
क्या आपको कभी लगता है, कि मेरा बच्चा अब मेरी बात नहीं मान रहा । जब वह थोड़ा छोटा था, तो मेरी सारी बात समझता भी था और जो मैं कहूं वह करता भी था । दूसरे शब्दों में मेरी सारी बातें मानता था । अब ऐसा उसमें क्या बदलाव आ गया, क्या आपको मेरी बातें सुनकर अनसुना कर देता है । कई बार मेरी बातों पर ध्यान नहीं देता । ऐसा क्यों ?
यदि आपको भी यह लगता है, तो आपके लिए यह लेख अत्यंत आवश्यक है । इसके द्वारा हम यह जानने का प्रयास करेंगे, के बचपन से विद्यालय को जाते हुए, बच्चे को किस-किस मनोवैज्ञानिक परिवर्तन से गुजरना पड़ता है । मैं यहां पर यह बिल्कुल नहीं कह रहा, कि बच्चे पर मानसिक दबाव है । ध्यान रहे मेरा कहना है, मनोवैज्ञानिक परिवर्तन । आप थोड़ा सा बचपन ध्यान दीजिए, उस समय आपका बच्चा एक ऐसा बच्चा था, जिसमें कोई भी कमी नहीं थी । भले ही थोड़ी बहुत खाने पीने की कोई कमी रह गई हो, परंतु पूरे व्यक्तित्व में बच्चे के कोई कमी नहीं थी । आप कितने गर्व से, अपने बच्चे को औरों से पहचान कराते हैं । यह कहते हुए कि देखिए मेरा बच्चा क्या-क्या सीख गया है । ऐसा आपने हर बच्चे में देखा होगा ।
फिर वह समय आता है जब बच्चा विद्यालय जाता है, बच्चा शिक्षा के दौर में आगे बढ़ता है, जब तक विद्यालय में अंक नहीं प्राप्त करने होते, या कक्षा के नंबरों के बारे में नहीं बताया जाता । तब तक आपका बच्चा एक बहुत अच्छा बच्चा होता है, लेकिन अंको के प्रावधान आने के बाद ही, आपको अपने बच्चे में कुछ-कुछ कमियां लगती है ।
और जब यह बच्चा आठवीं नवी में, अर्थात 12 से 13 वर्ष का होता है तो आपको उसकी कमियां बढ़ती नजर आती हैं । आइए जरा इसका विश्लेषण करें, और यह विश्लेषण उन अभिभावक के लिए बहुत आवश्यक है, जिनके बच्चे अभी बहुत छोटे हैं। क्योंकि यदि आप बच्चे की मनोवृति समझ जाएंगे तो आप बच्चे का रख रखाव बहुत बेहतर ढंग से कर पाएंगे । मेरे कहने का यह अर्थ बिल्कुल नहीं है, क्या आप अपने बच्चे की देख रेख या परवरिश ठीक से नहीं कर रही है । समय के साथ साथ, जब बच्चा बड़ा होता है उसके सोचने की शक्ति, उसके कुछ बोलने की शक्ति और उसके समझने की शक्ति में आपको लगता है धीरे-धीरे विकास हो रहा है । आईए इसे बारीकी से समझे ।
आप इस बात को अवश्य समझें कि किसी व्यक्ति का व्यक्तित्व बदलना कठिन है परंतु उसका व्यवहार बदलना सरल है, यदि आप इसके व्यक्तित्व को समझ जाएँ । आप इस को अपने व्यक्तिगत जीवन में विभिन्न संबंधों में देख सकते हैं । पति – पत्नी, पिता पुत्र, माता पुत्री, भाई बहन इत्यादि मित्रों के संबंध को सरलता से निभा सकते हैं यदि आप किसी के व्यक्तित्व को समझ लेंगे । आपको पता लगएगे कि इस व्यक्ति में इस विचार को नहीं बदल सकते और किसी विचार अथवा व्यवहार में आप परिवर्तन ला सकते हैं । दूसरे के जिस व्यवहार में आप बदलाव नहीं कर सकते, (व्यक्तित्व के कारण) उसे आप स्वीकार सरलता से कर लेंगे और आपके संबंध मधुर हो जाएंगे । यह व्यक्तित्व आपके बचपन से ही दिख जाता है ।
आप यह जान लीजिए अधिकांश बच्चे, बहुत भोले मासूम और भावना प्रधान होते हैं । बच्चा आपकी हर गतिविधि को, भावुकता से देखता है । जिस समय बच्चा बोल नहीं पाता, उस समय भी वह आपकी गतिविधि को अपनी बुद्धि के अनुसार समझने का प्रयास करता है । हो सकता है आपको लगे, क्या बच्चा क्या इतना अवलोकन कर रहा है । परंतु आप ध्यान से सोचिए, इतना छोटा बच्चा भी, जब बैठता है तो अपने पिता की अथवा माता की नकल करता है । क्योंकि उसके अनुसार बैठने का वही एक ढंग है, जो उसने देखा है । जिस परिवार में, माता पिता में तकरार अथवा झगड़ा, जा कहासुनी बच्चे के सामने होती है, बच्चे को यह लगता है यह कहासुनी और झगड़ा इस जीवन का एक हिस्सा है । आप ध्यान दें उसके बाद बच्चा भी अपनी आवाज ऊंची करता, घर के प्राणी अगर धीमी आवाज में बात करते हैं, तो बच्चा भी धीमी आवाज में बात करता है । घर के प्राणी अगर कमरे के अंदर बंद रहती है, तो वह बच्चा भी कमरे के अंदर होता है । घर के प्राणी, अगर बाहर बैठना पसंद करते हैं, तो वह बच्चा भी बाहर उनके साथ बैठना पसंद करता । अर्थात आप यह समझे आप बच्चे को दिखा रहे हैं बच्चा करना चाहता है । मैंने आपसे कहा 80% से अधिक बच्चे भावना प्रधान होते हैं ।
