INCOME TAX ! Middle class bearing the government Burden ! What is solution??

हर देश की सरकार को चलाने के लिए धन की आवश्यकता है, और धन जनता ही देगी । अब धन कैसे लिया जाये यह एक प्रश्न है । आइये कुछ आंकड़ों से समझें ।

भारत सरकार के कुल बजट की आय का 65% प्रत्यक्ष कर से आता है । इसमें आप नोटबंदी के बाद से प्रति वर्ष 10% से 15% की बढ़ोत्तरी देख रहे हैं । जबकि भारत का सकाल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर 8% से भी कम आँकी गयी है ।

अभी  2016 मे की गयी नोटबंदी के बाद से अब तक 80% वृद्धि  आयकर भरने वालों मे हुई है जिसमे 68% केवल व्यक्तिगत आयकर भरने वालों से हुई है ।

इसके साथ ही दूसरे आंकड़े भी कम चौकने वाले नहीं हैं । जिससे आप समझेंगे कि ईमानदारी से पगार  लेने वाले सबसे अधिक कर दाताओं की संख्याओं मे से हैं । शायद इसीलिए उन्हे ही सरकारों से शिकायत रहती है । अब यदि सरकार 5 लाख से कम आय वालों का आयकर से पूरी तरह मुक्त कर देती है, जो की इस वर्ग की मांग है तो इसके परिणामस्वरूप मध्यम वर्ग पर कर का बोझ बढ़ जाएगा ।  इसी प्रकार आज कृषि से हुई आय पर भारत मे पूरी तरह छूट है का बोझ भी मध्यम वर्ग पर पड़ता है , यानि जो कर दे रहा है उससे अधिक देना पड़ता है । फिर इसी से कर चोरी का भाव आ जाता है । आप सरकार के ही आंकड़े देखें जिसके अनुसार भारत सरकार के 8.6 लाख चिकित्सकों मे से कुल 4.2 लाख आयकर भरते हैं । इसी प्रकार दूसरा सरकारी आंकड़ा है कि 13 लाख वकीलों मे से 2.6 लाख वकील आयकर भरते हैं । वहीं chartered accountant जो सबको कर भरवाते है । उनमें से भी आंकड़ा चौकने वाला है 2.8 लाख मे से कुल 1 लाख स्वयं का आयकर भरते हैं । यह सब आंकड़े इसी विचारधारा की पुष्टि करते हैं ।

हम सब कल्पना करें राम राज्य की पर हमें उसके लिए कुछ देना न पड़े, मेरे हिस्से का कर भी दूसरे से लिया जाये, इस विचार ने देश को बहुत हानी पहुंचाई है । हम अपने स्वार्थों मे घिर गए हैं । सरकार गरीबों को भोजन दे, कपड़ा दे और मकान दे, परंतु मेरे सक्षम होने के बाद भी मुझ से न ले । इससे सरकार कैसे चलेगी ? आज दादी की रसोई जैसे उपक्रम गरीबों को सस्ता भोजन और दवाई देते हैं । इसकी इतनी साख बनी है, कारण यही है की सरकार यह काम नहीं कर पा रही है, क्योंकि सरकार के पास धन नहीं है । यदि हम सब यह समझें की सरकार को कर दे कर मैं अपने किसी न किसी भाई की ही मदद करूंगा तो शायद काम बन जाए । परन्तु वहीं पर सरकारों को भी जनता का विश्वास नहीं तोड़ना चाहिए । क्योंकि पिछले वर्षों मे सरकारों ने कर ले कर अधिकांश धन का दुरुपयोग ही किया है , इसीलिए कई सालों मे लोग कर से कतरा कर भाग जाते हैं ।

