चैत्र शुक्ल प्रतिपदा/ विक्रम संवत क्या है ? इसी समय नवरोज़, नवरेह, उगादि और गुड़ी पड़वा इत्यादि भी है !!

आज आप सबको नव संवत्सर, चैत्र शुक्ल प्रतिपदा और नव रात्रि इत्यादि के शुभ कामनाओं वाले संदेश प्राप्त हो रहा हैं । बहुत से लोगों को हिन्दू नव वर्ष के नाम से अभी संदेश मिल रहे हैं । अभी दो महीने पहले भी मकर संक्रांति के दिन भी नव वर्ष की शुभ कामनाओं के संदेश प्राप्त हुए हैं । इसी तरह 1 जनवरी को भी नव वर्ष के संदेश मिलते है । आज ही आपको बैसाखी के समय, भी नव वर्ष के संदेश मिलेंगे । अब इतने संदेश, इतने वर्ष क्यों और क्या इनमे कुछ संबंध है । आइये इसको समझें ।

काल या समय की गणना का मूल है धरती, सूर्य और चंद्रमा इत्यादि का एक निश्चित अवधि में परिक्रमा करना । अब इसके तीन मुख्य भाग हुए । एक तो रहा सौर वर्ष, और दूसरे चंद्र वर्ष और एक नक्षत्र पर आधारित । हिन्दू पंचांग, जिसके पाँच अंग है (तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण) के अनुसार ही इसकी गणना की जाती है । आज के अँग्रेजी कलेंडर जिसे Gregorian calendar भी कहते है लगभग सौर वर्ष पर आधारित है । प्रत्येक परंपरा में एक वर्ष में 12 मास या महीने किए जा रहे हैं । इन सभी वर्षों के सिद्धान्त को समझ से पहले हम कुछ व्यवाहरिक रूप से भी समझें ।

भारत एक कृषि प्रधान देश है । तो कृषि की व्यवस्था के अनुसार होली से बैसाखी के बीच में ही कहीं कृषक की नई खेती की परिकल्पना है । पिछली फसल कट जाती है और नई लगाई जाती है रबी की फसल की कटाई मार्च में होती है । उसके बाद खेत कि उचित व्यवस्था करके सिंचाई को देखते हुए लगभग जुलाई में रबी की फसल लगाई जाती है।     की अब भारत के शैक्षिक वर्ष को देखें तो वह भी मार्च माह में समाप्ती पर है । अब उद्दयोग और व्यापारियों का वर्ष देखें तो भी वह अप्रैल से मार्च का होता है । भारत सरकार का वित्तीय वर्ष भी अप्रैल से मार्च है । वित्तीय वर्ष और शैक्षिक वर्ष तो पूरे विश्व का अप्रैल से मार्च ही है ।

अब भारत के परिवेश में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, या नवरात्र, विक्रमी संवत, के साथ ही नारोज़ (पारसी) नवरेह (कश्मीरी) गुडी – पड़वा (महाराष्ट्र), उगाड़ी (तेलुगू नव वर्ष) अलग अलग प्रदेशों में मनाया जाता है । इसी के आस पास अप्रैल में पंजाब का बैसाखी, तमिल नव वर्ष इत्यादि मनाया जाता है । तो यह प्रतीत होगा कि यह समय नए वर्ष के रूप में सर्वाधिक उपयुक्त है । जो लोग लेखा जोखा इत्यादि करते है अर्थात CA या accounts वाले वह सब समझते है कि अपनी वित्तीय स्थिति विवरण या बैलेन्स शीट में विविध खर्चे/आय को अंत मे लिखते है । यही काम अँग्रेजी कलेंडर में फ़रवरी महीने मे होता है इसके लिए भी मार्च लगभग पहला महीने यथोचित भी लगता है ।

अब पहले सौर वर्ष की बात करें :