कुछ बच्चों में, आप हठी स्वभाव भी देख सकते हैं । ध्यान दीजिएगा हठ करना और हठी स्वभाव होना, दोनों में बहुत तर है। कभी कभार बच्चे हठ या जिद करते ही हैं, तो यह उनका स्वभाव नहीं है । परंतु कुछ बच्चों में आप ऐसा पाएंगे वह बात बात पर हठ करते हैं । परंतु ध्यान रहे वह भी आपकी प्रतिक्रिया देख रहे हैं । परंतु इनकी संख्या 5 से 10% के बीच में ही होती है । इसके साथ ही कुछ बच्चों का व्यक्तित्व, गणनात्मक होता है, वह हर चीज को आकलन पहले करना पसंद करते, और उसके बाद किसी भी काम को करते हैं । हो सकता है आप मन में यह सोचे, कि छोटा सा बच्चा क्या गणना करता होगा । आप गणना का अर्थ कैलकुलेशन मत समझिए, इसका अर्थ है आकलन करना । आपका बच्चा शुरू से इतना बुद्धिमान है, जब बच्चे को मूत्र के लिए जाना है तो उसका रोना अलग है, जब बच्चे को भूख लगेगी तो उसका रोना अलग है, जब बच्चे ने मल त्याग दिया उसका रोना अलग है । ईश्वर ने यह प्रकृति उस बच्चे को दी है । यदि कोई भी माता इसको ध्यान से समझेगी, तो उसे इन सब रोने में अंतर समझ आ जाएगा । अब रही बात गणना करने की, या आकलन करने की, छोटा सा बच्चा यह आकलन कर लेता है, मेरी कौन सी बात मेरे माता पिता, मेरी अभिभावक, या दादा दादी मान सकती । अगर किसी घर में बहुत छोटा बच्चा भी, देखेगा के दादा, उस काम के लिए हां कर देते हैं जिसको पिता अथवा माता ने मना कर दिया । तो अगली बार अपने विशेष काम के लिए दादा के पास ही जाएगा । इससे आप स्वयं अनुमान लगाएं, बच्चे का आकलन कितना सही होता है ।
इसी प्रकार कुछ बच्चे, ऐसे होंगे, जो आपके सामने आते ही, अपनी ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए, कुछ गतिविधियां करते हैं । ऐसे बच्चे हमेशा आपका ध्यान चाहते हैं । अभी तक मैंने आपसे, बच्चों के हठी व्यक्तित्व, गणनात्मक व्यक्तित्व और ध्यान आकर्षित करने वाले बच्चों के बारे में बताया । लेकिन इन तीनों व्यक्तित्व के बच्चे, कुल मिलाकर 15 से 20% से अधिक नहीं हैं । बाकी आपके सारे बच्चे 80% में, जिसमें बहुत भावुक और बहुत स्नेह करने वाले । जो मैंने आपको बच्चों की, अलग गतिविधि बनाई, वह हर बच्चे में कुछ कुछ मात्रा में उपलब्ध है,
हर बच्चा कभी-कभी हठ करता है, बच्चा कभी-कभी ध्यान आकर्षित करने के लिए प्रयास करता है, हर बच्चा अपनी जगह आकलन भी करता है । यह उसका स्वभाव है, या उस समय कर रहा है इसमें आपको अंतर स्पष्ट समझना है । एक बार आप इस अंतर को स्पष्ट समझ लेंगे आपको अपने बच्चे को, समझाने का ढंग या तरीका पता लग जाएगा ।
दुर्भाग्य है कि हम हर बच्चे को, अपनी सोच के अनुसार चलाना चाहती हैं । हम समझते हैं जो हमने जीवन में देखा है, वही मुझे उसे दिखाना, बनाना और समझाना है । क्या ऐसा संभव नहीं है, क्या आपका बच्चा आपसे तीक्ष्ण बुद्धि का हो, किसी विशेष प्रकार के कार्य को आप से बेहतर कर सकें । अवश्य संभव है । हम इसका आकलन नहीं करते । और बच्चे को उस दुनिया की दौड़ में दौड़ा देते हैं । हम कहते हैं और जानते हैं कि हर बच्चा एक विलक्षण प्रतिभा लिए हुए है । पर क्या उसे मानते हैं । हमारे मानने और जानने में बहुत अन्तर है । अधिकांश देश मानता है कि उस ईश्वर कि एक सत्ता है, नाम हम कुछ भी कहें, ने एक दिन सबका न्याय करना है । बुरे काम का बुरा नतीजा । पर अगर सब जानते भी होते तो देश में इतना भ्रष्टाचार, व्यभिचार और निकृष्ट कर्म नहीं होते । इतनी सी बात हम पढे लिखे, तथाकथित बुद्धिजीवी हो कर नहीं मान रहे और उस मासूम बच्चे से अपेक्षा कर रहे हैं कि वह समझें । चलिए हम तो गलत आज हो गए चलिए भविष्य के लिए आने वाली संतान को लेकर अब सचेत हो जाएँ । शेष अगले अंक में कि बच्चों पर कैसे कैसे हम स्वयं दुष्प्रभाव डालते हैं, कथनी और करनी के अन्तर के साथ ।