अब एक बात और समझें इस कर की चोरी के प्रचालन के कारण, देश मे अधिकांश कारोबार नगद व्यवहार से होता रहा । इसमें दो मुख्य हानियाँ थीं । एक तो सरकार के पास किसी भी उद्दयोग का सम्पूर्ण आंकड़ा नहीं आता दूसरे देश बड़ी मुद्रा के चलन के कारण सरकार को अधिक नोट छापने पड़ते हैं । इस बड़ी मुद्रा के चलन का दुष्प्रभाव यह भी होता  है कि अवैध कार्यों को सरलता से किया जा सकता है । इसी बात की पुष्टि 2 जुलाई को निर्मला सीतरमण, माननीय वाणिज्य मंत्री ने एक प्रश्न के उत्तर मे संसद मे बताया । उन्होने बताया कि नोटबंदी के समय 17 लाख 17 हज़ार करोड़ की नकदी बाज़ार मे थी और  29 मार्च 2019 के  21 लाख 14 हज़ार करोड़ रुपये की नकदी बाज़ार मे हैं । जिसे कई सरकारी संस्थाएं गैर कानूनी आर्थिक अपराधों मे वृद्धि का कारण मानते हैं । यही कारण था कि अमेरिका ने भी 1 लाख डॉलर तक के नोटों को 70 के दशक मे बंद किया और आर्थिक अपराधों पर लगाम लगाई । आज इसी कारण से 100 डॉलर, 100 यूरो और 100 पाउंड से बड़ी मुद्रा इन तथाकथित विकसित देशों मे भी चलन नहीं है ।     आइये यह भी जान लेते हैं कि कितनी नकदी हमारे पास होनी चाहिए ? अधिकांश आर्थिक विशेषज्ञों के अनुसार साकल घरेलू उत्पाद का 8% से 12% तक की नकदी प्रचालन मे आवश्यक है । इसी आंकड़ों के अनुसार हमारे पास 10 नवम्बर 2016 को न्य्योंतम यानि आदर्श स्थिति में 8 लाख करोड़ की नकदी होनी चाहिए थी और अधिकतम 12 लाख करोड़ की । जबकि हम उस समय पर भी लगभग हमारे बाज़ार में अधिकतम से 42% से अधिक नकदी थी । और आज तो आवश्यकता के अधिकतम स्तर से 50% से अधिक की नकदी बाज़ार में है

अब समाधान सोचते हैं, भरत्ब सरकार नें 5 लाख से अधिक की आय वालों को आयकर ऑनलाइन भरने के लिए कहा है । 5 करोड़ से अधिक आयकर भरने वालों मे से कुल 10 लाख आयकर भरने वाले ऐसे हैं जिनकी आय 5 लाख से अधिक है, जबकि 10 लाख से आधी आय वाले 5 लाख हैं । लगभग 8.41 लाख करोड़ की सरकारी आय मे से करीब 6 लाख करोड़ धन,  10 लाख प्रति वर्ष से अधिक आय वालों की है ।

सीधा सा अर्थ है कि 75% से अधिक आयकर की कमाई उन लोगों से आती है जिनके लिए ऑनलाइन return भरना अनिवार्य है । अर्थात उनका सब हिसाब किताब बैंक के पास है । जिनकी संख्या 10% से भी कम है । नोटबंदी के बाद लोगों नें अपने आपको informal economy से formal economy मे  लाने का प्रयास किया है । हर ईमानदार देशवासी इसकी प्रशंसा करता है ।

अब यदि बैंक ही 2% कर काट ले अर्थक्रांति के प्रावधान से तो भारत सरकार की आय इस वर्ष के आरबीआई के आंकड़ों से calculation के अनुसार 44 लाख करोड़ है जबकि सरकार का कुल बजट है 27 लाख करोड़ । यदि ऐसे प्रावधान को बना दिया जाय तो जितना भी आज GST का विरोध है वह भी समाप्त हो जाएगा । आज GST के लिए दुकानदार /व्यापारी को ग्राहक से धन लेकर सरकार को देना है, तो उसे परेशानी क्यों है ? समझिए इसके मात्र दो कारण है कि वह इसके खाते मे गड़बड़ का जोखिम नहीं लेना चाहता, दूसरे यदि GST पारदर्शी  हो जाता है तो सरकार उसके आयकर पर नज़र बनाएगी । जब सरकार नज़र बनाएगी तो आपको चोर होने का एहसास होता है । इसके विपरीत यदि बैंक के स्वयं ही कर काट लिया तो वह मानसिक रूप से स्वयं को राष्ट्र की मुख्य धारा मे आया हुआ मानता है ।

अर्थक्रांति के दूसरे प्रावधान से जब आपके पास बड़े नोट ही नहीं बचेंगे तो आप अपना व्यवहार बैंक से ही करेंगे । इस कारण से  अधिक लेनदेन बैंक के माध्यम से होगा । इससे एक तो कर की मात्र 2% के बाद भी पर्याप्त धन आएगा दूसरे किसी के साथ अन्याय  नहीं होगा । अर्थात बड़े कृषक को कर देना पड़ेगा और मध्यम वर्ग पर भी पूरा भार नहीं पड़ेगा ।

इसके उपरांत आपको कभी भी यह सरकारी आंकड़ा नहीं मिलेगा कि चिकित्सक अथवा वकीलों ने आयकर नहीं भरा है ।

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