लोकतंत्र बनाम जनतंत्र बनाम गणतंत्र ! आइए इनके अंतर को समझे और जाने भारत में क्या है ?

लोकतंत्र बनाम जनतंत्र बनाम गणतंत्र

 

हमारा देश कहां लोकतंत्र रहा, कहां गणतंत्र रहा और कहां जनतंत्र रहा?

जब अंग्रेजों ने भारत छोड़ा तो भारत को एक तथाकथित लोकतंत्र के हवाले कर दिया।   यहां यह भी समझना आवश्यक है यदि यही लोकतांत्रिक व्यवस्था बहुत अच्छी थी तो ब्रिटेन सरकार ने यही लोकतांत्रिक व्यवस्था आज तक शुरू क्यों नहीं की?  आज भी वहाँ का राज परिवार सर्वे सर्वा है । यह समझिए का जहां जहां से अंग्रेजों ने अपना साम्राज्य छोड़ा मात्र वहां वहां पर यही तथाकथित लोकतांत्रिक व्यवस्था बनाई गई!

अब जरा इसको हम विस्तार से समझे, कहने को तो यह गणतंत्र है आइए गणतंत्र के शाब्दिक अर्थ को समझें, गणतंत्र का अर्थ वह तंत्र जिसे गणमान्य व्यक्ति चलाएं या कह सकते हैं वह तंत्र जो गणमान्य व्यक्तियों के अधीन हो।

अब इस प्रकार के गणतंत्र से हम लोकतंत्र की अपेक्षा करते हैं. आइए समझते हैं लोकतंत्र क्या है लोकतंत्र यहां पर लोगों का तंत्र हो अर्थात जनता का तंत्र हो,  मतलब यह वह तंत्र है जिसमें कि अधिकांश लोगों का मत शामिल हो या अधिकांश लोगों का समर्थन हो।  और वही जनतंत्र उसे कहा जाएगा जो जनता की बात को सुनेगा और जनता के अनुसार तंत्र चलेगा।  आप देख ही रहे हैं इस समय का तथाकथित गणतंत्र में न तो लोकतंत्र है और ना ही जनतंत्र । आइए इस  की लोकतंत्रिक प्रभाव को विचार करें.  भारत में आज लगभग 135 करोड़ की जनसंख्या है.  जिसमें से लगभग 81 करोड़ आज मतदाता है.  लेकिन सौभाग्य या दुर्भाग्य से कभी भी हमारे यहां मतदान 60% से अधिक नहीं हुआ है.  इसका अर्थ यह हुआ कि लगभग 48 करोड लोग मतदान में अपना योगदान दे रही हैं.

अब इसके बाद क्योंकि यहां पर राजनीतिक दलों की गिनती की कोई सीमा नहीं है इसके कारण लगभग 20% मत मिलने वाला विजयी घोषित कर दिया जाता है अर्थात जिनके पास लगभग 9 करोड मत आएंगे वह इस देश की 135 करोड़ की जनता शासन करेंगे ।

यह तो तब है जब आप संपूर्ण मतदान स्वच्छ यानि पूर्ण निष्पक्ष हो और जनता  द्वारा दिया गया मतदान उनकी असली सोच का हो ।  अब एक बात आपको और समझनी चाहिए,  जितनी ही  जनता पढ़ लिख जाती है हम कहते हैं कि वह अपना भला बुरा समझते हैं.  अर्थात वह जनता यह जानती है उसके हित में क्या ?  यह जरूरी नहीं जो उसके हित में हो वह देश हित में भी हो?  और अधिकांश स्थानों पर यह देखा गया कि व्यक्ति अपने स्वार्थ से प्रेरित होकर ही मतदान करता है । मतलब दूसरे शब्दों मे पढ़ लिखा मतलब स्वार्थी और विरोध न करने वाला । आपने कभी दुकानदार से कीमत पर विरोध किया तो आपको यही उत्तर मिलता है , आप तो  पढे लिखे लगते हैं फिर क्यूँ ऐसी बातें  करते हैं ? अर्थात पढ़ लिखा व्यक्ति सभ्य हो और यहाँ सभ्य का अर्थ विरोध न करने वाला ।

इसी को दूसरे शब्दों में समझें तो 45 करोड मतदाताओं में 36 करोड़ मतदाताओं ने जिसे नकार दिया वह मतदान में विजयी  होकर सामने आया. यह बड़ी दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है । कई बार हम यह समझते हैं हम बहुत विवेक से बहुत सूझबूझ से और बहुत बुद्धिमानी का प्रयोग करके मतदान करते हैं लेकिन इसके सच को समझिए । हमारी सोच या हमारा विचार आज इतने बड़े भौगोलिक आकार के देश मे अपनी तथाकथित जानकारी पर बनता है । यदि आप तथाकथित बुद्धिजीवी है । जो कि सामाजिक मीडिया या अर्थात सोशल मीडिया के लोग समझते हैं ।

