
श्रंखला के दूसरे भाग में यह समझते हैं, कि बच्चा जब अपने पहले विद्यालय में जाता है, तो वह किस प्रकार से जाएगा, उसमें आपके विचार किस प्रकार से काम करेंगे । तो हम सबसे पहले बात करेंगे 80% बच्चों की, जो कि मासूम है, बहुत भोले हैं और जो भावना प्रधान हैं । यहां पर मैं आपको फिर याद करा दूं, अधिकांश बच्चे भावना प्रधान ही होंगे, बहुत कम हठ वाले, अपनी ओर ध्यान आकर्षित करने वाले अथवा गणनात्मक होंगी । लेकिन उनकी भी पहचान यदि आप कर लेंगे उनको भी आप ठीक से विद्यालय भेज पाएंगे । और यदि विद्यालय के अध्यापक उसकी उस प्रकृति को समझ जाएंगे, अध्यापकों के लिए उसे पढ़ाना बहुत ही सरल हो जाएगा ।
तो आइए सबसे पहले भावनात्मक विद्यार्थी की बात करते हैं, अभी यह बच्चा है, इसने कुछ समय बाद विद्यालय जाना है, आपने अपने घर पर उस विद्यालय के विषय में, जिस प्रकार की भी बातचीत की है । उसी से वह अपना जाने का मन बनाएगा, और वही उसके लिए एक विद्यालय की प्रतिमा बनेगी । उदाहरण के लिए अगर आप ने यह कहा अभी तुम बहुत बदतमीजी कर रहे हो, या बदमाशी कर रहे हो अब जब तुम स्कूल जाओगे तू वहां पर अध्यापक यह सब नहीं करने देंगे और आपको अनुशासित करेंगे । यह बात सुनते ही बच्चा मन में यह विचार रखने लगता है, कि मेरा विद्यालय हर प्रकार के अनुशासन में मुझे रखेगा और विद्यालय चल कर अनुशासन ही सीखना पड़ता । वहीं दूसरी तरफ यदि परिवार में चर्चा के समय ऐसी बात हो जाए, कि अब आपको विद्यालय जाना है वहां तो आपको खूब खेलने कूदने का मौका मिलेगा, तो बच्चा मन में यह विचार बना लेता है मेरे विद्यालय में मुझे खेलने कूदने की भी व्यवस्था होगी । इस प्रकार से आपकी बातों का उस पर असर पड़ेगा, यदि कहीं पर किसने यह कह दिया, अब जैसे ही तुम स्कूल जाओगे तुम्हारी मैडम तुम्हें डांट लगाएगी, हमारी तो तुम सुनते नहीं हो । तब तुम्हें पता लगेगा कि स्कूल जाना क्या होता है ? अब बच्चा उसी समय से विद्यालय से जाने की कवायद से डरने लगता है । तो आपकी उन्हीं सारी बातों से वह एक चित्र बनाता है अपने विद्यालय का, और वहां पर जाने के विषय में सोचता है । माता-पिता का यह सफल प्रयास होगा, यदि वह बच्चे के मन में इतने सकारात्मक विचार रखें के बच्चा स्वयं विद्यालय जाने के लिए उदित हो जाए । आपने देखा होगा कई बार, माता-पिता बच्चे को विद्यालय में ले जाने के लिए, प्रलोभन तक देते हैं । यह जान लीजिए कि उन्होंने उस बच्चे के मन में विद्यालय का कोई सकारात्मक विचार नहीं बनाया । इसलिए वह बच्चा भी डर डर कर विद्यालय जा रहा है, और विद्यालय में घुसने के बाद अपने अध्यापकों से बात करने से पहले बहुत डरेगा । यहां पर उस विद्यालय के अध्यापकों का कार्य बहुत बढ़ जाएगा, क्योंकि उन्हें सबसे पहले उस बच्चे के मन से विद्यालय का डर हटाना है । कई बार ऐसा भी होगा, उच्च विद्यालय के विषय में माता-पिता में ही मतभेद है घर की आने सदस्यों में मतभेद है । कोई विद्यालय मे खेलने के लिए बता रहा है, कोई आगे की ज्ञान के लिए बता रहा है, कोई अनुशासन के लिए बता रहा है और कोई तो सिर्फ इतना ही कह रहा है कि अब बड़े हो गए हो तुम्हें विद्यालय जाना पड़ेगा । इन सब का असर उस बच्चे पर उसी रूप में आएगा ।
और ध्यान रखिए, जो बच्चा पहले दिन से सकारात्मक विचार अथवा प्रसन्न मुद्रा में विद्यालय जाएगा, पहली बात तो वह वहां से शिक्षा और व्यवहार सीखने में समय नहीं लगाएगा, और दूसरा उसके अध्यापक को उसके लिए बहुत अधिक मेहनत नहीं करनी पड़ेगी । अध्यापक अथवा अध्यापिका ने एक बार बच्चे से संपर्क बना लिया, अर्थात उससे मित्रता कर ली उसके बाद प्रारंभ के वर्षों में बच्चे की शिक्षा में, अध्यापकों और अभिभावकों को कोई परेशानी नहीं होगी । यह तो रही बात उन बच्चों की जो भावुक होते हैं ।