सौरमास का आरम्भ सूर्य की संक्रांति से होता है। सूर्य की एक संक्रांति से दूसरी संक्रांति का समय सौरमास कहलाता है। यह मास प्राय: तीस, इकतीस दिन का होता है। कभी-कभी अट्ठाईस और उन्तीस दिन का भी होता है। मूलत: सौरमास (सौर-वर्ष) 365 दिन का होता है।

तारे हमारे सौर जगत् के भीतर नहीं है। ये सूर्य से बहुत दूर हैं और सूर्य की परिक्रमा न करने के कारण स्थिर जान पड़ते हैं—अर्थात् एक तारा दूसरे तारे से जिस ओर और जितनी दूर आज देखा जायगा उसी ओर और उतनी ही दूर पर सदा देखा जायगा। इस प्रकार ऐसे दो चार पास-पास रहनेवाले तारों की परस्पर स्थिति का ध्यान एक बार कर लेने से हम उन सबको दूसरी बार देखने से पहचान सकते हैं। पहचान के लिये यदि हम उन सब तारों के मिलने से जो आकार बने उसे निर्दिष्ट करके समूचे तारकपुंज का कोई नाम रख लें तो और भी सुभीता होगा। नक्षत्रों का विभाग इसीलिये और इसी प्रकार किया गया है।

यदि पृथ्वी, सूरज के केन्द्र और पृथ्वी की परिक्रमा के तल को चारो तरफ ब्रम्हाण्ड में फैलायें, तो यह ब्रम्हाण्ड में एक तरह की निश्चित आकृति सा  बना लेगा। इस आकृति को हम 12 बराबर भागों में बांटें तो हम देखेंगे कि इन 12 भागों में कोई न कोई तारा समूह आता है। हमारी पृथ्वी और ग्रह, सूरज के चारों तरफ घूमते हैं या इसको इस तरह से कहें कि सूरज और सारे ग्रह पृथ्वी के सापेक्ष इन 12  तारा समूहों से गुजरते हैं। यह किसी अन्य तारा समूह के साथ नहीं होता है इसलिये यह 12 महत्वपूर्ण हो गये हैं। इस तारा समूह को हमारे पूर्वजों ने कोई न कोई आकृति दे दी और इन्हे राशियां कहा जाने लगा। यदि आप किसी आखबार या टीवी पर राशिचक्र को देखें या सुने तो पायेंगें कि वे सब मेष से शुरू होते हैं, यह अप्रैल-मई का समय है।

12 राशियों को बारह सौरमास माना जाता है। जिस दिन सूर्य जिस राशि में प्रवेश करता है उसी दिन की संक्रांति होती है। इस राशि प्रवेश से ही सौरमास का नया महीना ‍शुरू माना गया है। सौर-वर्ष के दो भाग हैं- उत्तरायण छह माह का और दक्षिणायन भी छह मास का। जब सूर्य उत्तरायण होता है तब हिंदू धर्म अनुसार यह तीर्थ यात्रा व उत्सवों का समय होता है। पुराणों अनुसार अश्विन, कार्तिक मास में तीर्थ का महत्व बताया गया है। उत्तरायण के समय पौष-माघ मास चल रहा होता है।

मकर संक्रांति के दिन सूर्य उत्तरायण होता है जबकि सूर्य धनु से मकर राशि में प्रवेश करता है। सूर्य कर्क राशि में प्रवेश करता है तब सूर्य दक्षिणायन होता है। दक्षिणायन व्रतों का और उपवास का समय होता है जबकि चंद्रमास अनुसार अषाढ़ या श्रावण मास चल रहा होता है। व्रत से रोग और शोक मिटते हैं। दक्षिणायन में विवाह और उपनयन आदि संस्कार वर्जित है, जब कि अग्रहायण मास में ये सब किया जा सकता है अगर सूर्य वृश्चिक राशि में हो। और उत्तरायण सौर मासों में मीन मास मैं विवाह वर्जित है।