इस जानकारी को प्राप्त करते हैं, आज हम या तो समाचार पत्र के सहारे और या फिर टीवी चैनल से । बार बार यह चर्चा आती रहती है कि मेडिया भी निष्पक्ष नहीं बताता । प्रश्न यही है कि क्या समाचार पत्र या टीवी चैनल आपको सच बताते है । अधिकांश पढे लिखे लोग किसी न किसी समाचार पत्र पर विश्वास करते है । उन्हे लगता है कि समाचार पत्र का समाचार कैसे गलत होगा ? कदाचित यही सोच टीवी चैनल के विषय में भी है । पर आपको यह भी समझना पड़ेगा कि क्या सभी चैनल या समाचार पत्र निष्पक्ष पत्रकारिता कर रहे है और इससे भी महत्वपूर्ण क्या निर्भीक पत्रकारिता आज कल संभव भी है ?

आप मीडिया की मजबूरी भी समझ लीजिए । आज के समय में एक टीवी चैनल चलाने के लिए 1200 से 1500 करोड़ रुपये चाहिए । इतना धन कोई भी मीडिया लगा कर चल नहीं सकता है । इसके उपरांत यह समझना की मीडिया का काम आज समाज सेवा है यह बिल्कुल गलत होगा, आज का मीडिया और पत्रकारिता मात्र एक व्यापार बनकर रह गया है ।  यदि है व्यापार तक रहता तो भी ठीक था,  परंतु कम इसके सिद्धांत मानने वाला होता ।  दुर्भाग्य इस बात का है की मीडिया भी निकृष्ट स्तर  पर आ चुका है। हजारों करोड़ लगाकर के करोड़ों कमाने वालों को यह मीडिया चलाना, बिना राजनीतिक संगरक्षण आज संभव नहीं है। प्रश्न यह है तो या तो सरकार यह घोषित करें कौन से चैनल किस किस दल के हैं तब तो आप समझ लेंगे कि किस दल के चैनल ने क्या बताया है और उन राजनीतिक दलों की आवाज है ।

इसलिए बुद्धिजीवी वर्ग का यह समझना, कि उनको सब समाचार ठीक प्राप्त हो रहे हैं यह भी गलत है। वहीं पर साथ में fact check  के नाम से कुछ संस्थाएं यह घोषित करती हैं एवं इसकी सत्यता बता रहे हैं, परंतु क्या वह नहीं खरीदी जा सकती तो आप तक सत्य बात कहां पता लगेगी। भारतीय युवा जिसको सत्य मान रहा है उसकी सत्यता पर ही संशय है।

 

इसलिए आप समझिए कहीं ना कहीं जो मीडिया चला रहा है वह पढ़े-लिखे और तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग को एक निश्चित दिशा में सोचने पर मजबूर कर रहा है। वह शायद यह समझे कि वह स्वयं सोच रहा है परंतु उसके सोचने के ढंग पर मीडिया का कब्जा है। अब यह मीडिया चलाने वाले बड़े-बड़े उद्योगपति हैं जिन्हें आप गणमान्य व्यक्ति का दर्जा दे सकते हैं दूसरी तरफ से मीडिया कर्मियों पर विभिन्न राजनीतिक दल अपना पैसा लगा सकते हैं और आपको सोचने पर विवश कर सकते हैं। इसके बाद होगा यह क्या आप सोचते हैं क्या आप सोचकर वोट दे रहे हैं परंतु वास्तव में आपकी सोच को परिवर्तित करके वोट दिलवाया जा रहा है। इसलिए आज भी आज देखेंगे तो लोग मुद्दों पर बात ना करके मात्र इस पर बात करते हैं कि अभी की सरकार अच्छी है या फला राजनीतिक दल अच्छा है। असल में राजनीति मैं चर्चा होनी चाहिए राज्य की नीति पर पर दुर्भाग्य से चर्चा हो रही है राजनीतिक दलों पर। समस्त चैनल आपके सामने हैं अखबार आपके सामने हैं आपने कितने चैनलों में यह देखा की बहस किसी विशेष मुद्दे पर हो रही है। बहस  मात्र इसकी  हो रही है पहले की सरकार ने अच्छा काम किया या आज की सरकार ने अच्छा काम किया। परंतु वास्तव में हर सरकार ने कुछ न कुछ अच्छा किया होगा कुछ ना कुछ बुरा किया होगा। हमारे के अच्छे कामों की तारीफ करें और बुरे कामों की निंदा करें। परन्तु क्या ऐसा हो रहा है ?

इससे आप समझ सकते हैं हम ऐसे तरीके के जनतंत्र में है जो वास्तविक जनतंत्र नहीं है। हां यह गणतंत्र तो है क्योंकि गणमान्य व्यक्तियों का तंत्र है वह गणमान्य व्यक्ति उद्योगपति हो सकते हैं राजनीतिक दल हो सकते हैं और ऐसे ही कोई भी धन्यवाद हो सकता है ।

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