सकारात्मक सामाजिक विचारधारा पर भारी पड़ता रूढ़िवाद !
आज सामाजिक कुरीतियों को समाप्त करने के लिए नयी नयी गोष्ठियों का आयोजन किया जाता है । जिसमे स्वच्छता, प्रदूषण इत्यादि पर विशेष चर्चा की जाती है । देखने में आता है कि चर्चा समाप्त हुई और चाय की चुसकियों के साथ की उस विचार की इतिश्री हो जाती है । हम सब भी समाज के प्रति अपने उत्तरदायित्व का निर्वाह करके उस संगोष्ठी भवन से बाहर आ कर उस अपनी दिनचर्या में व्यस्त हो जाते हैं । फिर भी समय के साथ चाहे कम लोग ही हों परंतु कुछ सामाजिक बदलाव के क्षेत्र में काम करते रहते हैं । वह लोग किसी भी बदलाव को अपने कार्यों से करते रहते हैं । ऐसा ही एक संस्थान नोएडा में है जिसे सब लोग “दादी की रसोई” के नाम से जानते हैं । मेरे अभिन्न मित्र श्री अनूप खन्ना जी को उनकी माता जी श्रीमती सरोज खन्ना जी नें चार वर्ष पूर्व एक विचार दिया कि क्यों न निर्धनों के लिए कुछ सस्ते भोजन की व्यवस्था की जाए । सर्वप्रथम यह विचार आया कि मात्र 5 रुपये में लोगों को खिचड़ी की व्यवस्था की जाए और वह भी देसी घी के छोंक के साथ । और इस विचार को क्रियान्वयन करके ही अनूप जी ने अपने मित्रों के साथ मिल कर “दादी की रसोई” की सैक्टर 29 में अपनी दवाई की दुकान के सामने ही दोपहर के समय में 12 से 2 भोजन की व्यवस्था कर दी । धीरे धीरे पूरे नोएडा या प्रदेश ही नहीं, पूरे विश्व में इसे सराहा गया और इस विचार को सामने रख कर बहुत से लोगों ने इसका अनुकरण किया और ऐसी ही कई संस्थानों नें इस प्रकार की व्यवस्था की ।
देखते ही देखते इसे समाज के हर वर्ग में सराहा जाने लगा और एक दिन यहाँ से ही निर्धनों के लिए मात्र 10 रुपये मे सस्ते कपड़ों की भी व्यवस्था कद दी गयी । इस पूरे कार्यक्रम को अनूप जी अपने देख रेख में करवाते थे । जबकि उन्हे समर्थन पूरे समाज से मिल रहा था । स्थिति यहाँ तक पहुंची कि राष्ट्रपति भवन में इसकी चर्चा हुई और देश में ऐसे ही कुछ सामाजिक सेवियों को जिसमें “अक्षय पात्र” और “रॉबिन हुड आर्मी” जैसी संस्थाओं को एकत्रित करके इसी भोजन के कार्यक्रम को व्यापक स्तर पर करने का विचार भी किया गया । और अंत में इन्ही पंक्तियों को चरितार्थ होते देखा गया :
मैं अकेला ही चला था जानिब-ए- मंज़िल
मगर लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया
इसी के साथ कुछ समय पूर्व श्रीमती सरिजिनी खन्ना यानि दादी जी ने एक इच्छा प्रकट कि मेरी चिता की राख़ को एक पौधे में डाला जाये । इससे आप कल्पना कर सकते है कि हमारी वयोवृद्ध दादी जी कितनी जागरूक थीं और वह भी 90 वर्ष की उम्र में । इस विचार से अनूप खन्ना जी ने अपने सभी मित्रों को बताया । सभी मित्रों ने इसकी प्रशंसा की और सबने सराहा । यह माना गया कि यह एक उदाहरण रहेगा जिससे एक तो दादी जी देह त्यागने के बाद भी हमारे बीच रहेंगी और दूसरे स्वच्छ पर्यावरण को भी बढ़ावा मिलेगा, जो कि आज कम से कम नोएडा जैसे शहरों मे बहुत आवश्यक हो गया है । हर एक ने इस विचार की भूरी भूरी प्रशंसा की और यह विचार सामाजिक सकारात्मक विचार के रूप में सराहा गया ।
सबको अपने समय से शरीर को त्यागना होता है । इसी श्रंखला में कुछ समय की बीमारी के बाद हम सबकी प्रेरणा स्त्रोत दादी श्रीमती सरोज खन्ना जी 8 सितंबर को अपना पार्थिव शरीर त्याग दिया । सबने भावभीनी श्रद्धांजलि दी । और यह तय किया की उनकी उठाले की क्रिया से पहले ही उनकी अंतिम इच्छा के रूप में एक पौधे मे उनकी राख़ डाली जाएगी । पारिवारिक लोगों ने सामुदायिक केंद्र के सामने के पार्क में एक पेड़ मे उनकी पार्थिव राख़ से एक पौधे को रोप दिया । यह कार्यक्रम भी उनके उठाले की क्रिया, जो की 10 सितंबर शाम 4 बजे थी, से पहले कर दिया गया । इस प्रकार की दादी जी की सामाजिक प्रेरणा की सभी स्थानीय लोगों और समाचार पत्रों ने प्रशंसा की ।
परिवार अभी अपनी प्रिय दादी जी से वियोग के दुख से उबरा भी नहीं था कि कुछ तथाकथित सामाजिक लोगों नें पेड़ लगाने की क्रिया का विरोध प्रकट करना शुरू कर दिया । जब उनसे विरोध का कारण पूछा गया तो उनके विरोध का कारण पता लगा । उनके विरोध का कारण था कि उन्हे यह लगता था कि अस्थियों की राख़ से उस पौधे के आस पास भूत प्रेत का साया रहेगा और इससे वहाँ के निवासियों को वह भूत प्रेत तंग करेंगे और इसके गंभीर परिणाम होंगे । सबसे महत्वपूर्ण बात आप समझें कि इस कार्य की सराहन करने वालों की संख्या, विरोध करने वालों से कहीं अधिक रही । परंतु इस बात को अधिक तूल न दे कर श्री अनूप खन्ना जी उस पौधे को हटा दिया । प्रश्न यह है कि 90% की सकारात्मक सोच पर क्या 10% रूढ़िवाद भारी पड़ गया ।
इस लेख को लिखने का तात्पर्य मात्र इतना है कि हम सब यह समझें कि सकारात्मक सोच को कैसे अधिक प्रभावी बनाएँ जिससे कि समाज में बदलाव करने वालों को हम कम से कम समर्थन दे सकें ।