
बहुत सी सरकारी कंपनियां या उद्योग, अपने काम करने वालों कामगारों के लिए कुछ शिक्षण संस्थानों को चलाते थे और आज भी चलाते हैं. बदलते वक्त में शिक्षण संस्थानों में पिछले 30 से 40 वर्षों में बहुत अधिक परिवर्तन आ गया है । यह किस प्रकार का परिवर्तन रहा, यह क्यों किया गया? आइए इस पर कुछ विचार करते हैं ।
मुझे हाल ही में अपने पुराने विद्यालय में जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ, जहां पर मैंने कक्षा 10 तक शिक्षा प्राप्त की थी. उस विद्यालय का नाम था ऑर्डिनेंस फैक्ट्री इंटर कॉलेज मुरादनगर था । 70 के दशक में मैंने वहां शिक्षा प्राप्त की अब सन 2020 में मुझे वहाँ जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ, 40 वर्षों में जो बदलाव आया, उस बदलाव को देखकर मैं दंग रह गया ।
हमारे समय में यह विद्यालय आयुध निर्माणी अथवा ऑडनेंस फैक्ट्री मैं काम करने वाले अधिकारी और कामगारों के बच्चों के लिए बनाया गया था । अधिकारी हो या चपरासी हो सबके बच्चे इसी विद्यालय में पढ़ते थे क्योंकि कक्षा 6 से कक्षा 10 तक यही एकमात्र लड़कों का विद्यालय था और 11वीं 12वीं में इस विद्यालय में लड़के और लड़कियां पढ़ते थे । इसके साथ ही एक जवाहर कन्या विद्यालय था जिसमें कक्षा 6 से कक्षा 10 तक लड़कियां पढ़ती थी ।
इस तरह उस इलाके में शिक्षा चलती रही । मुरादनगर उस समय जिला मेरठ के अंतर्गत उत्तर प्रदेश में आता था आज भी यह उत्तर प्रदेश में ही है परंतु जिला गाजियाबाद बन गया है । लेकिन इसमें समय के साथ जो बदलाव आया अब मैं उसकी चर्चा करता हूं
आपको याद होगा दिसंबर 1994 में भारत सरकार ने डब्ल्यूटीओ पर हस्ताक्षर किए थे और इसके साथ ही शिक्षा और स्वास्थ्य में दिए गए अनुदान में कमी करने का प्रावधान था । इसके कारण से अब सरकार को शिक्षा पर अनुदान नहीं देना था, एक साथ रोक देना संभव नहीं था और इस पूरे अनुदान को समाप्त करने के लिए डब्ल्यूटीओ की तरफ से सरकार को 20 वर्ष का समय भी दिया गया था । तो हमारे इस विद्यालय में भी धीरे-धीरे करके अनुदान की कमी होती गई । पहले यह विद्यालय फैक्ट्री आयुध निर्माणी के अधिकारियों के बच्चों को भी पढ़ाता था, अब धीरे-धीरे क्योंकि अनुदान के बाद, शायद खर्चे में कमी के कारण अधिकारियों के बच्चे यहां से हटाए जाने लगी दूसरा यह विद्यालय पूर्ण रूप से हिंदी माध्यम में था और बदलते समय के साथ लोग अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम में पढ़ाना चाहते थे इस कारण से भी बच्चों को वहां से हटाया जाने लगा । लेकिन हटाया उसी ने मात्र, जो सक्षम था अंग्रेजी विद्यालय में अपने बच्चे पढ़ाने के लिए । धीरे-धीरे समय ऐसा आया किस सरकार ने इस अनुदान को तो बंद किया अधिकारियों को एजुकेशन एलाउंस अथवा शिक्षा भत्ता के नाम पर पैसा देना शुरू कर दिया । अब सरकार ने स्कूल पर खर्चा करना कम कर दिया परंतु अधिकारियों को अलग से पैसा देना शुरू कर दिया ।
