जिस समाज मे नारी शक्ति हो, उसमें भाई से रक्षा बंधन होना चाहिए या स्नेह बंधन ! आइये विचारें

रक्षा बंधन पर विशेष :

आज आप सब को रक्षा बंधन की बधाइयों के संदेश प्राप्त हुए हैं । आज सभी भाई बहन आपस मे इसी कारण से मिल कर एक दूसरे के साथ समय व्यतीत करते हैं। अब आइये इसके इतिहास पर विचार करते हैं । आधुनिक इतिहास मे सबसे पुराना वर्णन सिकंदर की पत्नी का राजा पुरू को राखी बांधने के रूप मे मिलता है । यह घटना 335 ईसा पूर्व की है । उसके बाद लगभग 15वी शताब्दी की कथा सबसे अधिक प्रचलित है ।   मुगल बादशाह हुमायूँ को चित्तौड़ की रानी कर्णावती ने उस समय के गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह के आक्रमण से बचाने के लिए, राखी भेजी थी । वही रवीन्द्र नाथ टैगोर ने जब बंगाल को अंग्रेजों ने  धार्मिक आधार पर बाँट दिया तो, उन्होने हिंदुओं और मुसलमानों को एक सूत्र मे रहने के लिए इस प्रकार से एक दूसरे को प्रेम सूत्र बंधन एको कहा जिसे कुछ लोग राखी भी कहते है ।

उनसे पुराने भी कुछ कथाएँ आपको मिल जाएंगे, राजा बाली की, यम और यमी की और यहाँ तक कि महारानी कुंती के अपने पौत्र अभिमन्यु को राखी बांधने का भी वर्णन है । वही शिशुपाल के वध के समय द्रौपदी ने कृष्ण   के लहूलुहान कलाई पर साड़ी का टुकड़ा खून रोकने के लिए बांध दिया था ।

इन सभी प्रकरणों के बाद आज को राखी का स्वरूप है उस पर कुछ विचार की आवश्यकता है । इस प्रकार के किसी भी पर्व का वर्णन वेद में तो निश्चित ही नहीं है । शायद और धर्म ग्रन्थों मे भी नहीं है । आइये इसके ज़रा विस्तार से समझें । आज यह कहा जाता है कि बहन भाई से रक्षा करने को कहती है और भाई उसे रक्षा का आश्वासन देता है । बस इसे ही तनिक ध्यान दे कर समझें ।

क्या वह समाज कभी परिपक्व और आदर्श कहा जा सकता है जिसमें बहनों, बेटियों या माताओं को असुरक्षा प्रतीत हो ।और असुरक्षा भी किससे, उसी समाज मे रहने वाले किसी और पुरुष से अर्थात किसी और के भाई से । मेरी व्यक्तिगत राय से तो यह समाज की अवधारणा भारतीय मूल समाज की नहीं हो सकती । हम भारतीय उस समाज में विचरते थे कि जिसमें समाज के सभी पुरुष और नारी यथायोग्य सन्मान से जीते थे । किसी में भी असुरक्षा की भावना नहीं थी । इस प्रकार की व्यवस्था के लिए पूरा समाज उत्तरदायित्व निभाता था ।

वहीं दूसरी तरफ क्या हम यह स्वीकार करते हैं कि इस देश की नारियां अशक्त हैं ? आप तनिक ध्यान दें तो कहीं पर भी पुरुष शक्ति शब्द का प्रयोग नहीं होता है। एक तरफ तो मेरे देश मे नारी शक्ति है और फिर उसे असुरक्षा के कारण अपने भाई से सुरक्षा का आश्वासन  लेना पड़ रहा है । क्या ऐसा समाज सभ्य माना जाए ? और इसी सामाजिक ताने बाने के बीच एक और शब्द प्रचलित हुआ है, घरेलू हिंसा या domestic violence । यह घरेलू हिंसा के अत्यधिक मामले आपको नारी उत्पीड़न के मिलेंगे, जिसमें उत्पीड़न उसके पति या उसके ससुराल से है । अब यदि किसी महिला को अपने पति से सुरक्षा चाहिए तो व्यावहारिक रूप से क्या भाई दे सकता है ? ऐसा नहीं है कि पुरुष घरेलू हिंसा के शिकार नहीं होते । आज आपके समाज ने कानून बना कर, कुछ नारियों के विशेषाधिकार वाले कानून बना दिये हैं । परंतु क्या यह घरेलू हिंसा उससे रुकी ? इस घरेलू हिंसा को जन्म देता है सामाजिक और पारिवारिक ताना बाना ।

