भारत में हिन्दी दिवस ! राष्ट्र भाषा एक दिवस बन कर रह गयी, गुलामी की मानसिकता कब हटेगी

आज फिर देश मे हिन्दी दिवस मनाने का दिन आ गया है । बहुत से शिक्षा संस्थाओं मे आज यह दिवस हर्षोल्लास से मनाया जाएगा । विषेशतौर पर उन विध्यालय जहां छोटे छोटे नौनिहालों को अँग्रेजी बोलने पर रोज़ डांट लगाई  जाती है । छोटे छोटे बच्चों के अभिभावक और अध्यापक आज बच्चे को हिन्दी के विषय पर निबंध रटने को प्रोत्साहित करेंगे जिससे की आज विध्यालय मे किसी प्रतियोगिता मे मेरा बच्चा जीत आए। जब अगले दिन फिर वह हिन्दी मे बात करेंगे तो मासूम छात्र को प्रताड़ित किया जाता है कि यूंहरे अभिभावक इतनी मोटी स्कूल की फीस दे कर तुम्हें यहाँ भेजते हैं कि अँग्रेजी मे बात करो। आप स्वयं सोचें 14 सितंबर को हिन्दी दिवस मनाया गया । परन्तु दुर्भाग्य से एक देश को अपनी भाषा का दिवस मनाना पड़ता है । क्या कभी ब्रिटेन और अमेरिका मे अँग्रेजी दिवस मनाया जाता है । यह तो ऐसे ही है की एक पाठशाला शिक्षा दिवस मनाए । इसका कारण स्पष्ट है कि हमारी शिक्षा पद्दती अंग्रेजों द्वारा लादी गयी है और हम उसे आज भी ढो रहे हैं । अँग्रेजी भाषा जानने में कुछ बुराई नहीं है एक भाषा की तरह । परन्तु जब वह हमारी जीवन शैली बनने लगती है तो समझने की बात है हमारा मौलिक चिंतन रुक जाता है, हम  मानसिक रूप से सब काम अपनी भाषा मे करते हैं। जब भी हम अँग्रेजी पढ़ते हैं उसका मानसिक अनुवाद अपनी मातृ भाषा मे मन मे करने के बाद ही उसे समझते हैं।

हमने यह समझ लिया है कि जो भी अँग्रेजी में हम से बात करे वह बुद्धिमान है और अगर वह कोट और टाई लगा कर इस देश पर कुछ भी बुरा कहे तो उसकी बुद्धिमता के कसीदे कढ़े जाते है। इस देश के सर्वोच्च पदों मे बैठे भी इसके अपवाद नहीं है । उनको दोष नहीं दिया जा सकते क्योंकि वह भी इसी शिक्षा पद्दती की देन हैं। जुलाई 2005 की तत्कालीन प्रधान मंत्री का इंग्लैंड मे दिया भाषण इसका प्रमाण है ।

 

 

 

हम अपनी पीढ़ी मे शायद समझ नहीं पाये और आने वाली पीढ़ियों को यह नहीं समझा पाये कि भाषा का प्रश्न नहीं है। परन्तु देश के गौरव का भी है । हम अपनी मातृ भाषा मे सबसे बेहतर काम कर सकते हैं । हम जर्मनी, फ़्रांस, जापान, चीन जैसे देशों से सबक नही सीख सके, यह सब देश अंग्रेजों के गुलाम थे परन्तु आज अँग्रेजी इन देशों में दूसरी भाषा के रूप मे स्थान नही ले पायी । दूसरे अपनी भाषा मे पढ़ कर भी यह भारत से तकनीकी रूप से सक्षम हैं। कारण स्पष्ट है की अपनी भाषा का ज्ञान, उस मे शिक्षा और उस भाषा का स्वाभिमान । डा राम मनोहर लोहिया ने तो यहाँ तक कहा था कि भारतीयों को अपने अपने अँग्रेजी अज्ञान पर शर्मिंदा नही होना चाहिए यदि वह हिन्दी ठीक से जानते हैं ।



