क्या भारत लोकतन्त्र के लिए परिपक्व है ?

अभी पिछले लेख में मैंने यह कहने का प्रयास किया किस प्रकार की मजबूरियां हैं, उनके (सरकार ) पास धन ही नहीं है। अब वह आप के विकास के लिए केंद्र सरकार से पैसा कैसे मिलेगा ?

 अब हम इस बात को समझने का प्रयास करते हैं सरकार के पास इतना कर्जा क्यों है, यदि इतिहास में जाएंगे तो आपको इसके बहुत से कारण और या भी कि  1966 से नियमित रूप से से कर्जा लिया जा रहा है आपको पता लग जाएगा। परंतु मैं यहां यह कहना चाहता हूं कि भारत सरकार, प्रत्येक सांसद पर 2.7  रूपया लाख रुपया प्रति महीना खर्च करती है। इसको यदि आप देखेंगे तो सिर्फ मात्र लोकसभा के सांसद 5 वर्ष का खर्चा लगभग 900 करोड आता है। इसके अतिरिक्त प्रति सांसद प्रति बैठक 2000 रुपये लोकसभा में बैठने का मिलता है। अब प्रश्न यह है के जो  900 करोड़ रूपया खर्च किया जाता है, उसके अतिरिक्त आपको अपना काम करने के लिए, यानी संसद में बैठने के लिए ही 2000 रुपये  मिलता है।

इसके अतिरिक्त प्रति विधायक 2 करोड़ रूपया सालाना और प्रति सांसद   5 करोड़ अपने अपने क्षेत्र के विकास मिलता है। अब मैं जब जब यह प्रश्न उठाता हूं क्या हम पूर्ण रूप से विकसित हैं लोकतंत्र को चलाने के लिए ? इसका कारण यह है हम में  से कितने मतदाता अपने पास आए हुए विधायक या सांसद से यह प्रश्न उठाते हैं कि आपने इस सांसद या विधायक निधि से कितना विकास किया है ?  आपके आसपास विधायक को 2 करोड़ रूपया प्रतिवर्ष मतलब एक पाँच वर्ष के कार्यकाल में 10 करोड़ मिलता है।

कई बार यह प्रश्न  भी उठता है, और यह प्रश्न ठीक भी है कि जब सांसद एक बार लोकसभा में जाता है, चाहे एक दिन के  लिए भी,  उस सांसद को पेंशन और दूसरी सुविधाएं उपलब्ध रहती है पूरे जीवन भर ।  सरकारी कर्मचारी को एक नियत समय तक सरकार में अपने सेवा देनी पड़ती थी जिसके बाद में पेंशन और अन्य सुविधाओं का अधिकारी होता था । परंतु यदि सांसद 1 दिन के लिए भी संसद में चयनित होगा तो उसके ऊपर जीवन भर पेंशन और अधिक सुविधाएं मिलने का प्रावधान है। इस पर जो खर्चा आता है उसको मीन और आप लोग अपनेकर से करते हैं ।  अब हम में से कितने लोग अपने विधायक या सांसद से यह पूछते हैं कि आपको जीवन पर्यंत सुविधा क्यों मिले जबकि आपने एक अल्प समय के लिए योगदान दिया है, वह भी  यदि दिया है तो । एक सांसद का, विधायक का यह कर्तव्य है कि  वह संसद में और विधानसभा में अपने अपने क्षेत्र की कमियां और उनके निराकरण के लिए प्रश्न उठाएँ और उनके लिए नई योजनाएं बनवाए जिससे उस क्षेत्र का विकास हो। यहां पर एक प्रश्न और आता है बहुत से सांसद तो संसद में एक मूकदर्शक की भांति रहते हैं और कुछ तो ऐसे भी हैं जिनहोने  संसद मे एक बार चेहरा भी नहीं दिखाया, परंतु वह सांसद हैं। हमारे देश में बच्चे, विद्यार्थी जहां जहां शिक्षा लेटेहाई या प्रशिक्षण लेते हैं,  लगभग हर संस्थान में 60 प्रतिशत से 75 प्रतिशत तक यदि उनकी उपस्थिति ना हो, उन्हे  परीक्षा में नहीं बैठने दिया जाता। यह भारत के गांव, शहर और कस्बे के लिए युवाओं के लिए नियम है । प्रश्न यह है कि क्या सांसदों सांसदों के लिए उपस्थिति का कोई नियम है ? आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि उनके लिए इ सप्रकार  का कोई भी नियम नहीं है।