इसके साथ ही यह समझना पड़ेगा कि क्या रक्षा का आश्वासन केवल शारीरिक हिंसा से ही होगा । मैं ऐसी कई नारियों को जानता हूँ, जो कि अपने घर परिवार को संभालती है, बाहर नौकरी या कोई दूसरा व्यवसाय भी करती हैं । लेकिन इतना सब होते हुए भी जब वह पारिवारिक विचार में सम्मिलित होती है तो पति अथवा उनका भाई भी उनसे कहता है कि तुम शांत रहो, तुम्हें कुछ पता नहीं है । कई बार तो इसी बात का ताना मिलता है कि, व्यवसाय चला रही तो समझती हो तुम बहुत होशियार हो । ऐसे पुरुष भले ही भाई हों या पति या अन्य कोई और एक बात तो स्पष्ट है कि उन्हे नारी का सन्मान करना ही नहीं आता । ऐसे परिवारों के पुत्रों में यह भावना घर कर जाती और वह आने वाले समय में आपकी पत्नी से वैसा ही व्यवहार करते हैं, वहीं ऐसे परिवार की पुत्रियाँ यह मान लेती हैं कि पति से तिरस्कृत होना एक साधारण बात है ।  ऐसे परिवार का पति अपनी बहन की क्या रक्षा करेगा, जो अपनी पति को स्वयं ही अपमानित करता हो । वह किस रक्षा बंधन को निभाएगा ?

और तीसरी ओर आज की भारतीय सरकार बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ का नारा दे रही है । तो बेटी बचे और पढे परंतु समाज मे असुरक्षा !! उसके लिए उसको भाई चाहिए, जो बेशक न पढे और न ही सुसंस्कृत हो । अंत मे बंधन शब्द भी समझें, प्रेम के अतिरिक्त कोई भी श्रेष्ठ नहीं है । आप इसे यदि बहन भाई के प्रेम बंधन का नाम दे सकते हैं ।

जनसंख्या के आधार पर जब आप किसी भी जाति  को आरक्षण देने की बात करते हैं । तो यह स्पष्ट लगता है कि तथाकथित आज़ादी (मुझे इस परतंत्रता पर संदेह ही नहीं, विश्वास है की हम मानसिक रूप से स्वतंत्र नहीं है) पर  जिन्होने परिवार को नियोजित किया उस जाति को तो हानी हुई और जो अपने जाति की जनसंख्या बढ़ा गए उन्हे आप प्रोत्साहित करें, उन्हे और अधिक आरक्षण दे कर । क्या यह दोनों विरोधाभासी विचार नहीं हैं ?

मेरी व्यक्तिगत राय मे समाज में क्या पुरुष क्या नारी, सबको चरित्रवान बनाने का काम समाज करे और परिवार उसमें पूर्ण योगदान दे । मेरे विचार से यह काम समाज ही कर सकता है और समाज ही करेगा । और समाज के किए इसी काम का एक बहुत ही अहम हिस्सा है आज की शिक्षा प्रणाली । किसी  कानून से समाज तोड़ा तो जा सकता है परंतु जोड़ा नहीं जा सकता । यह आज शिक्षा का मुख्य उद्देश्य होना चाहिए । आप सच्चा भारतीय बनाएँ । चिकित्सक अभियंता या कुछ और तो भारतीय युवा अपने आप बन जाएगा । इतनी क्षमता मेरे देश के युवाओं मे है, मुझे इसमें तनिक भी संदेह नहीं है । कानून को आप इससे ही समझ सकते हैं कि इस देश मे सात लाख से अधिक गांवों के होने के बाद भी मात्र 13000 पुलिस स्टेशन हैं । क्योंकि आज भी देश का व्यक्ति समाज के बहिष्कार से अधिक  भयभीत है, न कि कानून से ।   आइये सामाजिक ताने बाने को सही शिक्षा दे कर व्यवस्थित करने का प्रयास करें । इस अंग्रेज़ियत की शिक्षा का दुष्परिणाम आप देख ही रहा हैं

एक विचार

आदर्श धवन

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