होना तो यह चाहिए था कि अंग्रेजों के जाते ही हमें अपनी शिक्षा पद्दती मे पहला बदलाव यही करना था कि उसे अपनी मातृभाषा या कम से कम हिन्दी मे कर देना चाहिए था । दुर्भाग्य देखिये कि पूरे देश मे कक्षा 12 तक आप हिन्दी मे पढ़ सकते है परंतु स्नातक या स्नातकोत्तर कक्षाएं मात्र अँग्रेजी मे चलेगी । समस्त भारत मे सर्व शिक्षा अभियान मे, हिन्दी भाषी क्षेत्र मे पहले हिन्दी पढ़ाई जाती है । अब जब वही बच्चे आगे पढ़ेंगे यानि स्नातक कक्षाओं मे जाएंगे तो क्या समझ पाएंगे । इसका सीधा सा अर्थ है कि कम स्नातक क्षेत्र मे उन्ही बच्चों को भेजने का रास्ता बना रहा है जो अँग्रेजी मे पढे । यही से पूंजीवादियों का प्रवेश उच्च शिक्षा पर हो गया ।

आजकल मैं जहां पर रहता हूँ वह एक कुल्लू ज़िले का तथाकथित आर्थिक रूप से विकसित स्थान है । मेरे ही साथ के किसान परिवार से मैंने पूछा कि आपका पुत्र क्या करता है ?। उत्तर मिला अँग्रेजी स्कूल मेम पढ़ता है जी । मतलब पढ़ने से भी अधिक महत्व अँग्रेजी को दिया गया । दोष न अभिभावकों का है न ही नई पीढ़ी का । पर उनकी बुद्धि मे पता नहीं कैसे यह दाल दिया गया कि अँग्रेजी मे पढ़ कर बच्चा अच्छी ज़िंदगी बिताएगा । जबकि सच है अँग्रेजी खान पान और जीवन शैली को अपने जीवन का हिस्सा बना कर आज युवा अधिक बीमार रहता है । उस वय के बच्चों को मैंने देखा है कि 100 तक की गिनती नहीं आती है हिन्दी मे। UNDERSTANDING BEST PRACTICES IN MOTHER TONGUE पर आपको इंटरनेट पर हजारों शोध पत्र मिलेंगे । पर न तो अँग्रेजी से प्रभावित मीडिया यह बताएगा न ही किसी भारत मे इस पर शोध होगी । कारण स्पष्ट है कि भारत मे शोध स्तर तक पहुँचने के लिए अँग्रेजी मे पढ़ा छात्र चाहिए ।

 

 

 



वही जब पहली बार श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ने 1977 मे संयुक्त राष्ट्र संघ मे हिन्दी का भाषण दिया तो पूरा देश उस कि प्रशंसा कर रहा था । अब के प्रधान मंत्री जब विदेशों मे जा कर हिन्दी मे बात करे तो तालियों का शोर थमने मे नहीं आता । वहीं पर जब सुषमा स्वराज जी ने हिन्दी मे भाषण दिया तो संयुक्त राष्ट्र संघ के पदाधिकारियों ने उनका लोहा माना । पर मुझ भारतीय का बच्चा मात्र अँग्रेजी बोले भले ही मुझे स्वयं समझ न आए ।

शिक्षा के क्षेत्र मे होने के कारण कुझे कभी कभी अँग्रेजी माध्यम के विद्दयालय मे 15 16 वर्ष के बच्चों को पढ़ाने का अवसर प्रदान होता है । मैं दावे से कह सकता पूर्ण अँग्रेजी को समझने वाले 10% छात्र भी नही है  परन्तु दुर्भाग्य से वह इसे अपनी कमजोरी समझ कर सारा ध्यान अँग्रेजी मे लिखने पर लगाते हैं । बड़ा की सामान्य प्रश्न है “ इस बात को परीक्षा मे लिखेंगे कैसे ’

आइये आज से संकल्प करें कि हिन्दी हमारी एक दिन के लिए नहीं परन्तु हमारे जीवन का हिस्सा ज़रूर बनें । एक बात और कोई भी व्यक्ति अपने पालतू कुत्ते से ज़रूर अँग्रेजी मे बात करता है हिन्दी मे नही ? शायद अपने पालतू कुत्ते अंग्रेज़ यहीं छोड गए हैं

 

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