अब आप का ध्यान एक और बात की ओर मैं आकर्षित करना चाहता हूं जब प्रति सांसद 5 करोड़ अपने क्षेत्र के विकास के लिए मिलता है, इसका अर्थ ये हुआ कि एक सांसद को अपने क्षेत्र अपने पूर्ण कार्यकाल में 25 करोड़  मिलता है। पहला प्रश्न तो पुराना है, कि कितने सांसदों ने उस पर अपने अपने क्षेत्र में काम किया है।  इसके अतिरिक्त यह भी जानिए कि पिछली संसद  में 1735 करोड़ रूपया बिना खर्चे के रह गया है,  इस का अर्थ जितना धन किसी सांसद को अपने क्षेत्र में विकास के लिए दिया गया सांसद ने उसका उपयोग नहीं किया ।

क्या वह उचित है है कि एक दिवस के लिए चुने जाने पर सांसद को और विधायक  को इतनी सुविधाएं क्यों है ? अब यह प्रश्न तो, कि इस नियम को बदलने का प्रावदान उन्हीं के हाथ में है जिनसे सुविधाएं छीनी जाएंगी, तो क्या वह करेंगे या क्या हमें उनसे उम्मीद रखनी चाहिए ?  समाज से बहुत बड़ी संख्या  में उन पर विरोध नहीं होगा, तब तक वह इसका कुछ नहीं करेंगे । प्रश्न दूसरा यह है कि जो पैसा उनको क्षेत्र के विकास के लिए मिला, उन्होंने उसका भी  उपयोग नहीं किया। कुछ सांसद तो ऐसे हैं जिन्होने जिस गांव को गोद लिया वह कभी वहाँ गए भी नहीं । राज्यसभा में भी इसका अपवाद नहीं है हमारे कुछ सांसद ऐसे हैं कि जिन्होने ऐसा की कुछ केआर दिखाया है ।  सचिन तेंदुलकर,  रेखा इत्यादि इसी श्रेणी मे आते  हैं ।  

जब जब विख्यात व्यक्ति, चाहे वह सिनेमा का हो या उदद्योग जगत का, को चुनाव में जिताया, अधिकांश ने कुछ ही समय में उन्होंने राजनीति से संन्यास ले लिया। जिस समय उन्हें जनता ने चुना, प्रेम दिया और संसद में बिठाया उस समय भारतीय नागरिकों की अपेक्षा थी, क्योंकि वह संपन्न है और समाज मे उनकी प्रतिष्ठा है । इसलिए अगर आवश्यकता पड़ी तो अपनी से भी पैसा खर्च करके भी क्षेत्र का विकास करेंगे परंतु देखने में यह आया, उन्होंने अपना धन तो क्या लगाना था सरकार का दिया हुआ धन भी सरकार को लौटा दिया गया । भारत की इस संसद में 1735 करोड़ रुपए सांसद निधि का, जिसको उन्होंने खर्च करना था आपके के विकास के लिए, वह वापस आ गया है। अब कि 543  सांसद और हर एक को 25 करोड़ मिला, 1735  करोड़ वापस आ गया मतलब 12.78 % से अधिक धन का उपयोग ही नहीं किया गया। क्या हम सबको समाज में मिलकर सरकार से यह प्रश्न  नहीं पूछना चाहिए, कि  हमारे विकास का धन है जिस जिस सांसद ने समाप्त नहीं किया, उस  पर या तो कार्यवाही, चलिए यह तो नहीं करेंगे, परंतु कम से कम उनके नाम सार्वजनिक कर दिए जाए जिससे जब अगली बार सांसद या विधायक मेरे पास आए तुम्हें उससे प्रश्न पूछ सकूं कि आप ने सरकारी धन का व्यय क्यों नहीं किया ?

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