युवाओं को असत्याचारण का मूल पाठ पढ़ाती हमारी शिक्षा व्यवस्था ! कैसे आइये समझें !

अब लगभग ३ माह में भारत के कक्षा 12 के विद्यार्थियों के बिभिन्न बोर्डों (CBSE, UP, PUNJAB इत्यादि प्रादेशिक बोर्ड) की परीक्षाओं का आरम्भ होने चला है | पूरे विश्व में पिछले 70 वर्षों में कितने ही बदलाव हुए  परन्तु दुर्भाग्य से हमारी शिक्षा नीति समय के साथ नहीं बदली | हम अपने विद्यार्थियों को स्वयं ही असत्य मार्ग पर चलने का रास्ता दिखाते हैं फिर हमें अपने देश की नयी पीढ़ी से शिकायत होती है कि वह बिगड़ रही है |

आइये इसको विस्तार से समझें, जितने भी विज्ञान संकाय के विद्यार्थी है उनके लिए भौतिक शास्त्र (physics), रासायनिक शास्त्र (chemistry), जीव विज्ञान (Biology) और संगणक (Computer) में प्रायोगिक परीक्षा का आयोजन किया जाता है | पूरे वर्ष तक सब विद्यार्थियों को हर विषय में लगभग १२ से १५ प्रयोग करना होता है, कुछ activity और फिर उसके लिए फाइल इत्यादि बनाना होता है | मज़े की बात है कि वर्षों पहले इस की शुरुआत की गयी और कभी भी इसका पुरावलोकन नहीं किया गया | आज स्थिति यह है कि विद्यार्थी न तो इसको समझते हैं न ही अध्यापक इसको पूरे ध्यान से करवाते हैं |  अंततोगत्वा सब विद्यार्थियों को लगभग पूरे नंबर दे दिए जाते हैं और बच्चे में इसका ज्ञान न के बराबर होता है | हाँ पर सभी अध्यापक विद्यार्थियों को साल भर इसी बात पर धमकाते रहते हैं |  हिमाचल प्रदेश मे तो और 15 अंकों का मूल्यांकन के नाम पर बांटे जाते हैं ।

इसके पीछे का कारण शायद यह था कि सभी विद्यार्थियों को विज्ञान को प्रयोगात्मक रूप से समझाया जाए, परन्तु इसके लिए उस विषय के अध्यापक को विद्यार्थी को स्वयं यह प्रयोग करवाने का प्रावधान था | अब आज यह काम शायद प्रयोगशाला का सहायक करवाता है न तो विद्यार्थी को समझ आता है न ही ज्ञान प्राप्त होता होता है |


एक या दो छात्र ही प्रयोग करते हैं बाकी सब लोग इसकी नक़ल कर लेते हैं | मुझे समझ नही आता इस प्रकार के अनुत्पादक कार्य का विरोध क्यों नहीं होता | क्या इसके साथ ही हम अपनी नयी पीढ़ी को असत्य नहीं सिखा रहे हैं ? अर्थात एक असत्य घटना जो वर्षों से हो रही है और कहीं पर भी इसका विरोध नहीं हो रहा है । सब छात्र और अध्यापक जानते है कि प्रयोगशाला मे सब स्वयं और दूसरे को धोखा देने का ही काम करते हैं । स्थिति तो यहाँ तक है कि कुछ विध्यालयों मे प्रयोगिक कक्षा मे भी पाठ्यक्रम पढ़ाया जाता है और फिर भी अभी तक पाठ्यक्रम सम्पन्न नहीं हो पाया है । कुल्लू के क्षेत्र से मेरा अधिक संपर्क है इसलिए इसे मैंने बहुत पास से देखा है । सीबीएसई के दो विध्यालय तो ऐसे हैं जिसमे शायद ठंडा स्थान होने के कारण इसी दिसंबर महीन में बोर्ड की प्रयोगिक परीक्षाएँ कर दी गयी हैं । जबकि उनको पूरे प्रयोग अभी ही करवाए जा रहे हैं ।


अब एक और असत्य की बात करें परीक्षा की तैय्यारी करवाने के लिए कुछ परीक्षाएं ली जाती है जिन्हें नाम preboard दिया जाता है | दुर्भाग्य से विद्यार्थियों को यह कहा जाता है कि यदि preboard में अच्छे अंक नहीं होंगे तो board आपका admit card रोक लेगा | यह भी पूर्ण रूप से असत्य है | preboard के अंकों का admit card से कोई रिश्ता नहीं है यह CBSE बोर्ड बार बार कहता रहा है | विद्यार्थियों को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करना ठीक है परन्तु उन्हीं को डरा धमका के हम क्या नहीं पीढ़ी को डरपोक नहीं बना रहे हैं ? हम उनसे संवाद के लिए क्यों डरते हैं | एक तरफ तो भारत सरकार यह मानते हुए कि 18 वर्ष का युवा अपने देश का भविष्य सुधारेगा उसे मतदान का अधिकार दे रहा है और दूसरी तरफ कक्षा 12 का विद्यार्थी यह नही समझ पाता है  कि वह अपने जीवन में क्या करना चाहता है ? आइये इस पर विचार करें और अपने देश को संवारने के लिए शिक्षा नीति में मूलभूत परिवर्तन करने का प्रयास करें |

मेरी अपील सभी शिक्षकों, समाज शास्त्रियों और मनोवैज्ञानिकों से है कि कम से कम कोई भी व्यवस्था करें अपने छात्रों को इस कच्ची उम्र में असत्य आचरण से रोकें । शिक्षक जैसा व्यवहार करेंगे नई पीढ़ी वही करेगी । कल को हम उन्हे कोसने के अतिरिक्त कुछ नहीं कर पाएंगे । आइये इसे व्यक्तिगत नहीं पर देश की समस्या समझ कर समाधानवाही बनें ।

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