इस शिक्षा भत्ते की शुरुआत सन 2008 में हुई थी। आज यहां पर प्रति संतान के लिए लगभग ₹28000 प्रतिवर्ष का शिक्षा भत्ता दिया जाता है। मुझे अपनी जगह पर यह समझ नहीं आया किस सरकारी कर्मचारी, अथवा अधिकारी वर्ग को शिक्षा भत्ता देना बेहतर था उच्च विद्यालय को अनुदान देना बेहतर था । लेकिन आप समझ सकते हैं यह पूरा की पूरी प्रक्रिया डब्ल्यूटीओ के आदेशों के तहत की गई थी। धीरे-धीरे करके इस विद्यालय में जो कि हिंदी माध्यम से है वही लोग अपने बच्चों को पढ़ाने लगे जो अपने बच्चों को बाहर या माध्यमिक पढ़ाने में संकोच करते थे चाहे उसका कारण या कोई और आर्थिक हो या कोई और ।
शिक्षा भत्ता देने के बाद आज 12 वर्षों बाद विद्यालय कैसे कबार पर खड़ा है जहां पर बहुत प्रतिभावान छात्र कम ही आते हैं । जब मैं भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान जिसे आईआईटी कहा जाता है के एक अधिकारी से 2008 में मिला तुमने उनसे प्रश्न किया कि निजी संस्थानों से इंजीनियरिंग करने में और iit से इंजरिंग करने में क्या अंतर है? क्या आपके यहां पढ़ाने की, या प्रयोगशाला कहिए कार्यशाला कहिए बेहतर है बेहतर है निजी संस्थानों से?
उत्तर स्पष्ट था कि इस संस्थान में ऊंची बौद्धिक क्षमता के विद्यार्थी आते हैं बेहतर पढ़ पाते हैं और जहां तक आधारभूत सुविधाओं का प्रश्न है निजी संस्थानों में वह हमसे कहीं बेहतर हैं उस समय से मेरे मन में यह बात थी यदि बौद्धिक क्षमता और कौशल को विकसित किया जाए, तो वह कहीं भी पड़ सकता है । अपने इस विद्यालय को देखकर मुझे इसीलिए क्षोभ हुआ अब यहां पर हम बौद्धिक क्षमता का विकास नहीं कर पा रहे हैं उसका कारण स्पष्ट है यहां आने वाला विद्यार्थी विद्यार्थी से अपने आपको हमेशा कमतर ही समझता है इसके कारण जीवन के क्षेत्र में अपनी हीन भावना में रहेगा जो किसी भी व्यक्ति के लिए अच्छी बात नहीं।
देश का कौशल, देश की क्षमता ना तो सड़कों से होती है न ही पुलों से होती है और न ही बड़ी गाड़ियों से होती है । देश की वास्तविक धन यहां की युवा क्षमता और बौद्धिक क्षमता है मुझे लगता है इसके लिए किसी बड़े परिवर्तन की आवश्यकता है ।
यदि मात्र गाड़ियां और सड़कें ही प्रगति और बौद्धिक कौशल की पहचान होती तो एक भी भारतीय को अमेरिका अथवा कोई भी देश अपने साथ नहीं रखता । क्योंकि यह जो व्यवस्था अब चल रही है यह व्यवस्था तो मात्र धनी व्यक्तियों को शिक्षा देने के लिए चल रही है। आप ध्यान दें देश के सबसे बड़े औद्योगिक संस्थान मैं आज विद्यार्थी के अभिभावक को लगभग 300000 प्रति वर्ष देना पड़ता है जो आज से 5 साल पहले लगभग 70000 प्रतिवर्ष था। इन 5 वर्षों में अभिभावक का खर्चा 4 से 5 गुना बढ़ गया है। कल्पना करें यदि किसी अभिभावक के दो बहुत मेधावी पुत्र आईटी में आज पढ़ें खुल्ला ₹4000 प्रति माह उन बच्चों को सबसे बड़े प्रौद्योगिकी संस्थान में पढ़ाने का खर्चा है क्या हमारे देश का आम नागरिक आम अभिभावक इस खर्चे को उठाने के लिए तैयार हैं।