राजनीति में बाहुबलियों की भूमिका को समूल नष्ट करने के लिए आइये सब मिल कर प्रयास करें

पिछले अंक में हमने बात की थी  राजनीति में क्यों बहुबलियों की क्या आवश्यकता है,  इससे पता चला सभी  बहुबलियों को राजनीतिक दलों से संरक्षक प्राप्त करते हैं.  इसका कारण स्पष्ट है कि राजनेताओं को अपने लिए किसी भी कीमत पर मतदान चाहिए ।   यदि उनके पक्ष में मतदान न हो उनको दोबारा राज्य करने का अवसर प्राप्त नहीं होगा।  इसी प्रकार राजनेता बहुबलियों से राजकीय धन को दिलवा करके, उनसे कुछ हिस्सा अपने लिए दिलवा लेते हैं।   और इसी धन का चुनाव के समय नगद में शराब के रूप में,  ग्रामीणों को देखकर अपने पक्ष में मतदान करवाया जाता है।

 

इसके लिए कोई भी एक राजनीतिक दल दोषी नहीं है, अपितु सभी दल इस काम को करते हैं, सभी दलों में कुछ व्यक्ति ईमानदार हो सकते हैं, परंतु कमोवेश इस व्यवस्था मे यही चलता रहा है और समय के साथ साथ इस व्यवस्था के दोष बढ़ते ही गए । और इसमें  हम सब भी किसी ना किसी रूप में इस व्यवस्था को चलाने में योगदान देते हैं,  और जब कठिनाई आती है तो हम सरकारों पर दोषारोपण करते हैं ।  कुछ लोगों का यह मानना है इसके  लिए हमारी शिक्षा व्यवस्था पूर्ण रूप से दोषी है।  क्योंकि लोग शिक्षित नहीं है इसलिए अपना भला बुरा नहीं सोच पाते । सोचने की बात यह है, कि क्या इस देश का तथाकथित शिक्षित व्यक्ति सही मतदान कर पाएगा या पाता है ?  क्या हम इस लोकतंत्र के लिए परिपक्व है ?  इसे मैं एक उदाहरण से समझाता हूं,  केरल नामक प्रदेश में लगभग 100% साक्षरता है तो क्या हम यह माने वहां की सरकार है केवल और केवल विकास कार्य करती हैं,  क्या वहां पर भ्रष्टाचार नहीं है.  उत्तर में आपके ऊपर छोड़ता हूं.

आजकल मैं हिमाचल प्रवास में हूं,  यहां का एक जिला है जिसका नाम मंडी है,  कहा जाता है यह बहुत ही शिक्षित व्यक्तियों का नगर है, इस नगर की साक्षारता 84% कही गयी है,  इसी क्षेत्र से जब कांग्रेस के उम्मीदवार,  पंडित सुखराम पर भ्रष्टाचार के  मुकदमे चल रहे थे और उन्हें उसका दोषी भी करार कर दिया गया था,  फिर भी इस मंडी की जनता ने उन्हे बहुमत दिया और संसद में भेज दिया ।  जब मुझे अचंभा हुआ और मैंने  लोगों से पूछा तो लोगों ने कहा कि हमारे प्रदेश में उन्होंने हमारे घरों में दूरभाष लगवा दिया तो हमारे लिए वह बेहतर ही हुए। तब क्या शिक्षा ने सही मतदान होने दिया । हम लोग अपने स्वार्थ से ऊपर न तो सोचना चाहते है और न ही उतनी दूरदृष्टि रखते हैं ।

इसी प्रकार बाहुबली यदि वह कुछ लोगों को  काम दिलवा आता है,  ठेका दिलवा देता है सरकारी,  गरीब जनता के लिए तू माई बाप ही हुआ ना.  यदि वह गैरकानूनी काम भी करता है लोगों के लिए वह भगवान ही है । इस कांड में भी आप देखें कि उस गाँव का एक भी व्यक्ति पुलिस या प्रशासन के सामने नहीं आया जब तक कि विकास दुबे की मृत्यु नहीं ही गयी । यही बात राम रहीम जैसे तथाकथित धर्म क्षेत्र के उद्योगपतियों में सच पाई जाती।  सबकी अपनी अनुयाई हैं अधिकांश को उस बाहुबली, अपने पूज्य संत से रोजगार तथा अन्य आशीर्वाद मिलते हैं।

यदि शिक्षा नहीं तो क्या, अब आप समझिए इस देश के आम आदमी की दरिद्रता इसकी दोषी है । क्या इस दरिद्रता को दूर करने का प्रयास नहीं हुआ ? हुआ है पर उतनी सफलता नहीं मिली । कारण वही है कि इस समाज मे सरकार की योजनाएँ जन जन तक नहीं पहुँचती क्योंकि बीच मे ही बाहुबली और नेता मिल कर उसका उपभोग कर लेते है । शायद कभी इस देश में राजनीति सेवा भाव लिए थी परंतु आजकल तो यह एक वावसाय को गया है । सरकार और जनता के बीच में जिस भी धन का निष्कासन नेता और बहुबलियों के पास होता है वह सब काला धन है जिसका न कोई लेखा जोखा है, न किसी सरकारी विभाग की नज़र ।  पूरी बात से यह स्पष्ट है कि जो काला धन अर्थात सरकार की व्यवस्था से भ्रष्टाचार के रूप में धन पूरे मतदान प्रक्रिया और बाहुबलियों को पालने में उत्तरदाई है।

यदि किसी तरह से यह धन जिसकी कि गिनती कहीं नहीं होती है,  किसने किसको कितना दिया, किसने किसको कब दिया,  किसने किसको किस कम के लिए दिया,  यह सब हमेशा छुपा रहता है।  यदि किसी प्रकार से यह उजागर हो जाए देश की राजनीति स्वच्छ हो जाए । और बीच की चोरी भी कम हो जाएगी ।  राजनेताओं को वास्तव में जनप्रतिनिधि होने का काम करना पड़ेगा। और वास्तव में लोकतंत्र आएगा। अभी तो गोरे अंग्रेज़  चले गए और काली अंग्रेज रह गए पुरानी पुरानी व्यवस्था पुरानी की पुरानी रही। यह तब होगा जब लोगों के हाथ में अधिक नकद पैसा नहीं होगा इसके लिए स्पष्ट है बड़े नोट को बंद किया जाए.  बहुत अधिक विकसित देशों में भी $100 से बड़ा नोट नहीं है क्योंकि उन सब की मान्यता है बड़े नोटों से भ्रष्टाचार और काले बाजार का काम किया जा सकता है।  यदि हम भी अपने देश में 50 रुपये से बड़े सब नोटों को बंद कर दें, तो इस प्रकार की काम की परिकल्पना की जा सकती सकती है।

गैरकानूनी गतिविधियों पर इससे बहुत पर बड़ा प्रभाव पड़ेगा ही.  क्या आप जानते हैं कि 9/11 के बाद अमेरिका में कोई आतंकवादी घटना नहीं हुई। उसका कारण यह था आतंकवादी संगठनों के बैंक खातों को बंद कर दिया। अब यदि बैंक खाते बंद है और बड़े नोट उपलब्ध नहीं है, आतंकवादियों को गैर कानूनी काम  करवाने के लिए धन की उपलब्धता ही नहीं। इसलिए कम से कम 50 रुपये से बड़े नोटों को रोकने के लिए सरकार पर दबाव डालें

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