सौरमास के नाम : मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्‍चिक, धनु, मकर, कुंभ, मीन।

सूर्य के धनुसंक्रमण से मकरसंक्रमण तक मकर राशी में रहता हे। इसे धनुर्मास कहते है। इस माह का धार्मिक जगत में विशेष महत्व है।

अब चंद्र वर्ष

चंद्रमा की कला की घट-बढ़ वाले दो पक्षों (कृष्‍ण और शुक्ल) का जो एक मास होता है वही चंद्रमास कहलाता है। यह दो प्रकार का शुक्ल प्रतिपदा से प्रारंभ होकर अमावस्या को पूर्ण होने वाला ‘अमांत’ मास मुख्‍य चंद्रमास है। कृष्‍ण प्रतिपदा से ‘पूर्णिमात’ पूरा होने वाला गौण चंद्रमास है। यह तिथि की घट-बढ़ के अनुसार 29, 30 व 28 एवं 27 दिनों का भी होता है। पूर्णिमा के दिन, चंद्रमा जिस नक्षत्र में होता है उसी आधार पर महीनों का नामकरण हुआ है। सौर-वर्ष से 11 दिन 3 घटी 48 पल छोटा है चंद्र-वर्ष इसीलिए हर 3 वर्ष में इसमें 1 महीना जोड़ दिया जाता है। सौरमास 365 दिन का और चंद्रमास 355 दिन का होने से प्रतिवर्ष 10 दिन का अंतर आ जाता है। इन दस दिनों को चंद्रमास ही माना जाता है। फिर भी ऐसे बड़े हुए दिनों को ‘मलमास’ या ‘अधिमास’ कहते हैं।

चंद्रमास के नाम चैत्र वैशाख ज्येष्ठ श्रावण भाद्रपद आश्विन कार्तिक मार्गशीर्ष पौष माघ और फाल्गुन

नक्षत्र मास

आकाश में स्थित तारा-समूह को नक्षत्र कहते हैं। साधारणतः यह चंद्रमा के पथ से जुडे हैं। ऋग्वेद में एक स्थान पर सूर्य को भी नक्षत्र कहा गया है। अन्य नक्षत्रों में सप्तर्षि और अगस्त्य हैं। नक्षत्र से ज्योतिषीय गणना करना वेदांग ज्योतिष का अंग है। नक्षत्र हमारे आकाश मंडल के मील के पत्थरों की तरह हैं जिससे आकाश की व्यापकता का पता चलता है। वैसे नक्षत्र तो 88 हैं किंतु चंद्र पथ पर 27 ही माने गए हैं। चंद्रमा अश्‍विनी से लेकर रेवती तक के नक्षत्र में विचरण करता है वह काल नक्षत्रमास कहलाता है। यह लगभग 27 दिनों का होता है इसीलिए 27 दिनों का एक नक्षत्रमास कहलाता है।

महीनों के नाम पूर्णिमा के दिन चंद्रमा जिस नक्षत्र में रहता है:

  1. चैत्र: चित्रा, स्वाति।
  2. वैशाख: विशाखा, अनुराधा।
  3. ज्येष्ठ: ज्येष्ठा, मूल।
  4. आषाढ़: पूर्वाषाढ़, उत्तराषाढ़, सतभिषा।
  5. श्रावण: श्रवण, धनिष्ठा।
  6. भाद्रपद: पूर्वभाद्र, उत्तरभाद्र।
  7. आश्विन: अश्विन, रेवती, भरणी।
  8. कार्तिक: कृतिका, रोहणी।
  9. मार्गशीर्ष: मृगशिरा, उत्तरा।
  10. पौष: पुनर्वसु, पुष्य।
  11. माघ: मघा, अश्लेशा।
  12. फाल्गुन: पूर्वाफाल्गुन, उत्तराफाल्गुन, हस्त।

सभी प्रकार की गणना में आपको जो उचित लगे उसे समझे और प्रयोग में करें ।

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