आइए अब बात करते हैं उन बच्चों की, जो गणनात्मक विचारधारा रखते हैं । ऐसे बच्चों के लिए माता पिता के लिए बेहतर यह है, कि समय-समय पर उस बच्चे को, उच्च विद्यालय के दर्शन बाहर से कराते रहें, कहीं खेलते कूदते बच्चे दिखाते रहें, कहीं कक्षाओं का वातावरण, चाहे तो टीवी इत्यादि या कहीं और से दिखाते रहें । और धीरे-धीरे बच्चे को सकारात्मक रूप से विद्यालय जाने के लिए प्रेरित करें, ऐसा बच्चा एक बार प्रेरित होने में समय अवश्य लेगा, उसके लिए आपको थोड़ी मेहनत भी करनी पड़ेगी । लेकिन यदि एक बार वह ठान लेगा और आपकी बात समझ जाएगा, तो आप निश्चिंत रहें उसी भावना से अपने विद्यालय में जाएगा । ऐसे बच्चों को ध्यान देते हुए उसके अध्यापक अध्यापिकाओं को, उससे बातचीत करते हुए, उसे खिलाते हुए उसे शिक्षा देते हुए, यह एहसास दिलाना है उसके यहां आने से सकारात्मक बदलाव आ रहे हैं । जैसे ही वह बच्चा घर पहुंचे, माता-पिता उससे आज की बात करें और उसे यह बताएं, कि देखो तुम्हारे आज विद्यालय से तुम कितनी नई चीज सीख कर आए हो, इससे तुम्हारे जीवन में निखार आएगा । इत्यादि इत्यादि । मेरे शब्दों पर ना जाए क्योंकि मैं तो बड़े लोगों के लिए बात कह रहा हूं । जो घर में बच्चों की बातचीत में वह उसे सिखाएं । इस प्रकार से आप उस बच्चे को जो हर चीज बहुत सोच समझकर करता है, आराम से विद्यालय के लिए प्रेरित कर सकते हैं और उसकी शिक्षा में अपना योगदान दें ।
इसके बाद अब चर्चा करते हैं उन बच्चों की जिनमें अपने आपको ध्यान आकर्षित करने की प्रकृति होती है । उसके सामने विद्यालय की बात करते हुए, यह अवश्य बताया जाए, विद्यालय के अध्यापक अध्यापिका आएं, अपने विद्यार्थियों से बहुत अच्छे तरीके से बात करते हैं, हमेशा उनका ध्यान रखते हैं । और बीच-बीच में शिक्षा भी देते रहती हैं । यही बात अध्यापक भी समझ जाए, तो उसे पता लग जाना चाहिए, किस समय समय पर उस बच्चे की तरफ देखना या उसे बता देना कि उसकी तरफ ध्यान है, बहुत आवश्यक है। यदि ऐसे बच्चे पर कभी विद्यालय में ध्यान नहीं देगी अध्यापक, तो वह अपनी बोतल गिरा देगा, अपना बैग को गिरा देगा अपने कपड़े गंदे कर लेगा । ऐसे मौके पर अध्यापक ने उसको डांटना बिल्कुल नहीं है, बल्कि यह समझना है और उसको यह कहना है, कि मैं किसी कार्य वश आप की तरफ ध्यान अभी नहीं दे पाई तो आप गिर गए । आपने एक बार ऐसा कह दिया, या इसी प्रकार की किसी घटना से उसके मन में स्थान बना लिया । तो बच्चा आपके चंगुल में आ जाएगा । अब आपने बस उसी प्रक्रिया को धीरे-धीरे बढ़ाए रखना है, जैसे ही ऐसा बच्चा घर आए माता-पिता या अभिभावक उसे यही पूछें, आज आपको मैडम ने क्या बोला, अध्यापक ने आपको खेलने के लिए क्या बोला इत्यादि इत्यादि ।
और अंत में बात करते हैं कुछ भोले बच्चे की जो हठी व्यक्तित्व का मालिक है । अभिभावक ध्यान दें यदि ऐसा बच्चा पहली बार उच्च विद्यालय में जाने के लिए तैयार हो जाएगा, तो आपको कोई परेशानी नहीं होगी । क्योंकि वह हठ करके विद्यालय में जाने के लिए हमेशा तैयार रहेगा । ऐसे बच्चे के सामने, आपको बहुत अधिक विकल्प की बात नहीं करनी । यदि यह बच्चा कभी कहता है, कि मुझे अमुक विद्यालय में जाना है इसमें नहीं जाना, तो आपने बच्चे को सोच समझकर के उसके हठ को हटा करके और समझा करके उच्च विद्यालय में लेकर जाना है । अगर कहीं पर आप समझे, कि मैंने डांट दिया और बच्चा चुप हो गया चलो मेरा काम हो गया तो आप बहुत बड़ी गलती में है ऐसा कदापि नहीं होगा । आप इस बात को ध्यान रखें बच्चा अभी आप पर निर्भर है वह चाह कर भी बहुत बार आप का विरोध नहीं कर पाएगा । परंतु सभी श्रेणियों के बच्चों के अभिभावकों को अपने बच्चों को अपन बोलने का मौका देना चाहिए, आप उसकी बात सुने तो सही वह क्या कहना चाहता है । उसके बाद भावुक बच्चे की नाराजगी आप अलग तरीके से दूर करेंगे गणनात्मक व्यक्ति को अलग प्रकार से समझाएंगे ध्यान आकर्षित करवाने वाले बच्चे को आपने उसकी तरफ बात सुन सुनकर सुनना है, और हठी व्यक्तित्व के बच्चे हठ के अंत तक ले जाकर के अपनी अपनी क्षमताओं की बात करके समझाना है ।
किसी के साथ बच्चा पहले विद्यालय में जाएगा, जितने भी छोटे प्ले स्कूल बच्चा पहली बार जाता है, उन सभी अध्यापक अध्यापिकाओं को माता-पिता से समय पर बात करते हुए बच्चे की प्रकृति के अनुसार उनसे जानकारी लेना और देना चाहिए । इससे अगली बार हम बात करेंगे जब बच्चा चौथी पांचवी कक्षा के बाद अंक लेना शुरू करता है और अंकों की दौड़ में बच्चे जब आगे पीछे होते हैं उनको कैसे आपने बात करनी है।