
14 सितंबर को हिन्दी दिवस मनाया जाता है । उस दिन बहुत लोग बधाई भी देते हैं । परन्तु दुर्भाग्य से एक देश को अपनी भाषा का दिवस मनाना पड़ता है । क्या कभी ब्रिटेन और अमेरिका मे अँग्रेजी दिवस मनाया जाता है । यह तो ऐसे ही है की एक पाठशाला शिक्षा दिवस मनाए । इसका कारण स्पष्ट है कि हमारी शिक्षा पद्दती अंग्रेजों द्वारा लादी गयी है और हम उसे आज भी ढो रहे हैं । अँग्रेजी भाषा जानने में कुछ बुराई नहीं है एक भाषा की तरह । परन्तु जब वह हमारी जीवन शैली बनने लगती है तो समझने की बात है हमारा मौलिक चिंतन रुक जाता है, हम मानसिक रूप से सब काम अपनी भाषा मे करते हैं। जब भी हम अँग्रेजी पढ़ते हैं उसका मानसिक अनुवाद अपनी मातृ भाषा मे मन मे करने के बाद ही उसे समझते हैं। आप एक बार आज के समय में हम यह चर्चा करें कि हिन्दी भाषा में जबकि 70,000 से अधिक शब्द है जबकि अग्रेज़ी मे अपनी भाषा के शब्द 15,000 भी नहीं हैं । इस भाषा ने बहुत से भाषाओं से शब्द लिए है । इसमे मैं अँग्रेजी के अपमान नहीं अपितु हिन्दी की महानता के विषय में कह रहा हूँ ।
https://www.visualcapitalist.com/100-most-spoken-languages/ इस लिंक में छपी विवरण के अनुसार, विश्व में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा की श्रेणी में हिन्दी तीसरे क्रम में आती है । फरवरी 2020 में आए इस विवरण के अनुसार विश्व में 61.5 करोड़ लोग हिन्दी भाषा का प्रयोग करते हैं । दरअसल हमारी लॉर्ड मैकाले द्वारा लादी गयी शिक्षा प्रणाली ने, और अंग्रेजों के 200 वर्षों के राजकाज ने हम में हिन्दी के प्रति उदासीनता और हीनता का भाव दिया है । पर फिर भी कुछ शीर्षस्थ स्थानों ने मातृ भाषा को पूर्ण दर्जा दिया गया है । आपको दिल्ली के एक विध्यालय के विषय में अवश्य बताना चाहूँगा जिसका नाम है सरदार पटेल विध्यालय । दिल्ली के सबसे अधिक चर्चित विध्यालय DPS में एक नर्सरी कक्षा में दाखिले में जब 42 आवेदन आते थे तब का आंकड़ा मेरे पास है की इस सरदार पटेल विध्यालय में 68 आवेदन आते थे । और यह विध्यालय वह है जहां पर तत्कालीन शिक्षा मंत्री स्मृति ईरानी के बच्चे भी पढ़ते थे अन्य भी बहुत से राजनीतिज्ञों और उदद्योगपतियों की संतान भी वहाँ आती है । और यह विध्यालय कक्षा 5 तक गणित इत्यादि विषय भी हिन्दी में पढ़ाते हैं । इसकी बच्चे की अभीव्यक्ति की क्षमता का अधिक विकास होता है । उसे फिर किसी भी भाषा में मात्र अनुवाद ही करना होता है ।
हमने यह समझ लिया है कि जो भी अँग्रेजी में हम से बात करे वह बुद्धिमान है और अगर वह कोट और टाई लगा कर इस देश पर कुछ भी बुरा कहे तो उसकी बुद्धिमता के कसीदे कढ़े जाते है। इस देश के सर्वोच्च पदों मे बैठे भी इसके अपवाद नहीं है । उनको दोष नहीं दिया जा सकते क्योंकि वह भी इसी शिक्षा पद्दती की दें हैं। जुलाई 2005 की तत्कालीन प्रधान मंत्री का इंग्लैंड मे दिया भाषण इसका प्रमाण है ।
हम अपनी पीढ़ी मे शायद समझ नहीं पाये और आने वाली पीढ़ियों को यह नहीं समझा पाये कि भाषा का प्रश्न नहीं है। परन्तु देश के गौरव का भी है । हम अपनी मातृ भाषा मे सबसे बेहतर काम कर सकते हैं । हम जर्मनी, फ़्रांस, जापान, चीन जैसे देशों से सबक नही सीख सके यह सब देश अंग्रेजों के गुलाम थे परन्तु आज इसके देश में दूसरी भाषा के रूप मे स्थान नही ले पायी दूसरे अपनी भाषा मे पढ़ कर भी यह भारत से तकनीकी रूप से सक्षम हैं। कारण स्पष्ट है की अपनी भाषा का ज्ञान, उस मे शिक्षा और उस भाषा का स्वाभिमान । डा राम मनोहर लोहिया ने तो यहाँ तक कहा था कि भारतीयों को अपने अपने अँग्रेजी अज्ञान पर शर्मिंदा नही होना चाहिए यदि वह हिन्दी ठीक से जानते हैं ।
यदि आप आज की तथाकथित शिक्षा के विषय में समझें कि, आज का तथाकथित बुद्धिमान विद्यार्थी शिक्षा का माध्यम होने के कारण, पहले अँग्रेजी में पढ़ता है फिर उसे समझने के लिए मन में अपनी मातृभाषा मे अनुवाद करता है, और अंत मे परीक्षा के समय फिर मन मे हिन्दी से अँग्रेजी का अनुवाद करके लिखता है । इस प्रकार से वह तीन बार अध्याय को समझने में समय लगाता है , अँग्रेजी मे आप रट तो सकते हैं परंतु समझेंगे मातृभाषा मे ही । शिक्षा के क्षेत्र मे होने के कारण कुझे कभी कभी अँग्रेजी माध्यम के विद्दयालय मे 15- 16 वर्ष के बच्चों को पढ़ाने का अवसर प्रदान होता है । दावे से कह सकता पूर्ण अँग्रेजी को समझने वाले कम से कम उत्तर और पश्चिम भारत में 10% छात्र भी नही है परन्तु दुर्भाग्य से वह इसे अपनी कमजोरी समझ कर सारा ध्यान अँग्रेजी मे लिखने पर लगाते हैं । बड़ा की सामान्य प्रश्न है “ इस बात को परीक्षा मे लिखेंगे कैसे ’
आइये आज से संकल्प करें कि हिन्दी हमारी एक दिन के लिए नहीं परन्तु हमारे जीवन का हिस्सा ज़रूर बनें । एक बात और कोई भी व्यक्ति अपने पालतू कुत्ते से ज़रूर अँग्रेजी मे बात करता है हिन्दी मे नही ? शायद अपने पालतू कुत्ते अंग्रेज़ यहीं छोड गए हैं