सांसद निधि एवं विधायक निधि का उपयोग क्यों नहीं होता ?

सर्वप्रथम हमने इस पर चर्चा करें के सरकार की मजबूरी क्या है , जिसके कारण सरकार के पास धन नहीं है, तो आपके लिए या आम भारतीय के लिए सरकार धन कहां से लाएं ? जब यह पता लग गया कि लगभग एक तिहाई सरकार के पास पैसा नए कर्ज़ से आता है उसके साथ ही लगभग 30%  बजट का धन  पिछले कर्ज का ब्याज चुकाने में चला जाता है। तब आप कल्पना कर सकते हैं कि जिस 7 लाख करोड रुपए को नए कर्जे के रूप में क्या है उसका लगभग 20000 करोड रुपया ही आपके व सरकार के काम आ सकता है क्योंकि बाकी सारा पैसा तो ब्याज चुकाने में चला जाता है।

अब फिर दूसरे में, इस बात की चर्चा हुई, अभी धन है जितना भी धन है, सांसद या विधायक निधि का उसका भी पूर्ण  उपयोग भारतीय सांसद और विधायक नहीं कर पा रहे हैं। इसका सीधा सा अर्थ हुआ कि एक तो हमारे पास पैसा कम है, और दूसरा जितना भी है उसका हम उपयोग भी नहीं कर पा कर पाते हैं। अब आइए इस बात पर चर्चा करें उस धन का उपयोग किस लिए नहीं किया जा सकता?

दरअसल भी किसी सार्वजनिक क्षेत्र किसी सामाजिक योजना के लिए सरकार द्वारा धन दिया जाता है, उस धन को जिले की इकाई से पूछ कर ही सरकारी धन का बंटवारा करती है। अब यहां पर जिला समिति, जिला प्रशासन के  हाथ में काम आ जाता है। मान लीजिए, कि कोई सांसद अपने क्षेत्र में कोई सड़क बनवाना चाहता है, तो उसके लिए उसे अपने स्थानीय प्रशासन को एक रूपरेखा देनी पड़ती है। उस रूपरेखा के उपरांत स्थानीय प्रशासन यह तय करता है क्या यह कार्य भी करने वाला है या नहीं, फिर इस कार्य को करने में मानक स्तर पर किस प्रकार के संसाधनों का उपयोग किया जाएगा। और क्या इससे बेहतर कोई और योजना के नागरिकों के लिए है या नहीं?

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इसका कारण यह है सरकार के पास धन सीमित है, उतने ही धन से सरकार यह जानना चाहती है किस किस वर्ग के व्यक्तियों का सबसे अधिक भला हो सकता है। आप यहां पर सांसद को अथवा विधायक को बार बार जिला प्रशासन,  या स्थानीय प्रशासन मिलकर अपने बताएं कार्यक्रम की रूपरेखा रखनी पड़ती है। और इस कार्य को करने के लिए सांसद को उस क्षेत्र में बार बार दौरा करना पड़ सकता है। और सांसद अपने प्रदेश की राजधानी  में रहते हुए, बंगलों में रहते हुए, बाहर धूप गर्मी मे बार बार संसदीय क्षेत्र में आना नहीं चाहते हैं। यहीं पर जिला प्रशासन और स्थानीय प्रशासन अपनी इच्छा से चल पड़ता है, और सांसद जब वर्ष के उपरांत धन का व्यय नहीं होता तो मात्र एक बार उससे  मिलकर उस कार्य के न होने के कारण का पता लगाता है। मतलब यह हुआ धन सरकारी नीतियों के लिए आ सकता था, परंतु प्रशासन और  सांसद अथवा विधायक कि तालमेल के होने के कारण उपयोग नहीं किया जा रहा है। अब प्रश्न आता है हम भारतीय उद्योगों को अपने आसपास रहते हुए अल्पविराम अपने विधायक और जिला प्रशासन नहीं पूछना चाहिए धन का सदुपयोग क्यों नहीं हो रहा है ?

आप स्थानीय प्रशासन,  जिला प्रशासन इनकी भी विवशता समझिए । उनके पास हर काम के लिए कोई ना कोई सूची प्राप्त होती है उस सूची के अनुसार अनुसार संसाधनों का मंगाना, और उसके लिए उपयुक्त ठेकेदार का चयन करना, और ऐसा ठेकेदार और ऐसा संसाधन देने वाला, जिसकी कि विधायक संसद का लड़ाई हो, इस प्रकार की व्यक्तियों को ढूंढना संभव नहीं हो पा रहा । इसलिए समस्त परियोजनाएं बीच में लटक जाती हैं । उन पर न ही  काम होता है नहीं नाही उन पर कोई भविष्य में विचार किया जाता है। अब आप समझ सकते हैं की सारी की सारी योजनाएं प्रशासा और नेताओं के बीच में बट कर रह जाती है, और उसका नुकसान आम भारत का नागरिक उठाता है।

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प्रश्न क्या है कुचक्र चक्र से बचने के लिए अधिकारीगण और विधायक या सांसद, एक ही स्थान पर जनता के सामने यदि बैठक करें तो जनता को भी दूध का दूध और पानी का पानी पता लग जाएगा। एक और बात समस्त सांसद और विधायक अपनी वैबसाइट रखते हैं,  और यदि नहीं भी है तो अपने अपने दल की वेबसाइट अवश्य होती है,  क्यों न सरकार के किसी नियमानुसार उन के ऊपर जो प्रतिबंध लगना चाहिए कि जो जो योजनाएं मतदाताओं  के लिए उन्होंने सोची हैं, और वह भी वहां के नागरिकों से पूछने के बाद उसका कितना कितना क्रियान्वित किया जा रहा है ।   इसकी पूरी पूरी जानकारी वह अपनी वेबसाइट पर अंकित करें ।  इसके अतिरिक्त कुछ सीमाएं निर्धारित हो स्थानीय प्रशासन सांसद अथवा विधायक एक साथ  सार्वजनिक बैठक का आयोजन किया करें जिससे यह पता लगे कि सामान्य जनजीवन की व्यवस्थाओं, क्या धन की कमी है या किसी संसाधन की कमी है या सरकार उस योजना के लिए अक्षम है। व्यक्तिगत रूप से मुझे अच्छा लगता है यदि इतनी पारदर्शिता हमारी राजनीति क्षेत्रों में और अफसरशाही में आ जाए तो कभी अगर धन की कमी भी हो आगे नागरिक, चन्दा इकट्ठा करके भी सरकार को पैसा दे देंगे। अपने काम की योजनाओं को रुकने नहीं देंगे।

इसमें प्रश्न वही है प्रशासन और नेता वास्तव में कितनी ईमानदारी से काम करना चाहते हैं। किस क्षेत्र में ईमानदारी लाने के लिए सब को एकजुट होकर व्यास करना चाहिए जिससे कि देश में एक एक पैसे का सदुपयोग किया जाए ।  आप यह मान लीजिए धन की कोई कमी नहीं है, नाही देनेवालों की । हर सक्षम भारतीय, मंदिर मस्जिद और गुरद्वारे पर दान देते थकता नहीं है क्यूंकी उसको विश्वास है कि उसके धन का दुरुपयोग नहीं होगा । इसी कारण लोग कर देने से डरते हैं,  यदि करदाता को यह विश्वास हो जाए कि मेरे धन का देश में सकारात्मक रूप से उपयोग होगा,  तो निश्चित वह कर देने  में कभी पीछे नहीं हटेगा ।

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