोड़ लोग भुखमरी के कगार पर आ जाते हैं क्योंकि इस देश में चार से पांच व्यक्तियों के परिवार में एक कमाने वाला है जिस देश की जनसंख्या 135 करोड़ है उसमें से 25 करोड़ लोगों का रोजगार या लोगों को भुखमरी का शिकार होने का खतरा महसूस हो तो आप कल्पना कर सकते हैं कि इस लॉक डाउन से आर्थिक रूप से हमारा देश किस खतरे से जूझ रहा है ।

इसी सर्वेक्षण में लोगों से यह भी पूछा गया क्यों अपने आप को लॉक डाउन से पहले की स्थिति में लाने के लिए कितने समय का अनुमान लगाते हैं या कल्पना करते हैं 32% लघु और मध्यम उद्योग मानते हैं कि कम से कम उन्हें 6 माह का समय लगेगा जबकि 12% लघु और मध्यम उद्योग इस अवधि को 3 माह तक मानते हैं जहां तक बात रही बड़े उद्योगों की तो 26% बड़े उद्योग यह मानते हैं कि लगभग या 1 वर्ष के बाद वह पुरानी स्थिति में आ सकते हैं जबकि 46% बड़े उद्योग लगभग 3 माह का समय पुरानी स्थिति में आने के लिए मानते हैं । औसतन आप समझिए कि उद्दयोगों को कम से कम 6 माह लगेंगे और इन 6 माह तक 6 करोड़ लोगों पर बेरोजगारी का खतरा बना रहेगा ।

यहां पर यह समझना जरूरी है जिन जिन  प्रादेशिक सरकारों ने,   जो प्रवासी मजदूरों को अपने-अपने प्रदेश में बुलाया और यह कहते हैं इनके कौशल के अनुसार इनके लिए प्रदेश के अंदर रोजगार उपलब्ध कराया जाएगा.  यह बात अपने आप में अकल्पनीय लगती है क्योंकि यदि किसी को अपने घर के पास रोजगार मिलेगा, वह  शहरों की दुनिया में धक्के खाने क्यों जाएगा ?  इसके अतिरिक्त जितने मजदूर भाई अपने-अपने प्रदेशों में पहुंच चुके हैं या पहुंचने वाले हैं अगली माह वह क्वॉरेंटाइन के बाद जुलाई के मध्यम तक अपने घरों में रहने योग्य बनेंगे । अब शहरों  के वहां सब उद्योग जिनके लिए मजदूरों की आवश्यकता है या तो हो इन मजदूरों का इंतजार करेंगे और या फिर आसपास से महंगे कामगार लेंगे ।  आज की तारीख में भारत अपने उद्योगों को,  विशेष तौर पर लघु और मध्यम अपने खर्चे की कटौती करके बमुश्किल चला पाते हैं यदि उनको महंगे मजदूर लेने पड़े तो क्या वह अपना उत्पाद उसी कीमत पर बना पाएंगे,  यह बहुत बड़ा प्रश्न है.  प्रधानमंत्री जी ने समय पर लोकल के लिए वोकल की बात तो की  परंतु जब तक स्थानीय वस्तुएं कम कीमत पर उपलब्ध नहीं होंगी विदेशी सामान को छोड़ पाएंगे यह भी एक बहुत बड़ा प्रश्न है

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